महामस्तक अभिषेक के बारे में पूरी जानकारी – Mahamastak Abhisheka in Hindi

जैन समुदाय के सबसे बड़े महोत्सव ‘महामस्तकाभिषेक’ की शुरुआत 7 फरवरी को कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में हो गई है। इस महोत्सव का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। ‘महामस्तकाभिषेक’ जैन समुदाय का सबसे बड़ा महोत्सव है जो हर 12 साल पर मनाया जाता है। देश-दुनिया से जैन लोग इसमें हिस्सा लेने के लिए श्रवणबेलगोला पहुंचते है। इसे जैनियों का कुंभ भी कहा जाता है।

महामस्तक अभिषेक के बारे में पूरी जानकारी – Mahamastak Abhisheka in Hindi

कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली की विशाल मूर्ती के ‘महामस्तकाभिषेक’ महोत्सव का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। सपरिवार यहां पहुंचे राष्ट्रपति कोविंद ने भगवान बाहुबली के जीवन पर प्रकाश डाला और जैन समुदाय की खूबियां बताईं। राष्ट्रपति ने कहा, ‘जैन परंपरा की धाराएं पूरे देश को जोड़ती हैं। मुझे वैशाली क्षेत्र में भगवान महावीर की जन्मस्थली और नालंदा क्षेत्र में उनकी निर्वाण-स्थली, पावापुरी में कई बार जाने का अवसर मिला। आज यहां आकर, मुझे उसी महान परंपरा से जुड़ने का एक और अवसर प्राप्त हो रहा है।’ इससे पहले साल 2006 में इसका उद्घाटन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था।

‘महामस्तकाभिषेक’ महोत्सव

‘महामस्तकाभिषेक’ जैन धर्म का सबसे लोकप्रिय और सबसे बड़ा महोत्सव है। हर 12 साल पर मनाया जाने वाला ये महोत्सव हर जैन के लिए काफी अहम रखता है और देश-दुनिया से जैन समुदाय के लोग इस महोत्सव के लिए श्रवणबेलगोला पहुंचते हैं। ‘महामस्तकाभिषेक’ भगवान बाहुबली के अभिषेक का महोत्सव है। बेंगलुरू से तकरीबन 150 किलोमीटर दूर श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली की 57 फीट ऊंची प्रतिमा है। जैन समुदाय हर 12 साल पर इसी प्रतिमा का ‘महामस्तकाभिषेक’ करते हैं।

जैन समुदाय भगवान बाहुबली को काफी मानता है। वो अयोध्या के राजा और तीर्थंकर ऋषभदेव के बेटे थे। जैन समुदाय के पहले तीर्थंकर रहे ऋषभदेव ने अपना पूरा राज-काज अपने 100 बेटों में बराबर बांटकर सन्यास ले लिया था। उनका सबसे बड़ा बेटा भरत राज्य पर एकाधिकार चाहता था। बाकी भाइयों ने भी उसे राजा मान लिया था लेकिन बाहुबली इसके लिए तैयार नहीं थे। इसलिए दोनों के बीच युद्ध का आयोजन कराया गया जिसमें बाहुबली ने आसानी से भरत को हरा दिया। भरत के साथ उनकी यही लड़ाई उनके जीवन में अहम रही। इस लड़ाई ने उन्हें सांसारिक चीजों की निरर्थकता का एहसास कराया जिसके बाद उन्होंने सबकुछ त्याग दिया।

981 ईसवीं में स्थापित की गई बाहुबली की प्रतिमा इस लड़ाई के बाद बाहुबली जंगल में चले गए और वहां जाकर तपस्या करने लगे। बाहुबली ने मोक्ष पाने के लिए साल भर तक निर्वस्त्र तपस्या की। उनकी तपस्या की कहानी खूब मशहूर हुई। जब ये पश्चिमी गंगा राजवंश के राजा राजमल्ल और उनके जनरल चौवुंद्रार्या ने सुनी तो काफी प्रभावित हुए। तब चौवुंद्रार्या ने भगवान बाहुबली की ये विशाल प्रतिमा बनवाकर चंद्रगिरी पहाड़ी के सामने विंध्यागिरी पहाड़ी पर 981 ईसवीं में स्थापित करवाया था। इसके सामने चंद्रगिरी पहाड़ी का नाम मौर्या राजवंश के राजा चंद्रगुप्त मौर्य के नाम पर रखा गया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने इसी पहाड़ी पर स्थित एक जैन मठ में अपने प्राण दे दिए थे।

भगवान बाहुबली की इस प्रतिमा को देखने के लिए सिर्फ जैन समुदाय के लोग ही नहीं, बल्कि भारत की जानीं-मानीं राजनैतिक हस्तियां भी पहुंचती हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु अपनी बेटी इंदिरा गांधी के साथ साल 1951 में यहां पहुंचे थे। इस महोत्सव की लीला देखकर वो भी अवाक रह गए थे। इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बार ‘महामस्तकाभिषेक’ में भाग लिया था। साल 1981 में इंदिरा गांधी ने हेलीकॉप्टर से भगवान बाहुबली की प्रतिमा पर फूलों की वर्षा करवाई थी।

इस साल ‘महामस्तकाभिषेक’ का आयोजन 17 फरवरी से 26 फरवरी के बीच किया जाएगा। इसमें भगवान बाहुबली की प्रतिमा पर कलश में दूध में हल्दी, चंदन, शहद और बाकी चीजें मिलाकर चढ़ाया जाएगा। ‘महामस्तकाभिषेक’ के पहले दिन भगवान बाहुबली को 108 कलश चढ़ाए जाएंगे। वहीं दूसरे दिन से अभिषेक के लिए 1008 कलश प्रयोग किए जाएंगे। इन कलश को चढ़ाने के लिए जैनियों में भारी बोली लगती है। इस साल का पहला कलश पूरे 12 करोड़ रुपये में बिका है। कलश से आई रकम को समाज के कल्याण में लगाया जाता है।