सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी – Biography of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

इस पोस्ट में सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी (Biography of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi) पर चर्चा करेंगे। भारत के लौह पुरुष और पहले उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की शनिवार को 68वीं पुण्यतिथि है. उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली. आज़ाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है.

उदाहरण 1. सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी – Biography of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को हम लौह पुरुष के नाम से भी जानते हैं। उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसे उपाधियों से नवाजा गया।

आज हम जिस, कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले विशाल भारत को देख पाते हैं उसकी कल्पना सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना शायद पूरी नहीं हो पाती, उन्होंने ही देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एक कर भारत में सम्मिलित किया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय एकता की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है, उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल और अदम्य साहस का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो सका।

बिस्मार्क ने जिस तरह जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसी तरह वल्लभ भाई पटेल ने भी आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। बिस्मार्क को जहां जर्मनी का ‘आयरन चांसलर’ कहा जाता है वहीं पटेल भारत के लौह पुरुष कहलाते हैं।

वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ। वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे।

बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। हालांकि 16 साल की उम्र में ही उनका विवाह कर दिया गया था पर उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया और 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली।

अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुआ मानते थे। उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई।गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी पहनावे के लिए भी जाने जाते थे, लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आने के बाद उनके जीवन की राह ही बदल गई।

1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा, बरसाड़ और बारदोली के किसानों को एकत्र किया।

अपने इस काम की वजह से देखते ही देखते वह गुजरात के प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में शामिल हो गए। जन कल्याण और आजादी के लिए चलाए जाने वाले आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण स्थान मिल गया। गुजरात के बारदोली ताल्लुका के लोगों ने उन्हें ‘सरदार’ नाम दिया और इस तरह वे सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे।

सन 1947 में भारत को आजादी तो मिल गयी थी लेकिन इसके बावजूद देश के सामने चुनौती थी अपनी छोटी-छोटी रियासतों को एक करने की जिससे एक अखंड व् विशाल भारतवर्ष का सपना साकार हो पाता। ऐसे में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘रियासतों को तीन विषयों – सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।’

सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी रजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें ‘भारत संघ’ में सम्मिलित हो गईं. जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया.

जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की ज़िम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया।

15 दिसंबर, 1950 को सरदार पटेल इस दुनिया को अलविदा कह गए . भारत देश को आज ऐसे ही लौह पुरुष की तलाश है जो देश में एकता और अखंडता लाने में फिर से सफल हो सके.

उदाहरण 2. सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी – Biography of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) का जन्म ब्रिटिश राज में वर्ष 1875 में 31 अक्टूबर को नाडियाड, गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल था जो की एक किसान थे। माता का नाम लाडबाई था जो की एक ग्रहणी थी।

वल्लभ भाई पटेल की शुरुआती शिक्षा वही के एक गुजराती भाषा स्कूल में हुई थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी तो उन्होंने 10 वीं तक ही पढ़ाई की। उन्होंने स्वाध्ययन का रास्ता चुना और घर पर ही किताबें पढ़कर आगे की पढ़ाई की।

सरदार पटेल वकालत की पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन गए थे। वहां पर उन्होंने अच्छे मार्क्स से लॉ की पढ़ाई पूरी की और वर्ष 1913 में भारत लौट आये। उन्होंने वकालत की 36 महीनों की पढ़ाई केवल 30 महीनों में ही पूरी की और पूरे कॉलेज में टॉप किया था।

भारत आकर सरदार वल्लभभाई पटेल ने गोधरा, गुजरात में वकालत का काम शुरू किया था। उस वक्त भारत में स्वतंत्रता के आंदोलन चल रहे थे। कई स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा निकाल रहे थे। एक बार सरदार पटेल गांधीजी की सभा में गए थे, वहां पर महात्मा गांधी के विचारों का उन पर काफी प्रभाव पड़ा। इसके बाद से ही सरदार पटेल गांधीजी के अनुयायी बन गए।

