Jati Vyavastha Kya Hai? जाति व्यवस्था से क्या तात्पर्य है पूरी जानकारी

जैसा की आप सबको पता है कि जाति है एक ऐसा शब्द होता है जिसको सुनकर कुछ हीरो गर्व से भर जाते हैं लेकिन उस गुस्से से लाल हो जाते हैं तो कुछ की तो रुह ही कांप जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि जाति मात्र एक शब्द नहीं है बल्कि जाति जिंदगी जीने की एक विधि है। आज स्वतंत्रता के कई दशक बीत गए। लेकिन जाति के शासन का अंत नहीं हो सका।

Jati Vyavastha Kya Hai?

सबसे  बड़ी बात यह है कि यह जो जाति व्यवस्था है इसको आप सिर्फ भारतीय समाज में ही देखते हैं। ऐसी व्यवस्था या जाति से संबंधित किसी प्रकार की व्यवस्था संसार के किसी और कोने में नहीं मिलेगी। भारत में जाति व्यवस्था का क्रूर रूप देखने को मिलता है। अब यह सवाल होता है कि ऐसी गंदी मानसिकता और बौद्धिक लोग भारत में ही मिलते हैं। हमें ऐसी बातों पर अवश्य विचार करना चाहिए। जाति व्यवस्था मात्र एक धोखा है जो समाज के शक्तिशाली वर्ग द्वारा बनाया गया है।

जाति व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?

जाति व्यवस्था मारे समाजशास्त्र का मुख्य भाग है। भारतीय और विदेशी समाज शास्त्रियों ने शुरू से ही भारत की जाति व्यवस्था के अध्ययन में रुचि दिखाई है। जाति व्यवस्था वह पहचान है जो धरती पर आने से पहले मिल जाती है। यह हमारे समाज की बहुत ही जटिल समस्या है। प्राचीन काल से ही जाति व्यवस्था हमारे देश में बने हुई है। देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी इसका असर देखने को मिलता है। जाति व्यवस्था के आधार पर लोगों को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार श्रेणियों में बांटा गया है। जाति व्यवस्था हिंदुओं आचरण, नैतिकता और विचारों को अधिक प्रभावित करती है। कितनी पुरानी व्यवस्था है यह बताना बहुत ही मुश्किल है।

इसका संबंध ऋग्वेद से बताया जाता है और कहा जाता है कि देवी और ईश्वर द्वारा यह व्यवस्था बनाई गई है। लेकिन आज के विद्वान इस बात को और अस्वीकार करते हैं। आज के विद्वान यह मानते हैं कि यह प्रथा नाना द्वारा निर्मित की गई है और इस व्यवस्था को बनाने में कदापि एक मनुष्य का हाथ नहीं है। बल्कि विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों से जाति व्यवस्था विकसित हुई है।

प्रत्येक वर्ग के लोगों का अपना अपना धर्म बना हुआ है। और और सबको अपने ही धर्म मैं भोज और विवाह करने के लिए कहा गया है।

हिंदुओं की विभिन्न जातियां और उपजातियां होती हैं और वे अपने-अपने ही जातियों में शादी विवाह और भोज कार्यक्रम करते हैं। हालांकि आज का समय बदल चुका है आज हमारे समाज में शिक्षित लोग हैं जिन्हें जाति व्यवस्था पर ध्यान नहीं देना चाहिए। लेकिन फिर भी हमारे समाज में जाति व्यवस्था की मजबूत पकड़ बनी हुई है।

जाति व्यवस्था का  वर्गीकरण

जाति व्यवस्था की शुरुआत वैदिक काल से हुई है लेकिन उस समय इसका रूप पूरी तरह स्पष्ट नहीं था। उत्तर वैदिक काल और सूत्र काल में व्यवस्था अधिक प्रसिद्ध हो गई।

  • वेद पढ़ने, कर्मकांड करने और पुरोहित करने वाले “ब्राह्मण” कहलाए।
  • युद्ध में निपुण और देश पर शासन करना “क्षत्रिय” कहे गए।
  • जो लोग धंधा करते थे और जिनका खुद का व्यापार और वाणिज्य था उन्हें “वैश्य” कहा गया।
  • बाकी बचे लोग जिनका काम सेवा करना था उन्हें “शुद्र” कहा गया।

इस प्रकार से जाति विभाजन किया गया। धीरे-धीरे समय के अनुसार जाति व्यवस्था में बदलाव हुआ और जाति व्यवस्था एक बुराई बन गई हमारे समाज की। असल में पहले जाति व्यवस्था वर्ण व्यवस्था थी जो सही दिशा में की गई थी लेकिन धीरे-धीरे समाज ने इसे जाति व्यवस्था में बदल दिया। आज समाज के शक्तिशाली वर्ग द्वारा जाति व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाता है। उच्च वर्ग वाले लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ छुआछूत की भावना रखते हैं। यह भूल जाते हैं कि उनके अंदर भी वही रक्त बहता है जो उच्च वर्ग वालों के अंदर बहता है। उच्च वर्ग वाले लोग भाई लोगों को हिन भावना से देखते हैं।

निष्कर्ष

जाति व्यवस्था में समाज की बुराई है हमें से बढ़ावा नहीं देना चाहिए। दुख की बात तो यह है जाति व्यवस्था जैसी बुरी भावना आज के शिक्षित समाज में भी बनी हुई है। जिसका राजनीतिक लोग अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने जाति व्यवस्था के लिए बहुत सारी लड़ाइयां लड़ी उन्होंने जाति व्यवस्था को सुधारने की कोशिश की निम्न वर्ग के लोगों को हक दिलाने की बात की हालांकि आज हमारे समाज में आरक्षण के रूप में निम्न वर्ग के लोगों को बहुत सारी सुविधाएं मिल रही है। लेकिन फिर भी निम्न वर्ग के लोगों को सम्मान ना के बराबर मिल पाया है। हमें इस व्यवस्था को खत्म करना चाहिए। और जाति व्यवस्था कभी बढ़ावा नहीं देना चाहिए।