महाराजा अग्रसेन जयंती – Essay On Maharaja Agrasen Jayanti In Hindi

भारतवर्ष में अनेक महान राजाओं ने जन्म लिया है, उन्ही में से एक थे महाराजा अग्रसेन। महाराजा अग्रसेन सूर्यवंशी राजा मान्धाता के वंशज और भगवान कृष्ण के समकालीन थे। महाराज अग्रसेन का यश अग्रवाल समाज द्वारा आज भी गाय जाता है। उन्हें वैश्य या अग्रवाल समाज के पितामह के रूप में भी जाना जाता है।

महाराजा अग्रसेन जयंती पर निबंध – Long and Short Essay On Maharaja Agrasen Jayanti in Hindi

महाराजा अग्रसेन क्षत्रिय थे और इनका जन्म द्वापर युग के अंत में अश्विनी शुक्ल प्रतिपदा यानि नवरात्रों के पहले दिन हुआ था। उनके जन्मदिवस को आज भी अग्रवाल समाज के लोगो द्वारा बड़े चाव से देश भर में ‘अग्रसेन जयंती’ के रूप में मनाया जाता है।

महाराजा अग्रसेन प्रताप नगर के राजा वल्लभ और माता भगवती के सबसे बड़े बेटे थे। अग्रसेन जी के १८ पुत्र थे एयर अग्रवाल गोत्र भी उन्ही से अस्तित्व में आया है। चूंकि अग्रसेन जी क्षत्रिय थे तो उनके परिवार में पशुओं की बाली देने की प्रथा थी जो की उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी इसलिये  उन्होंने क्षत्रिय धर्म को छोड़ कर वैश्य धर्म अपना लिया।

जब उनके विवाह की बात चली तो उन्होंने नागराज की कन्या माधवी के स्वयंवर में शामिल होने की ठानी और माधवी द्वारा उनका चयन भी हो गया। यद्यपि अनेक राजा यहाँ तक की इंद्र भी उस स्वयंवर में आये थे किंतु माधवी द्वारा उनका चयन न होने पर उन्होंने क्रोधित होकर प्रतापनगर पर वर्षा करनी बन्द कर दी।

राजा अग्रसेन देवराज इंद्र से युद्ध के लिए तैयार थे पर नारद जी ने उस विवाद को शांत करवाया। इससे हमें पता चलता है की महाराजा अग्रसेन कितने वीर पुरुष थे और अपने माँ संम्मान के लिए वे देवताओं से भी भिड़ सकते थे।

तत्पश्चात उन्होंने भगवान शिव से अपने राज्य की खुशहाली के लिए काशी जाकर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया, भगवान महादेव ने उन्हें माता लक्ष्मी की आराधना करने को कहा, इसके बाद उन्होंने घोर तपस्या कर माता लक्ष्मी की आराधना की और उनको प्रसन्न किया।

माता लक्ष्मी ने उन्हें एक नए नगर की स्थापना की सलाह दी तब उन्होंने व्यापारियों के लिये अग्रोहा नामक राज्य की स्थापना की थी। वर्तमान में यह राज्य हरयाणा राज्य के अंतर्गत आता है और अग्रवाल समाज इसे अपना पांचवा धाम मानते है और यहाँ आकर पूजा करते है।

महाराज अग्रसेन ने इस जगह को कुल १८ राज्यों में विभाजित किया और इन्ही से महाराज अग्रसेन के १८ गोत्र अस्तित्व में आये। इससे महाराज अग्रसेन के भक्तवत्सल स्वभाव और कार्यकुशलता झलकती है। उनका यह व्यवहार यह भी दर्शाता है की वे अपने राज्य के लोगों के प्रति कितने जागरूक और ज़िम्मेदार राजा थे।

महाराज अग्रसेन के चरित्रों के विशेषताओं में एक विशेषता यह भी थी की वे पशु- प्रेमी थे। उन्हें जीव जंतु से बहुत प्यार था। इसलिए उनके १८ राज्यों की स्थापना में जब पशुओं की बली देने जाने लगी तो उन्हें निर्दोष जानवरों को इस तरह मारना बिल्कुल पसंद नही आया। तब उन्होंने पशुओं की बली देने से इनकार कर दिया और वैश्य धर्म को अपना लिया क्योंकि वैश्य धर्म मे कोई भी मांसाहार नहीं करता।

उन्होंने यह भी घोषणा करवाई की अग्रोहा में कोई भी मांसाहारी नहीं होगा और पशुओं की बली नही देगा। सब पशुओं की सुरक्षा में योगदान देंगे। यह उनके वीर स्वभाव के साथ उनके कोमल मन को भी दर्शाता है। इसके इलावा महाराज अग्रसेन समाजवादी भी थे,

उन्होंने अपने राज्य में ‘एक ईंट एक रुपया’ का सिद्धांत गढ़ा था जिसके अंतर्गत जब भी कोई नया व्यक्ति अग्रोहा में आता था तो चाहे वो अमीर हो या गरीब, नगर के सभी वासी उसे अपने घर से एक ईंट और एक रुपया देते थे ताकि वह ईंट से अपना घर बना सके और रुपयों से व्यापार कर सके।

इससे महाराज अग्रसेन के समाजवादी चरित्र का पता चलता है की वह अमीर गरीब और ऊंच- नीच में नही मानते थे। महाराजा अग्रसेन ने लगभग १०८ वर्षों तक राज्य किया तत्पश्चात अपना राज्य अपने अपने बड़े बेटे विभु को सौंप कर संन्यास ले लिया। महाराज अग्रसेन एक समाज सुधारक, अच्छे नायक और कर्मठ राजा थे। हमें भी उन्ही के तरह बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

उनकी इन्ही विशेषताओं के कारण देश भर में आज उनकी ख्याति है और अग्रवाल समाज उनकी जयंती बड़ी धूम धाम से मनाते है। अश्विनी शुक्ल प्रतिपदा के दिन महाराज अग्रसेन की जयंती मनाई जाती है। इस दिन वैश्य समाज और अग्रवाल समाज द्वारा अग्रसेन जी के लिऐ भव्य झाँकी निकाली जाती है। उनकी आरती और पूजा होती है। सरकार ने उनके सम्मान में  १९७६ में डाक टिकट भी जारी किया था। उनके नाम पर देश भर में अनेक स्कूल,अस्पताल, उद्यान आदि बने है।