रामबारात उत्तर भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख पर्वों में से एक है। मुख्यतः यह रामलीला नाटक का एक हिस्सा होता है जिसमें रामजी की बारात को पूरे शहर भर में काफी धूम-धाम के साथ निकाला जाता है। वैसे तो इसका आयोजन कई जगहों पर किया जाता है लेकिन इसका सबसे भव्य आयोजन आगरा में देखने को मिलता है, जहां पर आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व में पहली बार इसका आयोजन किया गया था।
रामबारात दो शब्दों से मिलकर बना है राम और बारात, जिसका अर्थ है रामजी की बारात। यह उत्सव प्रभु श्रीराम और माता सीता के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस उत्सव में सुसज्जित झांकियों को शहर भर में घुमाया जाता है और इस झांकी को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग इकठ्ठा होते है।
रामबारात के बारे में पूरी जानकारी – Rambaran in Hindi
तीनों दिनों तक चलने वाला रामबारात का यह पर्व हिंदू धर्म के प्रमुख उत्सवों में से एक होता है। इस उत्सव का सबसे भव्य आयोजन आगरा में देखने को मिलता है। इस दौरान मेलों का भी आयोजन किया जाता है, जिसके कारण रामबारात का उत्सव देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा होते है।
यह पर्व भगवान राम और माता सीता के विवाह समारोह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस उत्सव में झांकी रुपी बारात निकाली जाती है। जिसमें प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन रथ पर बैठकर सीता स्वयंवर में भाग लेने के लिए जनकपुरी जाते है।
इस पूरे उत्सव भगवान राम और माता सीता के विवाह की झांकी को शहर के क्षेत्रों में काफी दूर तक घुमाया जाता है। झांकी के पीछे काफी के संख्या में लोग होते है, जो प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए आते है। वास्तव में यह रामलीला नाटक का एक हिस्सा होता है। यहीं कारण है कि इसे भारत में इतने धुम-धाम के साथ मनाया जाता है।
रामबारात कैसे मनाया जाता है?
तीन दिनों तक चलने वाले रामबारात के इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। वर्ष 1940 में आगरा में आयोजित हुई भव्य रामबारात में तब से लेकर अबतक कई प्रकार के परिवर्तन आये है लेकिन आज भी इसका उद्देश्य वही है, इस पर्व ने लोगो के बीच प्रेम तथा सौहार्द को बढ़ाने का बहुत विशेष कार्य किया है क्योंकि इस उत्सव में लगभग सभी धर्मों के लोगो द्वारा हिस्सा लिया जाता है।
रामबारात में रामलीला पंडाल को विवाहोत्सव के रुप में काफी भव्य रुप से सजाया जाता है। इस दौरान प्रभु श्रीराम और माता सीता की झांकी को सजाकर शहर में घुमाया जाता है। जिसमें उनके साथ हजारों के संख्या में श्रद्धालु गण भी होते है। इसका सबसे भव्य रुप आगरा में देखने को मिलता है, जहां इस उत्सव को देखने के लिए दूर-दूर लोग आते है।
उत्तर भारत की सबसे प्रमुख रामबारात के नाम से विख्यात आगरा की रामबारात को उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी रामबारात का खिताब भी मिल चुका है। ऐसा अनुमान है कि इस आयोजन में करोड़ों रुपयों का खर्च होता है।
इस कार्यक्रम में शहर के हिस्से को जनकपुरी के रुप में सजाया जाता है और उस जगह पर राजा जनक का विशाल महल बनाया जाता है। यहीं कारण है कि इस क्षेत्र को जनकपुरी की संज्ञा दी जाती है। इस दौरान पूरे इलाके की भव्य सजावट की जाती है और अवसर पर लाखों के संख्या में लोग इकठ्ठा होते है।
आगरा के इस रामबारात आयोजन का इतिहास सैकड़ो साल पुराना है। रामबारात के दौरान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न को हांथी-घोड़ो पर बैठाकर भव्य बारात निकाली जाती है। बारात के साथ बैंड-बाजा, तरह तरह की झांकिया और लाखों लोगो की भींड़ भी साथ-साथ चलती है।
इस उत्सव में दूल्हारुपी श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन की आरती की जाती है तथा इसके पश्चात उन्हें रथ पर बैठाया जाता है। इसमें रत्न जड़ित मुकुट तथा विशेष वस्त्र पहनाये जाते है। इस उत्सव में सबसे आगे अश्वरोही रघुवंश का पताका लिये आगे चलते है। इसके पीछे विघ्न विनाशक गणेश जी का रथ होता है।
पूरे यात्रा में लोगो द्वारा इन रथो पर कई जगहों पुष्प वर्षा की जाती है। इस कार्यक्रम में शहर के कई बड़े प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता भी शामिल होते है। इसके साथ ही इस उत्सव में कई जगहों पर हनुमान जी के विभिन्न रुप भी देखने को मिलते है। मुख्यतः रामबारात का यह कार्यक्रम तीन से पांच दिनों तक चलता है और सीता जी का स्वयंवर होने के पश्चात इसका समापन होता है।
रामबारात की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Rambarat)
पहले के अपेक्षा में आज के समय में रामबारात के उत्सव में कई सारे परिवर्तन आये है। आज के समय में रामबारात का यह पर्व लोगो में काफी लोकप्रिय है और इसे लोगो द्वारा काफी पसंद किया जाता है।
