सशस्त्र सेना झंडा दिवस या झंडा दिवस – Indian Armed Forces in Hindi

भारतीय सशस्त्र सेना के कर्मचारियों की भलाई के लिए देशवासियों से शहीद परिवार के सुविधा हेतु धन संग्रह करने का एक समर्पित दिन है यह भारतवर्ष में झंडा दिवस प्रतिवर्ष 7 दिसंबर को मनाया जाता है जो कि वर्ष 1949 में आरंभ हुआ झंडा दिवस का उद्देश्य है देशवासियों में भारतीय सेना के प्रति सम्मान प्रकट करना।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस या झंडा दिवस – Long and Short Indian Armed Forces in Hindi

भारत के सशस्त्र बलों के कर्मियों के सुविधा हेतु भारतीय जनता के द्वारा जो भी धन संग्रह कट्ठा होता है वह शहीद हुए सेना के परिवारों की सहायता के लिए आर्थिक सहायता के लिए रखा जाता है।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर हुए धन संग्रह के तीन मुख्य उद्देश्य है- १. युद्ध के समय हुई जनहानि में सहयोग, २. सेना में कार्यरत कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण और सहयोग हेतु, ३. सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण हेतु।

इस दिवस पर धन-संग्रह सशस्त्र सेना के प्रतीक चिन्ह झंडे को बाँट कर किया जाता है। इस झंडे में तीन रंग (लाल, गहरा नीला और हल्का नीला) तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते है।

डिफेन्स की प्रवक्ता गार्गी मालिक सिन्हा ने बताया भारत सरकार ने 1949 से सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया। झंडा दिवस का उद्देश्य देश की सुरक्षा में शहीद हुए सैनिकों के परिवार के लोगों के कल्याण के लिए मनाया जाता है। इस दिन झंडे की खरीद से इकठ्ठा हुए धन को शहीद सैनिकों के आश्रितों के कल्याण में खर्च किया जाता है। इस अवसर पर ब्रिगेडियर अमूल्य मोहन ने राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें एक स्मृति चिन्ह भी भेंट किया।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस द्वारा इकट्ठा की गई राशि युद्ध वीरांगनाओं, सैनिकों की विधवाओं, भूतपूर्व सैनिक, युद्ध में अपंग हुए सैनिकों व उनके परिवार के कल्याण पर खर्च करती है।

स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू की सरकार को लगा कि भारतीय सेना के परिवारों का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अतः 7 दिसंबर के दिन झंडा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया जिसके तहत देशवासियों के द्वारा भारतीय सेना के परिवारों की मदद के लिए धन इकट्ठा करने की योजना बनाई गयी।शुरूआत में इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन 1993 से इसे सशस्त्र सेना झंडा दिवस का रूप दे दिया गया इसके बाद से अब यह सशस्त्र सेना द्वारा मनाया जाने लगा।

देश के लिए दी थी जान की कुर्बानी

आजादी के समय जिसने भी देश की तरफ आंख उठाकर देखने की कोशिश की उसे जाबांज सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया था।

सेना से जुड़कर जिन सैनिकों ने देश की सीमाओं की रक्षा की  अंकुश के साथ-साथ आतंकवादी उग्रवादी जैसे असामाजिक तत्वों से मुकाबला किया और देश में शांति स्थापित करने में अपनी जान गवा दी वीरगति को प्राप्त हो गए झंडा दिवस 19 सैनिकों के प्रति एकजुट होकर समर्पण भाव दिखाने का दिन होता है जो वर्ष में महज एक बार ही आता है,

हम सभी भारतीयों को झंडा दिवस में अपना सहयोग दे कर के शहीद हुए सैनिकों के परिवार के प्रति अपनापन आत्मीयता और प्रेम के संबंध स्थापित करने चाहिए उन्हें यह ढाढा देना चाहिए कि उनका बेटा उनके परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य जो शहीद हुआ है वह उनका ही नहीं बल्कि पूरे भारत का है और वह भी उनसे जुड़े हुए हैं उस वीर पुरुष ने देश की आन बान शान की रक्षा करते हुए  वीरगति को प्राप्त हुए।यह सब भारतीयों के लिए एक सम्मान की बात है।

