बचपन के दिनों की यादें अति मधुर होती है क्योंकि उस समय केवल मासूमियत ही हमारे पास होती है,कोई परेशानी या झूठ फरेब नही होता। खेलना, खाना, पिकनीक पर जाना बचपन की कुछ ऐसी ही प्यारी यादें है।
मेरे स्कूल पिकनिक पर निबंध – Long and Short School Picnic Essay in Hindi
अपने बचपन में हर कोई एक न एक बार पिकनिक अवश्य गया होगा, अपने परिवार जनों के साथ, अथवा कॉलेज के मित्रों के साथ या अपने कार्य क्षेत्र के कर्मचारियों के साथ, किन्तु इसमे सबसे अधिक प्यारी और मधुर स्मृतियां अपने विद्यालय के मित्रों के साथ मनाई हुई पिकनिक की होती है क्योंकि उसमें हम सभी बच्चे होते है और निश्छल भावना के साथ अपने सभी मित्रों के साथ एक जैसा व्यवहार करते है।
पढ़ाई के बीच जब बचपन में स्कूल पिकनिक की बात होती थी तो बच्चों का उत्साह देखने लायक होता था, दोस्तों के साथ खेलने और मज़े मस्ती करने की खुशी ही अलग होती थी। कई विद्यालयों के मुख्य पाठ्यक्रम में ही पिकनिक भी शामिल रहता है क्योंकि जहाँ एक तरफ यह बच्चों को खुशी प्रदान करता है उसी प्रकार यह उन्हें बहुत कुछ सिखाता भी है।
स्कूल के पिकनिक की बात पर मुझे भी अपने स्कूल के पिकनिक के दिन याद आ गये। हम कक्षा ६ में थे और हमारे स्कूल के प्रधानाध्यापक ने सभी कक्षा के क्षात्रों के लिये अलग अलग जगह पर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया था। क्योंकि हम तब छोटे थे तो ज़्यादा दूर का प्रोग्राम ना करके उन्होंने हमारे लिये कोलकाता के साइन्स सिटी का प्रोग्राम बनाया।
जब यह समाचार हमारे क्लास के अध्यापक मैडम ने हमे सुनाया उस वक़्त हमारी खुशी का कोई ठिकाना नही था। उन्होंने हमसे कहा की क्योंकि पिकनिक का प्रोग्राम एक हफ्ते बाद का बना था तो हमे ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ पर हमारे माता- पिता के हस्ताक्षर लाने होंगे तथा १०० रुपए की धनराशि प्रत्येक क्षात्र को देनी होगी।
पर उन्होंने यह भी कहा की जिन बच्चों के घरों में आर्थिक समस्या है उन्हें स्कूल की ओर से सहायता दी जाएगी। हम सब कक्षा के बाद मित्रों के साथ मिलकर अति उत्साह से प्रोग्राम बनाने लगे। हम सब मिलकर लंच ब्रेक में बातें करने लगे की वहाँ हम क्या क्या लेकर जाएँगे, जैसे कौन क्या क्या खाने की चीज़ें लेकर जाएगा और कौन खेलने की सामग्री लेकर आएगा इत्यादि। एक हफ्ते के अंदर लगभग हम सभी ने अपने धनराशि तथा ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ स्कूल के अध्यापक को जमा करा दिये।
देखते -देखते वह दिन भी आ गया जब हमें कोलकाता जाना था। हमें पहले ही कहा गया था की सुबह ६ बजे स्कूल यूनिफार्म में, हम स्कूल के गेट के सामने आ जाये, तो हम सब समय से पहुँच गये थे। स्कूल के सामने दो बस खड़ी थी जो हमें कोलकाता ले जाने वाली थी। मैंने अपने साथ ५०० रुपए, बिस्कुट तथा चिप्स के पैकेट और सैंडविच रख लिया था, मेरी सभी सहेलियां अपने घरों से कुछ न कुछ बना कर लाई थी। साथ में हमने बैडमिंटन भी रखा था। फिर हम सब बस में चढ़ कर अपने अपने जगह में बैठ गए, उस समय खिड़की की सीट पाने के लिये सबके मन में अधिक उत्साह था,पर किस्मत से मुझे भी एक खिड़की की सीट मिल गयी जिसे पाकर मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नही था।
उसके बाद हमारी यात्रा ७ बजे के आस-पास शुरू हुई ,हमारे साथ ५ अध्यापक भी थे। चलती बस में ठंडी हवाओं और ठंडे शर्बत के पैकेट लेकर हमें बहुत मज़ा आ रहा था । रास्ते भर हमने बस में अंताक्षरी खेली जिसमे लड़के और लड़कियों की टीम अलग अलग थी। फिर हमें स्कूल की तरफ से नाश्ते का पैकेट मिला जिसमे केला, केक, नमकीन का पैकेट था।
