चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास – History Of Chandragupta Maurya in Hindi

इस पोस्ट में चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास (History Of Chandragupta Maurya in Hindi) पर चर्चा करेंगे। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त भारत के बहुत अच्छे शासक माने जाते है, जिन्होंने बहुत सालों तक शासन किया. चन्द्रगुप्त मौर्य एक ऐसे शासक थे जो पुरे भारत को एकिकृत करने में सफल रहे थे, उन्होंने अपने अकेले के दम पर पुरे भारत पर शासन किया. उनसे पहले पुरे देश में छोटे छोटे शासक हुआ करते थे, जो यहाँ वहां अलग शासन चलाते थे, देश में एकजुटता नहीं थी.

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना शासन कश्मीर से लेकर दक्षिण के डेक्कन तक, पूर्व के असम से पश्चिम के अफगानिस्तान तक फैलाया था. भारत देश के अलावा चन्द्रगुप्त मौर्य आस पास के देशों में भी शासन किया करते थे.

चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन के बारे में कोई ज्यादा नहीं जानता है. कहा जाता है वे मगध के वंशज थे. चन्द्रगुप्त मौर्य जवानी से ही तेज बुद्धिमानी थे, उनमें सफल सच्चे शासक की पूरी गुणवत्ता थी, जो चाणक्य ने पहचानी और उन्हें राजनीती व सामाजिक शिक्षा दी. तो चलिए चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास (History Of Chandragupta Maurya in Hindi) के बारे में अलग अलग विचार को समझते है।

उदाहरण 1. चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास – History Of Chandragupta Maurya in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य के परिवार की कही भी बहुत सही जानकारी नहीं मिलती है, कहा जाता है वे राजा नंदा व उनकी पत्नी मुरा के बेटे थे. कुछ लोग कहते है वे मौर्य शासक के परिवार के थे, जो क्षत्रीय थे. कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य के दादा की दो पत्नियाँ थी, एक से उन्हें 9 बेटे थे, जिन्हें नवनादास कहते थे, दूसरी पत्नी से उन्हें चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता बस थे, जिन्हें नंदा कहते थे.

नवनादास अपने सौतले भाई से जलते थे, जिसके चलते वे नंदा को मारने की कोशिश करते थे. नंदा के चन्द्रगुप्त मौर्य मिला कर 100 पुत्र थे, जिन्हें नवनादास मार डालते है बस चन्द्रगुप्त मौर्य किसी तरह बच जाते है और मगध के साम्राज्य में रहने लगते है. यही पर उनकी मुलाकात चाणक्य से हुई. इसके बाद से उनका जीवन बदल गया.

चाणक्य ने उनके गुणों को पहचाना और तकशिला विद्यालय ले गए, जहाँ वे पढ़ाया करते थे. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को अपने अनुसार सारी शिक्षा दी, उन्हें ज्ञानी, बुद्धिमानी, समझदार महापुरुष बनाया, उन्हें एक शासक के सारे गुण सिखाये.

चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा थी, जिनसे उन्हें बिंदुसार नाम का बेटा हुआ, इसके अलावा दूसरी पत्नी देवी हेलना थी, जिनसे उन्हें जस्टिन नाम के पुत्र हुआ. कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य की दुश्मन से रक्षा करने के लिए आचार्य चाणक्य उन्हें रोज खाने में थोडा थोडा जहर मिलाकर देते थे, जिससे उनके शरीर मे प्रतिरोधक छमता आ जाये और उनके शत्रु उन्हें किसी तरह का जहर न दे पाए.

यह खाना चन्द्रगुप्त अपनी पत्नी के साथ दुर्धरा बाटते थे , लेकिन एक दिन उनके शत्रु ने वही जहर ज्यादा मात्रा मे उनके खाने मे मिला दिया, उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी, दुर्धरा इसे सहन नहीं कर पाती है और मर जाती है, लेकिन चाणक्य समय पर पहुँच कर उनके बेटे को बचा लेते है. बिंदुसार को आज भी उनके बेटे अशोका के लिए याद किया जाता है, जो एक महान राजा था.

