परयूशन के बारे में पूरी जानकारी – Paryushan in Hindi

पर्युषण का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना। श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं।

परयूशन के बारे में पूरी जानकारी – Paryushan in Hindi

यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- ‘संपिक्खए अप्पगमप्पएणं’ अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।

पर्यूषण के 2 भाग हैं- पहला तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण तथा दूसरा अनेक प्रकार के व्रतों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व वाचिक तप में स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना। इस दौरान बिना कुछ खाए और पिए निर्जला व्रत करते हैं।
श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे ‘दसलक्षण’ कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्नव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।

इन दिनों साधुओं के लिए 5 कर्तव्य बताए गए हैं- संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपश्चर्या, आलोचना और क्षमा-याचना। गृहस्थों के लिए भी शास्त्रों का श्रवण, तप, अभयदान, सुपात्र दान, ब्रह्मचर्य का पालन, आरंभ स्मारक का त्याग, संघ की सेवा और क्षमा-याचना आदि कर्तव्य कहे गए हैं।

पर्युषण पर्व के समापन पर ‘विश्व-मैत्री दिवस’ अर्थात संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर ‘उत्तम क्षमा’ तो श्वेतांबर ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।

जैन समाज का सबसे पावन त्योहार पर्युषण पर्व आज यानी सोमवार से शुरू हो गया. जैनियों की श्वेताम्बर शाखा के अनुयायी जहां अगले 8 दिनों तक यह पर्व मनाएंगे, वहीं दिगम्बर समुदाय के जैन धर्मावलंबी 10 दिनों तक इस पावन व्रत का पालन करेंगे. पर्युषण पर्व को लेकर सोमवार से पहले ही जिनालयों, मंदिरों और अन्य आराधना स्थलों की साफ-सफाई करा ली गई है. पर्युषण पर्व को जैन समाज में सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, इसलिए इसे पर्वाधिराज भी कहते हैं. भादो महीने में मनाए जाने वाले इस पर्व के दौरान धर्मावलंबी जैन धर्म के पांच सिद्धांतों- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक धन जमा न करना) व्रत का पालन करते हैं.

पर्युषण का सामान्य अर्थ है मन के सभी विकारों का शमन करना. यानी अपने मन में उठने वाले हर तरह के बुरे विचार को इस पर्व के दौरान समाप्त करने का व्रत ही पर्युषण महापर्व है. जैन धर्मावलंबी इस पर्व के दौरान मन के सभी विकारों- क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या और वैमनस्य से मुक्ति पाने का मार्ग तलाश करते हैं. साथ ही इन विकारों पर विजय पाकर शांति और पवित्रता की तरफ खुद को ले जाने का उपाय ढूंढते हैं. भाद्रपद यानी भादो मास की पंचमी तिथि को शुरू होने वाला यह पर्व अनंत चतुर्दशी की तिथि तक मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने वाले अनुयायी भगवान महावीर के बताए 10 नियमों का पालन कर पर्युषण पर्व मनाते हैं.

जैन धर्म के दिगम्बर मत के अनुयायी पर्युषण पर्व के दौरान 10 दिनों तक विभिन्न व्रतों का पालन करते हैं. इसलिए इसे दशलक्षणा पर्व भी कहा जाता है. वहीं, श्वेताम्बर समुदाय के लोग इस पर्व को आठ दिनों तक मनाते हैं, इसलिए इस शाखा के अनुयायी पर्युषण पर्व को आष्टाहिक के रूप में भी मनाते हैं. हिंदुओं की नवरात्रि के समान माना जाने वाला यह पर्व जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत- अहिंसा के व्रत पर चलने की राह दिखाता है. इस पर्व के दौरान जैन धर्मावलंबी समस्त संसार के लिए मंगलकामना करते हैं और जाने-अंजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं. बरसात के मौसम में मनाया जाने वाला यह पर्व समाज को प्रकृति से जुड़ने की सीख भी देता है. इस पर्व के दौरान जैन समाज के श्रद्धालु पूरी निष्ठा के साथ धार्मिक व्रतों का पालन करते हैं.

पर्युषण पर्व को बरसात के मौसम में ही मनाने के पीछे जैन धर्म की व्यावहारिक सोच का पता चलता है. इस पर्व का मूल आधार चातुर्मासिक प्रवास है. चातुर्मास, यानी बरसात के मौसम के चार महीने. इन दिनों में धरती पर वर्षा की वजह से हरियाली बढ़ जाती है. छोटे-बड़े कई प्रकार के जीव-जंतु पैदा हो जाते हैं. साथ ही रास्तों पर कीचड़ या पानी जमा होने के कारण, मार्ग चलने योग्य नहीं होता. इसके मद्देनजर जैन मुनियों ने व्यवस्था दी है कि इन महीनों में धर्मावलंबियों को एक ही स्थान पर रहकर भगवत् आराधना करनी चाहिए.

पर्व के दौरान अनुयायी करते हैं ये प्रमुख काम

  • पर्युषण पर्व के दौरान सभी श्रद्धालु धर्म ग्रंथों का पाठ करते हैं. इससे संबंधित प्रवचन सुनते हैं.
  • पर्व के दौरान कई श्रद्धालु व्रत भी रखते हैं. पुण्य लाभ के लिए दान देना भी इसका एक अंग है.
  • मंदिरों या जिनालयों की विशेष सफाई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है.
  • पर्युषण पर्व के दौरान रथयात्रा या शोभायात्राएं निकाली जाती हैं.
  • मंदिरों, जिनालयों या सार्वजनिक स्थानों पर इस दौरान सामुदायिक भोज का आयोजन किया जाता है.