भारतीय शिक्षा प्रणाली पर भाषण – Speech on Indian Education System in Hindi

वैसे इन दिनो भारतीय शिक्षा प्रणाली पर काफी चर्चा होती है, क्योंकि हमारे केंद्रीय शिक्षा मंत्री और सरकार द्वारा हमारे शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करके और भी ज्यादे विश्वस्तरीय बनाने का प्रयास किया जा रहा है। हमारे शिक्षा प्रणाली को ऐसा बनाने का प्रयास किया जा रहा है जिससे छात्र बुनियादी शिक्षा और चीजो से लेकर आधुनिक चीजो तक को सीख सके, लेकिन फिर भी हमें अभी काफी लम्बा सफर तय करना है। इसीलिए जरुरत के अवसरो पर आप भी भारतीय शिक्षा प्रणाली के इस विषय पर भाषण देकर अपने विचार व्यक्त कर सकते है।

उदाहरण 1: भारतीय शिक्षा प्रणाली पर भाषण – Speech on Indian Education System in Hindi

देवियों और सज्जनो आप सभी का आज के इस कार्यक्रम में हार्दिक स्वागत है। जैसा कि आप सब जानते है कि आज हम यहा भारतीय शिक्षा प्रणाली पर चर्चा करने के लिए इकठ्ठा हुए है, इसके साथ ही हमें इस बात पर भी गौर करने की आवश्यकता है कि आखिर इतने संख्या में छात्र पढ़ने के लिए विदेश क्यो जा रहे हैं। यह बात तो हम सब ही जानते है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली हमारी स्वंय की बनायी हुई नही है, बल्कि की यह पश्चिमी शिक्षा प्रणाली पर आधारित है। अगर हम इसकी और गहनता से जांच करते है तो पता चलता है कि आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली का आगमन भारत में अंग्रेजो के साथ आयी क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा हुआ था। इन क्रिश्चियन मिशनरियों ने कई तरह के विद्यालयों की स्थापना की और धर्म निरपेक्ष गतिविधियों को बढ़ावा दिने के साथ ही भारतवासियों का ईसाई धर्म के प्रति झुकाव बढ़ाया।

अगर हम भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली के उपर गौर करते है तो हम पाते है कि यह गुरुकुल शिक्षा पद्धति पर आधारित थी, जिसकी बुनियाद गुरु जिन्हे आज हम शिक्षक के रुप में जानते है और शिष्य या विद्यार्थी के प्रत्यक्ष संबधो पर आधारित थी। इस तरह की शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत एक दृढ़ जीवन और अनुशासित जीवन जीने के साथ वैदिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त करना होता था। यह शिक्षा प्रणाली ज्यादेतर दर्शन, धर्मशास्त्र और भाषा विज्ञान के ज्ञानार्जन को समर्पित थी। हम कह सकते है कि यह एक ऐसी समावेशी शिक्षा प्रणाली थी, जो आध्यात्मिकता और दर्शन से लेकर युद्ध के विषय में और अच्छे नैतिकता के साथ स्वस्थ जीवनशैली पर भी जोर देती थी।

हालांकि यह शिक्षा प्रणाली वर्ण व्यवस्था के आधार पर बंटी हुई थी तथा औरतो और शूद्रो दोनो को ही शिक्षा व्यवस्था और व्यावसायिक विषयो के ज्ञान से वंचित रखा गया था। इसके पश्चात हम देखते है कि मध्यकालीन भारत में मदरसा शिक्षा प्रणाली का उदय हुआ और इस समयकाल के दौरान इसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। इस तरह के मदरसो और पाठशाला जैसे ज्यादेतर विद्यालयो में क्रमशः मौलवी जोकि मुस्लिम विद्यार्थियो को शिक्षा देते थे और ब्राम्हण जोकि हिन्दू विद्यार्थियों को शिक्षा देते थे, उनके देखरेख में संचालित किया जाता था।

