सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में हिंदी में जानकारी

भारत एक ऐसा देश है जिसकी मिट्टी पर कई महापुरुषों का जन्म हुआ और उन महान पुरुषों और देश के वीर जवानों ने अपनी मातृभूमि के लिए कई ऐसे महान कार्य किए हैं जिसको आज भी पूरा देश याद करता है, भारत को वीर जवानों का देश कहा जाता है और यह सिर्फ कहने की बात नहीं है, बल्कि हकीकत में भी यहां के वीर जवानों ने हंसते हंसते अपने देश के लिए अपना जान न्योछावर कर दिया ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल – Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

भारत पूरे विश्व में अपने पराक्रम और महानता के लिए जाना जाता है, और इसका श्रेय यहां के रहने वाले देशवासियों को जाता है जिन्होंने पूरे विश्व में हमारे देश को गौरव दिलवाया । भारत के महान योद्धाओं में से एक महान योद्धा थे, “सरदार वल्लभभाई पटेल” यह वह इंसान हैं  जिसे आज भी पूरा विश्व लौह पुरुष के नाम से जानता है और गर्व से इनका नाम लेता है । भारत को स्वतंत्र करने में एक गतिशील देशभक्त बनकर सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत देश को अंग्रेजों से आजादी दिलवाई ।

प्रारंभिक जीवन

लौह पुरुष, सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर सन् 1875 को गुजरात राज्य स्थित नडियाद गांव में हुआ था । सरदार वल्लभभाई पटेल का पूरा नाम वल्लभभाई झावेर भाई पटेल है जिनको लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल कहते हैं । उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल था जो झांसी की रानी के सेना में काम और उनकी माता लाड बाई एक साधारण महिला थे जिनका आध्यात्मिक की तरफ काफी झुकाव था ।बचपन से युवा अपनी कड़ी मेहनत और स्वभाव के लिए जाने जाते थे,

सरदार जी की पढ़ाई बचपन से थोड़े लेट हुई थी और इसीलिए उन्होंने स्नातक के उम्र में अपने मैट्रिक की परीक्षा पास किया‌।  साबित करते हुए उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त किया , यह डिग्री उन्होंने लंदन जाकर प्राप्त किया और आखिरकार बैरिस्टर बने । बैरिस्टर बनने के बाद जब सरदार वल्लभभाई पटेल भारत लौटे तो उन्होंने गुजरात के अहमदाबाद में अपने कानून का अभ्यास जारी रखा ।

स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार वल्लभभाई पटेल का सहयोग

सरदार वल्लभ भाई पटेल शुरू से ही देश के प्रति बेहद ईमानदार नागरिक के रूप में रहे जिन्हें देश के हर एक मुद्दे से गहरा फर्क पड़ता था और सन्  1917 से वह राजनीति में सक्रिय हुए । जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ और निर्दोषों के अंग्रेज द्वारा हत्या की गई तो अब वल्लभ भाई पटेल खुद को नहीं रोक पाए और उन्होंने इसके विरोध में अपने बैरिस्टर का त्याग कर दिया । इस बड़े कदम को उठाने के बाद धीरे धीरे वल्लभ भाई पटेल राजनीतिक मुद्दों में अपना भागीदारी निभाने लगे ।

उन दिनों नागपुर सिविल लाइन्स में राष्ट्रीय झंडे के साथ जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन वल्लभ भाई पटेल ने खुद जाकर झंडा सत्याग्रह का संचालन किया । अपने होश संभालने के बाद ही धीरे-धरे सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होने लगे थे, जिसके कारण वह सन् 1920 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से प्रभावित होकर वह बारदोली गए और वहां  स्वदेशी आंदोलन किया और शराब पीने पर प्रतिबंध लगाया ।

बारदोली में उन्होंने स्वयं 75 गांव का नेतृत्व किया और अंग्रेज सरकार को अपना जबरदस्त शक्ति का प्रदर्शन किया और किसानों आत्मबल दिखाया । पटेलजी ने किसानों का आवाहन करते हुए कहा था कि- ”यह रास्ता बड़ी कठिनाइयों और संघर्षों से भरा है । सरकार तो बन्दूकों, भाले और अस्त्र-शस्त्र की शक्तियों से पूर्ण है । वह एक निर्दयी और जालिम सरकार है । यदि उन हथियारबन्द, निर्दयी विदेशी शक्ति के प्रहारों को सहने का साहस तुममें है, तो आगे बढ़ो । अपमानित जीवन से कहीं अच्छा स्वाभिमान युक्त स्वतन्त्रता युक्त जीवन है । चाहे कितनी ही विपत्तियां आयें, मैं आपके साथ हूं ।”

