गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह हिंदू धर्म के लोगों द्वारा हर साल बहुत साहस, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह भारत में विनायक चतुर्थी के नाम से भी लोकप्रिय है। यह प्राचीन काल से पूरे भारत में हिन्दूओँ के सबसे महत्वपूर्ण देवता, भगवान गणेश जी (जिन्हें हाथी के सिर वाला, विनायक, विघ्नहर्ता, बुद्धि के देवता और प्रारम्भ के देवता आदि के नाम से जाना जाता है) को सम्मानित करने के लिये मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह (अगस्त और सितम्बर के बीच) भाद्रप्रदा के महीने में हर साल आता है। यह शुक्ल चतुर्थी (अर्थात् चाँद वृद्धि अवधि के चौथे दिन) पर शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी पर 10 दिन (अर्थात् चाँद वृद्धि अवधि के 14 वें दिन) के बाद समाप्त होता है।
गणेश चतुर्थी के बारे में पूरी जानकारी – Ganesh Chaturthi in Hindi
गणेश चतुर्थी का त्यौहार कई रस्में, रीति रिवाज और हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। विनायक चतुर्थी की तारीख करीब आते ही लोग अत्यधिक उत्सुक हो जाते हैं। आधुनिक समय में, लोग घर के लिए या सार्वजनिक पंडालों को भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाते है और दस दिनों के लिए पूजा करते हैं। त्यौहार के अंत में लोग मूर्तियों को पानी के बडे स्रोतों (समुद्र, नदी, झील, आदि) में विसर्जित करते हैं।
यह लोगों द्वारा देश के विभिन्न राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी और दक्षिणी भारत के अन्य भागों सहित बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह 10 दिनों का उत्सव है जो अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है। यह कई तराई क्षेत्रों नेपाल, बर्मा, थाईलैंड, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, गुयाना, मारीशस, फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, न्यूजीलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि में भी मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी महोत्सव की किंवदंतियॉं
गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक पारंपरिक और सांस्कृतिक त्यौहार है। यह भगवान गणेश की पूजा, आदर और सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। भगवान गणेश देवी पार्वती और भगवान शिव के प्यारे बेटे है। गणेश चतुर्थी त्यौहार के महापुरूष भगवान गणेश है। प्राचीन समय में, एक बार भगवान शिव हिमालय के पहाड़ों में अपनी समाधि के लिए चले गये। तब देवी पार्वती अकेली थी और उन्होंने कैलाश पर शिव की अनुपस्थिति में एक बलवान बेटे का निर्माण करने के बारे में सोचा।
उन्होंने फैसला किया और भगवान गणेश को चंदन के लेप (स्नान लेने का इस्तेमाल किया गया था) के माध्यम से बनाया और फिर उस मूर्ति में जीवन डाल दिया। उन्होंने उस महान बेटे, गणेश के लिए एक कार्य दिया। उन्होंने गणेश से कहा कि, दरवाजे पर रहो और किसी को भी अन्दर प्रवेश करने की अनुमति नहीं देना तब तक मेरा आदेश न हो। वह यह कह कर बेटे के पहरे में अन्दर नहाने चली गयी।
