मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी – Biography of Maithili Sharan Gupt in Hindi

आज हम इस पोस्ट के द्वारा मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी (Biography of Maithili Sharan Gupt in Hindi) के बारे में पूरी तरह से जानने की कोशिस करेंगे| मध्य प्रदेश के संस्कृति राज्य मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा है कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती प्रदेश में प्रतिवर्ष तीन अगस्त को ‘कवि दिवस’ के रूप में व्यापक रूप से मनायी जायेगी।

यह निर्णय राज्य शासन ने लिया है। युवा पीढ़ी भारतीय साहित्य के स्वर्णिम इतिहास से भली-भांति वाकिफ हो सके इस उद्देश्य से संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश में भारतीय कवियों पर केन्द्रित करते हुए अनेक आयोजन करेगा।

  • नाम : मैथिली शरण गुप्त
  • जन्म : 3 अगस्ता 1886
  • ठिकाण : चिरगाँव, उत्त्र पश्चीमी प्रांत भारत
  • वडिल : रामचरण गुप्तव्यावसाय : कवि, राजनीतिज्ञ, नाटककार, अनुवादक

मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी (Biography of Maithili Sharan Gupt in Hindi)

मैथिली शरण गुप्त को भारतीय आधुनिक हिंदी कवियों मे से महत्वापूर्ण कवि के रुप मे जाना जाता है | उनका जन्म 3 अगस्ता 1886 कों झाँसी के चिरगॉव मे हुआ था | उनके पिता का नाम रामचरण गुप्त और माता का नाम काशीबाई गुप्त था | बचपन मे मैथिली को स्कुली शिक्षा पसंत नही थी |

इसिलिए उनके मातापिता ने उनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया था | उन्होंने बचपन मे ही संस्कूत, अंग्रेजी और बंगाली का अध्यायन किया है | उस समय उनके गुरु महावीर प्रसाद थे | उन्होंने मैंकडोनल हाई स्कूल से अपनी शिक्षा पुरी की |

सन 1895 मे उनकी शादी काशीबाई के साथ हुई थी | उनके बेटे का नाम उर्मिल चरण गुप्ता है | और सिथारामशरण गुप्त उनके रिश्तेदारों मे से एक है | मैथिली शरण गुप्त दिवान शत्रुध्ना सिंह के शिक्षक भी रहे है| मैथिली शरण गुप्ता का 12 डिसेंबर 1964 को भारत मे निधन हुआ था |

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मैथिलीशरण गुप्त के कार्य

शुरुवाती दिनों मे मैथली ने साहित्या मे सरस्वती सहित विभिन्ना पत्रिकाओं मे कविताएँ लिखी है | सन 1910 मे उनका पहला प्रमुख काम रंग मे भंग यह भारतीय प्रेस व्दारा प्रकाशित हुआ था | भारत भारती जैसी अनेक राष्ट्रवादी कविताएं भारतीयों के बीच अधीतर लोकप्रीय हुई |
उनकी अधिकांश कविताएँ रामायन, महाभारत, बौध्दा कथाओ और प्रसिध्दा धार्मिक नेतांओं के जीवन के भूखंडो के इर्द गिर्द घुमती है | भारत स्वतंत्रता के बाद वह अपने मृत्यू तक राजया सभा के मानद सदस्या के रुप मे कार्यरित रहे थे |

मैथिलीशरण गुप्त के पूरस्कार सम्मान

  • मैथलि को सन 1854 मे अपने साहित्यिकीक योगदान के लिए तीसरे भारतीय सर्वेाच्चा नागरिक सम्मान पघभूषण से सम्मानित किया गया था |
  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें महात्मा गांधी व्दारा राष्ट्रकवि की उपाधि दी गई |

पूस्ताक :

  • मैथलि शरण गुप्त ग्रंथावली अनेक भागों मे प्रकाशित है |
  • सन 2015 को पंचवटी भी मैथिली ने लिखित है |
  • सन 1949 मे उन्होंने यशोधरा पूस्ताक प्रकाशित की है |

