दोस्ती पर शायरी – Friendship Shayri in Hindi

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दोस्ती पर शायरी – Friendship Shayri in Hindi

आरमानो की डोली में सपनो की आख मिचोली में
खुशी की फुहार में गम की दास्तान में
करते है हम दुआ दिन और रात में
मिले दोस्त हमे आपके जैसा हर जन्म में हर हाल में

कशिश शर्मा

हर रिश्ते में मिलावट देखि है
अपनों के सकल में हमने गैरो की टोली देखि है
एक तू हे यार मेरा सच्चा
वरना मैंने सबकी झूठी सूरत देखि है

कशिश शर्मा

तू नही तो कुछ अच्छा न लगे
तेरे बिन हर पल सुना सुना लगे
रूठा न कर एय यार मेरे
तेरे बिना हर राह बड़ी मुस्किल लगे

कशिश शर्मा

सब सहन कर सकता हु मैं ए दोस्त
बस सहन ये तेरी नाराज़गी न होगी
तेरे जैसा कौन है मेरा आपना तू तो सब है जानता
मुझसे सहन न तेरी ये जुदाई होगी

कशिश शर्मा

दो ही अमानत है खुदा ने मुझे नवाजी
एक यार मेरा दूसरी यारी हमारी
न लगे नज़र कभी कोई इस रिश्ते को हमारे
यही है दुआ हमारी

कशिश शर्मा
बेमतलब सी इस जिंदगी में
कोई जीना सिखा गया
खुद ले कर गम मेरे सारे
मुझे हसना सिखा गया
ए यार मेरे तू मुझे छोड़ कहा चला गया
कशिश शर्मा
वो बचपन बड़ा याद आता है
यारो का साथ बड़ा सताता है
छुट गये वो यार पुराने
जिन यारो के संग हमने बचपन था बिताया

कशिश शर्मा
वो संग तेरे लड़ना फिर एक हो जाना
कितना ख़ास था न वो रिश्ता हमारा
आज तो एक बार की लड़ाई से रिश्ते छुट जाते है
ए दोस्त दोस्ती जैसे सच्चे रिश्ते अब कहा पाए जाते है

कशिश शर्मा

मेरे बिन बोले तेरा समझ जाना
मेरे रोने पे तेरा गले लगा कर चुप कराना
मेरे लिए सबसे तेरा यु लड़ जाना
कोई नही तुझसा इस दुनिया में मेरा
तू कभी न मुझे छोड़ कर जाना

कशिश शर्मा

कुछ ऐसा है मेरा उससे रिश्ता
चोट उसे लगे तो अहसास मुझे होता है
आखे उसकी भर जाये तो , आशु मेरी आख में भी आता है
कहते है लोग सिर्फ मोहब्बत में ही ऐसा होता है
पर मैंने दोस्ती में भी ऐसा होते देखा है

कशिश शर्मा
आ गया था दिल हम दोनों का एक ही लड़की पे
उसने मेरे लिए अपनी मोहब्बत को छोड़ा था
जब पूछा मैंने उससे तूने मेरे वास्ते क्यों किया ऐसा
मुस्कुरा कर बोला वो पागल सा यार मेरा
तूने भी तो बचपन में अपना पसंदीदा खिलौना मेरे लिए छोड़ा था

कशिश शर्मा
मोहब्बत और दोस्ती में फर्क कितना है
मोहब्बत रुलाती है , दोस्ती हसाती है
मोहब्बत जान लेती है , दोस्ती जान देती है
फिर भी न जाने क्यों लोग दोस्ती छोड़ मोहब्बत करते है
न जाने क्यों ख़ुशी छोड़ गम अपने नाम लिखते है

कशिश शर्मा

वो मस्ती भरा दिन वो बचपन की नादानीया
वो पल पल लड़ना लड़ते लड़ते रोना , फिर एक दुसरे को मना लेना
कहा खो गया वो पल वो बचपन वो शैतानिया ए मेरे दोस्त
न जाने कब आ गयी समझदारिया और ये जिमेदारिया

कशिश शर्मा

जरूरी तो नही की मोहब्बत ही सिद्दत वाली हो
कभी कभी दोस्ती भी किसी से सिद्दत वाली हो जाती है

कशिश शर्मा

भूल जाऊ मैं सारे ज़माने को
पर ए दोस्त तुझे न भूल पाउँगा
तू क्या है मेरे लिए मेरी जिंदगी में
ये मैं लफ्जों में न बता पाउँगा

कशिश शर्मा
अगर करनी हो परख ज़माने में किसी रिश्ते की
तो यकीनन ये दाबा है मेरा हर रिश्ता झूठा निकल जायेगा
पर आजमा लेना अपनी दोस्ती को एक बार
ये दोस्ती का रिश्ता क़यामत तक साथ निभाएगा

कशिश शर्मा

मुझे आम से उसने खास बनाया है
जमीन से उठा कर मुझे अस्मा पे बैठाया है
ए दोस्त तेरी दोस्ती ने मुझे जीना सिखाया है

कशिश शर्मा

कभी न मैंने खुद के लिए खुदा से कुछ न माँगा
पर जब सवाल तेरी सलामती का आया
तेरे लिए मैंने ए दोस्त , न जाने
मैं कितने चक्कर मंदिरों के लगा आया

कशिश शर्मा

एक सच्ची दोस्ती कुछ इस तरह से निभाई उसने
जब मैं पड़ गया था बीमार , रात रात भर जाग कर
मेरे लिए दुआ की उसने

कशिश शर्मा
कोई खून का रिश्ता नही मेरा उससे
फिर भी वो मेरे दिल के सबसे करीब है
माँ बाप भाई बहन ,सब बन जाता है वो मेरा
ऐसा एक मेरा यार है

कशिश शर्मा