गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताये।।
उपर्युक्त पंक्तियों में भगवान से भी ऊंचा स्थान गुरु को दिया गया है क्योंकि गुरु ने ही हमे गोविंद की महिमा का ज्ञात करवाया है। शिक्षा के महत्व की झलक पौराणिक काल से हमारे पुराणों में दिखाई पड़ती है। रामायण में भी राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने भी गुरु वशिष्ठ से सारी शिक्षा प्राप्त की। महाभारत में भी पांडवो और कौरवों ने गुरु द्रोणाचार्य ने सारी शिक्षा प्राप्त की।
शिक्षक दिवस पर भाषण – Long and Short Speech On Importance Of Teachers in Hindi
आज के युग मे शिक्षा का महत्व कई गुना अधिक बढ़ गया है। एक शिक्षित व्यक्ति न केवल अपने उत्थान को ओर अग्रसर रहता है अपितु अपने परिवार और आस पास के लोगो को भी उत्थान की ओर अग्रसर करता है। शिक्षा स्त्री पुरुष दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है। अगर एक पुरुष शिक्षित होता है तो उसकी शिक्षा काफी हद तक स्वयं उस व्यक्तिबके लिए लाभप्रद होती है परंतु यदि एक स्त्री शिक्षित होती ह तो उसके बच्चे, घर परिवार सभी लोग शिक्षित बनते है। सरकार ने गांवों में भी शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देने और लोगो में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कई योजनाऐं निर्मित की जिससे लोगों का रुझान शिक्षा के प्रति बढ़े।
हमारे देश मे शिक्षा व्यस्था में काफी बदलाव आए है और ये बदलाव निरंतर होते जा रहे है। अभी वर्तमान काल की बात की जाए तो हमारी शिक्षा प्रणाली तीन भागों में विभाजित की हुई है
- प्राथमिक शिक्षा- यहाँ पर बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा उनके पूर्णतः विकास पे ध्यान दिया जाता है। यह पर बच्चे को मानसिक और शारारिक तौर पर विकसित करने का कार्य होता है।
- माध्यमिक शिक्षा- यहाँ पर बच्चों को हर विषय के सामान्य ज्ञान से अवगत कराया जाता है। माध्यमिक शिक्षा का बहुत महत्व होता है। अगर बच्चा यह पर पूरी निष्ठा और लगन के साथ पढ़ाई करता है तो आगे जाकर उसे बहुत लाभ होता है। सरकारी नौकरी प्राप्त करने हेतु जो भी परीक्षायें होती है उनमें पूछे जाने वाले अधिकतम प्रश्न माध्यमिक शिक्षा के आधार पर पूछे जाते हैं।
- उच्च माध्यमिक शिक्षा- यहाँ पर बच्चा अपनी रुचि के अनुसार अपने विषयों का चयन कर उसमें महारत हासिल कर सकते हैं। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात हर बच्चे को यह ज्ञात हो जाता है कि इसी रुचि किस विषय में है और उसी को आधारशिला बना कर वो आगे बढ़ सकता है।
उसके बाद आगे की पढ़ाई हेतु विश्वविद्यालय में दाखिला लेना पड़ता हैं। आज कल विश्वविद्यालय द्वारा प्राप्त डिग्री आवश्यक हो गयी है किसी भी नौकरी हेतु। पहले के मुकाबले अब इन डिग्रीयों का महत्व और आवश्यकता दोनो ही बढ़ गए है।
अभी हाल फिलहाल में हमारे माननीय शिक्षा मंत्री ‘श्री रमेश पोखरियाल निशंक’ जी ने पूरे देश में नई शिक्षा नीति लागू करने की घोषणा की। इस नीति कर अंतर्गत अभी हमारे देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में काफी परिवर्तन किए गए।
तो आइये हम नई शिक्षा नीति के कुछ प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालते है
- नई शिक्षा नीति को 5+3+3+4 सरंचना में विभाजित किया गया है। सर्वप्रथम 5 वर्ष का फॉउंडेशनल चरण होगा जिसमे प्री प्राइमरी और कक्षा 1 और 2 शामिल होंगे। उसके बाद प्रिपरेटरी चरण आएगा जिसमे कक्षा 3,4 और 5 कि पढ़ाई सम्मिलित होगी। फिर तीसरा चरण होगा मध्य या उच्च प्राथमिक जिसमे कक्षा 6 से कक्षा 8 की पढ़ाई कराई जगी और अंत मे चौथा चरण जो कि चार वर्ष की अवधि का है उसमे कक्षा 9 से कक्षा 12 की पढ़ाई पूर्ण करवाई जाएगी।
- इस प्रणाली के तहत कक्षा 5 तक विद्यार्थियों को स्थानीय या अपनी राज्य भाषा मे शिक्षा प्राप्त करने पर बल दिया जाएगा परंतु किसी प्रकार की कोई बाध्यता नही होगी।
- विद्यार्थियों के पास संस्कृत या अन्य किसी प्राचीन भारतीय भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करने का विकल्प होगा।
- नई नीति के तहत विद्यार्थियों के शारीरिक विकास को भी ध्यान में रखा गया है। वे नियमित रूप से खेल कूद, बागवानी, व्यायाम इत्यादि में भाग ले सके इसके भी प्रावधान बनाये गए हैं।
- पाठ्यक्रम और मूल्यांकन में भी कई बदलाव किए गए है जैसे अब कक्षा 6 से बच्चों को इंटर्नशिप की सुविधा प्राप्त होगी। परीक्षाओं के कार्यक्रम में भी बदलाव होंगे जैसे बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर को शामिल करना, मूल्यांकन के लिए कृतिम बुद्धिमता का उपयोग इत्यादि।
इस शिक्षा प्रणाली से निश्चित ही शिक्षा में एक सकारात्मक बदलाव आएगा और हम अपने देश के बच्चों का भविष्य और अधिक उज्ज्वल बना पाएंगे।
शिक्षा ग्रहण करना भी अपने आप में एक कला है। जब बच्चे छोटे होते है तो ये उनके माँ पिता का कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करे कि उनके बच्चे को उचित शिक्षा मिल रही है तथा उसे वह शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करें। कम उम्र की वजह से बच्चों में लड़कपन या बचपना होना स्वाभाविक सी बात है। अतः माता पिता को बच्चों को अत्यधिक लाड़ दुलार देने के बजाय थोड़ा अनुशासन में रखना चाइए। इससे उनके बच्चे का भविष्य उज्ज्वल होगा। और उसके पश्चात एक उम्र आने पर बच्चे खुद ही जिम्मेदार हो जाते हैं और स्वयं ही पढ़ाई की ओर रुचि दिखाने लगते है।
निष्कर्ष
हम यह कह सकते है कि शिक्षा किसी भी व्यक्ति के उज्ज्वल भविष्य के लिए अति आवश्यक है। एक शिक्षित व्यक्ति ही समाज की बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता रखता है। जिस देश के लोग शिक्षित होते है वह देश उन्नति की नई ऊंचाइयों को छूता है।