उस अवधि के दौरान लोगों की शिक्षा के प्रति सोच में कोई खास गंभीरता नहीं थी। क्योंकि मुख्य रूप से यह शिक्षा प्रणालियाँ हिंदू और मुस्लिम समुदायों के अपने पारंपरिक दृष्टिकोण पर आधारित थी और इनके द्वारा धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बजाय दार्शनिक और धार्मिक शिक्षा पर ज्यादे जोर दिया जाता था।

लेकिन हमें यह भी नही भूलना चाहिए कि 17वी शताब्दी के बाद ही पश्चिमि यूरोप में धर्म-निरपेक्ष शिक्षा लोगो के बीच एक बड़ी प्रेरणा का केंद्र बनकर लोकप्रिय हुई तथा इसके बाद 19वी शताब्दी में जाकर वैज्ञानिक ज्ञान लोगो के सामने आया।

जो भी हो लेकिन फिर भी वर्तमान की भारतीय शिक्षा प्रणाली अभेद्य नही है और यह युवाओ को पर्याप्त अवसर और रोजगार देने में विफल साबित हुआ है। हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी मात्र कक्षा शिक्षण तक सीमित है और विद्यार्थियो के प्रयोगिक अनुभव के लिए पर्याप्त उपकरण और संसाधन नही मौजूद है, जिससे जब वह अपनी शिक्षा पूरी करते है तो उन्हे अपनी आजीविका चलाने और रोजगार के लिए काफी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। आज के समय में हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था की जांच-पड़ताल करने की आवश्यकता है, जिससे आज के इस दौर को देखते हुए विद्यार्थियों को तैयार किया जा सके, जिससे वह सही शिक्षा प्राप्त करके धनार्जन कर सके और अपने परिवार पर किसी तरह का बोझ ना बने। बस मैं आप सब से इतना ही कहना चाहता था।

उदाहरण 2: भारतीय शिक्षा प्रणाली पर भाषण – Speech on Indian Education System in Hindi

मैं आदित्य खरे आज के इस कार्यक्रम में आप सब का मेजबान हुँ, इससे पहले कि मैं भारतीय शिक्षा प्रणाली के विषय में अपना भाषण शुरु करु, आप सब हमारे आज के विशेष अतिथि श्री…….., का आज के इस कार्यक्रम में यहा आने के लिए जोरदार तालियो के साथ स्वागत करे।

देवियों और सज्जनो शायद आप में से कुछ लोगो को नही पता होगा कि हमारे विशेष अतिथि श्री……, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के अध्यक्ष है। शिक्षा के क्षेत्र में इनके उपलब्धियों की प्रशंसा करने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नही है। पर फिर भी मैं आपको यह बता दू कि इनके द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली के दोषो और कमियों को दूर करके इसे बेहतर करने के लिए भरपूर प्रयास किए जा रहे है। जिससे शिक्षा का यह द्वार सभी युवाओ के लिए खुल सके और वह इस शिक्षा के असीम भंडार को प्राप्त करके और भी ज्यादे प्रतिभाशाली बन सके।

आज हम यहाँ अपने भारतीय शिक्षा पद्धति का गुणगान करने के लिए नही आये है बल्कि की इस बात पर चर्चा करने के लिए आये है कि आज भी यह विश्वस्तर पर एक बेहतरीन शिक्षा प्रणाली बनने के मामले में बहुत पीछे है। तो आइये आज के अपने शिक्षा प्रणाली के विषय को लेकर चर्चा शुरु करें, जिससे हम इन चुनौतियों और बाधाओं को पार कर सके तथा हमारे छात्रो को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरो पर ज्यादे से ज्यादे लाभ मिले।

