बचपन की सभी मीठी यादों में सबसे अच्छी और प्यारी यादें विद्यालय की होती है। विद्यालय का अर्थ होता है विद्या का घर, यानी जहाँ विद्या दी जाती है। भारतवर्ष में विद्या को पूजनीय मान कर उसकी साधना की जाती है तथा विद्यालय को विद्या का मंदिर माना जाता है। सभी के जीवन में उनके सबसे अच्छे दिन विद्यालय के ही होते है, मुझे भी मेरा विद्यालय इसी वजह से अति प्रिय है।
मेरा विद्यालय पर निबंध – Long and Short Essay On My School in Hindi
मेरे विद्यालय का नाम केंद्रीय विद्यालय, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी है। यह खड़गपुर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के परिसर के अंदर स्तिथ है। हमारे खड़गपुर में ५ केंद्रीय विद्यालय है जिसमे मेरा विद्यालय सबसे पुराना तथा प्रचिलित है। यह प्रचिलित इसलिए है क्योंकि यहाँ अत्यधिक बच्चों के प्रमाणपत्र पर अंक अच्छे आते है तथा वे जीवन में आगे चल कर कुछ बड़ा करते है।
मेरे विद्यालय का परिसर बहुत बड़ा है जिसमें दो मंजिल की ३ इमारतें तथा १ मंजिल की २ इमारतें है। विद्यालय के सामने की तरफ अति सुंदर बागीचा है जिसमें कई तरह के सुंदर फूल के वृक्ष लगे है जैसे गुलाब, चम्पाय, सूरजमुखी, बेला आदि और उस बाग की सुरक्षा विद्यालय के माली काका करते है। बागीचे के बीचों-बीच माता सरस्वती की मूर्ति विराजमान है,यह हमारे विद्यालय की विशेषता है की सर्वप्रथ्म मुख्य द्वार से घुसने पर विद्या की देवी के दर्शन सभी को होते है।
इसके अलावा परिसर के चारों तरफ बड़े बड़े वृक्ष लगे है जिनके चारों ओर बैठने के स्थान बनाये गये है। मेरे विद्यालय में दो मुख्य द्वार , एक विशाल पुस्तकालय, दो बड़े खेल के मैदान जहाँ खेल दिवस भी मनाया जाता है तथा बास्केटबॉल और वॉलीबॉल के कोर्ट भी है। मुझे आज भी याद है की प्रथम इमारत में प्रधानाध्यापक के बैठने का कमरा और स्टाफ कक्ष था। हमारे विद्यालय में लगभग ५०-५० अध्यापक-अध्यापिकाएं है जो ज्ञान के भंडार है तथा उतने ही विनयशील भी है।
हमारा विद्यालय सरकारी है तथा उसमें कक्षा 1 से कक्षा 12 तक शिक्षा दी जाती है। पहले हमारे विद्यालय में कक्षा दासवी के बाद केवल आर्ट्स और विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी परंतु अब कॉमर्स की शिक्षा भी अब शुरू हो गई है जिससे बच्चों को दसवीं के बाद परेशानी न हो। हमारे विद्यालय में लगभग सभी विषयों में शिक्षा दी जाती है, पढ़ाई के अलावा अन्य सहपाठ्यक्रम गतिविधियों की शिक्षा बच्चों को दी जाती है जैसे संगीत, चित्रकला, खेल-कूद आदि।
मेरे विद्यालय सुबह ७.३० बजे खुल जाता था तथा सभी के लिए ८ बजे के पहले आने के नियम थे क्योंकि हमारे प्रधानाचार्य अनुशासन प्रिय थे। ८ बजे से प्रार्थना-सभा का आयोजन मंच के आगे होता था जहाँ सभी विद्यार्थी पंक्ति बना कर खड़े हो जाते थे। प्रार्थना पूर्व, संकल्प होता था फिर प्रधानाचार्य जी प्रतिदिन की मुख्य घोषणा करते थे। उसके बाद हम अपनी अपनी कक्षा में चले जाते थे। प्रथम विषय की क्लास कक्षा अध्यापक की होती थी, वे आकर सभी बच्चों की उपस्थिति खाते में उपस्थिति लेते थे।