उसके बाद हमने नाश्ता किया और लगभग एक घंटे बाद हम कोलाघाट पहुंचे जहाँ हुगली नदी बहती है। वहाँ उतर कर हम बाथरूम गये और जिसको जो कुछ खाना या खरीदना था उन्होंने लिया फिर हम चल पड़े, लगभग ९ बजे हम कोलकाता आ पहुंचे थे और ९.३० के लगभग हम साइंस सिटी पहुँच गये।
वहाँ उतर कर हमनें लाइन बनाई और अध्यापक ने हम सबकी टिकट ली, फिर हमने अंदर प्रवेश किया। वहाँ तरह तरह फूल के पौधे,वृक्ष और झूले थ। इसके अतिरिक्त कई प्रकार के आश्चर्यजनक विज्ञान के संग्रहालय , जैसे विज्ञान नगरी के अंतर्गत स्पेस ओडीसी, डायनामोशन, क्रम-विकास पार्क, समुद्रवर्ती केन्द्र और एक विज्ञान पार्क है। जिसमे स्पेस ओडीसी के अंदर चलचित्र प्रेक्षागृह, समय यंत्र, जादुई दर्पण तथा अंतरिक्ष विज्ञान के मॉडल थे।
बच्चों की शिक्षा तथा उत्सुक्ता को बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी कोना, रोबोटिक कीड़ों पर एक प्रदर्शनी, इत्यादि भी है। यह सब कुछ देखने के बाद हम बाहर पार्क में आ गए जहाँ हमारे स्कूल द्वारा लाया गया रसोईया हमारे लीये भोजन बना रहा था। उसके बाद हम पार्क में खेलने चले गये, जहाँ का वातावरण सुनसान नहीं था, और चहल- पहल थी। वहाँ हमने मित्रों के साथ पकड़ा- पकड़ी, खो-खो तथा बैडमिंटन खेला और पार्क में झूलों पर झूले। इतना करते करते खाने का समय भी हो आया। फिर हम खाने बैठ गये,जहाँ हमे साफ और स्वच्छ हाथ का बना हुआ भोजन मिला, गरम गरम दाल, चावल, सब्जी पापड़ तथा सलाद खा कर हम तृप्त हो गए।
उसके बाद हम साइंस सिटी का दूसरा कोना देखने गये जहाँ सम्मेलन केंद्र के परिसर के भीतर बड़ा तथा छोटा प्रेक्षाग्रह, संगोष्ठी कक्ष तथा मुक्त प्रांगन प्रदर्शनी स्थल था। यह सब वातानुकूलित थे।यहाँ विशेष कर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है। उसके बाद घूमते हुए लगभग शाम के पाँच बजे गये थे। फिर हम अपने बस में वापस जाने के लिए बैठ गए। पढ़ाई से भरे सप्ताह में हँसी- मज़ाक, खेल-कूद से भरा यह दिन आनंदमग्न करने वाला था और जो अनुभव हमें मिली उसकी तुलना कर पाना कठिन है। लगभग घर पहुँचते पहुँचते रात के ९ बज गये थे। स्कूल की वह पिकनिक मुझे इतने सालों बाद आज भी याद है ।
दरअसल स्कूल के पिकनिक की बात इसलिये भी अलग और यादगार होती है क्योंकि इसमें पिकनिक का और बच्चों की सुरक्षा का इंतज़ाम स्कूल के प्रदधनाद्यापक करते है तो हम निश्चिन्त होकर जा सकते है।
स्कूल की पिकनिक सभी विद्यार्थियों के लिये मित्रों के साथ बाहर घूमने का सर्वप्रथ्म अनुभव होता है। इसलिये अपने जीवन काल में इसे कोई भी जल्दी भूल नहीं सकता। हर व्यक्ति को अपने जीवन काल में स्वयं पिकनिक पर जाना चाइये क्योंकि यह रोज़ के कार्यों में फसे लोगों के लिये यह एक प्रकार का विश्राम है। इससे मानसिक तथा शारिरिक विकास भी होता है और मन को शांति मिलती है।
६ महीने में एक बार किसी प्राकृतिक पर्यावरण से परिपूर्ण जगह पर पिकनिक जाने से मनुष्य को रोज़ के परेशानियों से जूझने की क्षमता भी आती है। इसके अतिरिक्त हर बच्चे को अपने विद्यार्थी जीवन में एक न एक बार स्कूल की तरफ से पिकनिक अवश्य जाना चाहिये क्योंकि यह मनुष्य के जीवनकाल में एक बार आने वाला अनुभव है। स्कूल के मित्रों के साथ बिताया हुआ वह समय अविस्मरणीय होता है, इसकी कल्पना मात्र से क्षण भर के लिये चेहरे पे मुस्कान आ जाती है।