काव्यगत विशेषताएँ

गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से परिपोषित था, तो साथ ही जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, गणेश शंकर विद्यार्थी और मदनमोहन मालवीय उनके आदर्श रहे। महात्मा गांधी के भारतीय राजनीतिक जीवन में आने से पूर्व ही गुप्त जी का युवा मन गरम दल और तत्कालीन क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित हो चुका था।

‘अनघ’ से पूर्व की रचनाओं में, विशेषकर जयद्रथ-वध और भारत भारती में कवि का क्रान्तिकारी स्वर सुनाई पड़ता है। बाद में महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, और विनोबा भावे के सम्पर्क में आने के कारण वह गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आन्दोलनों के समर्थक बने।

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गुप्त जी के काव्य की विशेषताएँ इस प्रकार उल्लेखित की जा सकती हैं:

  • राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता
  • गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता
  • पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता
  • नारी मात्र को विशेष महत्व
  • प्रबन्ध और मुक्तक दोनों में लेखन
  • शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग
  • पतिवियुक्ता नारी का वर्णन

भाषा शैली

मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा खड़ी बोली है। इस पर उनका पूर्ण अधिकार है। भावों को अभिव्यक्त करने के लिए गुप्त जी के पास अत्यन्त व्यापक शब्दावली है। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं की भाषा तत्सम है। इसमें साहित्यिक सौन्दर्य कला नहीं है। ‘भारत-भरती’ की भाषा में खड़ी बोली की खड़खड़ाहट है, किन्तु गुप्त जी की भाषा क्रमशः विकास करती हुई सरस होती गयी।

संस्कृत के शब्दभण्डार से ही उन्होंने अपनी भाषा का भण्डार भरा है, लेकिन ‘प्रियप्रवास’ की भाषा में संस्कृत बहुला नहीं होने पायी। इसमें प्राकृत रूप सर्वथा उभरा हुआ है। भाव व्यञ्जना को स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए संस्कृत का सहारा लिया गया है। संस्कृत के साथ गुप्त जी की भाषा पर प्रांतीयता का भी प्रभाव है। उनका काव्य भाव तथा कला पक्ष दोनों की दृष्टि से सफल है।

शैलियों के निर्वाचन में मैथिलीशरण गुप्त ने विविधता दिखाई, किन्तु प्रधानता प्रबन्धात्मक इतिवृत्तमय शैली की है। उनके अधिकांश काव्य इसी शैली में हैं- ‘रंग में भंग’, ‘जयद्रथ वध’, ‘नहुष’, ‘सिद्धराज’, ‘त्रिपथक’, ‘साकेत’ आदि प्रबंध शैली में हैं। यह शैली दो प्रकार की है- ‘खंड काव्यात्मक’ तथा ‘महाकाव्यात्मक’। साकेत महाकाव्य है तथा शेष सभी काव्य खंड काव्य के अंतर्गत आते हैं।

गुप्त जी की एक शैली विवरण शैली भी है। ‘भारत-भारती’ और ‘हिन्दू’ इस शैली में आते हैं। तीसरी शैली ‘गीत शैली’ है। इसमें गुप्त जी ने नाटकीय प्रणाली का अनुगमन किया है। ‘अनघ’ इसका उदाहरण है। आत्मोद्गार प्रणाली गुप्त जी की एक और शैली है, जिसमें ‘द्वापर’ की रचना हुई है। नाटक, गीत, प्रबन्ध, पद्य और गद्य सभी के मिश्रण एक ‘मिश्रित शैली’ है, जिसमें ‘यशोधरा’ की रचना हुई है।

इन सभी शैलियों में गुप्त जी को समान रूप से सफलता नहीं मिली। उनकी शैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें इनका व्यक्तित्व झलकता है। पूर्ण प्रवाह है। भावों की अभिव्यक्ति में सहायक होकर उपस्थित हुई हैं।

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