मोर्य साम्राज्य की स्थापना

मौर्य साम्राज्य खड़े होने का पूरा श्रेय चाणक्य को जाता है. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य से वादा किया था, कि वे उसे उसका हक दिला कर रहेंगें, उसे नवदास की राजगद्दी पर बैठाएंगे. चाणक्य जब तकशिला में टीचर थे, तब अलेक्सेंडर भारत में हमला करने की तैयारी में था. तब तकशिला के राजा, व गन्धारा दोनों ने अलेक्सेंडर के सामने घुटने टेक दिए, चाणक्य ने देश के अलग अलग राजाओं से मदद मांगी.

पंजाब के राजा पर्वेतेश्वर ने अलेक्सेंडर को युद्ध के लिए ललकारा. परन्तु पंजाब के राजा को हार का सामना करना पढ़ा, जिसके बाद चाणक्य ने धनानंद, नंदा साम्राज्य के शासक से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

इस घटना के बाद चाणक्य ने तय किया कि वे एक अपना नया साम्राज्य खड़ा करेंगे जो अंग्रेज हमलावरों से देश की रक्षा करे, और साम्राज्य उनके अनुसार नीति से चले. जिसके लिए उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को चुना. चाणक्य मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री कहे जाते थे.

चन्द्रगुप्त मौर्य की जीत

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अलेक्सेंडर को चाणक्य नीति के अनुसार चलकर ही हराया था. इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य एक ताकतवर शासक के रूप में सामने आ गए थे, उन्होंने इसके बाद अपने सबसे बड़े दुश्मन नंदा पर आक्रमण करने का निश्चय किया.

उन्होंने हिमालय के राजा पर्वत्का के साथ मिल कर धना नंदा पर आक्रमण किया. 321 BC में कुसुमपुर में ये लड़ाई हुई जो कई दिनों तक चली अंत में चन्द्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुई और उत्तर का ये सबसे मजबूत मौर्या साम्राज्य बन गया.

इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तर से दक्षिण की ओर अपना रुख किया और बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक राज्य फ़ैलाने में लगे रहे. विन्ध्य को डेक्कन से जोड़ने का सपना चन्द्रगुप्त मौर्य ने सच कर दिखाया, दक्षिण का अधिकतर भाग मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत आ गया था.

305 BCE में चन्द्रगुप्त मौर्य ने पूर्वी पर्शिया में अपना साम्राज्य फैलाना चाहा, उस समय वहां सेलयूचुस निकेटर का राज्य था, जो Seleucid एम्पायर का संसथापक था व अलेक्सेंडर का जनरल भी रह चूका था. पूर्वी पर्शिया का बहुत सा भाग चन्द्रगुप्त मौर्य जीत चुके थे, वे शांति से इस युद्ध का अंत करना चाहते थे,

अंत में उन्होंने वहां के राजा से समझौता कर लिया और चन्द्रगुप्त मौर्य के हाथों में सारा साम्राज्य आ गया, इसी के साथ निकेटर ने अपनी बेटी की शादी भी चन्द्रगुप्त मौर्य से कर दी. इसके बदले उसे 500 हाथियों की विशाल सेना भी मिली, जिसे वे आगे अपने युद्ध में उपयोग करते थे. चन्द्रगुप्त मौर्य ने चारों तरफ मौर्य साम्राज्य खड़ा कर दिया था, बस कलिंगा (अब उड़ीसा) और तमिल इस सामराज्य का हिस्सा नहीं था. इन हिस्सों को बाद में उनके पोते अशोका ने अपने साम्राज्य में जोड़ दिया था.