जल्द ही, भगवान शिव अपनी समाधि से वापस आये और कैलाश पर एक नये लड़के को देखा क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि गणेश उनके ही पुत्र है। शिव अन्दर जाने लगे तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोका। उन्होंने कहा कि माता अन्दर नहा रहीं है और आप अन्दर तभी जा सकते है जब वे मुझे आदेश देंगी। भगवान शिव ने बहुत अनुरोध किया पर उनके बेटे ने उन्हें अनुमति नहीं दी। जल्द ही, सभी देवी देवताओं ने मिल कर गणेश से वैसा ही अनुरोध किया।
उन्होंने गणेश को बताया कि भगवान शिव तुम्हारे पिता है, उन्हें अनुमति दे दो क्योंकि इन्हें तुम्हारी माता से मिलने का अधिकार है। किन्तु गणेश ने इंकार कर दिया और कहा मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, पर मैं क्या कर सकता हूँ ? मुझे मेरी माता द्वारा कङा आदेश दिया गया कि दरबाजे से अन्दर आने वाले सभी को बाहर ही रोक देना।
भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गये, तब सभी देवी देवताओं ने उनसे वहाँ से जाने की प्रार्थना की और कहा की हमें एक और बार प्रयास करने दो। शिव के अनुयायियों (गणों, विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र, नारद, सर्पों, आदि) ने बच्चे को शिष्टाचार सिखाना शुरू किया। इंद्र बहुत क्रोधित हो गया और उसने उस बच्चे पर अपनी पूरी शक्ति से हमला किया हालांकि गणेश बहुत ज्यादा शक्तिशाली थे क्योंकि वे शक्ति के अवतार के रूप में थे। गणेश ने सभी को हरा दिया। भगवान शिव दुबारा आये क्योंकि यह उनके सम्मान का मामला था। वह नाराज हो गये और अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। जैसे ही माता पार्वती बाहर आयी, वह इस घटना को देखकर बहुत क्रोधित हुई। उन्होंने गणेश के सिर और शरीर को गोद में लेकर रोना शुरु कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर अपना बच्चा वापस चाहिये अन्यथा मैं पूरे संसार को नष्ट कर दूँगी।
माता पार्वती के निर्णय से सभी देवी-देवता डर गये। उन्होंने भगवान शिव से कुछ करने की प्रार्थना की। शिव ने कहा कि अब पुनः इसी सिर को जोडना नामुमकिन है किन्तु किसी और के सिर को गणेश के शरीर पर जोडा जा सकता है। उन्होंने अपने अनुयायी गणों को सिर की खोज में भेज दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी ऐसे का सिर लेकर आओं जो उत्तर की दिशा की तरफ मुहँ करके और अपने बच्चे से विपरीत दिशा में सो रहा हो। शिव की बतायी गयी शर्तों के अनुसार गणों ने पूरे संसार में सिर खोजना शुरु कर दिया। अंत में, उन्हें बच्चे के विपरीत उत्तर दिशा में सोते हुये एक हाथी मिला। उन्होंने हाथी का सिर काट लिया और कैलाश पर के आये। भगवान शिव ने गणेश के शरीर पर वह सिर जोड़ दिया।
इस तरह से गणेश को वापस अपना जीवन मिला। माता पार्वती ने कहा कि उनका बेटा एक हाथी की तरह लग रहा है, इसलिये सब उसका मजाक बनायेगें, कोई उसका आदर नहीं करेगा। फिर, भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र, गणों और आदि सभी देवी देवताओं ने गणेश को आशीर्वाद, शक्तियों, अस्त्र- शस्त्र आदि बहुत से आशीर्वाद दिये। उन्होंने कहा कि कोई भी गणेश का मजाक नहीं बनायेगा इसके साथ ही गणेश सभी के द्वारा किसी भी नये काम को शुरु करने से पहले पूजा जायेगा। गणेश को हर किसी के द्वारा किसी भी पूजा में पहली प्राथमिकता दी जाएगी। जो लोग गणेश को सबसे पहले पूजेंगें वे वास्तव में ज्ञान और धन से धन्य होगें। माता लक्ष्मी ने कहा कि अब से गणेश मेरी गोद में बैठेगें और लोग ज्ञान और धन पाने के लिये मेरे साथ गणेश की पूजा करेगें।