इस आयोजन समारोह को  सेना ध्वज दिवस के रूप में बतलाया गया अतः इस दिन भारतीय विशेष रंगीन झंडे लेबल स्टीकर को बेचकर पूरे भारत से शहीद परिवार के लिए धन इकट्ठा करने की योजना बनी वर्तमान समय में यह राष्ट्रीय जीवन के कल्याण के लिए पूरे देश में एक प्रतिष्ठित वार्षिक त्यौहार का रूप बन गया है,

युद्ध के दौरान पीड़ितों को पुनर्वास की सुविधा देना सशस्त्र बलों और सेना कर्मियों के साथ-साथ उनके परिवार को भी सहयोग प्रदान करना आदि बातें शामिल हैं।सैनिक कर्मियों और उनके परिवारों। भारत की नौसेना, सेना और वायु सेना में सेवा करने वाले कर्मचारी देश की रक्षा करते समय कभी भी अपने जीवन के बारे में सोचते नहीं हैं।

भारतीय सैनिकों के जीवन में वर्ष 1962 में जो चीन के द्वारा विश्वासघात पुणे हिंसा हुई 1965 में पाकिस्तान के दौरान युद्ध हुआ 71 1998 में जो लड़ाई हुई इस दौरान सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए युद्ध के समय में आसपास के क्षेत्र में प्राकृतिक और आबादी वाले क्षेत्र में जितनी भी हानि है उन्हें भी पुनर्वसन के लिए स्किन का चुनाव उनके लिए समर्पित उनके सम्मान में झंडा दिवस को चुना गया।

भारत में यह ध्वज दिवस उत्सव उन पीड़ितों के जीवन में बहुत उम्मीद लाता है जिन्होंने देश के बेहतर कल के लिए अपनी बहुमूल्य जिंदगी बलिदान की थी। सशस्त्र बलों ध्वज दिवस उत्सव भारत के लोगों और सशस्त्र बलों के कर्मचारियों के बीच सांस्कृतिक बंधन को मजबूत करता है।

यह उत्सव भारतीय सशस्त्र बलों के सेवारत कर्मियों के कल्याण को बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका निभाता है। आर्म फॉर्म्स फ्लैग डे का इतिहास प्रथम विश्व युद्ध, जिसे हर साल 11 नवंबर को एक आर्मिस्टिस डे के रूप में मनाया जाता है, को पॉपपी डे के रूप में नामित किया गया था क्योंकि पॉप सेनाओं के स्मृति चिन्हों को पूर्व सेना के पुरुषों और उनके रिश्तेदारों के लाभ के लिए संचालित किया गया था। लेकिन इस दिन देश की आजादी के लिए असंगत था।

इसलिए, ब्रिटिश प्राधिकरण से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत सरकार ने सेना के पुरुषों और उनके रिश्तेदारों के प्रति ध्यान देने का फैसला किया था। रक्षा मंत्रालय ने 1 9 4 9 में 28 अगस्त 28 के विशेष आयोग के तहत फैसला किया था कि 7 दिसंबर को एक ध्वज दिवस सालाना मनाया जाएगा ताकि आम लोगों से धन इकट्ठा किया जा सके और भारत के कर्मचारियों के कल्याण के लिए भारत के झंडे बेचकर आम जनता से धन इकट्ठा किया जा सके। सशस्त्र बल।

भारत में सेना के लोग भारतीय लोगों की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए अपना कर्तव्य करते हैं, इसलिए सेना के लोगों के लिए आम लोगों का कर्तव्य भी है जो युद्ध में अपने जीवन बलिदान के लिए तैयार हैं।