चन्द्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव व म्रत्यु

चन्द्रगुप्त मौर्य जब 50 साल के थे, तब उनका झुकाव जैन धर्म की तरफ हुआ, उनके गुरु भी जैन धर्म के थे जिनका नाम भद्रबाहु था. 298 BCE में उन्होंने अपना साम्राज्य बेटे बिंदुसरा को देकर कर्नाटक चले गए, जहाँ उन्होंने 5 हफ़्तों तक बिना खाए पिए ध्यान किया, जिसे संथारा कहते है. ये तब तक करते है जब तक आप मर ना जाओ. यही चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने प्राण त्याग दिए.

चन्द्रगुप्त मौर्य के जाने के बाद उनके बेटे ने साम्राज्य आगे बढाया, जिनका साथ चाणक्य ने दिया. चन्द्रगुप्त मौर्य व चाणक्य ने मिल कर अपनी सूझबूझ से इतना बड़ा एम्पायर खड़ा किया था. वे कई बार हारे भी, लेकिन वे अपनी हार से भी कुछ सीखकर आगे बढ़ते थे. चाणक्य कूटनीति के चलते ही चन्द्रगुप्त मौर्य ने इतना बड़ा एम्पायर खड़ा किया था,

जिसे आगे जाकर उनके पोते अशोका ने एक नए मुकाम पर पहुँचाया था. चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे महान शासक योद्धा से आज के नौजवान बहुत सी बातें सीखते है, इनपर बहुत सी पुस्तकें भी लिखी गई है, साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य टीवी सीरीज भी आई थी, जो बहुत पसंद की गई थी.

उदाहरण 2. चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास – History Of Chandragupta Maurya in Hindi

मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास के उन महान योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास को गौरवमयी बनाने में अपना महव्पूर्ण योगदान दिया। उनके अद्भुत साहस और अदस्य शक्ति की गाथा आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई है।

चन्द्र गुप्त मौर्य भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध शासक थे, जिन्हें आज कई सदियों बाद भी लोग जानते हैं और उनके पराक्रम की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के सबसे सशक्त और महान शासकों में से एक थे, जिन्होंने अपने अद्भुत साहस, कुशल रणनीति से न सिर्फ भारत बल्कि इसके आसपास के कई देशों पर भी राज किया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतः 324 ईसा पूर्व की मानी जाती है, उन्होंने लगभग 24 सालो तक शासन किया और इस प्रकार उनके शासन का अंत प्रायः 297 ईसा पूर्व में हुआ।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अद्भुत शासनकाल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार कश्मीर से लेकर दक्षिण के डेक्कन तक और पूर्व के असम से पश्चिम के अफगानिस्तान तक किया था और मौर्य साम्राज्य को उस समय भारत का सबसे विशाल साम्राज्य बना दिया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने संपूर्ण भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफल रहे। महान पराक्रमी और शक्तिशाली चन्द्रगुप्त महान ने सिर्फ अपनी बदौलत भारत के अलग-अलग स्वतंत्र राज्यों को एक करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत देश में सभी को एकजुट कर एकता के सूत्र में बांधा। हालांकि, राज्यों को एकीकृत करने में सत्यपुत्र, चोल, कलिंग, चेरा और पंडया के तमिल क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया था।

हालांकि, बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य जी के पोते सम्राट अशोक ने करीब 260 ईसापूर्व में कलिंग में विजय हासिल की था, वहीं इस विजय के बाद ही सम्राट अशोक एक निर्दयी और क्रूर शासक से एक परोपकारी और दयालु शासक बन गए थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के अद्भुत तेज और शौर्य को देखकर चाणक्य जैसे बुद्धिजीवी भी हक्का-बक्का रह जाते थे।

चन्द्रगुप्त जी बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, उनमें एक आदर्श, सफल, सच्चे और ईमानदार शासक के सभी गुण विद्यमान थे। वहीं चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु थे, जिनसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने सामाजिक और राजनीति शिक्षा ग्रहण की थी। आइए जानते हैं इतिहास के इस महान योद्धा चन्द्र गुप्त मौर्य के बारे में –