भगवान शिव ने घोषणा कि यह लङका गणेश (गना+ईश अर्थात् गणों के भगवान) कहा जायेगा। इसलिये गणेश सब भगवानों के भगवान है। भगवान गणेश राक्षसों के लिये विघ्नकर्त्ता अर्थात् बाधा-निर्माता और अपने भक्तों और देवताओं के लिये विघ्नहर्त्ता अर्थात् बाधाओं को नष्ट करने वाले और उनकी कङी मेहनत के लिये आशीर्वाद देने वाले है।
गणेश चतुर्थी महोत्सव की उत्पत्ति और इतिहास
गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर पूजा प्रारंभ होने की सही तारीख किसी को ज्ञात नहीं है, हालांकि इतिहास के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि गणेश चतुर्थी 1630-1680 के दौरान शिवाजी (मराठा साम्राज्य के संस्थापक) के समय में एक सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। शिवाजी के समय, यह गणेशोत्सव उनके साम्राज्य के कुलदेवता के रूप में नियमित रूप से मनाना शुरू किया गया था। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा, यह 1893 में लोकमान्य तिलक (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक) द्वारा पुनर्जीवित किया गया।
गणेश चतुर्थी एक बड़ी तैयारी के साथ एक वार्षिक घरेलू त्यौहार के रूप में हिंदू लोगों द्वारा मनाना शुरू किया गया था। सामान्यतः यह ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष को हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया गया था। महाराष्ट्र में लोगों ने ब्रिटिश शासन के दौरान बहुत साहस और राष्ट्रवादी उत्साह के साथ अंग्रेजों के क्रूर व्यवहार से मुक्त होने के लिये मनाना शुरु किया था। गणेश विसर्जन की रस्म लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित की गयी थी।
धीरे – धीरे लोगों द्वारा यह त्यौहार परिवार के समारोह के बजाय समुदाय की भागीदारी के माध्यम से मनाना शुरू किया गया। समाज और समुदाय के लोग इस त्यौहार को एक साथ सामुदायिक त्यौहार के रुप में मनाने के लिये और बौद्धिक भाषण, कविता, नृत्य, भक्ति गीत, नाटक, संगीत समारोहों, लोक नृत्य करना, आदि क्रियाओं को सामूहिक रुप से करते है। लोग तारीख से पहले एक साथ मिलते हैं और उत्सव मनाने के साथ ही साथ यह भी तय करते है कि इतनी बडी भीड को कैसे नियंत्रित करना है।
गणेश चतुर्थी, एक पवित्र हिन्दू त्यौहार है, लोगों द्वारा भगवान गणेश (भगवानों के भगवान, अर्थात् बुद्धि और समृद्धि के सर्वोच्च भगवान) के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। पूरा हिंदू समुदाय एक साथ पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ प्रतिवर्ष मनाते है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि गणेश जी का जन्म माघ माह में चतुर्थी (उज्ज्वल पखवाड़े के चौथे दिन) हुआ था। तब से, भगवान गणेश के जन्म की तारीख गणेश चतुर्थी के रूप में मनानी शुरू की गयी। आजकल, यह हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी कैसे मनाते है?