मेरा मानना है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों के उम्मीदो पर खरा उतरने में विफल साबित हुई है, क्योंकि उनकी शिक्षा पूरी होने के बावजूद भी उन्हे रोजगार नही मिल रहा है। इसलिए हम कह सकते है कि हमारे विद्यार्थियों को दि जाने वाली शिक्षा का बाहरी दुनिया में मिलने वाले रोजगार के अवसरो से प्रत्यक्ष रुप से संबंध नही है। जिसके कारणवश विद्यार्थी इस परिस्थिति का सामना नही कर पाते और निराश हो जाते है। हालांकि पिछले कुछ समय से केंद्र तथा राज्य दोनो स्तर के सरकारों द्वारा इस मुद्दे को गंभीरता से लिया गया है और शिक्षा तथा रोजगार के बीच के इस दूरी को कम करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में हमारा विकास काफी निराशाजनक रहा है। इसका अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते है कि सरकार द्वारा हमारे जीडीपी का मात्र 3.85 प्रतिशत ही शिक्षा के क्षेत्र में खर्च किया जाता है, इसके अलावा लाखो छात्र-छात्राओं को विद्यालय जाने का भी अवसर नही प्राप्त होता है, हालांकि फिर भी पिछले कुछ वर्षो में इस विषय में सुधार देखने को मिला है। आजादी के पश्चात ऐसा माना जाता था कि भारत की शिक्षा प्रणाली में पूर्ण रुप से बदलाव की आवश्यकता है परन्तु वर्तमान समय में इसे तेजी से बदलते शैक्षिक तकनीको और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है।

जैसा कि पहले देखा गया है कि हमारे की कक्षाओं में दी जाने वाली शिक्षा और बाह्य जगत के रोजगार अवसरो में कोई तालमेंल नही है। इस विषय में विशेषज्ञों द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली के पाठ्यक्रम और ढांचे पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि इसे समय के अनुसार लोगों की बदलती जरूरतों के अनुरूप बनाया जा सके। जिसके परिणामस्वरूप रोजगार की बेहतर संभावनाओ की उत्पत्ति होगी और हम अपने देश के ‘प्रतिभा-पलायन’ की समस्या पर को भी काबू करने में सफल होंगे। जिससे छात्रो के राष्ट्रीय और व्यक्तिगत दोनो ही प्रकार के हित एक साथ पूरे हो सकेंगे।

हमे इस बात को समझना चाहिए कि हमारे राष्ट्र का भविष्य हमारे युवाओ पर निर्भर करता है, यदि वह सशक्त बनेंगे तो वैश्विक स्तर पर हमारे देश को तरक्की करने और नई उचाईयों को छूने से कोई नही रोक पायेगा। अंत में, मैं अपने आदरणीय मुख्य अतिथि से मंच पर आने और इस विषय में कुछ शब्द कहने का आग्रह करुंगा।

उदाहरण 3: भारतीय शिक्षा प्रणाली पर भाषण – Speech on Indian Education System in Hindi

नमस्कार दोस्तो हमारे संस्थान……….. के 51वें वार्षिक शैक्षिक सम्मेलन में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। मुझे इससे पहले इतनी प्रसन्नता कभी नही हुई, जितनी की आज हमारे संस्थान के 50 वार्षिक सम्मेलन पूरे करने पर हो रही है। यह हमारे इस संस्थान के वृद्धि का एक साफ संकेत है, क्योंकि इन बीतते वर्षो में हमने सदैव ही शिक्षा में निरंतर सुधार और विद्यार्थियों को ज्ञान तथा कौशल के साथ और अच्छे ढंग से सुसज्जित करने का प्रयास किया है।

इस बार का यह सम्मेलन थोड़ा हट के होने जा रहा है, क्योंकि इस बार हम भारतीय शिक्षा प्रणाली पर चर्चा करने जा रहे है जोकि हर एक व्यक्ति के चिंता का विषय है। यह एक निराशा की बात है कि हमारी भारतीय शिक्षा प्रणाली रंटत विद्या पर आधारित है, जिसमें विद्यार्थियों को किताबो के बोझ के तले दबा दिया जाता है, जिससे की वह अच्छे अंक प्राप्त कर सके और एक अच्छी कंपनी में कोई अच्छी नौकरी पा सके।

