सिकंदर महान का इतिहास – History of Sikandar in Hindi

इस पोस्ट में सिकंदर महान का इतिहास (History of Sikandar in Hindi) पर चर्चा करेंगे। सिकन्दर का वास्तविक नाम अलेक्जेंडर तृतीय था. भारत में उसे सिकंदर कहकर सम्बोधित किया जाता हैं. अलेक्जेंडर तृतीय मेकडोनिया का राजा और पर्शियन साम्राज्य का वो विजेता था, जिसे अपने जीवन में सबसे ज्यादा किये गए फौजी अभियानों के लिए जाना जाता हैं.

ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार अलेक्जेंडर ने पूरी दुनिया को जीत लिया था, इसलिए उसे विश्व विजेता भी कहा जाता है. और उसके नाम के साथ महान या दी ग्रेट भी लगाया जाता हैं. तो चलिए सिकंदर महान का इतिहास (History of Sikandar in Hindi) के बारे में अलग अलग विचार को समझते है।

उदाहरण 1. सिकंदर महान का इतिहास – History of Sikandar in Hindi

अलेक्जेंडर का जन्म 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व में “पेला” में हुआ था, जो की प्राचीन नेपोलियन की राजधानी थी. अलेक्जेंडर फिलिप द्वितीय का पुत्र था, जो मेक्डोनिया और ओलम्पिया के राजा थे और इसके पडोसी राज्य एपिरुस की राजकुमारी ओलिम्पिया उनकी माँ थी. एलेक्जेंडर के नाना राजा निओप्टोलेमस थे.

एलेक्जेंडर की एक बहन भी थी, इन दोनों की परवरिश पेला के शाही दरबार में हुईं थी. उन्होंने अपने पिता को ज्यादातर समय सैन्य अभियानों या फिर विवाहोत्तर सम्बन्धों में व्यस्त ही देखा था, लेकिन उनकी माँ ने अलेक्जेंडर और उसकी बहन की परवरिश में बहुत ध्यान दिया था.

अलेक्जेंडर की शिक्षा

अलेक्जेंडर ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने रिश्तेदार दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ़ एपिरुस से ली थी, जिसे फिलीप ने अलेक्जेंडर को गणित,घुड़सवारी और धनुर्विध्या सिखाने के लिए नियुक्त किया था. लेकिन वो अलेक्जेंडर के उग्र और विद्रोही स्वभाव को नहीं सम्भाल सके थे. इसके बाद अलेक्जेंडर के शिक्षक लाईसिमेक्स थे, जिन्होंने एलेक्जेंडर के विद्रोही स्वभाव पर नियन्त्रण किया और उसे युद्ध की शिक्षा दीक्षा दी.

जब वह 13 वर्ष का हुआ, तब फिलीप ने सिकन्दर के लिए एक निजी शिक्षक एरिसटोटल की नियुक्ति की. एरिस्टोटल को भारत में अरस्तु कहा जाता हैं. अगले 3 वर्षों तक अरस्तु ने सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) को साहित्य की शिक्षा दी और वाक्पटुता भी सिखाई,

इसके अलावा अरस्तु ने सिकन्दर का रुझान विज्ञान ,दर्शन-शास्त्र और मेडिकल के क्षेत्र में भी जगाया, और ये सभी विधाए ही कालान्तर में सिकन्दर के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई.

अलेक्जेंडर और उसका युद्ध कौशल

अलेक्जेंडर ने अपने पिता द्वारा मेक्डोनिया को एक सामान्य राज्य से महान सैन्य शक्ति में बदलते देखा था. अपने पिता की बालकन्स में जीत पर जीत दर्ज करते हुए देखते हुए सिकन्दर बड़ा हुआ था.