गणेश चतुर्थी उत्सव की तैयारियाँ एक महीने या एक हफ्ते पहले से शुरु हो जाती है। अत्यधिक कुशल कलाकार और कारीगर गणेश चतुर्थी पर पूजा के प्रयोजन के लिए भगवान गणेश की विविध कलात्मक मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण करने लगते हैं। पूरा बाजार गणेश की मूर्तियों से भरा होता है। सारा बाजार अपने पूरे जोरो से गति पकडता है। यह देखकर बहुत अच्छा लगता है जैसे बाजार में सब कुछ इस बडे हिन्दू त्यौहार का स्वागत कर रहा हो। प्रतिमाओं को एक असली रूप देने के लिए उन्हें कई रंगों का उपयोग करके सजाया जाता हैं।
समुदाय में समारोह
समुदाय के लोग रुपयों के योगदान और संग्रह के द्वारा विशिष्ट क्षेत्र में पंडाल तैयार करते है। समुदाय के लोग पूजा करने के लिए गणेश जी की भव्य प्रतिमा लाते है। वे दूसरों की तुलना में अपने पंडाल को आदर्श बनाने के लिये अपने पंडाल को (फूल, माला, बिजली की रोशनी, आदि का उपयोग कर) सजाते है। वे धार्मिक विषयों के चित्रण विषय पर आधारित सजावट करते हैं। मंदिरों के पुजारी शॉल के साथ लाल या सफेद धोती में तैयार होते है। वे मंत्रो का जाप करते है और प्रार्थना करते है। प्राण प्रतिष्ठा और सदोपचार (अर्थात् श्रद्धांजलि अर्पित करने का तरीका) की धार्मिक क्रिया होती है। भक्त नारियल, मोदक, गुड़, दूब घास, फूल, लाल फूल माला आदि, सहित भगवान के लिए विभिन्न प्रकार की चीजों की भेंट चढाते है। भक्त पूरी प्रतिमा के शरीर के पर कुमकुम और चंदन का लेप लगाते हैं।
एक बड़ा अनुष्ठान समारोह हर साल आयोजित किया जाता है। लोग, मंत्रों का जाप भक्ति गीत, उपनिषद से गणपति अथर्व-सहिंता, वेदऋग्वेद से सस्वर भजन, नारद पुराण से गणेश स्तोत्र और भी कई पाठ पूरे समारोह के दौरान किये जाते है। लोग इस त्यौहार को उनकी मान्यताओं, रीति-रिवाजों और क्षेत्रीय परंपरा के अनुसार अलग अलग तरीकों से मनाते हैं। सभी अनुष्ठानों गणपति स्थापना (अर्थात् मूर्ति स्थापित करना) से लेकर गणपति विसर्जन (अर्थात् मूर्ति का विसर्जन) तक में एक बहुत बडी भीड समारोह का हिस्सा बनने और पूरे वर्ष के लिये बुद्धि और समृद्धि का आशीर्वाद पाने के शामिल होती है।
घर पर समारोह
गणेश चतुर्थी पूरे भारत में मनायी जाती है, हालांकि यह महाराष्ट्र में साल के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। बहुत से परिवार इस त्यौहार को छोटे स्तर पर सभी रस्मों को समान ढंग से करके अपने घर में मनाते है। परिवार का एक सदस्य गणेश जी की छोटी या बडी मूर्ति (पसन्द के अनुसार) घर लाकर घर के मन्दिर या घर के बीच या किसी बडे खुले स्थान पर मूर्ति की स्थापना करते है। परिवार के सभी सदस्य विसर्जन तक दोनों समय सुबह जल्दी उठकर और शाम को एक साथ गणेश जी की प्रतिमा की पूजा करते है। लोग प्रार्थना करते है, भक्ति गीत, नृत्य, हरी घास के फूल, फल, घी दीया, मुलायम घास का गुच्छा (दूब, एक 21 सूत या एक ऐसा सूत जिसके 3 या 5 गुच्छें हो), मिठाई, मोदक, धूप-बत्ती, कपूर, आदि अर्पित करते है।
लोग दोनों समय पूजा करते है (मुख्यतः 21 बार), और अपनी पूजा बडी आरती के साथ समाप्त करते है। महाराष्ट्र में लोगों द्वारा विशेष रुप से सन्त रामदास द्वारा 17 वीं शताब्दी में लिखी गयी आरती (पूजा के अन्त में) गायी जाती है। घरेलू समारोह 1, 3, 5, 7 या 11 दिनों के बाद नदी, समुद्र आदि की तरह बड़े पानी के स्रोत में प्रतिमा के विसर्जन पर समाप्त होता है। भारी भीड के कारण उत्पन्न समस्याओं से दूर रहने के लिये, लोग धीरे-धीरे पानी के बडें स्त्रोतो पर विसर्जन के लिये जाने से बचने लगे है। लोग पानी की एक बाल्टी या टब में गणपति विसर्जन करते हैं और बाद में वे बगीचे में इस मिट्टी का उपयोग कर लेते है।
