भगवान शिव पर निबंध – Essay On Lord Shiva in Hindi

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ॥

शिव जो देवों के देव हैं, महादेव  हैं उनका वर्णन करने में कलम भी लजाती होगी। कहा जाता है कि भोलेनाथ का नाम उनके स्वभाव के अनुरूप ही पड़ा। वे भोले नाथ इसलिए कहाये क्योंकि वे अपने भक्तों को मनवांछित वर दे देते हैं , उन्हें प्रसन्न करना अत्यंत सरल है। एक कथा इसी संदर्भ में प्रचिलित है।

भगवान शिव पर निबंध – Long and Short Essay On Lord Shiva in Hindi

भस्मासुर नामक एक असुर ने भगवान शिव की आराधना की और शिव ने प्रसन्न होकर उसे वर दिया कि तुम जिसके सर पर भी अपनी हथेली रख दोगे वह भस्म हो जाएगा। वर के घमंड में चूर भस्मासुर ने भोलरनाथ पर ही यह वर  प्रयोग करने की दृष्टता करने की कोशिश करने लगा। भोलनाथ आने आराध्य विष्णुजी की शरण में आये और सारा वृतांत बताया।

तब विष्णुजी में भस्मासुर के सामने ये प्रस्ताव रखा कि जैसे जैसे मैं कर अगर तुम उसका अनुकरण करने में सफल हुए तभी तुम भोलेनाथ पर अपनी हथेली का प्रयोग कर पाओगे। विष्णुजी ने अपने हस्तो का प्रयोग करते हुये तरह तरह के मुद्राएँ बनाने लगे और अंत मे विष्णुजी ने स्वयं का हाथ अपने सर पर रखा और भस्मासुर ने भी नकल करते हुए वे किया और स्वयम ही भस्म हो गया

महाराज दक्ष जो कि ब्रह्मा जी के पुत्र थे उनकी पुत्री थी सती। सती ने मन से शिव जी को अपना पति स्वीकार कर लिया था और यही बात सती ने अपना माता पिता से कही। दक्ष इस प्रस्ताव से प्रसन्न नही थे क्योंकि वे अपनी पुत्री का विवाह जंगलो में भटकने वाले बाघम्बरधारी शिव से नही करना चाहते थे, वे चाहते थे कि उनकी पुत्री का वरण विष्णुजी या किसी अन्य देव से हो और उनकी पुत्री हर प्रकार से सम्पन्न और सुखी रहे परंतु सती को यह अस्वीकार था। अतः अपनी पुत्री के हठ के आगे दक्ष ने हार मान ली और भगवान शिव और सती का विवाह संपन्न हुआ।

कुछ समय बीतने के पश्चात दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन करवाने का निर्णय किया। सभी देव, देवता, राजा इत्यादि को निमंत्रण भेजा गया। आयोजन की भव्य तैयारियां शुरू हो गयी। जब सती को अपने पिता के इस आयोजन का ज्ञात हुआ उन्होंने शिव जी से वहाँ जाने की इच्छा प्रकट की। शिव ने उन्हें समझाते हुए कहा कि जहाँ आपको आमंत्रित न किया गया हो वह जाना उचित नही है और वहाँ जाने पर केवल तिरस्कार ही प्राप्त होता है, चाहे वह स्वयं अपने पिता का ही घर क्यों न हो।

शंकर जी के लाख समझाने के बाद भी सती ने पित्रमोह वश वहाँ जाने का निर्णय किया। आख़िरकार आयोजन का दिन आ पहुँचा। दक्ष के महलों की शोभा देखते बनती थी। सभी देव देवताओं के स्वागत हेतु आसन बनाये गए थे।ब्रह्मा, विष्णु, इंद्रा आदि देव वह उपस्थित थे। सती भी वहाँ पहुंची और जब उन्होंने देखा कि सारे देवताओं के लिए आसन बने हुए हैं  और वे उसपर विराजमान हैं सिर्फ शिव जी के लिए कोई स्थान नही बना था।