लेकिन मैं आपसे पूछना चाहुंगा कि यह किस तरह से निर्णय लेने का एक उचित मानदंड साबित हो सकता है, क्योंकि अंक-पत्रो के नम्बर ही तो सब कुछ नही दर्शाते है। हमें एक छात्र-छात्रा के रचनात्मक क्षमता और योग्यता के अन्य स्तर के आधार पर भी उसका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। उदहारण के लिए कोई छात्र गणित में अच्छा हो सकता है, वही किसी दूसरे विद्यार्थी का कला के ओर झुकाव हो सकता है और शायद वह एक चित्रकार बनना चाहता हो।

हम सबसे बड़ी गलती तब करते है, जब दो लोगो के बीच में तुलना करना शुरु कर देते है, जोकि अलग-अलग क्षमताओं और कौशल के साथ पैदा हुए है। एक छात्र का सिर्फ पूर्वकल्पित विचारो के आधार पर मूल्यांकन करना जैसे कि वह गणित में अच्छा है या विज्ञान या अंग्रेजी में अच्छा/अच्छी है, नाकि उसके/उसकी रुचि के आधार पर जोकि कीक्रेट, फुटबाल या टेबल टेनिस खेलना या फिर गायन या नृत्य इत्यादि भी हो सकता है। हमे किसी भी विद्यार्थी पर किसी विषय को थोपने वाली प्रवृत्ति को रोकने की आवश्यकता है। इसके साथ ही हमें छात्रो के प्रतिभा को बढ़ाने की आवश्यकता है और इसके लिए हमें उन्हे अच्छा वातावरण मुहैया करवाना होगा तभी विश्वस्तर पर हम अपने देश की गौरवानित कर सकेंगे।

अपने देश के प्रतिभा का उपयोग करने के अलावा समाज के हर जाति, वर्ग, लिंग को शिक्षा प्रदान करना भी काफी जरुरी है। अगर हमारे देश का प्रत्येक नागरिक शिक्षित होगा तो वह दुनिया भर के रहस्यो और चमत्कारो को जान सकेंगे। इस तरीके से हमारे समाज के लोग स्वंय को अंधविश्वास की बेड़ियो, आशंकाओ तथा समाज में फैली हर बुराई की जड़ अर्थात नकरात्मकता से मुक्त करने में सफल होगें। समाज के हर वर्ग को शिक्षित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके द्वारा उनके सोचने की क्षमता और बौद्धिक स्तर तेज होगा, जिससे वह हर चीज के पीछे का सही कारण जान पायेंगे और गलत बातो तथा अवधारणओं और शासक वर्ग के झूठे वादो के बहकावो में नही आयेंगे। अगर संक्षिप्त में कहे तो यह उन्हे सुसंस्कृत और सभ्य के साथ ही यह उन्हे गौरवानित राष्ट्र का एक अच्छा नागरिक भी बनायेगा।

अब मैं अपने श्रोताओ से आग्रह करुंगा कि वह इस विषय पर मुक्त रुप से हमसे अपने विचार और चिंताए व्यक्त करे। मेरी इन बातो को इतनी धैर्यतापूर्वक सुनने के लिए आप सभी का धन्यवाद!

उदाहरण 4: भारतीय शिक्षा प्रणाली पर भाषण – Speech on Indian Education System in Hindi

आप सभी को आज के इस दिन की हार्दिक शुभकामनाएं, मैं आशा करती हुँ कि आपका आज का यह दिन शुभ होगा। आज के इस भाषण समारोह में आप सब का स्वागत है। आज के भाषण का विषय है भारतीय शिक्षा प्रणाली। मैं साक्षी कालरा आज के अवसर पर इस कार्यक्रम पर आप सब की मेजबानी कर रही हुँ और मुझे आशा है कि आज के इस विषय हर किसी को कुछ ना कुछ तो जरुर कहना होगा, क्योंकि हम सब ही इस शिक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं। इस विषय के नकरात्मक और सकरात्मक दोनो पहलू है। शिक्षा के महत्व को कभी भी कम नही आंका जा सकता है, अगर लार्ड ब्रोगम के शब्दो में कहे तो, “शिक्षा लोगो का नेतृत्व आसान बनाती है, लेकिन उन्हे बाध्य करना मुश्किल बनाती है, अनका शासन आसान बनाती है पर उन्हे गुलाम बनाना असंभव बनाती है” यह कथन सत्य हैं क्योंकि शिक्षा के बिना में मनुष्य एक पशु बनकर रह जाता है।