सरदार पटेल का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की स्वतंत्रता के संघर्ष में अहम भूमिका थी। वल्लभ भाई पटेल ने गांधीजी के सभी आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। असहयोग आंदोलन हो या भारत छोड़ो आंदोलन हो, उनका योगदान हर आंदोलन में था। गांधीजी ने जब नमक कानून के विरुद्ध दांडी यात्रा की थी, तब सरदार पटेल भी इस यात्रा के हिस्सा बने थे।

वर्ष 1917 में खेड़ा, गुजरात में भयंकर अकाल पड़ा था। इसकी वजह से खेती की फसलें नही हो पायी। अंग्रेज सरकार किसानों से लगान वसूल करती थी। इस भयानक सूखे के कारण लोग “कर” देने में असमर्थ थे।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने खेड़ा के लोगो के लिए आंदोलन किया। उन्होंने “कर” ना देने का फैसला किया और इसके विरुद्ध आंदोलन चलाया। आखिरकार अंग्रेजो को सरदार पटेल की बात पर सहमत होना पड़ा और किसानों को “कर” से राहत दी गयी।

वर्ष 1928 में सरदार पटेल ने बारडोली सत्याग्रह में भी अहम योगदान दिया था। तब बारडोली की जनता ने उन्हें “सरदार” की उपाधि दी थी। सरदार पटेल ने राजनीति में भी प्रवेश किया और वर्ष 1922 के अहमदाबाद नगर निगम के चुनाव में जीत हासिल की थी। इसके बाद हुए वर्ष 1924 और 1927 में भी वो मेयर चुने गए। यह सरदार पटेल की लोकप्रियता ही थी कि वो लगातार चुनाव जीतते गए।

वल्लभ भाई पटेल गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त हुए। वर्ष 1931 में सरदार पटेल राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाला गया था। करीब 3 वर्ष तक सरदार पटेल जेल में रहे।

सरदार पटेल का प्रथम गृहमंत्री के रूप में कार्य

सरदार वल्लभभाई पटेल का सबसे बड़ा योगदान आजाद भारत के गृहमंत्री के रूप में था। भारत में उस वक्त 562 रियासते थी और उनमें से कुछ रियासते स्वतंत्र देश की मांग कर रही थी। सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ और कूटनीति से इन सभी रियासतों का भारत में विलय किया था।

हैदराबाद, जम्मू कश्मीर और जूनागढ़ के राजा नवाब भारत में विलय के पक्ष में नही थे। सरदार पटेल ने सैन्य बल से इनको भारत में विलय किया। सरदार पटेल के मजबूत इरादों ने सशक्त भारत की नींव रखी। लौहपुरुष की उपाधि सरदार पटेल को अपने इस महान काम से मिली थी। वो मजबूत इच्छाशक्ति के मालिक थे।

वल्लभभाई पटेल की शादी कम उम्र में ही कर दी गई थी। उनकी पत्नी का नाम झावेरबा था। सरदार पटेल की उनसे दो सन्तान हुई जिनका नाम है – दहया भाई और मणिबेन पटेल। उनकी पत्नी का केंसर बीमारी के कारण देहांत हुआ था।

पत्नी की मृत्यु के समय वल्लभ भाई पटेल अदालत में एक स्वतंत्रता सेनानी का केस लड़ रहे थे। उन्हें पत्नी के निधन की खबर मिल चुकी थी, फिर भी वो उस स्वतंत्रता सेनानी के न्याय के लिए अदालत में मौजूद रहे। यह उनकी महानता है जिसकी अमिट छाप करोड़ो भारतीयों के दिल में है।

सरदार वल्लभभाई पटेल का सम्मान और उपलब्धियां

सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel In Hindi) को मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत रत्न से नवाजा गया था। वर्ष 1965 में उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया। सरदार पटेल के सम्मान में गुजरात में उनकी 182 मीटर की मूर्ति भी स्थापित की गयी है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नाम सरदार वल्लभभाई पटेल अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।

वल्लभभाई पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। बिस्मार्क ने जर्मनी को एकत्रित करने में महान भूमिका निभाई थी। उसी तरह से सरदार पटेल ने भारत को एकत्रित किया था। सरदार वल्लभभाई पटेल का 15 दिसम्बर, 1950 को निधन हुआ था। सरदार पटेल को भारत देश कयामत तक याद रखेगा।

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