महोत्सव के लिए तैयारी
लोग कम से कम एक महीने या एक सप्ताह पहले से इस समारोह की तैयारियाँ शुरू करते हैं। वे भगवान गणेश का सबसे प्रिय व्यंजन मोदक (मराठी में) बनाते है। इसके विभिन्न भाषाओं के कारण अनेक नाम है जैसे: कन्नङ में कडुबु या मोदक , मलयालम में कोज़हाकट्टा और मोदकम, तेलुगु में मोदकम् और कुडुमु और तमिल में कॉज़हक़त्तई और मोदगम। मोदक चावल के आटे या गेहूं के आटे में नारियल, सूखे मेवे, मसालों और गुड़ के मिश्रण का उपयोग कर पूजा के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता है। कुछ लोग इसे भाप के द्वारा और कुछ इसे पकाकर बनाते है। मोदक की तरह एक अन्य पकवान करन्जी कहा जाता है, लेकिन यह आकार (अर्धवृत्ताकार आकार) में भिन्न है। 21 की संख्या में गणेश जी को मोदक की भेंट करने की एक रस्म है।
पूजा प्रक्रिया, रस्में और गणेश चतुर्थी का महत्व
पूरे भारत में पूजा प्रक्रिया और अनुष्ठान क्षेत्रों और परंपराओं के अनुसार थोड़े अलग है।लोग गणेश चतुर्थी की तारीख से 2-3 महीने पहले विभिन्न आकारों में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति बनाना शुरू कर देते है। लोग घर में किसी उठे हुये प्लेटफार्म पर या घर के बाहर किसी बडी जगह पर सुसज्जित तम्बू में एक गणेश जी की मूर्ति रख देते है ताकि लोग देखे और पूजा के लिये खडे हो सके। लोगों को अपने स्वयं या किसी भी निकटतम मंदिर के पुजारी को बुलाकर सभी तैयारी करते हैं।
कुछ लोग इन सभी दिनों के दौरान सुबह ब्रह्मा मुहूर्त में ध्यान करते हैं। भक्त नहाकर मंदिर जाते है या घर पर पूजा करते है। वे पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा करके प्रसाद अर्पित करते है। लोग मानते है कि इस दिन चाँद नहीं देखना चाहिये और भगवान में अविश्वास करने वाले लोगों से दूर रहना चाहिये।
लोग पूजा खासतौर पर लाल सिल्क की धोती और शाल पहनकर करते है। भगवान को मूर्ति में बुलाने के लिये पुजारी मंत्रों का जाप करते है। यह हिन्दू रस्म प्राणप्रतिष्ठा अर्थात् मूर्ति की स्थापना कहलाती है। इस अनुष्ठान का एक अन्य अनुष्ठान द्वारा अनुगमन किया जाता है, जिसे षोष्ढषोपचार अर्थात् गणेश जी को श्रद्धांजलि देने के 16 तरीकें कहा जाता है। लोग नारियल, 21 मोदक, 21 दूव- घास, लाल फूल, मिठाई, गुड़, धूप बत्ती, माला आदि की भेंट करते है। सबसे पहले लोग मूर्ति पर कुमकुम और चंदन का लेप लगाते है और पूजा के सभी दिनों में वैदिक भजन और मंत्रो का जाप, गणपति अथर्व संहिता, गणपति स्त्रोत और भक्ति के गीत गाकर भेंट अर्पित करते है।
गणेश पूजा भाद्रपद शुद्ध चतुर्थी से शुरू होती है और अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होती है। 11 वें दिन गणेश विसर्जन नृत्य और गायन के साथ सड़क पर एक जुलूस के माध्यम से किया जाता है। जलूस,“गणपति बप्पा मोरया, घीमा लड्डू चोरिया, पूदचा वर्षी लाऊकारिया, बप्पा मोरया रे, बप्पा मोरया रे” से शुरु होता है अर्थात् लोग भगवान से अगले साल फिर आने की प्रार्थना करते है। लोग मूर्ति को पानी में विसर्जित करते समय भगवान से पूरे साल उनके अच्छे और समृद्धि के लिये प्रार्थना करते है। भक्त विसर्जन के दौरान फूल, माला, नारियल, कपूर और मिठाई अर्पित करते है।
