बैसाखी, वसाखी या वैसाखी ये तीन नाम के रूप में भी जाना जाता है, मुख्य रूप से यह एक सिख त्योहार है। जिसे पंजाब के राज्य में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।सिख समुदाय के लोग और अन्य देश के भी लोग इस त्योहार को बढे ही धूम धाम और मिल जुलकर मनाते है क्यूंकि यह त्योहार उनके लिए नए साल की शुरुआत का प्रतिक है । यह त्योहार प्रत्येक वर्ष 13 अप्रैल को मनाया जाता है।
बैसाखी पर निबंध – Long and Short Essay On Baisakhi in Hindi
बैसाखी मूल रूप से एक हिंदू त्योहार है जो सिख मनाते है । यह तीन हिंदू त्योहारों मे से एक त्योहार मनाया जाता है जिसे गुरु अमर दास जी ने सिखों के लिए चुना था ।बाकी दो त्यौहार दिवाली और महाशिवरात्रि चुने गए थे । लेकिन इनके इतिहास के द्वारा पता चलता है की या फिर कुछ तथ्यों के अनुसार की उन्होंने महा शिवरात्रि की जगह पर मकर संक्रांति को चुना था ।
इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है और इस त्योहार को मनाने के कई कारण है जैसे की :
दरसल, इस त्योहार को रबी की फसल की कटाई शुरू होने की सफलता के रूप में मनाया जाता है। और साथ ही मे इस दिन को गुरु तेग बहादुर के उत्पीड़न और मौत के बाद सिखों की आदेश की शुरुआत के रूप में देखा जाने लगा जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के अनुसार इस्लाम को कबूकरने से मना कर दिया था।
इससे दसवें सिख गुरु के राज्याभिषेक और खालसा पंथ का गठन हुआ था और यह दोनों घटनाएँ बैसाखी दिवस पर हुई थी । यह दिन हर वर्ष खालसा पंथ केत्याग की याद में मनाया जाता है।
और साथ हे मे सिख भी इसे फसल काटने के उत्सव के रूप में भी मनाते हैं। और जो सिख समुदाय से संबंधित है वह भी इस त्योहार को मनाते है नए साल के प्रतिक के रूप मे। यह एक प्राचीन हिन्दू त्योहार है जिसे वसंत की फसल के रूप मे जाना जाता है।
बैसाखी त्यौहार का उत्सव कैसे मनाया जाता है
बैसाखी का त्यौहार मनानें लिए हर एक गली कूचे मे मेला लगता है और आमतौर पर इसे एक साधारण जगह पर मनाया जाता है जो धार्मिल स्थान मे इसे आयोजित किआ जाता है जैसे की के बैसाखी के त्यौहार को मनाने के लिए बैसाखी मेला नदी या नहर अथवा तालाब के किनारे या मंदिर के जैसे सथानो पर यह मेला लगता है।
बैसाखी पर्व के आने से एक दिन पहले ही सभी सामने और बाज़ारों की सजावट की जाती है। इस मेले में अनेक चाट,मिठाई, फलों,खिलौनों, इन्ही जैसे चीजो की अनेक दुकानें लगाई जाती हैं, और लोग बडी संख्या में आकर खरीदारी करते हैं । बैसाखी के मेले में तरह-तरह की दुकाने लगी हुए होती हैं, इसमे अनेक प्रकार के चर्खियाँ और झूले लगाई जाती हैं।
सभी बच्चे लड़के लड़कियां सभी मज़े से झूले मे खुंटे है और एक दूसरे के साथ खुशियां बाटते है। और एक दूसरे के घर जाकर खुशियां और मिठयां बाटते हैबैसाखी के इस मेले में अनेक नट, जादूगर और बाजीगर जैसे भी लोग आते है और कई प्रकार के जादू और नट दिखाते है , वे सभी दर्शकों को तरह-तरह के खेल दिखाकर अच्छी आमदनी कमा लेते हैं । मेले में कहीं पर भालूं का नाच दिखते या फिर कही पर बंदरों का नाच । चाट-पकौडी के दुकानो पर बच्चों और स्त्रियों की बहुत भीड़ दिखाई देती है। बैसाखी के दिन इन लोगों के पास काफी सारे लोग दिखाई देते है।
बैसाखी के त्योहार मे नृत्य भी दिखाई जाते है। और इस नृत्य को देखने के लिए लोग बोहोत दुर दुर से अपने गाओं से आते है और मेले मे वह सभी घेरा बनाकर खडे रहते है या फिर जब भी आप इस त्योहार के वक़्त जायेगे तो आपको ऐसा देखने को मिलेगा । बीच में ग्रामीण पुरुषों और महिलाओ की एक टोली होती है।
ये दरसल गाओं के आस-पास के किसान होते हैं । वे ढोल-नगाडों की तान पर अपने लोक-नृत्यों का प्रदर्शन करते है। उनके मे लम्बे लम्बे डंडिया होती है वह उससे हवा मे उछलते है और और ज़ोर ज़ोर से गीत गाते हुए कहते है” बैसाखी आई बैसाखी आई ” गीत गाते है और जो नाचते है वह एक दूसरे को हवा मे उछालते भी है तो इस प्रकार से बैसाखी मनाई जाती है।