12 वर्ष की उम्र में सिकन्दर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी और ये उन्होंने अपने पिता को तब दिखाई, जब सिकन्दर ने एक प्रशिक्षित घोड़े ब्युसेफेलास को काबू में किया, जिस पर और कोई नियन्त्रण नहीं कर पा रहा था. इसके बारे में प्लूटार्क ने लिखा “फिलिप और उनके दोस्त पहले चिंता भरी ख़ामोशी से परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे,

और ये मान रहे थे की फिलीप के पुत्र का करियर और जीवन अब ख़त्म होने वाला हैं, लेकिन अंत में उन लोगों ने जब सिकन्दर की जीत को देखा, तो खुश होकर तालियाँ बजाने लगे, सिकन्दर के पिता की आँखों से आंसू आ गये, जो कि ख़ुशी और गर्व के आंसू थे. वो अपने घोड़े से नीचे उतरे और उन्होंने अपने बेटे को किस करते हुए कहा “मेरे पुत्र तुमको खुद की तरफ और इस महान साम्राज्य की तरफ देखना चाहिए,

ये मेक्डोनिया का राज्य तुम्हारे सामने बहुत छोटा है,तुममे असीम प्रतिभा हैं” (अलेक्स.6.8)” अलेक्जेंडर ने अपने जीवन के कई युद्धों में बुसेफेल्स की सवारी की,और अंत तक वो घोडा उनके साथ रहा.

340 में जब फिलिप ने अपनी विशाल मेकडोनियन आर्मी को एकत्र करके थ्रेस में घुसपैठ शुरू की, तब उसने अपने 16 वर्ष के पुत्र सिकन्दर को मेक्डोनिया राज्य पर अपनी जगह शासन करने के लिए छोड़ दिया था, इससे ये पता चलता हैं कि इतनी कम उम्र में ही सिकन्दर को कितना जिम्मेदार माना जाने लगा था.

जैसे-जैसे मेक्डोनियन आर्मी ने थ्रेस में आगे बढ़ना शुरू किया, मेडी की थ्रेशियन जनजाति ने मेक्डोनिया के उत्तर-पूर्व सीमा पर विद्रोह कर दिया, जिससे देश के लिए खतरा बढ़ गया.

सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) ने आर्मी इकट्ठी की और इसका इस्तेमाल विद्रोहियों के सामने शुरू किया,और तेज़ी से कारवाही करते हुए मेडी जनजाति को हरा दिया, और इनके किले पर कब्ज़ा कर लिया और इसका नाम उसने खुद के नाम पर एलेक्जेंड्रोपोलिस रखा.

2 वर्षों बाद 338 ईसा पूर्व में फिलिप ने मेकडोनीयन आर्मी के ग्रीस में घुसपैठ करने पर अपने बेटे को आर्मी में सीनियर जनरल की पोस्ट दे दी. चेरोनेआ के युद्ध में ग्रीक की हार हुयी और सिकन्दर ने अपनी बहादुरी दिखाते हुए ग्रीक फॉर्स-थेबन सीक्रेट बैंड को खत्म कर दिया. कुछ इतिहासकारों का कहना हैं कि मेक्डोनियन की ये जीत पूरी तरह से सिकन्दर की वीरता आधारित थी.

परिवार का बिखरना और फिल्लिप द्वितीय की हत्या

चेरोनेआ में ग्रीक की हार के बाद शाही परिवार बिखरने लगा. फिलीप ने भी क्लेओपटेरा से शादी कर ली. शादी के समारोह में क्लेओपटेरा के अंकल ने फिलिप के न्यायसंगत उत्तराधिकारी होने पर सवाल लगा दिया. सिकन्दर ने अपना कप उस व्यक्ति के चेहरे पर फैंक दिया, और उसे बास्टर्ड चाइल्ड कहने के लिए अपना क्रोध व्यक्त किया.

फिलिप खड़ा हुआ और उसने सिकन्दर पर अपनी तलवार तानी जो कि उसके अर्ध-चेतन अवस्था में होने के कारण चेहरे पर ही गिर गयी. सिकन्दर तब क्रोध में चिल्लाया कि “देखो यहाँ वो आदमी खड़ा हैं जो यूरोप से एशिया तक जीतने की तैयारी कर रहा हैं लेकिन इस समय अपना संतुलन खोये बिना एक टेबल तक पार नहीं कर सकता.

