ओजोन परत क्या है और इसके बचने के क्या उपाय है पूरी जानकारी

ओज़ोन गंधयुक्त गैस होती है जो हल्के नीले रंग की होती है। ओज़ोन परत में ओज़ोन गैस की मात्रा अधिक पाई जाती है। ओज़ोन ऑक्सीजन का ही एक प्रकार है और इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं। ऑक्सीजन के जब तीन परमाणु आपस में जुड़ते है तो ओज़ोन परत बनाते है।

Ozone Parat Ko Bachane Ke Upay

हम सभी जानते हैं कि ओजोन हमें सूरज से आने वाली यूवी किरणों से बचाता है। 1957 में, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गॉर्डन डॉब्सन ने ओजोन परत की खोज की थी। ओजोन ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बना है। यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और O3 द्वारा दर्शायी जाती है। यह स्वाभाविक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में मानव निर्मित उत्पाद यानि स्ट्रैटोस्फियर और निचले वायुमंडल यानी ट्रोपोस्फीयर में होता है।

यह ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल (पृथ्वी से 15-35 किमी ऊपर) में समताप मंडल के निचले हिस्से में मौजूद है और इसमें ओजोन (O3) की अपेक्षाकृत उच्च सांद्रता है। स्वाभाविक रूप से यह आणविक ऑक्सीजन O2 के साथ सौर पराबैंगनी (यूवी) विकिरण की बातचीत के माध्यम से बनता है। यह पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाले हानिकारक यूवी विकिरण को कम करता है।

विस्तार

ओज़ोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमें ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। ओज़ोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है। यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। पृथ्वी के वायुमंडल का 91% से अधिक ओज़ोन यहां मौजूद है।यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है।

ओजोन की परत की खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। इनसे पहले भी वैज्ञानिकों ने जब सूर्य से आने वाले प्रकाश का स्पेक्ट्रम देखा तो उन्होंने पाया कि उसमें कुछ काले रंग के क्षेत्र थे तथा 310 nm से कम वेवलेंग्थ का कोई भी रेडिएशन सूर्य से पृथ्वी तक नहीं आ रहा था।वैज्ञानिकों ने इससे यह निष्कर्ष निकाला कि कोई ना कोई तत्व आवश्य पराबैगनी किरणों को सोख रहा है, जिससे कि स्पेक्ट्रम में काला क्षेत्र बन रहा है तथा पराबैंगनी हिस्से में कोई भी विकिरण दिखाई नहीं दे रहे हैं।

सूर्य से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम का जो हिस्सा नहीं दिखाई दे रहा था वह ओजोन नाम के तत्व से पूरी तरह मैच कर गया, जिससे वैज्ञानिक जान गए कि पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन ही वह तत्व है जो कि पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर रहा है. इसके गुणों का विस्तार से अध्ययन ब्रिटेन के मौसम विज्ञानी जी एम बी डोबसन ने किया था। उन्होने एक सरल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर विकसित किया था जो स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन को भूतल से माप सकता था।सन 1928 से 1958 के बीच डोबसन ने दुनिया भर में ओज़ोन के निगरानी केन्द्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया था, जो आज तक काम करता है (2008)। ओजोन की मात्रा मापने की सुविधाजनक इकाई का नाम डोबसन के सम्मान में डोबसन इकाई रखा गया है।

वायुमंडल में स्थान

ओजोन गैस वायुमंडल में पतली और पारदर्शी परत के रूप में रहती है। वायुमंडल में ओजोन का कुल प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में बहुत कम है।ओजोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल, जिसे क्षोभ मंडल कहा जाता है, में भी पाई जाती है। इसलिए ओजोन की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यह समताप मंडल में पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाने का काम करती है।

आज मानवजनित औद्योगिक प्रदूषण के फलस्वरूप क्षोभ मंडल में ओजोन की मात्रा बढ़ रही है और समताप मंडल में जहां इसकी आवश्यकता है, वहां ओजोन की मात्रा घटती जा रही है। वाहनों से उत्सर्जित होने वाला धुआं जब सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है तो ओजोन का निर्माण होता है। यह ओजोन गैस न केवल लोगों की सेहत बिगाड़ रही है, बल्कि फसलों को भी प्रभावित कर रही है। जैसे-जैसे वाहनों की संख्या बढ़ रही है, इसकी तीव्रता भी बढ़ रही है। ऐसे में पर्यावरण में मौजूद ओजोन वैज्ञानिकों के समक्ष चुनौती बन गई है।

ऐसा देखने में आ रहा है कि वायु की गुणवत्ता घटने से ओजोन का स्तर जमीन पर बढ़ रहा है जो भारत के कई शहरों के लिए समस्या बन गया है। जब हवा में घुली ओजोन मनुष्यों के फेफड़ों में जाती है तो यह फेफड़ों के छोटे-छोटे छेदों को बंद करने की कोशिश करती है। ऐसे में खांसी और सीने में दर्द होने लगता है और कई बार फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

अस्पतालों में रोजाना त्वचा संबंधी रोगों के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि सुरक्षा कवच कही जाने वाली ओजोन परत नष्ट हो रही है। अगर हमने ओजोन परत की रक्षा नहीं की, तो आने वाले दिनों में और घातक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए हमें धरती के आसपास बढ़ती ओजोन गैस को रोकना होगा।

ओजोन परत का क्षरण

ओजोन परत को पृथ्वी का सुरक्षा कवच माना जाता है, जो पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभावों से हमारी रक्षा करता है। लेकिन, पृथ्वी पर बढ़ रहे प्रदूषण के कारण यह परत घटती जा रही है। प्रदूषण कम करने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी ओजोन परत को सुरक्षित करने में कई बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ओजोन परत के क्षय का मुख्य कारण कुछ और नहीं, बल्कि हम खुद हैं।

अगर पर्यावरण में ओजोन की मात्रा इसी तरह बढ़ती रही तो गेहूं के साथ दालें, चावल, मूंगफली, सोयाबीन आदि फसलें भी इससे प्रभावित हो सकती हैं। वैसे वैज्ञानिक गेहूं की उन प्रजातियों का पता लगा रहे हैं जो ओजोन के दुष्प्रभाव के बावजूद अच्छी पैदावार दे सकती हैं। ओजोन परत तकरीबन निन्यानवे प्रतिशत तक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती हैं। इसके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए मांट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार 16 सितंबर को ओजोन दिवस मनाया जाता है।