जन्माष्टमी के बारे में पूरी जानकारी – Janmashtami in Hindi

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोंत्सव के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण के मानव कल्याण के लिए किये गये कार्यों और आदर्शों को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, यही कारण है कि इस दिन कृष्ण जन्माष्टमी का यह पर्व मनाया जाता है।

यह पर्व सिर्फ भारत में ही नही बल्कि की विदेशों में भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन देश भर के विभिन्न जगहों पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और लोग भगवान श्री कृष्ण के याद में मध्यरात्रि तक जागते हुए उनके प्रशंसा में गीत गाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

जन्माष्टमी के बारे में पूरी जानकारी – Janmashtami in Hindi

जन्माष्टमी के मौके पर बाजारों मे रौनक देखने लायक है, कि किस प्रकार लोग उत्साहपूर्वक भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियां और अन्य पूजन सामग्री खरीद रहे हैं। स्कूलों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।

विद्यार्थी भगवान श्री कृष्ण एवं राधा जैसे तैयार होकर विभिन्न कार्यक्रमों का पूर्वाभ्यास करते हैं और अपने प्रिय भगवान के प्रति अपना स्नेह व्यक्त करने के लिये, वे इस पर्व का बड़ी बेसबरी से इंतजार करते हैं।

कई मंदिर और आवासी क्षेत्रों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। तंबू बांधे जा रहे हैं, पंडितों को पूजन हेतू बुलाया जा रहा है और प्रसाद के रूप मिठाई बाटने के लिये दुकानो मे पहले से ऑडर दिये जा रहे हैं।

श्री कृष्ण जन्म भूमि मथुरा में भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। मथुरा नगर निगम पूरे शहर को LED एवं रंगीन लाइटों से सजाने का अथक प्रयास कर रही है।

श्री कृष्ण जन्म स्थान से करीब 4 Km के क्षेत्र में मौजूदा सड़कों को, 450 LED लाइटों की रोशनी से सजाया जाएगा और इस उपलक्ष पर शहर में स्वच्छता सुनिशचित करने के लिये, नगर निगम ने सफाई कर्मियों की दैनिक शिफ्टों मे वृद्धि कर दी है। पूरे शहर में जगह-जगह कूड़ेदान लगाए गए हैं और पर्यटकों से निवेदन किया जा रहा है कि वे सड़क पर कूड़ा न फेकें।

जन्माष्टमी के मौके पर मुंबई में आयोजित होने वाली दही हांडी, भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में लोकप्रिय है और इसकी तैयारियां शहर में जगह-जगह मिटटी के मटके में, दही और मक्खन भर के ऊंचे-ऊंचे रस्सी में लटका के की जा रही हैं।

जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?

भारत के साथ ही कई सारे दूसरे देशों में भी जन्माष्टमी का पर्व काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। खासतौर से वैष्णव अनुयायियों के लिए यह दिन काफी खास होता है। पूरे भारत में इस दिन को लेकर उत्साह चरम पर होता है और लोग इस पर्व को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को सभी पापियों से मुक्त करने के लिए भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को योगेश्वर श्रीकृष्ण के रुप में जन्म लिया था।

अपने इस अवतार में उन्होंने पृथ्वी पर से दुराचारियों और अधर्मियों का नाश करने का कार्य किया। इसके साथ ही उन्होंने गीता के रुप में मानवता को सच्चाई और धर्म का संदेश दिया। यही कारण है कि इस दिन को उनके जन्म दिवस के रुप में भारत सहित अन्य कई देशों में भी इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?

जन्माष्टमी के पर्व को विभिन्न संप्रदायों द्वारा अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। श्रीमदभागवत को प्रमाणस्वरुप मानकर स्मार्त संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। वही वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा उदयकाल व्यापनी पर अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

देश के कुछ राज्यों में इस दिन दही हांडी के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, तो कहीं रगों की होली खेली जाती है। जन्माष्टमी का सबसे भव्य आयोजन मथुरा में देखने को मिलता है। इसके साथ ही इस दिन मंदिरों विभिन्न प्रकार की झांकिया सजाई जाती है, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का नाटक मंचन किया जाता है तथा उनके रासलीलाओं का भी आयोजन किया जाता है। कई जगहों पर लोगो इस दिन मध्यरात्रि तक जागते रहते हैं और लोगो द्वारा श्री कृष्ण की मूर्ति बनाकर उसे पालने में झुलाते हुए रात भर भजन गाया जाता है।

इस अवसर देश-विदेश के श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए मथुरा श्री कृष्ण जन्मस्थली पहुंचते है। इसके साथ ही भारत में और भी कई स्थानों पर भव्य रुप से कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इन निम्नलिखित मंदिरों में कृष्ण जन्माष्टमी पर्व का काफी भव्य आयोजन होता है।

  • कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
  • द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका
  • बिहारीजी मंदिर, वृंदावन

जन्माष्टमी की पूजा विधि

हर पर्व के तरह जन्माष्टमी के पर्व को मनाने का भी विशेष तरीका होता है कई लोग इस दिन व्रत रहते हैं, तो कई लोग इस दिन मंदिरो में भी जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए यह दिन किसी उत्सव से कम नही होता इस दिन वह रात भर श्री कृष्ण की प्रशंसा में गीत और भजन गाते हैं। यदि हम बताये गये तरीकों द्वारा इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। तो हमें इसका विशेष फल प्राप्त होता है।