लोग भगवान को खुश करने के लिये उन्हें मोदक भेंट करते हैं क्योंकि गणेश जी को मोदक बहुत प्रिय है। ये माना जाता है कि इस दिन पूरी भक्ति से प्रार्थना करने से आन्तरिक आध्यात्मिक मजबूती, समृद्धि, बाधाओं का नाश और सभी इच्छाओं की प्राप्ति होती है। ये विश्वास किया जाता है कि, पहले व्यक्ति जिसने गणेश चतुर्थी का उपवास रखा था वे चन्द्र (चन्द्रमा) थे। एकबार, गणेश स्वर्ग की यात्रा कर रहे थे तभी वो चन्द्रमा से मिले। उसे अपनी सुन्दरता पर बहुत घमण्ड था और वो गणेश जी की भिन्न आकृति देख कर हँस पड़ा। तब गणेश जी ने उसे श्राप दे दिया। चन्द्रमा बहुत उदास हो गया और गणेश से उसे माफ करने की प्रार्थना की। अन्त में भगवान गणेश ने उसे श्राप से मुक्त होने के लिये पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ गणेश चतुर्थी का व्रत रखने की सलाह दी।
वायु पुराण के अनुसार, यदि कोई भी भगवान कृष्ण की कथा को सुनकर व्रत रखता है तो वह (स्त्री/पुरुष) गलत आरोप से मुक्त हो सकता है। कुछ लोग इस पानी को शुद्ध करने की धारणा से हर्बल और औषधीय पौधों की पत्तियाँ मूर्ति विसर्जन करते समय पानी में मिलाते है। कुछ लोग इस दिन विशेष रूप से अपने आप को बीमारियों से दूर रखने के लिये झील का पानी का पानी पाते है। लोग शरीर और परिवेश से सभी नकारात्मक ऊर्जा और बुराई की सत्ता हटाने के उद्देश्य से विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश के आठ अवतार (अर्थात् अष्टविनायक) की पूजा करते हैं। यह माना जाता है कि गणेश चतुर्थी पर पृथ्वी पर नारियल तोड़ने की क्रिया वातावरण से सभी नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने में सफलता को सुनिश्चित करता है।
कुछ लोग गणेश चतुर्थी के अगले दिन गणेश विसर्जन करते हैं, हालांकि कुछ लोग गणेश चतुर्थी के बाद 3, 5, 7, 10 वें और 11 वें दिन पर गणेश विसर्जन करते हैं। हमें मूर्ति विसर्जन बहुत सावधानी और वातावरण के अनुकूल तरीकें से करना चाहिये ताकि कोई भी प्लास्टिक का कचरा गणेश जी की मूर्ति के साथ पानी में न बहाया जाये और पानी को प्रदूषण से बचाया जा सके। गणेशजी की मूर्ति घर पर पानी से भरी बाल्टी या टब में भी विसर्जित की जा सकती है।
गणेश विसर्जन का महत्व
गणेश विसर्जन हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। गणेश जी की मूर्ति मिट्टी की बनी होती है जो पानी में विसर्जित होने के बाद बेडौल हो जाती है। इसका मतलब है कि इस दुनिया में सब कुछ एक दिन (मोक्ष या मुक्ति) बेडौल हो जाएगा। गठन और बैडोल होने की प्रक्रिया कभी न खत्म होने वाला घेरा (अर्थात् चक्र) है। हर साल गणेश जीवन के इसी परम सत्य के बारे में हमें यकीन दिलाने के लिए आते हैं।
भगवान गणेश का मंत्र
“ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।”
भगवान गणेश जी की आरती
“जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी,
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।
(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा,
(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा),
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अँन्धे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
(दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी )
(कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी)॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥”