पंजाब के खास पर्वों में शामिल होला मोहल्ला का बुधवार को पांच नगाड़े बजाकर आगाज किया गया। किला आनंदगढ़ साहिब में पांच पुरातनी नगाड़े बजाए गए। यह पर्व 24, 25 और 26 मार्च को श्री कीरतपुर साहिब में मनाया जाएगा। इसके बाद 27, 28 और 29 मार्च को श्री आनंदपुर साहिब में पर्व का आयोजन होगा। 29 मार्च को मोहल्ला निकाला जाएगा। छह दिन तक चलने वाले इस पर्व में लाखों की संख्या में संगत नतमस्तक होगी और मोहल्ला निकालने के दौरान रंग उड़ाया जाएगा और निहंग सिंह घुड़सवारी तथा गतके के जौहर दिखाएंगे।
होल्ला मोहल्ला के बारे में पूरी जानकारी – Hola Mohalla in Hindi
सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की संरचना के बाद होला मोहल्ला का पर्व मनाने की शुरुआत की थी। एक बनावटी युद्ध के बाद इस पर्व की शुरुआत हुई थी। होला मोहल्ला में बिना शारीरिक क्षति पहुंचाए युद्ध के जौहर दिखाए जाते हैं। यहां पढ़ें होला मोहल्ला का इतिहास पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब में होलगढ़ नामक स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने होला मोहल्ला की रीति शुरू की। यहां आज किला होलगढ़ साहिब सुशोभित है।
भाई काहन सिंह जी नाभा ने ‘गुरमति प्रभाकर’ में होला मोहल्ला के बारे में बताया है कि यह एक बनावटी हमला होता है, जिसमें पैदल और घुड़सवार शस्त्रधारी सिंह दो पार्टियां बनाकर एक खास जगह पर हमला करते हैं।
वर्ष 1757 में गुरु जी ने सिंहों की दो पार्टियां बनाकर एक पार्टी को सफेद वस्त्र पहना दिए और दूसरे को केसरी। फिर गुरु जी ने होलगढ़ पर एक गुट को काबिज करके दूसरे गुट को उन पर हमला करके यह जगह पहली पार्टी के कब्जे में से मुक्त करवाने के लिए कहा। इस दौरान तीर या बंदूक आदि हथियार बरतने की मनाही की गई क्योंकि दोनों तरफ गुरु जी की फौजें ही थीं। आखिरकार केसरी वस्त्रों वाली सेना होलगढ़ पर कब्जा करने में सफल हो गई।
गुरु जी सिखों का यह बनावटी हमला देखकर बहुत खुश हुए और बड़े स्तर पर प्रसाद बनाकर सभी को खिलाया गया तथा खुशियां मनाई गईं। उस दिन से श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है।
होला मोहल्ला के मौके पर गुलाब के फूलों और गुलाब से बने रंगों की होली खेली जाती है। सिख इतिहास और सिख धर्म में होला मोहल्ला की खास महत्ता है। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली को होला मोहल्ला में बदला था।
जहां पूरा भारत हरे, नीले,पीले रंगों में खुद को सराबोर कर रहा है तो वहीं पंजाब के आनंदपुर साहिब में पूरे उत्साह के साथ होला मोहल्ला मनाया जाता है। जी हां आप सोच रहे होंगे की आखिर ये होला मोहल्ला क्या है, और इसे कौन कहां मनाता है। तो बता दें, होला मोहल्ला पंजाब राज्य में आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन लगने वाला मेला है, जिसे बड़े ही हर्षोल्लाल्स के साथ मनाया जाता है।
पंजाब प्रान्त में होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनायी जताई है, इसलिए इसे जाबांजों की होली भी कहा जाता है। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं।
कहां लगता है होला मोहल्ला?
होला मोहल्ला पंजाब राज्य में आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन लगने वाला मेला है, जिसे बड़े ही हर्षोल्लाल्स के साथ मनाया जाता है।
कितने दिन चलता है यह होला मोहल्ला?
छ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं।
कैसे शुरू होता है?
जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से ‘महा प्रसाद’ पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं।
रोशनी से सराबोर हो जाता है आनंदपुर साहिब होला मोहल्ला के आयोजन के मौके पर आनंदपुर साहिब रोशनी से सराबोर रहता है, और एक विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।
किसने की थी होला मोहल्ला की शुरुआत?
होला मोहल्ला की शुरुआत गुरु गोबिन्द सिंह (सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।
पूरे देश से पहुंचते हैं लोग
इस अवसर पर देश भर के सभी निहंग समारोहों के लिए इकट्ठा होते है। मेले के मुख्य आर्कषण अन्तिम तीन दिन होते है जिसमें सभी निहंग अपने पारंपरिक पोशाक और हथियारों के साथ एक विशाल जुलूस निकालते है जोकि शहर के बाजारों से गुजरता है। इस जुलूस में तलवार चलाना और कई करतब दिखायें जाते है।
कहां है आनन्दपुर साहिब?
आनंदपुर साहिब हिमालय पर्वत श्रृंखला के निचले इलाके में बसा है। इसे ‘होली सिटी ऑफ ब्लिस’ के नाम से भी जाना जाता है। इस शहर की स्थापना 9वें सिक्ख गुरू, गुरू तेग बहादुर ने की थी।
विरासत-ए-खालसा
विरास-ए-खालसा को पहले खालसा हेरिटेज मेमोरियल कॉम्पेक्स के नाम से जाना जाता था। इसे बनाने में 13 साल का समय लगा और यह 2011 में बनकर तैयार हुआ। म्यूजिम में आपको सिक्ख धर्म की स्थापना और बाद में बने खालसा पंथ से जुड़ी घटनाओं का विस्तृत विवरण मिल जाएगा।
कैसे जाएं आनंदपुर साहिब?
फ्लाइट द्वारा :
सबसे नजीदीकी इंटरनेशनल एयरपोर्ट अमृतसर में है, जो रूपनगर से 200 किमी दूर है। सड़क मार्ग के जरिए यह दूरी चार घंटे में तय की जा सकती है। इसके अलावा आप आनंदपुर साहिब से 90 किमी दूर स्थित चंडीगढ़ एयरपोर्ट का भी सहारा ले सकते हैं।
रेल द्वारा :
ढेरों ट्रेनें रूपनगर रेलवे स्टेशन को पंजाब के अलावा भारत के अन्य शहरों से जोड़ती हैं। यूएचएल जनशताब्दी इसे जहां दिल्ली से जोड़ती है, वहीं हिमाचल एक्सप्रेस से यह हिमाचल प्रदेश से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से अगर आप चाहें तो टैक्सी और कैब के जरिए भी आनन्दपुर साहिब पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग द्वारा :
आसपास के शहरों से आनंदपुर साहिब जाने के लिए सरकारी व निजी बसें सबसे अच्छा साधन है। अगर आप चाहें तो टैक्सी और कैब के जरिए भी आनन्दपुर साहिब पहुंच सकते हैं।
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