इसके बाद उसने अपनी माँ को साथ लिया और एपिरिस की तरफ चला गया. हालांकि उसे लौटने की अनुमति थी,लेकिन इसके बाद काफी समय तक सिकन्दर मेक्डोनियन कोर्ट से विलग ही रहा.

अलेक्जेंडर का सत्ता अधिग्रहण

336 अलेक्जेंडर की बहन ने मोलोस्सियन के राजा से शादी की, इसी दौरान होने वाले महोत्सव में पौसानियास ने राजा फिलिप द्वितीय की हत्या कर दी. अपने पिता की मृत्यु के समय अलेक्जेंडर 19 वर्ष का था और उसमें सत्ता हासिल करने का जोश और जूनून चरम पर था.

उसने मेकडोनियन आर्मी के शस्यागार के साथ जनरल और फ़ौज को एकत्र किया, जिनमे वो सेना भी शामिल थी जो केरोनिया से लड़ी थी. सेना ने अलेक्जेंडर को सामन्ती राजा घोषित किया और उसकी राजवंश के अन्य वारिसों की हत्या करने में मदद की.

ओलिम्पिया ने भी अपने पुत्र की इसमें मदद की,उसने फिलीप और क्लेओपटेरा की पुत्री को मार दिया और क्लेओपटेरा को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

अलेक्जेंडर के मेक्डोनिया के सामन्ती राजा होने के कारण उसे कोरिंथियन लीग पर नियन्त्रण ही नहीं मिला बल्कि ग्रीस के दक्षिणी राज्यों ने फिलीप द्वितीय की मृत्यु का जश्न मनाना भी शुरू कर दिया और उन्होंने विभाजित और स्वतंत्र अभिव्यक्ति शुरू की.

एथेन के पास भी एक खुदका एजेंडा था. डेमोक्रेटिक डेमोस्थेनेस के नेतृत्व में राज्य को लीग का चार्ज मिलने की आशा थी. उन्होंने जैसे ही स्वतंत्र आन्दोलन शुरू किया,अलेक्जेंडर ने तुरंत अपनी आर्मी को दक्षिण में भेजा और उन्हें अपना नेतृत्व मानने के लिए कहा.

336 के अंत तक कोर्निथीयन लीग से सम्बन्धित शहरों ने ग्रीक राज्यों के साथ पुन: संधि कर ली,जिनमें एथेंस ने इसके लिए मना कर दिया और अपने सबल सेना को पर्शियन राज्य के खिलाफ लड़ने को भेज दिया. लेकिन युद्ध की तैयारी करने से पहले अलेक्जेंडर ने 335 में थ्रासियन जनजाति को पराजित करके मेक्डोनिया के उत्तरी सीमा को सुरक्षित किया.

अलेक्जेंडर का विजय अभियान

अलेक्जेंडर जब अपने उतरी अभियान को खत्म करने के करीब था,तब उसे ये खबर मिली की ग्रीक राज्य के शहर थेबेस ने मेक़डोनियन फ़ौज को अपने किले से भगा दिया हैं, अन्य शहरों के विद्रोह के डर से अलेक्जेंडर ने अपनी सेना के साथ दक्षिण का रुख किया.

इन सब घटनाक्रमों के दौरान ही अलेक्जेंडर के जनरल परनियन ने एशिया की तरफ अपना मार्ग बना लिया है. अलेक्जेंडर और उसकी सेना थेबेस में इस तरह से पहुंची कि वहां की सेना को आत्म-रक्षा तक का मौका नहीं मिला.

अलेक्जेंडर का मानना था की थेबेस को तबाह करने पर अन्य राज्यों पर भी उसका डर कायम होगा,और उसका यह अंदेशा सही साबित हुआ ऐसा करने पर एथेंस के साथ ग्रीक के अन्य शहर भी मकेडोनियन राज्य के साथ संधि करने को तैयार हो गए.

