सोदल मेला के बारे में पूरी जानकारी – Sodal Mela History in Hindi

इतिहास धार्मिक जगत को कभी-कभी ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है, जिसके आगे अंधविश्वास और पीछे विज्ञान दिखाई देने लगता है। जैसे-जैसे मनुष्य तरक्की कर रहा है, वैसे-वैसे उसकी आस्था की जड़ें कमजोर होती जा रही हैं। आज तक कुछ लोगों में आस्था, श्रद्धा और विश्वास कैसे पूरी मजबूती से खड़ा है, यह जालंधर के एकमात्र सोढल मेले को देखकर आश्चर्य होता है।

सोदल मेला के बारे में पूरी जानकारी – Sodal Mela History in Hindi

संसार में मानव और भुजंग का रिश्ता अनादि काल से चला आ रहा है, तभी तो भगवान शंकर के श्रृंगार में सर्प भी अनिवार्य रूप से दिखाया जाता है। भगवान विष्णु शेष पर क्षीर सागर में विश्राम करते चित्रों में प्राय: देखे गए हैं। भगवान विष्णु के शेषनाग का नाम धार्मिक ग्रंथों में अनंत हैं। नाग देवता जहां भी पूजे जाते हैं, अनंत रूप में ही माने जाते हैं। अनंत चौदस के दिवस नाग रूप में प्रकट हुए बाबा सोढल का विशाल मेला लगने लगा। कथा वही है जो जनश्रुति में लोगों तक पहुंची। चड्ढा और आनंद परिवारों से संबंधित बाबा सोढल के बारे में बहुत से चमत्कारों की कथाएं सुनने को मिलती हैं।

पहले-पहल यह मेला अनंत चौदस के पूर्व अर्धरात्रि से आरंभ होकर अगले दिन बारह बजे तक समाप्त हो जाता था। चड्ढा परिवार अपनी श्रद्धा से बैंड-बाजे के साथ नवजात शिशुओं एवं नवविवाहित जोड़ों के साथ इस पावन तीर्थ पर आया करते हैं। लौह परिवार के ब्राह्मण को विधिवत पूजा करने का अधिकार रहा है। आज से कुछ दशक पूर्व इस पावन मंदिर पर कुछ मतभेद उभरे, तब पंजाब सरकार ने धारा 145 लगा कर एक सरकारी अधिकारी को मंदिर का प्रबंध सौंप दिया था। तब बाबा सोढल के श्रद्धालुओं ने मंदिर के आगे, मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बाबा जी की एक और प्रतिमा स्थापित कर दी। अब भक्तजन दोनों स्थानों पर शीश नवाते हैं।

ब्रह्मा जी के तीर्थ के रूप में स्थापित है ब्रह्मकुंड

भारत में ब्रह्मा जी के मात्र तीन-चार ही मंदिर हैं। इनमें से एक है पुष्कर राज, जिन्हें धरती के नेत्र कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जालंधर का ब्रह्मकुंड ब्रह्मा जी का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। ब्रह्मकुंड में खुदाई होने से अब एक प्राचीन कुंड के दर्शन होने लगे हैं। नानकशाही ईंटों से बना यह कुंड धीरे-धीरे इतिहास में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है। अब इस कुंड में जल नहीं है। इसलिए इसके पवित्र जल के दर्शन वहां नहीं होते। ब्रह्मकुंड के समीप ब्रह्मा जी का मंदिर है। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने एक बार नाराज होकर कहा था कि ब्रह्मा जी का अधिक पूजन नहीं होगा।

ब्रह्मकुंड को लेकर भिन्न-भिन्न धारणाएं

जालंधर में ब्रह्मकुंड किस शताब्दी में बना, इसके बारे में भी इतिहास की भिन्न-भिन्न धारणाएं हैं। जो भी हो यह महाभारत काल से पूर्व का बना माना जाता है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसके निकट अर्जुन और बब्रुवाहन के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें अर्जुन पराजित हो गए थे। क्योंकि बब्रुवाहन ने इसी तालाब यानि कुंड का अमृत जल ग्रहण किया हुआ था। अभी इस कुंड के बारे में बहुत शोध की अवश्यकता है। एक किंवदंती के अनुसार ब्रह्मकुंड का जल धरती से स्वत: प्रकट हुआ था। इसका जल ग्रीष्म ऋतु में भी शीतल हुआ करता था। इस ब्रह्मकुंड की मौजूदगी द्वापर युग के कुछ ग्रंथों से मिलती है।