चन्द्र गुप्त मौर्य का शुरुआती जीवन एवं उनका वंश

चन्द्रगुप्त के बचपन, प्रारंभिक जीवन और वंशज के बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है एवं इस विषय में अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कई भारतीय साहित्यकारों और इतिहासकारों ने चन्द्रगुप्त मौर्य का सम्बन्ध नंदा राजवंश से बताया है। जबकि एक संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस में उन्हें “नंदनवय” मतलब नंद के वंशज भी कहा गया था।

वहीं अगर चन्द्रगुप्त की जाति के बारे में अगर बात करें तो मुद्राराक्षस में उन्हें कुल-हीन और वृषाला भी कहा गया है। जबकि भारतेंदु हरीशचंद्र के एक अनुवाद के अनुसार उनके पिता नंद के राजा महानंदा थे, जबकि उनकी माता का नाम मुरा था, इसी वजह से उनका उपनाम मौर्य पड़ा।

वहीं बुद्धिस्ट परम्पराओ के मुताबिक चन्द्रगुप्त, मौर्य क्षत्रिय समुदाय के ही सदस्य थे। फिलहाल, चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसापूर्व में पाटलीपुत्र (बिहार) में माना जाता है। वे एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए थे जिनके पिता नंदा, नंदों की सेना के एक अधिकारी थे, चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म से पहले ही वे दुनिया छोड़कर चल बसे थे।

वहीं जब चन्द्रगुप्त 10 साल के हुए तब उनकी मां मुरा का भी देहांत हो गया। वहीं इतिहास में ऐसा भी उल्लेखित है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता नंदा और उनके चाचा नवनादास, दोनों सौतेले भाई थे, जो आपस में एक-दूसरे को फूंटी आंखों भी नहीं सुहाते थे, और नवनादास उनके पिता को हमेशा जान से मारने की फिराक में रहते थे।

आपको बता दें कि राजा नंदा के चंद्रगुप्त मौर्य (History Of Chandragupta Maurya in Hindi) को मिलाकर करीब 100 पुत्र थे, आपसी रंजिश के चलते उनके चाचा नवनादास ने महान शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के सभी भाइयों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि चंद्रगुप्त किसी तरह बच गए और मगध साम्राज्य में जाकर रहने लगे थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य और आचार्य चाणक्य की मुलाकात

इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य की मुलाकात दुनिया के सबसे अधिक बुद्धिजीवी, महान अर्थशास्त्री, राजनीति विज्ञान में निपुण एक महान ब्राह्मण आचार्य चाणक्य से हुई, जिसके बाद उनका जीवन पूरी तरह बदल गया और उन्हीं की बदौलत वे इतिहास के सबसे नामचीन एवं महान योद्धा बने। तीव्र बुद्धि के चन्द्रगुप्त बचपन से ही प्रतिभावान, निडर और साहसी बालक थे।

चाणक्य ने उनके गुणों को पहली मुलाकात में ही पहचान लिया था, इसलिए वे उनको तक्षशिला विश्वविद्यालय में ले गए थे, जहां पर उन्होंने चन्द्रगुप्त की प्रतिभा को और अधिक निखारने के लिए पढ़ाना शुरु किया एवं उनके अंदर एक महान और साहसी योद्धा के सभी सामाजिक और राजनीतिक गुणों को विकसित कर उन्हें एक ज्ञानी, बुद्मिमान और समझदार शासक बनाया।

चन्द्रगुप्त-चाणक्य द्धारा नंद वंश का पतन का संकल्प एवं मौर्य साम्राज्य की स्थापना

चाणक्य एवं चंद्रगुप्त दोनों का उद्देश्य नंद वंश का पतन करने का था, क्योंकि चंद्रगुप्त से नंद वंश के शासकों ने उनका हक छीन लिया था, और चाणक्य का भोग-विलास एवं घमंड में चूर मगध के सम्राट धनानंद ने अपमान किया था।

