श्रीनिवास रामानुजन पर निबंध – Essay On Srinivasa Ramanujan in Hindi

श्रीनिवास रामानुज महान भारतीय गणितज्ञ जिनका जन्म 22 दिसंबर 1827 दक्षिण भारत के कोयंबटूर के एक गांव में हुआ इनकी की माता का नाम कोमलताम्मल और इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। आधुनिक समय के महानतम गणितज्ञ में माना जाता है।रामानुज बचपन से ही बेहद प्रतिभावान थे।

श्रीनिवास रामानुजन पर निबंध – Long and Short Essay On Srinivasa Ramanujan in Hindi

श्रीनिवास रामानुजन आधुनिक समय के  महानतम गणितज्ञ माना जाता है इन्होंने कोई खास प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था। फिर भी गणित के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया।

इस महान वैज्ञानिक का ऐसा नहीं था यह 3 वर्ष की अवस्था बोल भी नहीं पाते थे माता-पिता को लगा कहीं यह गूंगा ही ना रह जाए स्कूल में पढ़ने लिखने में भी बिल्कुल पूछी नहीं थी शिक्षक उन्हें बहुत ही कमजोर बुद्धि का समझते थे।परंतु आगे चलकर के इग्नोर पढ़ाई में अपने पूरे प्रेसीडेंसी को टॉप किया।

रामानुज अपने अध्यापकों से अक्सर प्रश्न किया करते थे कि संसार का पहला व्यक्ति कौन था समंदर की एक छोर से दूसरे छोर की लंबाई कितनी है इत्यादि जैसे अटपटे प्रश्न। कुशाग्र बुद्धि की होने के साथ-साथ स्कूल में कॉलेज में इनका स्वभाव इतना मधुर था कि कॉलेज के अन्य विद्यार्थियों के नियम रामानुज पर लागू नहीं होती थी गणित में प्रथम स्थान प्राप्त होने के कारण इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति दी गई। परंतु आगे के वर्षों में गणित में ज्यादा लगाओ होने की वजह से रामानुज अन्य विषयों में बेहद कमजोर हो गए और परीक्षा में फेल हो गए तो इनकी छात्रवृत्ति रुक गई। फेल होने की वजह से इनकी आगे की पढ़ाई रुक गई।

विद्यालय छोड़ने के बाद का पांच वर्षों का समय इनके लिए बहुत हताशा भरा था। भारत इस समय परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था। चारों तरफ भयंकर गरीबी थी। ऐसे समय में रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का मौका। बस उनका ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति अगाध श्रद्धा ने उन्हें कर्तव्य मार्ग पर चलने के लिए सदैव प्रेरित किया। नामगिरी देवी रामानुजन के परिवार की ईष्ट देवी थीं।

उनके प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया और वे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी गणित के अपने शोध को चलाते रहे। इस समय रामानुजन को ट्यूशन से कुल पांच रूपये मासिक मिलते थे और इसी में गुजारा होता था। रामानुजन का यह जीवन काल बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। इन्हें हमेशा अपने भरण-पोषण के लिए और अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और अनेक लोगों से असफल याचना भी करनी पड़ी।

विवाह और गणित साधना

वर्ष 1908 में इनके माता पिता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया। विवाह हो जाने के बाद अब इनके लिए सब कुछ भूल कर गणित में डूबना संभव नहीं था। अतः वे नौकरी की तलाश में मद्रास आए। बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण न होने की वजह से इन्हें नौकरी नहीं मिली और उनका स्वास्थ्य भी बुरी तरह गिर गया।  डॉक्टर रामानुज जहां भी जाते तो गणित में किए गए अपने कार्य वहां जरूर दिखाते

इसी समय किसी के कहने पर रामानुजन वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। जो स्वयं गणित के विद्वान थे। उन्होंने रामानुज की प्रतिभा को पहचाना और 25 वें मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया अध्यन करती हो गई यहां पर रामानुज ने अपना प्रथम शोध पत्र तैयार किया और प्रकाशित भी किया।

प्रोफेसर आईडी से पत्राचार

इसी समय रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए तो उनका ध्यान लंदन के ही प्रोफेसर हार्डी की तरफ गया। प्रोफेसर हार्डी उस समय के विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से एक थे। और अपने सख्त स्वभाव और अनुशासन प्रियता के कारण जाने जाते थे। प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। अब रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से पत्रव्यवहार आरंभ हुआ।

अब यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ जिसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जिस तरह से एक जौहरी हीरे की पहचान करता है और उसे तराश कर चमका देता है, रामानुजन के जीवन में वैसा ही कुछ स्थान प्रोफेसर हार्डी का है। प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा जाए तो दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया। उस समय के कई प्रतिभाशाली गणितज्ञ जिनकी शोध पत्र के  ऑफिसर हार्डी ने दिखे जिनमें रामानुज सबसे उत्कृष्ट थे।

आरंभ में तो रामानुजन ने जब अपने किए गए शोधकार्य को प्रोफेसर हार्डी के पास भेजा तो पहले उन्हें भी पूरा समझ में नहीं आया। जब उन्होंने अपने मित्र गणितज्ञों से सलाह ली तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि रामानुजन गणित के क्षेत्र में एक दुर्लभ व्यक्तित्व है और इनके द्वारा किए गए कार्य को ठीक से समझने और उसमें आगे शोध के लिए उन्हें इंग्लैंड आना चाहिए। अतः उन्होने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। वहां जाकर के रामानुज ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर कई शोध कार्य किये।

इनका गिरता स्वास्थ्य सबके लिए चिंता का विषय बन गया और यहां तक की अब डॉक्टरों ने भीजवाब दे दिया था। अंत में रामानुजन के विदा की घड़ी आ ही गई। 26 अप्रैल1920 के प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होने प्राण त्याग दिए। इस समय रामानुजन की आयु मात्र 33 वर्ष थी। इनका असमय निधन गणित जगत के लिए अपूरणीय क्षति था। पूरे देश विदेश में जिसने भी रामानुजन की मृत्यु का समाचार सुना वहीं स्तब्ध हो गया।