भगत सिंह पर निबंध – Essay On Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह

” मेरे सीने में जो छाले है,

ओ फूलों के गुच्छे है।

हम पागल है साहब, हमे पागल ही रहने दो,

क्युकी हम पागल ही अच्छे।”

भगत सिंह पर निबंध – Long and Short Essay On Bhagat Singh in Hindi

ये कहना था। हमारे देश के उस नवयुवक ,नौजवान , बलवान ,निडर और साहसी युवा स्वतंत्रा सेनानी का जिसका नाम बढ़े अादर के साथ  अमर शहीदों में बढ़े सम्मानित में गिना जाता है। जिसका नाम भगत सिंह है

भगत सिंह का जन्म -27 सितंबर 1907 ई. में लायलपुर जिले के बंगा में हुआ। जो अब पाकिस्तान में पड़ता है।और उनका पैतृक गव खटकड़ कला जो पंजाब भारत में पड़ता है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती देवी था। उनकी शिक्षा डी. ए. वी. स्कूल से हुई ।

इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उनको विवाह में बढ़ने की तैयारी हुई। किन्तु वे घर लाहौर  से भाग आए और कानपुर में  वह मात्र 14 वर्ष की आयु में पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में भाग लेने लगे। पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने भारत के आज़ादी के लिए एक दल का निर्माण किया जिसका नाम नौजवान भारत सभा रखा।

इसी बीच काकोरी कांड हुआ जिसमें उनके साथी समेत रामप्रसाद बिस्मिल एवं 4 अन्य को फसी व सोलह लोगो को कारावास की सजा सुनाई गई। इस घटना का उनके में को काफी आहत किया। जिससे उन्होंने चंद्रशेखर आजाद की पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक से जुड़े और एक नया नाम दिया।

जिसका नाम हिंदुस्तान सोसिलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएसन रखा गया। चंद्रशेखर आजाद से मिलके उन्होंने आजादी का मिशन आगे बढ़ी रहा था कि इसी बीच स्वतंत्रा सेनानी लालालाजपत राय जी की अंग्रेज़ो द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई । उनका बदला लेने के लिए अंग्रेज़ो के केंद्रीय असेंबली पर बम गिरा कर हमला कार दिया ।

जिसमे कई अंग्रेज अधिकारी मौत हो गई। भगत सिह ने 8 अप्रैल 1929 को बम गैराया व नारा दिया – इन्कलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। अंग्रेज़ो को चेतावनी समझ आगई थी और उन्होंने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, और अन्य साथी राजगुरु  सुखदेव को गिरफ्त में के लिए और केंद्रीय असेंबली बम काण्ड में  भगत सिंह और साथियों को फासी की सजा सुना दी गई।

किन्तु फासि से पहले उन्होंने आजादी का एक बहुत बड़ा बिगुल बजा दिया था ।

सभी भारतवासियों को जागृत कर दिया था, उनका दिया हुआ नारा, इन्कलाब जिंदाबाद, सभी स्वतंत्रा सेनानी के दिल में  कदर छाप छोड़ दिया था कि लोगों में आज़ादी कि एक नई लहर सी दौड़ गई। भगत सिंह, सुखदेव,राजगुरु को मार्च 1931 को शाम 7 बजाकर 33 मिनट पर तीनों को फसी से दी गई और इन तीनों क्रांतिकारियों ने हसते- हस्ते फसी के फंदे को गले लगा लिया, और देश के लिए अपना अमूल्य योगदान एवं बलिदान दिया

इन्कलाब जिंदबाद

जय हिन्द। जय भारत

भगत सिंह अमर रहे।