दरअसल, जब भारत पर सिकन्दर ने आक्रमण किया था, उस समय चाणक्य तक्षशिला में प्रिंसिपल थे और तभी तक्षशिला और गान्धार के सम्राट आम्भि ने सिकन्दर से समझौता कर लिया था, जिसके बाद चाणक्य ने भारत की अखंडता और संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से सिकंदर को भारत में आने से रोकने का आग्रह किया था, लेकिन उस समय सिकन्दर से लड़ने कोई आगे नहीं आया।

जिसके बाद चाणक्य ने सम्राट धनानंद से सिकंदर के प्रभाव को रोकने के लिए मद्द मांगी, लेकिन अहंकारी सम्राट धनानंद ने चाणक्य का अपमान कर दिया। इसके बाद आचार्य चाणक्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अपने सबसे बलशाली शिष्य सम्राट चंद्र गुप्त के साथ मिलकर नंद साम्राज्य के पतन की शपथ ली थी।

वहीं नंद वंश के पतन के लिए चन्द्रगुप्त को जहां चाणक्य जैसे महान बुद्दिजीवी, यशस्वी, कूटनीतिज्ञ, दार्शनिक और विद्दान की जरूरत थी, तो वहीं चाणक्य को चन्द्रगुप्त जैसे एक बहादुर, साहसी और पराक्रमी योद्धा एवं सेनापति की जरूरत थी। इसलिए दोनों में नंद वंश का आस्तित्व मिटाने एवं एक सुदृढ़ एवं मजबूत मौर्य साम्राज्य की स्थापना के लिए मिलकर अपनी कुशल नीतियों का इस्तेमाल किया।

इसके लिए दोनों ने कुछ अन्य शक्तिशाली शासकों के साथ मिलकर गठबंधन किए और एक विशाल सेना तैयार कर मगध के पाटलिपुत्र में आक्रमण कर नंद वंश के आस्तित्व को मिटाने में विजय हासिल की। इस तरह महान सम्राट चंद्रगुप्त ने चाणक्य के मार्गदर्शन से बेहद कम उम्र में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की और चाणक्य को अपने दरबार में मुख्य राजनीतिक सलाहकार एवं प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

चाणक्य् नीति का इस्तेमाल कर चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य को बनाया एक सुदृढ़ एवं विशाल साम्राज्य

महान दार्शनिक और राजनीतिज्ञ चाणक्य के मार्गदर्शन और उनकी कुशल नीतियों से मौर्य साम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, गंधरा में स्थित जो कि वर्तमान समय अफगानिस्तान में है। अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर) के जनरलों को हराने के लिए आगे बढ़े और अफगानिस्तान से पश्चिम में बर्मा और जम्मू-कश्मीर से दक्षिण के हैदराबाद तक अपने मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने में सफलता हासिल की।

वहीं करीब 323 ईसापूर्व में सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) का देहांत हो गया, उस दौरान उसका साम्राज्य छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गया, जिसमें हर राज्य एक स्वतंत्र राज्य था, और सभी राज्य का एक अलग शासक था।

इसके बाद महापराक्रमी योद्धा चन्द्रगुप्त मोर्या ने करीब 316 ईसा पूर्व में छोटे-छोटे दुकड़े में बंटे राज्यों को हराकर अपने मौर्य साम्राज्य में मिला लिया और अपने साम्राज्य को वर्तमान इरान, क्राजिस्तान, ताजाकिस्तान तक फैला दिया।

वहीं कई इतिहासकारों के मतुाबिक चन्द्रगुप्त ने उनके मौर्य साम्राज्य के विस्तार में रुकावट पैदा कर रहे मैकडोनिया के दो तानाशाह की निर्मम हत्या भी करवाई थी।इस तरह उन्होंने चाणक्य नीति का इस्तेमाल करते हुए करीब 305 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने मौर्य साम्राज्य को पूर्वी फारस तक फैला दिया था।

