बैसाखी पर निबंध – Baisakhi Essay in Hindi

भारत वासी जानते है की भारत त्योहारों  देश है  सचमुच हर एक त्योहार हमारे लिए खुशियां लेकर आता है उन्ही त्योहारों मे से एक त्योहार है “बैसाखी “.  यहा पर कई धर्मो को मानने वाले लोग रहते है और सभी धर्मो के अपने अपने विचार और त्यहार है . इसी  तरह  यहा पर साल भर मे हर दिन किसी न किसी  धर्म को मानने वाले लोगो के लिए खास दिन होता है. यह समय और वक़्त  ही कुछ अलग  होता है, और साथ ही मे खेतो मे रबी की पसले पक कर लहलहाती है.

बैसाखी पर निबंध – 10 Lines On Baisakhi in Hindi

किसानो के मन मे भी  मे फसलों को देखकर वे बहुत ही  खुश होते है , और वे ये बैशाखी का  त्योहार मनाके अपनी खुशियों को व्यक्त  है . वैसे इस त्योहार को लेके  लोगों की अलग अलग मान्यता वह इसीलिए क्योंकी मानना  की सूर्य मेष राशि मे प्रवेश करता है, यह भी एक कारण त्योहार मनाये जाने का .आइए  अब हम बैसाखी के इतिहास के बारे मे जानेगे  की बैसाखी त्योहार की शुरुआत कहा से हुए और क्यों हुए और कब हुए कहा जाता है की  सन 1699 मे इस  दिन सिक्खो के अंतिम गुरु, गुरु गोबिन्द सिह जी ने सिक्खो को खालसा के रूप मे स्थापित  किया था, और यह भी एक कारण इस दिन को खास बनाने का .इस त्योहार के लिए भी काफी तैयारियाँ की जाती है जैसे दिवाली और अन्य बढे त्योहारों जैसे और इन त्योहारों के लिए जिस तरह पहले से ही तैयारी शुरू करते है,

उसकी प्रकार से इस त्योहार के लिए भी की जाती है , लोग आपने घरो की सफाई करते है, और लोग ज़्यादातर आगन मे रंगोली और लाइटिंग से सजाते है, घरो मे पकवान बनाया जाता है . इस दिन मे  पवित्र नदियो मे स्नान लेने का अपना अलग महत्व है.और सिख जो सुबह के समय से ही स्नान लेते है वे लोग गुरुद्वारे चले जाते है. इस दिन गुरुद्वारे मे गुरु जी के  ग्रंथो का पाठ पढ़ा  जाता है, और कीर्तन आदि करवाए जाते है. नदियो किनारे मेला आयोजित करवाया जाता है

ताकि लोग वाह दिन याद रख सकें  और इन मेलो मे काफी भीड़ भी होती है . और जितने भी सिक्ख लोग इस दिन अपनी खुशियों  को अपने विशेष नृत्य भांगड़ा के द्वारा भी व्यक्त करते है उल्लसित होते हुए . बच्चे बुड़े महिलाए सभी डोल की आवाज से  मदमस्त हो जाते है और उल्लासित होते हुए  वे सभी नाचते और गाते है

यह सन 1699 की बात है, जब सिक्खो के गुरु, गुरु गोबिन्द सिह जी ने सभी सिक्खो को आमंत्रित किया था .और जब यह सन्देश लोगों तक पहुंचायानि सभी धरम को मानने लोगों के पास तो वह सभी आनंद पूर्वक साहेब मैदान मे एकत्रित होने लगे थे।  उसके बाद  गुरु जी  के मन मे अपने लोगों यानि आपने शिष्यों से परीक्षा लेने की इच्छा उत्पन्न हुई . और फिर  गुरु जी  ने अपनी तलवार को कमान से निकालते हुये कहा कि उन्हें  सिर चाहिए,

गुरु के ऐसे वचन सुनते ही जितने भी सारे भक्त थे वह आश्चर्य मे पढ़ गए, परंतु इसी बीच लाहौर के रहने वाले दयाराम  जी  ने अपना सिर गुरु की शरण मे लाकर हाजिर कर दिया था . फिर  गुरु गोबिन्द सिह जी दयाराम जी को अपने साथ अंदर ले गए और उसी समय अंदर से रक्त की धारा प्रवाहित होती दिखाई दे रही थी . और  वहा पैर जितने भी मौजूद  लोग थे उनको  लगा की दयाराम जी का सिर कलम कर दिया गया है. गुरु गोबिन्द सिह जी फिर से बाहर आये और फिरसे अपनी तलवार दिखाते हुए उन्होंने कहा की फिरसे उन्हें सीर चाहिए .

इस बार मे साहिब चंद आगे आये, उन्हे भी गुरु के द्वारा अंदर की ओर ले जाया गया और फिर खून की धारा बहती हुई दिखाई दे रही थी . इसी प्रकार और तीन लोगो को बुलाया गया जगन्नाथ निवासी हिम्मत राय, , तथा बिदर निवासी सहारनपुर के रहने वाले धर्मदास द्वारका निवासी मोहक चंद ने अपना सिर गुरु के शरण मे समर्पित  किया. तीनों को भी क्रमश अंदर ले जाने के बाद खून की धारा बहती हुई दिखाई दे रही थी और  सभी लोगों को लगा की  पांचो को की बली दे दी गयी है ,

परंतु तभ तक लोगों ने देखा की वह पांचों लोग गुरु जी के साथ बहार  आ रहे है फिर गुरु जी उपस्थित लोगों को बताया की उन्होंने  इन लोगों की बलि नै बल्कि पशुओं की बलि चढ़ाई और साथ ही मे उन्होंने बताया की वह उन सब की  परीक्षा ले रहे  थे और इन लोगों ने  यानि की पांच लोगों ने  इस परीक्षा मे सफलता प्राप्त हुए है,

और ऐसी ही गुरु ने इस प्रकार इन पाच लोगो को अपने पाच प्यादो के रूप मे परिचित करवाया गया . तभ गुरु जी ने इन्हे अमृत का रसपान करवाया और कहा कि आज से तुम पांचो लोग सिह कहलाओगे और उन्हे दाढ़ी  और  बाल बढ़े रखने  का आदेश  दिया, और आतम रक्षा रखने  लिए उन्होंने अपने साथ कंघा भी रखने को कहा ताकि वह अपने बाल सवार सकें , , तथा हाथो मे कडा पहने को भी कहा . गुरु ने अपने शिष्यो को कहा की  निर्बलों पर हाथ न उठाये ऐसा निर्देश दिया गया .  इसी घटना के बाद से ही गुरु गोबिंद राये जी  गुरु गोबिन्द सिह  कहलाये जाने लगे  और  यह दिन भी यादगार और खास बन गया है