जल प्रदूषण पर निबंध – Essay On Water Pollution in India

जल प्रदूषण से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि, झीलोंं, नदियों, समुद्रों और भूजल के जल के संदूषित होने से है। जल प्रदूषण, इन जल निकायों के पादपों और जीवों को प्रभावित करता है और सर्वदा यह प्रभाव न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है।

जल प्रदूषण पर निबंध – Long and Short Essay On Water Pollution in India

जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित कर दिया जाना है। जल में विभिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल प्रदूषण होता है।

जल प्रदूषण एक प्रमुख वैश्विक समस्या है। इसके लिए सभी स्तरों पर चल रहे मूल्यांकन की और जल संसाधन नीति में संशोधन की आवश्यकता है क्योंकि जल प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में कई प्रकार की बीमारियाँ और लोगों की मौत भी हो रही है।[1] इसके कारण लगभग प्रतिदिन 14,000 लोगों की मौत हो रही है। जिसमें 580 लोग भारत के हैं। चीन में शहरों का 90 प्रतिशत जल प्रदूषित होता है।

वर्ष 2007 में एक जानकारी के अनुसार चीन में 50 लाख से अधिक लोग सुरक्षित पेय जल की पहुँच से दूर हैं। यह परेशानी सबसे अधिक विकसित देशों में होती है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 45 प्रतिशत धारा में बहते जल, 47 प्रतिशत झील, 32 प्रतिशत खाड़ी के जल के प्रति वर्ग मील को प्रदूषित जल के श्रेणी में लिया गया है। चीन में राष्ट्रीय विकास विभाग के 2007 में दिये बयान के अनुसार चीन की सात नदी में जहरीला पानी है, जिससे त्वचा को हानि होती है।

कारण

वर्षा के जल में हवा में उपस्थित गैसों और धूल के कणों के मिल जाने आदि से उसका जल जहाँ भी जमा होता है, वह जल प्रदूषित हो जाता है। इसके अलावा ज्वालामुखी आदि भी इसके कुछ कारण हैं। जब कुछ अपशिष्ट पदार्थ भी इसमे मिलते हैं तब भी ये जल गंदा हो जाता है ।

यह कई रोगों के जनक होते हैं। इस कारण इन्हें रोगजनक कहते हैं। इसमें विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी आदि आते हैं। यह मुख्यतः एक जगह जल के एकत्रित रहने पर होते हैं। इसके अलावा यह सड़े गले खाद्य पदार्थों में भी पैदा हो जाते हैं।

कार्बनिक, अकार्बनिक सभी प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। कपड़े या बर्तन की धुलाई या जीवों या मनुष्यों के साबून से नहाने पर यह साबुन युक्त जल शुद्ध जल में विलय हो जाता है। खाने या किसी भी अन्य तरह का पदार्थ भी जल में घुल कर उसे प्रदूषित कर देता है।

पेट्रोल आदि पदार्थों का रिसाव समुद्री जल प्रदूषण का बड़ा कारण है। पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्री मार्गों से किया जाता है। इन जहाजों में से कई बार रिसाव हो जाता है या किसी कारण से जहाज दुर्घटना का शिकार हो जाता है। उसके डूबने आदि से या तेल के समुद्र में फैलने से जल प्रदूषण होता है।

कई बड़े कारखाने वस्तु आदि को गलाने हेतु बहुत गर्म करते हैं। इसी के साथ उसमें कई ऐसे पदार्थ भी होते हैं, जिन्हें कारखाने में उपयोग नहीं किया जा सकता है। उसे कहीं ओर डालने के स्थान पर यह उसे नदी में डाल देते हैं। जिसके कारण नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है। इसके ऊष्मा के कारण कई जलीय जीवों जैसे मछली आदि की भी मौत हो जाती है, जो नदियों में कचरा खाकर उसे साफ रखने का भी कार्य करती हैं। ऊष्मीय जल में ऑक्सीजन घुल नहीं पाता है और इसके कारण भी कई जलीय जीवों का नाश हो जाता है।

तापीय या ऊष्मीय प्रदूषण नदियों आदि में बहुत ही ठंडे जल प्रवाहित करने पर भी होता है। इससे सबसे बड़ा खतरा गर्म रहने वाले नदियों पर होता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव

  • समुद्रों में होने परमाणु परीक्षण से जल में नाभिकीय कण मिलते हैं जो कि समुद्री जीवों व वनस्पतियों को नष्ट करते हैं और समुद्र के पर्यावरण सन्तुलन को बिगाड़ देते हैं।
  • प्रदूषित जल पीने से मानव में हैजा, पेचिस, क्षय, उदर सम्बन्धी आदि रोग उपन्न होते हैं।
  • दूषित जल के साथ ही फीताकृमि, गोलाकृमि आदि मानव शरीर में पहुँचते हैं जिससे व्यक्ति रोगग्रस्त होता है।
  • जल में कारखानों से मिलने वाले अवशिष्ट पदार्थ, गर्म जल, जल स्रोत को दूषित करने के साथ-साथ वहाँ के वातावरण को भी गर्म करते हैं जिससे वहाँ की वनस्पति व जन्तुओं की संख्या कम होगी और जलीय पर्यावरण असन्तुलित हो जायेगा।
  • स्वच्छ जल जो कि सभी सजीवों को अति आवश्यक मात्रा में चाहिए, इसकी कमी हो जायेगी।

उपाय

  • कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ इन अवशिष्ट पदार्थों को निष्पादन से पूर्व दोषरहित किया जाना चाहिए। 2. नदी या अन्य किसी जल स्रोत में अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए।
  • कार्बनिक पदार्थों के निष्पादन से पूर्व उनका आक्सीकरण कर दिया जाए।
  • पानी में जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थ, जैसे ब्लीचिंग पाउडर आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  • अन्तर्राष्टीय स्तर पर समुद्रों में किये जा रहे परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिए।
  •  समाज व जन साधारण में जल प्रदूषण के खतरे के प्रति चेतना उत्पन्न करनी चाहिए।