वहीं यह वह वक्त था जब पूर्वी एशिया पर सेलयूसिड एंपायर के संस्थापक सेल्यूकस निकेटर का राज्य था। निकेटर अलेक्सेंडर का सेनापति भी रह चुका था। वहीं महान योद्दा चन्द्रगुप्त मौर्य उस दौरान पूर्वी एशिया का बहुत सारा हिस्सा अपने अधीन कर चुके थे, और वे बिना किसी लड़ाई-झगड़े के इस क्षेत्र को अपने साम्राज्य में शामिल करना चाहते थे,

इसलिए बाद में उन्होंने वहां के राजा से समझौता कर लिया, जिसके बाद पूर्वी एशिया पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का सिक्का कायम हो गया। इसके बाद फिर मौर्य साम्राज्य एक विशाल और सुदृढ़ साम्राज्य बन चुका था और चन्द्रगुप्त की गिनती दुनिया के महान शासकों में होने लगी थी।

चन्द्रगुप्त का विवाह एवं सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस से संधि

सेल्यूकस निकेटर के संधि के बाद उन्होंने अपनी सुंदर राजकुमारी का विवाह महान योद्धा चन्द्रगुप्त के साथ कर दी। वहीं इसके बदले में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने निकेटर को 500 हाथियों की विशाल सेना दी, जिसका इ्स्तेमाल निकेटर ने 301 ईसापूर्व में हुई एक लड़ाई जीतने में किया था।

इस तरह सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (History Of Chandragupta Maurya in Hindi) ने अलग-अलग टुकड़ों में बंटे सभी गणराज्यों को एकजुट कर उत्तरी और परिश्चमी राज्यों पर अपने मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया, हांलाकि वे कलिंगा (वर्तमान उड़ीसा) और तमिल साम्राज्य पर अपना शासन करने में नाकामयाब साबित हुए।

हालांकि, चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते एवं इतिहास के सबसे शक्तिशाली एवं महान योद्धा सम्राट अशोक ने बाद में कलिंग और तमिल साम्राज्य पर विजय हासिल कर इसे भी अपने मौर्य साम्राज्य में मिला दिया था। इस तरह मौर्य साम्राज्य, उस समय भारत का सबसे सुदृढ़ और विशाल साम्राज्य बन गया था।

चंद्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म से प्रेरित होना और मृत्यु

मौर्य साम्राज्य के संस्थापक एवं इतिहास के सबसे महान योद्धा चन्द्र गुप्त मौर्य जब 50 साल के हुए तब वे जैन धर्म के विचारों से काफी प्रेरित हुए, और फिर बाद में उन्होंने जैन धर्म को अपना लिया और जैन संत भद्रबाहु को अपना गुरु बना लिया।

इसके बाद करीब 298 ईसा पूर्व में वे अपने पुत्र बिन्दुसार को अपने विशाल मौर्य साम्राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर कर्नाटक की गुफओं में चले गए जहां उन्होंने 5 हफ्ते तक बिना कुछ खाए पिए कठोर तप संथारा किया और बाद भूख की वजह से उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

महान शासक चन्द्रगुप्त की मौत के बाद उनके पुत्र बिंदुसार ने अपने विवेक एवं पूर्ण कुशलता के साथ मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला और इसको और अधिक मजबूत करने के प्रयास किए। वहीं बिंदुसार के समय में भी चाणक्य उनके दरबार के प्रधानमंत्री थे।

चाणक्य की कूटनीति और कुशल नीतियों की बदौलत मौर्य साम्राज्य ने एक नई ऊंचाईयां छू ली थीं। वहीं इसके बाद चंद्रगुप्त के पोते सम्राट अशोक ने भी अपने अ्द्भुत साहस और कुशल शासन के माध्यम से मौर्य साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत में कलिंग और तमिल आदि क्षेत्रों में भी करने में विजय हासिल कर ली थी।