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को स्नान करवाकर पीले रंग का कपड़ा पहनाना चाहिए। इसके पश्चात पीले रंग के आभूषण से उनका श्रृंगार करना चाहिए। श्रृंगार के बाद उन्हें झूले पर झुलाएं। इस अवसर पर जो लोग व्रत रखते है।

उन्हें रात में 11 बजे स्नान करके शास्त्रानुसार विधि पूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए और रात में 12 बजे के बाद भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनका दूध, दही, घी, मिसरी और गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। इसके पश्चात इंत में मिश्री, पंजरी और मख्खन का भोग लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत आरती करनी चाहिए।

जन्माष्टमी व्रत

कई सारी शादी-शुदा महिलाओं द्वारा संतानप्राप्ति के लिए व्रत भी रहा जाता है। इसके साथ ही अविवाहित महिलाएं भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिये श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रहती हैं। इस दिन उनके द्वारा किसी प्रकार के भी भोजन, फल तथा जल का सेवन नही किया जाता है।

इस दिन वह पूर्ण रुप से निराजल व्रत का पालन करती हैं और रात्रि में पूजा के पश्चात ही कुछ खाती हैं। तिथि के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का यह व्रत लंबा भी हो सकता है सामान्यतः यह एक दिन का होता है लेकिन हिंदू पंचाग के अनुसार कभी-कभी यह दूसरे दिन समाप्त होता है। यही कारण है कि कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रहने वाली महिलाओं को कई बार दो दिनों तक व्रत रखना पड़ता है।

जन्माष्टमी की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Janmashtami)

पहले के अपेक्षा कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व में कई सारे बदलाव हुए हैं। इन बदलावों ने इस पर्व को और भी लोकप्रिय बनाने का कार्य है। जिसके कारण यह त्योहार ना सिर्फ भारत में बल्कि की पूरे विश्व में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। आज के समय में लोग इस दिन व्रत का पालन करते हैं और भगवान श्री कृष्ण के याद में उनके भजन गाते हैं।

ब्रज के क्षेत्र में तो इस पर्व का काफी भव्य आयोजन किया जाता है। मथुरा में इस दिन का उल्लास होली या दिवाली से कम नही होता है। इसके साथ ही देश के तमाम कृष्ण मंदिरों में इस दिन सजावट और विशेष पूजा-पाठ की जाती है। इस्कान जैसी वैष्णव संस्थाओं ने इस पर्व को विदेशों में भी काफी प्रचारित किया है। यही कारण है इस पर्व को न्यू यार्क, पेरिस, कैलिफोर्निया तथा मास्कों जैसे पश्चिमी देशों के शहरों में भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

जन्माष्टमी का महत्व (Significance of Janmashtami)

जन्माष्टमी का पर्व हिन्दू के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यहीं वह दिन है, जब भगवान विष्णु के आठवें अवतार योगेश्वर श्रीकृष्ण के रुप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। यह अवतार भगवान विष्णु ने पृथ्वी का बोझ कम करने और धरती से पापियों का विनाश करने तथा धर्म की स्थापना के लिए लिया था।

इसके साथ ही श्री कृष्ण अवतार के रुप में उन्होंने गीता द्वारा मानवता को धर्म, सच्चाई, मानव कल्याण तथा नैतिक मूल्यों का भी संदेश दिया था। गीता के रुप में मानवता को दिया गया उनका यह संदेश इतना महत्वपूर्ण है कि आज के समय इसे पढ़ने तथा समझने की उत्सुकता हिंदू धर्म के अनुयायियों के साथ ही दूसरे धर्म के अनुयायियों द्वारा भी रहती है।

जन्माष्टमी का इतिहास (History of Janmashtami)

आज से लगभग 5000 हजार वर्ष पूर्व भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व के उत्पत्ति को लेकर कई सारे ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएं प्रचलित है। इसी प्रकार की एक कथा का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। जिसके अनुसार, कलियुग में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को देवकीनंदन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।

इसी तरह भविष्य पुराण के अनुसार जो व्यक्ति भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में कृष्ण अष्टमी के दिन जो व्यक्ति उपवास नही करता है वह अगले जन्म में क्रूर राक्षस के रुप में जन्म लेता है।

पुराणों के अनुसार, विष्णु जी के आठवें अवतार माने जाते हैं, यह भगवान विष्णु के सोलह कलाओं का सबसे भव्यतम अवतार है। उनका जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व वासुदेव के पुत्र रुप में हुआ था मथुरा के कारागार में हुआ था। उनके जन्म के समय में घनघोर वर्षा हो रही थी, चारों तरफ घना अंधकार छाया हुआ था।

श्री कृष्ण के जन्म होते ही वासुदेव की बेड़िया खुल गईं, कारागार के द्वार स्वयं खुल गये और सभी पहरेदार गहरी निद्रा में सो गये। ईश्वर की सहायता से उनके पिता वासुदेव उफनती हुई नदी पार करके अपने मित्र नंदगोप के यहां ले गये। जहां उनका लालन-पालन हुआ और वो बड़े हुए। इसके बाद उन्होंने कंस वध करते हुए, मथुरा के लोगो को कंस के अत्याचार से मुक्त कराया और महाभारत में अर्जुन को गीता उपदेश देकर धर्म को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध किया।