सरदार वल्लभ भाई पटेल के आत्मबल की तारीफ हर कोई कर रहा था और धीरे-धीरे उनके समर्थक इतना ज्यादा हो गए थे कि अंग्रेज सरकार वल्लभभाई से डरने लगी थी और अंग्रेजों का मानना था कि अगर यही हाल रहा तो सरदार वल्लभ भाई पटेल के कारण पूरे देश में स्वराज आ जाएगा और उसे कोई नहीं रोक पाएगा । जब सन 1930 में नमक सत्याग्रह शुरू हुआ उस दौरान सत्याग्रह को सफल बनाने में पटेल जी का बहुत बड़ा योगदान था यह सब अंग्रेज सरकार देख रही थी और यह उनके लिए खतरा बन रहा था ।

अंग्रेजो के खिलाफ सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कई अभियान चलाए और जिसके कारण वह कई बार जेल गए । पटेल जी कांग्रेस पार्टी में शुरू से ही शामिल थे लेकिन जब जवाहरलाल नेहरू गिरफ्तार हुए तब पटेल जी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष  बनकर कारभार संभाला, इस दौरान पटेल जी जेल की हवा खाए और जेल से लौटने के बाद उन्होंने एक बार फिर से किसानों के लिए आवाज उठाई और उन्होंने करबन्दी को लागू करने हेतु कोशिश किया इस दौरान 80, 000 किसानों को जेल भेजा गया ।

लौह पुरुष की विचारधारा से अंग्रेज सरकार डर से कांपने लगी थी, और जब उन्होंने सत्याग्रह का एलान किया तो 17 नवंबर 1940 को उन्हें एक बार फिर से जेल भेज दिया गया। इसी तरह सरदार वल्लभभाई पटेल हजारों आंदोलन को नेतृत्व करते हुए भारत को आजादी दिलाने में सफल रहे, अपने देश भक्ति भावनाओं और दृढ़ता से अंग्रेजों को धूल चटाया।

स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभई पटेल की जिंदगी

भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के बाद वल्लभ भाई का पूरा ध्यान एक खास मुद्दे पर था “वन इंडिया वन नेशन” जिसके लिए वह रियासतों के शासकों को एकजुट होने और दूर-दराज के क्षेत्रों और सीमावर्ती क्षेत्रों की यात्रा करने के बाद सबको इसके लिए राजी किया । स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रारंभ में उन्हें, प्रथम गृह मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और इसके साथ उन्हें भारतीय  सशस्त्र बलों के प्रमुख के रूप में कमांडर बनाया गया, इसके बाद उन्हें भारत के प्रथम उप प्रधान मंत्री भी बने। वह 1947 से 1950 तक भारत का नेतृत्व करने वाले तीन नेताओं में से एक हैं।

1950 के दौरान उनके स्वास्थ्य में परिवर्तन होने लगा और वह बेहद अस्वस्थ रहने लगे 15 दिसंबर 1950 को बॉम्बे के बिड़ला हाउस में एक बड़े पैमाने पर दिल का दौरा पड़ने के बाद  सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हो गया ।

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका व्यक्तित्व बिल्कुल भी साधारण नहीं था । शिक्षा में पीछे होने के बावजूद वह अपनी जिंदगी में उत्तीर्ण हो गए, वह बिना किसी छल कपट के लोगों को एकजुट हो करते थे जो कि आम व्यक्ति से शायद ही हो पाए । अपने परिवार से कम से कम मार्गदर्शन लेते हुए भी वह अपनी जिंदगी में सफल रहे, अंग्रेजों को भारत से खदेड़ना हो या फिर किसी के ऊपर हो रहे अन्याय को रोकना, उन्होंने निडरता से जिंदगी की हर एक परिस्थिति का सामना किया और हमेशा ही सबका मदद करते रहे । उनकी आभा इतनी मजबूत थी कि वह आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते थे, इसीलिए उन्हें लौह पुरुष के नाम से जाना जाता है।

स्टैचू ऑफ यूनिटी

भारत के लौह पुरुष को सम्मान देते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2018 को गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक विशाल प्रतिमा का उद्घाटन किया, जिसे “एकता की प्रतिमा” कहा जाता है ।

निष्कर्ष

भारत के सच्चे देशभक्त सरदार वल्लभभाई पटेल एक विशिष्ट संकल्प  के व्यक्ति थे, जिन्होंने सच्ची लगन से पूरे भारतवर्ष की सेवा की और अपनी मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से आजाद करते हुए आजादी दिलवाई, उनके योगदान के बिना भारत वर्तमान में जो है वह कभी नहीं होता इसलिए उनका योगदान भारत के लिए बेहद मायने रखता है ।