इसलिए मौर्य साम्राज्य के दूसरे शासक बिंदुसार को इतिहास में एक ‘महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता’ भी कहा जाता है, क्योंकि वे महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और सम्राट अशोक महान के पिता थे।

चन्द्रगुप्त के जीवन पर धारावाहिक

सम्राट चन्द्रगुप्त की वीरता के किस्से आज भी युवाओं के अंदर एक नया जोश भर देते हैं और उनके अंदर आगे बढ़ने का नया जुनून पैदा करते हैं। चन्द्रगुप्त के महान जीवन पर बहुत सारी किताबें भी लिखी गईं हैं।

इसके साथ ही कई टीवी सीरीज भी बनाई जा चुकी हैं, जो दर्शकों द्धारा बेहद पसंद भी की गई हैं। आपको बता दें कि, दूरदर्शन पर एक चंद्रगुप्त मौर्य पर टीवी सीरीज प्रसारित की गई थी एवं साल 2011 में Imagine TV पर “Chandragupt Maurya” टीवी सीरीज को काफी लोकप्रियता मिली।

चन्द्रगुप्त के जीवन पर फिल्म

इसके अलावा साल 1977 में चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन पर तेलुगु भाषा में ”चाणक्य चन्द्रगुप्त” फिल्म भी बनाई जा चुकी है। यही नहीं भारतीय इतिहास के इस महान एवं शक्तिशाली योद्धा के चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम पर साल 2001 में उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य एक निडर योद्धा थे। उन्हें चन्द्रगुप्त महान के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने भारत के लगभग सभी उपमहाद्धीपों में मौर्य साम्राज्य का विस्तार कर जीत का परचम लहराया था। वे हमेशा से ही भारत में एकता लाना चाहते थे और आर्थिक रूप से भारत का विकास करना चाहते थे।

इसके साथ ही भारत में कला और शिल्पकला के विकास में मौर्य साम्राज्य की मुख्य भूमिका रही है। वहीं मौर्य कालीन भारत को आज भी एक विकसित भारत के रूप में याद किया जाता है। भारतीय इतिहास के इस महान शासक को ज्ञानी पंडित की पूरी टीम की तरफ से कोटि-कोटि नमन।

उदाहरण 3. चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास – History Of Chandragupta Maurya in Hindi

भारतीय इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) को महान हिन्दू सम्राट की उपाधि दी जाती है। चंद्रगुप्त मौर्य एक महान शासक और कुशल योद्धा थे। मौर्य साम्राज्य की स्थापना से पूर्व भारत छोटे छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था।

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अखंड भारत का निर्माण किया था। उन्होंने पूरे 24 वर्ष तक भारत समेत अन्य देशों पर शासन किया था। मात्र 20 वर्ष की आयु में उन्होंने मौर्य साम्राज्य की नींव रखी थी।

इस महान सम्राट के बारे में जानकारी जैन और बौद्ध धर्म के ग्रन्थों से मिलती है। चाणक्य के कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी चंद्रगुप्त मौर्य (History Of Chandragupta Maurya in Hindi) का जिक्र मिलता है। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य को बताया है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म, जाति और उनके माता पिता के बारे में इतिहासकार एकमत नही है।

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 बीसी को पाटलिपुत्र, बिहार में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नन्दा और माता का नाम मुरा था। इतिहास में उनकी पहली पत्नी का नाम दुर्धरा आता है।

दूसरी पत्नी सेल्युकस की पुत्री हेलन थी। चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र का नाम बिन्दुसार था जबकि उनका पोता सम्राट अशोक था। ऐसा माना जाता है कि चन्द्रगुप्त के जन्म से पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। चन्द्रगुप्त कुछ बड़े हुए तो उनकी माता की भी मृत्यु हो गयी। बचपन से ही चन्द्रगुप्त निडर, साहसी और बुद्धिमान थे।