उन्होंने प्रजापति दक्ष से अपनी पति को न बुलाने का कारण जानना चाहा टैब दक्ष ने शंकरजी के प्रति दुर्वचनों का प्रयोग किया। अपने पति का ऐसा अपमान देख कर सती को घोर संताप हुआ और उन्होंने  उस यज्ञ की अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए। जब शिव जी को यह ज्ञात हुआ कि उनकी अर्धांगिनी ने अपने प्राण त्याग दिए हैं तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और इस क्रोध की अग्नि को शांत करने का साहस ब्रह्मा विष्णु भी नही कर पा रहे थे। इसी क्रोधाग्नि में उन्होंने वीरभद्र को अवतरित किया और उसे इस पूरे विश्व को नष्ट करने का आदेश दिया| शिव जी ने सती की निर्जीव शरीर को उठा कर पूरे विश्व में तांडव करने लगे।

भगवान शिव का रौद्र रूप देख कर पूरा विश्व थर थर्राने लगा। इस प्रकोप से पूरे विश्व को बचाने के लिए विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के निर्जीव शरीर को कई हिस्सों में काट दिया।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये विभिन्न अंग इक्यावन जगहों पर गिरे और यही जगह शक्तिपीठ के नाम से पूजनीय हैं। इसके पश्चात शंकर जी ने ध्यान लगा लिया और वैराग्य धारण कर लिया।

सती पुनः हिमालय राज हिमवान और मैना रानी के घर पार्वती रूप में जन्म लिया। वो नित भोलेनाथ की पूजा अर्चना करती थी पर शंकर जी ध्यानमग्न रहते थे। वहीं दूसरी तरफ तारकासुर नामक असुर, जिन्हें ब्रह्माजी से वर प्राप्त था की शिव नंदन द्वारा ही उसका वध होगा, पूरे विश्व में तबाही मचा रहा था। उसने इंद्र उनका इंद्रलोक छीन लिया था।

इंद्र और अन्य देवता चिन्तित थे कि शिव नैन नही खोल रहे। कामदेव ने कहा कि मैं शिव पर काम बाण चलाऊंगा जब देवी पार्वती पूजा हेतु आएंगी। निश्चित समय पर पार्वती जी संध्या पूजन हेतु आयी और कामदेव ने काम बाण शंकरजी पर साधा। शिव के मन मे पार्वती का आकर्षण जागा। जब शिवजी ने अपना ध्यान छूटता देखा तो वे क्रोधित हो उठे की उनके मन में किसने यह विकार जगाया है। शंकर की जी दृष्टि कामदेव पर पड़ी तो वे समझ गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोला जिससे एक चिंगारी निकली और कामदेव की सुंदर काया भस्म हो गयी। सारे देवी देवता हाथ जोड़ कर  महादेव को शांत  कराने लगे।

महादेव ने कामदेव को पुनः जीवित होने का वर दिया और अंतर्ध्यान हो गए। पार्वती अत्यंत दुखी हुई और महलों में वापस आ गयी। तब नारद जी ने आकर पार्वती को तपस्या करने का मार्ग बताया। पार्वतीजी ने तीन हज़ार वर्षों तक  घोर तपस्या की। सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख, प्यास न जाने कितने कष्ट सहे पर निरंतर शिवजाप में लीन रही। अंततः भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर पार्वती को मनवांछित वर दिया और पार्वती शिव का विवाह सम्पन्न हुआ। कार्तिके का जन्म हुआ और उसने तारकासुर का वध कर पूरे विश्व को उसके प्रकोपो से मुक्त किया।

शिव महा कल्याणकारी है,वे आदिदेव है,उनके स्मरण मात्र से ही सारे दुख दूर हो जाते है।वे तो सिर्फ एक लोटे जल से ही खुश हो जाते है। शिव भगवान तो भोलेनाथ है वे तो कभी किसी से नाराज़ नही होते है। जब भी किसी विवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया जाता है तो उन्हें शिव पार्वती की उपमा से शुशोभित किया जाता है।

भोलेनाथ अपने भक्तों पर सदा अपनी कृपा बनाये रखते हैं, उन्हें प्रसन्न करना बहुत आसान हैं, एक लोटे जल से प्रसन्न होने वाले देवाधि देव महादेव को शत शत नमन है।

विश्वनाथ माम् नाथ पुरारी,

त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी।।