हर कक्षा अवधि ४० मिनेट की होती थी। प्रथम ५ विषयों की कक्षा खत्म होने पर लंच-ब्रेक होता था। लंच- ब्रेक में सभी बच्चें अपने अपने टिफ़िन लेकर पेड़ो के नीचे बैठ कर या कैंटीन में खाते थे। हमलोग भी अपनी सहेलियों के साथ एक पेड़ के नीचे बैठ कर अपना अपना भोजन बाँट कर खाते थे। लगभग ४५ मिनट के लंच ब्रेक के बाद दोबारा घंटी बजती थी और सभी कक्षा में वापस चले जाते थे। उसके बाद दोबारा पढ़ाई के विषयों की चार कक्षा होती थी। लगभग १.३० बजे हमारी छुट्टी होती थी।
पढ़ाई के अतिरिक्त हमारे विद्यालय में कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाती थी जिससे बच्चों को आगे कभी रुकावट न हो। सभी विशेष दिवस भी हमारे विद्यालय में धूम से मनाए जाते थे और बच्चों से लेकर अध्यापक ,सभी उसमें अपना योगदान देते थे क्योंकि साथ मिलकर काम करने की बुद्धि बच्चों में तभी विकसित होगी। सांस्कृतिक दिवसों पर नृत्य, कविता-वाचन, नाट्य आदि रोचक और मनोरंजक कार्यक्रम होते थे। स्वतंत्रता दिवस के दिन हम सभी सफेद यूनिफॉर्म में विद्यालय जाया करते थे जहाँ प्रधानाचार्य जी झंडा फहरा कर बच्चों को संबोधित करते थे तत्पश्चात लड्डू तथा टॉफियां बच्चों में बाँटी जाती थी।
उस दिन का उत्साह विद्यार्थियों में देखते बनता था। शिक्षक दिवस के दिन भी सभी बच्चें अपने अपने कक्षा अध्यापकों को उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लेते थे। खेल दिवस में तो बच्चों की उत्सुकता देखते बनती थी, हर कोई अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए खेल के मैदान में तैनात हुआ करता था। इन सभी विशेष अवसरों के आयोजन से बच्चे भी खुश रहा करते थे।
इसके अतिरिक्त मेरे विद्यालय में विज्ञान की प्रयोगशाला भी थी जिसमे विज्ञान के विद्यार्थियों को नए नए प्रयोग सिखाये जाते थे। हमारे विद्यालय के पुस्तकालय में भी बच्चों के ज्ञान का विकास ध्यान में रखते हुए विज्ञान, सामाजिक ज्ञान की पुस्तकें, गणित, हिंदी कहनियाँ तथा कविताओं की पुस्तकें है। हमारे विद्यालय में यह भी नियम था की एक न एक बार सभी कक्षा के विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण के लिये ले जाया जाता था। हमे भी एक बार विद्यालय की ओर से शैक्षिक भ्रमण के लिये कोलकाता के साइंस सिटी ले जाया गया था।
वहाँ जाकर हमने कई नई चीजें सीखी और नए अनुभव लिये, अपने सहपाठियों के साथ वह मेरा प्रथम भ्रमण था जिसका अनुभव अतुलनीय था। मेरे विद्यालय में प्रति वर्ष विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाता था जिसमे अनेक विद्यार्थी अपने अपने घरों से बोहुत सुंदर सुंदर प्रदर्शनी बना कर लेते थे, मैं भी उसमे एक पानी के झरने की प्रदर्शनी बना कर ले गयी थी जिसमे मुझे तीसरा स्थान प्राप्त हुआ था। एक बार मुझे चित्रकला में भी प्रधानाचार्य जी से प्रथम स्थान पाने के उपलक्ष में पुरुस्कार मिला था,
वह दिन आज भी मेरे लिए स्वर्णिम याद बानी हुई है।। मेरे विद्यालय में यह भी परंपरा है की बोर्ड की परीक्षा में स्थान प्राप्त करने वालों को प्रधानाचार्य द्वारा मेडल दिया जाता था ताकि बच्चों का उत्साह बढ़े। बाल काल के विद्यालय के दिन भुलाये नही भूलते क्योंकि वह किसी भी विद्यार्थी के लिए स्वर्णिम दिन होते है। मेरा विद्यालय हमारे शहर के सभी विद्यालयों में सर्वश्रेष्ठ है । मुझे गर्व है की मैं ऐसे विद्यालय में पढ़ी जहाँ बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाती है तथा उनका भविष्य उज्जवल बनाने में पूरा योगदान दिया जाता है।