लोसर के बारे में पूरी जानकारी – Losar in Hindi

लद्दाख में देश में सबसे ज्‍यादा त्‍योहार मनाए जाते हैं और इनमें से एक है लोसर। इसे बौद्ध धर्म का नव वर्ष भी कहा जाता है। इस पर्व पर पूर्वजों की कब्र पर जाकर पूजा करने की भी परंपरा है।

लोसर के बारे में पूरी जानकारी – Losar in Hindi

लद्दाख में लोसर पर्व की शुरुआत तिब्बतीय कैलेंडर लूनीसोलर के हिसाब से साल के पहले दिन से होती है और यह पर्व 15 दिनों तक चलता है, शुरुआत के तीन दिन यह पर्व बेहद खास होता है। इस पर्व के अवसर पर चारों ओर रोशनी से पूरा लद्दाख समेत देश का हर वो हिस्सा जगमगा उठता है जहां तिब्बतीय लोग रहते हैं।

विविधता में एकता की पहचान रखने वाले भारत देश में हर खुशी के मौके को एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। जी हां ऐसा ही एक त्योहार तिब्बतीय कैलेंडर लूनीसोलर के हिसाब से नए साल के आगमन पर लद्दाख में मनाया जाने वाला पर्व लोसर है। हाल ही में लद्दाख में लोसर पर्व मनाया गया। लोसर तिब्बत के बौद्ध अवलांबियों का प्रमुख पर्व है, लेकिन इस पर्व को मनाने वाले लोग अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की उत्तरी सीमाओं तक फैले हुए हैं।

इस पर्व के अवसर पर लोग अपने सगे संबंधियों को एक खास उपहार देते हैं और नए साल में एक अच्छे जीवन की कामना करते हैं। इसके अलावा इस महोत्सव में अलग-अलग तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम, पारंपरिक प्रदर्शनी और पुराने रीतिरिवाजों का भी प्रदर्शन किया जाता है। इस पर्व को लेकर मान्यता है कि यह नए वर्ष का स्वागत करने और नकारात्मक शक्तियों का अंत करने का संकेत देता है। तो आइए जानते हैं क्या है लोसर और क्या है इस पर्व का इतिहास।

क्या है लोसर : What is Losar Festival of Ladakh

हमारे देश में नए साल के उपलक्ष्य में इसके स्वागत के लिए बैसाखी, मकर संक्रांति, पोंगल आदि कई त्योहार मनाए जाते हैं। लेकिन इसी बीच एक और त्योहार है जो अपने रंग, रूप और कला से भारतीय संस्कृति की मिशाल पेश करता है। इस अनोखे पर्व को लोसर कहा जाता है। लोसर पर्व की शुरुआत तिब्बतीय कैलेंडर लूनीसोलर के हिसाब से साल के पहले दिन से होती है और यह पर्व 15 दिनों तक चलता है, शुरुआत के तीन दिन यह पर्व बेहद खास होता हैं।

इस पर्व के अवसर पर चारों ओर रोशनी से पूरा लद्दाख समेत देश का हर वो हिस्सा जगमगा उठता है जहां तिब्बती लोग रहते हैं। पुरानी परंपराओं की माने तो परिवार के लोग अपने घरों के मृत लोगों की कब्र पर जाते हैं और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं। वहीं तीसरे दिन चाद देखने का इंतजार होता हैं। शुरुआत के तीन जिन इस पर्व के बेहद खास होते हैं। आइए जानते हैं जानते हैं इस पर्व को लेकर कौन सी कथाएं इतिहास में मौजूद हैं।

लोसर पर्व का इतिहास : History of Losar Festival of Ladakh

लोसर पर्व के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है कि प्राचीनकाल में हर साल एक आध्यात्मिक समारोह आयोजित किया जाता था। जिसे लोसर कहा जाता था। इस समारोह के दौरान लोग अपने देवी देवताओं की पूजा- अर्चना कर उन्हें प्रसाद चढ़ाया करते थे।

लोसर से जुड़ा एक और इतिहास मौजूद है। कहा जाता है जमैया नामग्याल नामक एक राजा बलती सेना के खिलाफ एक युद्ध के लिए जा रहे थे। लेकिन उन्हें ऋषि मुनियों द्वारा अगले वर्ष से पहले इस तरह के अभियान का नेतृत्व ना करने की सलाह दी गई थी। इसलिए ऋषियों की सलाह को ध्यान में रखते हुए उन्होंने नए साल के उत्सव को दो महीने तक रोक दिया। तब से इस दौरान लोसर समारोह आयोजित किया गया।

हमारे देश में नए साल के स्वागत के रूप में कई त्योहार मनाए जाते हैं। जैसे- बैसाखी, गुड़ी पड़वा, पोंगल आदि। ऐसा ही एक फेस्टिवल Losar Festival है जो लेह-लद्दाख में मनाया जाता है। इस फेस्टिवल को तिब्बती लोग धूमधाम से मनाते हैं।

लेह-लद्दाख के सबसे फेमस फेस्टिवल्स में से एक है Losar फेस्टिवल जिसे तिब्बती कैलेंडर में नए साल के आगमन के रूप में मनाया जाता है। लेह-लद्दाख में तिब्बतियों की तादाद अच्छी खासी है और बड़ी संख्या में यहां के लोग इस फेस्टिवल को धूमधाम से मनाते हैं। इस दौरान तिब्बती लोग पूजा अर्चना करते हैं और कई रिती-रिवाजों को भी फॉलो करते हैं। Losar फेस्टिवल के दौरान अगर आप लद्दाख में मौजूद हैं तो आपको ऐसा महसूस होगा कि आप ईश्वर और धर्म के और नजदीक पहुंच गए हैं।

Losar फेस्टिवल के दौरान लद्दाख में मौजूद मोनैस्ट्रीज जिन्हें गोम्पा कहते हैं में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस दौरान सभी श्रद्धालु गाना गाते हैं, नाचते हैं, प्रार्थना करते हैं और धूमधाम से नए साल का स्वागत करते हैं। Losar में लो का अर्थ है साल और सर का अर्थ है नया। Losar फेस्टिवल मनाने के पीछे भारत में एक अनोखी कहानी है और इसलिए भारत में साल के 11वें महीने में ही यह फेस्टिवल मना लिया जाता है। लद्दाख में होने वाला यह सेलिब्रेशन हर तरह से यूनिक है।