क्या आपने कभी भेड़ो का झुंड देखा है? कि वह कैसे चराये जाते है और कैसे उनकी देखभाल की जाती है। ठीक उसी तरह शिक्षा के बिना एक मनुष्य भी भेड़ो के झुंड की तरह बनकर रह जाता है, जिसे जैसे चाहे वैसे रखा जा सकता है। एक सभ्य इंसान के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि यह उसे तर्क करने की शक्ति प्रदान करती है। जिसके बिना वह मात्र एक पशु बनकर रह जायेगा। क्या आपको पता है शिक्षा अर्थात “एजुकेशन” शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई है? इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन के एक शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है “बाहर खीचना” इसलिए असली शिक्षा का तात्पर्य है हमारे अंदर के मानसिक ज्ञान को बाहर निकलाना इसका सम्मान करना तथा इसका महत्व समझना जोकि हमारे सार्थक अस्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है।

हालांकि, हमारे शिक्षा व्यवस्था में कुछ खामिया है, तो आइये मिलकर जानते है कि इसमें किस प्रकार के बदलावो की आवश्यकता है। शुरु से ही हमारे इस शिक्षा प्रणाली में कई कमिया और असंगतताएं आई है और इस समय तक हम इन विसंगतियों और त्रुटियो को अपने शिक्षा प्रणाली से दूर करने में सक्षम नही हुए है। वास्तव में एक बार रविन्द्र नाथ टैगोर ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर एक लंम्बा लेख लिखा था, जिसमें उन्होने इसके सुधारो के आवश्यकता को लेकर चर्चा की थी। हमारी इस शिक्षा प्रणाली में औपनिवेशिक काल से लेकर अब तक बहुत कम ही बदलाव हुए है।

वैसे तो हमारे देश में आई.आई.टी और आई.आई.एम, कानून विद्यालय और कई अन्य उत्कृष्ट शिक्षा संस्थान चल रहे है, जहां विद्यार्थी 90 प्रतिशत अंक पाते है। इन जैसे अच्छे संस्थानो और कालेजो में दाखिला लेने के लिए कई बार 90 प्रतिशत अंक भी कम पड़ जाते है और विद्यार्थियो को उनके पसंद के संस्थानो में दाखिला नही मिल पाता है।

दुर्भाग्यवश रटंत विद्या या फिर कहे कि रटने वाली पढ़ाई हमारे शिक्षा प्रणाली में अभी भी मौजूद है जहा विद्यार्थी सिर्फ एम्स, आई.आई.टी जेईई या सीलैट जैसी परीक्षाएं उतीर्ण करने के लिए पढ़ते है। इस शिक्षा प्रणाली का निर्माण अंग्रेजो द्वारा किया गया था, जिसका मकसद सिर्फ सिविल सर्वेन्ट और क्लर्क तैयार करना था, जिसका ढ़ाचा अभी भी कुछ-कुछ वैसा ही है। जिसमें विद्यार्थी बैंक परीक्षा, प्रशासनिक सेवा, क्लर्क या फिर किसी अच्छे इन्जीनीयरींग या मेडिकल कालेज में दाखिला लेने के लिए तैयारी करते है। हमारे पास शिक्षा के अच्छे केंद्र, स्कूल और कालेज है पर उनकी संख्या हजारो के तादाद में औसत दर्जे के असंबद्धित शिक्षा संस्थानो के संख्या में काफी कम है, जोकि शिक्षा को पैसा कमाने का व्यापार समझते है और अनगिनत छात्रो का जीवन बर्बाद कर रहे है।

देश में शिक्षा प्रणाली के स्तर सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिससे छात्र शिक्षा रुपी अपनी इस यात्रा का पूरा आनंद ले सके और इसे एक बोझ ना समझे। अपना बहूमुल्य समय देने के लिए आप सभी श्रोताओं का धन्यवाद!