मौर्य साम्राज्य का उदय और विस्तार

चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) को महान सम्राट बनाने में उनके गुरु चाणक्य का हाथ माना जाता है। आचार्य चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और बुद्धिमान गुरु थे। कहा जाता है कि शिष्य की क्षमता की पहचान गुरु को ही होती है। इसलिए चाणक्य ने चंद्रगुप्त की प्रतिभा को पहचाना और उसे तक्षशिला महाविद्यालय ले गए। वही पर गुरु चाणक्य ने शिष्य चंद्रगुप्त को शिक्षा दी।

इतिहास में आता है कि मगध के राजा धनानन्द ने चाणक्य का अपमान किया था। भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के वक्त चाणक्य ने मगध के राजा धनानन्द से सिकन्दर को रोकने के लिए गुहार लगाई थी।

परंतु धनानन्द ने चाणक्य का अपमान किया। इसलिए चाणक्य ने धनानन्द के पतन की प्रतिज्ञा ली थी। चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने बुद्धि, कुशल रणनीति और बल के द्वारा राजा धनानन्द को हराया। इसके बाद विशाल और संघटित मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ जिसने भारतवर्ष पर शासन किया था। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (History Of Chandragupta Maurya in Hindi) ने चाणक्य को अपने दरबार में मुख्य सलाहकार के पद पर नियुक्त किया था।

चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) ने चाणक्य के मार्गदर्शन में सम्पूर्ण अफगानिस्तान और इराक के कुछ हिस्सों तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। सिकन्दर की मृत्यु के बाद यूनान साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में बंट गया था। सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस ने चंद्रगुप्त के साथ संधि की और उसने अपनी पुत्री हेलन का विवाह भी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ किया था।

भारत के दक्षिण में हैदराबाद तक चन्द्रगुप्त का शासन था। भारत के पूर्वी हिस्से आसाम तक चन्द्रगुप्त ने विजय परचम लहराया था। चाणक्य नीति का इस्तेमाल करते हुए चंद्रगुप्त मौर्य ने एक शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।

मौर्य साम्राज्य उस वक्त का सबसे बड़ा एकजुट साम्राज्य था। चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत के छोटे मोटे राज्यों को जीतकर एक बड़ा साम्राज्य बनाया था। दक्षिण भारत में तमिल और कलिंग राज्य जीतने में चंद्रगुप्त असफल रहे।

चंद्रगुप्त के ख्वाब को उनके पोते सम्राट अशोक ने पूरा किया था। सम्राट अशोक के समय लगभग पूरा भारतवर्ष मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत था। चंद्रगुप्त ने अपने बाद शासन की बागडौर अपने पुत्र बिंदुसार को दी थी।

बिन्दुसार को महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता भी कहा जाता है। क्योंकि बिन्दुसार के पिता महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य थे जबकि उनका पुत्र महान सम्राट अशोक था।

मौर्य साम्राज्य के इतिहास में आता है कि गुरु चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य को खाने में थोड़ा थोड़ा जहर दिया करते थे। इससे चंद्रगुप्त में जहर के प्रति रोग प्रतिरोधकता आ गयी थी। एक बार उनकी पत्नी दुर्धरा गर्भावस्था में जहर मिला हुआ खाना खा लेती है। इससे दुर्धरा की मृत्यु हो गई लेकिन उसके बच्चे बिन्दुसार को बचा लिया गया।

History Of Chandragupta Maurya In Hindi – इतिहास में आता है कि जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म गुरु भद्रबाहु के निकट थे। ऐसा माना जाता है की उन्होंने जैन धर्म अपना लिया था। सम्राट चंद्रगुप्त की मृत्यु के बारे में आता है कि उन्होंने राजपाट छोड़कर कर्नाटक की एक गुफा में भूखे प्यासे रहकर तप किया था।

इसी कारण गुफा में ही उन्होंने प्राण त्यागे थे। उनकी मृत्यु का समय 297 बीसी माना जाता है। सम्पूर्ण भारत को एकीकृत करने में महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का अहम योगदान था। इतिहास में वो अमर है और हमेशा रहेंगे।

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