पहले जहां यह मात्र कुछ जगहों पर छोटे स्तर में आयोजित किया जाता था, वहीं आज के समय में इसका स्तर काफी बड़ा हो चुका है और देशभर के कई स्थानों पर इसका काफी धूम-धाम के साथ आयोजन किया जाता है। पहले के समय में यह उत्सव मात्र रामलीला का एक छोटा सा हिस्सा हुआ करता था लेकिन आज के समय में यह अपने आप में ही एक अलग उत्सव बन चुका है, जो तीन से लेकर पांच दिनों तक लगातार चलता है।
आज के समय में लोग इस पर्व का काफी बेसब्री से इंतजार करते है क्योंकि इसकी छंटा काफी मनमोहक होती है। पूरे रामलीला मंचन में इस प्रकार का उत्साह काफी कम ही देखने को मिलता है। हालांकि आज के समय में रामबारात के उत्सव में कई सारी कुप्रथाएं भी जुड़ गयी है, जिसके कारण इसका वास्तविक महत्व दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
आज के समय में कई स्थानों पर रामबारात मंडलीयों द्वारा काफी तेज आवाज में लाउडस्पीकर और डीजे का प्रयोग किया जाता है, जोकि ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख स्त्रोत है। इसके साथ ही आज के समय में कई जगहों पर इस पवित्र अवसर पर अश्लील आरकेस्ट्रा का भी आयोजन किया जाता है, जोकि इस उत्सव के सांख में बट्टा लगाने का कार्य करते है। यदि हम इस पर्व का महत्व बनाये रखना चाहते है तो हमें इसके सांस्कृतिक तथा पारंपरिक रूप को बनाये रखना का हरसंभव प्रयास करना होगा।
रामबारात का महत्व (Significance of Rambarat)
रामबारात रामलीला मंचन का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसमें प्रभु श्रीराम और माता सीता के स्वयंवर को दिखाया जाता है। वास्तव में यह पहले समय में यह उत्सव लोगो के मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कई जहगों पर इस पर्व को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
इस उत्सव में दूल्हे के रुप में प्रभु श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन और उनके गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र तथा अन्य बारातीगण भी शामिल होते हैं। रामबारात का उत्सव रामलीला नाटक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसमें प्रभु श्रीराम और माता सीता के विवाह का प्रदर्शन होता है।
यह पर्व भारत के गंगाजमुनी तहजीब को भी प्रदर्शित करता है क्योंकि जब रामबारात की झांकी मुस्लिम क्षेत्रों से निकलती है तो मुस्लिमों द्वारा भी राम भगवान की झांकी पर फूल बरसाये जाते है। यह हमें इस बात एहसास दिलाता है भले ही लोगो के धर्म अलग हो लेकिन हमारे त्योहार एक है और इसमें हमारे लिए किसी प्रकार का भेदभाव नही है। यहीं कारण है कि लोगो द्वारा इसे इतना विशेष महत्व दिया जाता है।
रामबारात का इतिहास (History of Rambarat)
वैसे तो रामबारात का इतिहास काफी पुराना है क्योंकि यह सदैव से ही रामलीला मंचन का एक प्रमुख हिस्सा रहा है लेकिन इसके इतने भव्यतम रूप की शुरुआत आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व हुई थी। जब लाला कोकामल जोकि अपने क्षेत्र के एक प्रमुख व्यापारी थे। उनके द्वारा ही सबसे पहले बार रामबारात का इतने शाही रूप से आयोजन किया गया था। उनके इन्हीं प्रयासों के कारण राम बारात के इस मार्ग का नाम बदलकर लाला कोकामल मार्ग कर दिया गया।
वर्ष 1966 में जब लाला कोकामल की मृत्यु हो गई तो उनके पुत्र राधारमण द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाने लगा। आज के समय में इस उत्सव का महत्व काफी बढ़ चुका है और इसका काफी धूम-धाम के साथ आयोजन किया जाता है।
तीनों दिनों तक चलने वाले इस रामबारात के कार्यक्रम में काफी संख्या में लोग इकठ्ठा होते है। वास्तम में ऐतिहासिक रूप से यह कार्यक्रम रामलीला के विशेष का सांस्कृतिक मंचन होता है। जिसमें श्रीराम का उनके भाईयों लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन का अपने गुरु वशिष्ठ तथा विश्वामित्र संग अयोध्या जाने का मंचन किया जाता है। इस उत्सव को उत्तर भारत के कई स्थानों में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
यह उत्सव भारत के सांस्कृतिक विरासत और भाईचारे के इतिहास को प्रदर्शित करने का कार्य करता है यहीं कारण है कि वर्ष जब आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व में जब पहली बार आगरा में रामबारात के उत्सव का आयोजन किया गया था तो इसमें लगभग सभी धर्मों के लोगो ने हिस्सा लिया था।
तब से लेकर अबतक इस उत्सव के रूप में कई सारे परिवर्तन हुए है लेकिन इसकी महत्ता आज भी वैसी ही है और आज भी यह विविधता में एकता के अपने उद्देश्य को पहले के ही तरह प्रदर्शित कर रहा है। वर्तमान समय में लाला कोकामल के पोते हरी किशन अग्रवाल के प्रयासों के कारण आगरा में आयोजित होने वाली रामबारात का स्वरूप और भी भव्य है।