334 में अलेक्जेंडर ने एशियाई अभियान के लिए नौकायन शुरू किया और उस वर्ष की वसंत में ट्रॉय में पंहुचा. अलेक्जेंडर ने ग्रेंसियस नदी के पास पर्शियन राजा डारियस तृतीय की सेना का सामना किया, उन्हें बुरी तरह से पराजित किया. पतझड़ के आने तक अलेक्सेंडर और उसकी सेना ने दक्षिणी समुन्द्र किनारे को पार करते हुए एशिया माइनर से गोरड़ीयम में प्रवेश किया,जहाँ पर सर्दियों के समय तो उन्होंने सिर्फ आराम किया.

333 की गर्मियों में अलेक्जेंडर की सेना और डारियस की सेना के मध्य एक बार फिर से युद्ध हुआ. हालांकि अलेक्जेंडर की सेना में ज्यादा सैनिक होने के कारण उसकी फिर से एक तरफा जीत हुई, और अलेक्जेंडर ने डारीयस को पकडकर तड़ीपार करके खुदको पर्शिया का राजा घोषित कर दिया

अलेक्जेंडर का अगला लक्ष्य इजिप्ट को जीतना था, गाज़ा की घेराबंदी करके अलेक्जेंडर ने आसानी से इजिप्ट पर कब्ज़ा कर लिया. 331 में उसने अलेक्जांद्रिया शहर का निर्माण किया और ग्रीक संस्कृति और व्यापार के लिए उस शहर को केंद्र बनाया. उसके बाद अलेक्जेंडर ने गौग्मेला के युद्ध में पर्शिया को हरा दिया. पर्शियन आर्मी की हार के साथ ही अलेक्जेंडर बेबीलोन का राजा, एशिया का राजा और दुनिया के चारो कोनो का राजा बना गया.

अलेक्जेंडर का अगला लक्ष्य ईस्टर्न ईरान था, जहाँ उसने मेक्डोनियन कालोनी बनाई और अरिमाज़ेस में 327 किलों पर अपना कब्ज़ा जमाया. प्रिंस ओक्जियार्टेस को पकड़ने के बाद उसने प्रिन्स की बेटी रोक्जाना से विवाह कर लिया.

अलेक्जेंडर और भारत

328 में अलेक्जेंडर ने भारत में पोरुस की सेना को हराया, लेकिन वो पोरुस के पराक्रम से बहुत प्रभावित हुआ और उसे वापिस राजा बना दिया. अलेक्जेंडर ने सिन्धु के पूर्व की तरफ बढ़ने की कोशिश की, लेकिन उसकी सेना ने आगे बढने से मना कर दिया और वापिस लौटने को कहा. 325 में अलेक्जेंडर ने ठीक होने के बाद अपनी सेना के साथ उत्तर की तरफ पर्शियन खाड़ी के सहारे का रुख किया, उस समय बहुत से लोग बीमार पड गए, कुछ चोटिल हो गए, तो कुछ की मृत्यु हो गयी.

अपने नेतृत्व और प्रभाव को बनाए रखने के लिए उसने पर्शिया के प्रबुद्ध जनों को मेक्डोनिया के प्रबुद्ध जनो से मिलाने का सोचा, जिससे एक शासक वर्ग बनाया जा सके. इसी क्रम में उसने सुसा में उसने मेक्डोनिया के बहुत से लोगो को पर्शिया की राजकुमारियों से शादी करवाई.

अलेक्जेंडर ने जब 10 हजार की संख्या पर्शियन सैनिक अपनी सेना में नियुक्त कर लिए, तो उसने बहुत से मेक्डोनियन सैनिको को निकाल दिया. इस कारण सेना का बहुत बड़ा हिस्सा उससे खफा हो गया और उनहोंने पर्शियन संस्कृति को अपनाने से भी मना कर दिया.

अलेक्जेंडर ने तब 13 पर्शियन सेना नायकों को मरवाकर मेक्डोनीयन सैनिकों का क्रोध शांत किया. इस तरह सुसा में पर्शिया और मेक्डोनिया के मध्य सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए किया जाने वाला आयोजन सफल नहीं हो सका.

अलेक्सेंडर की मृत्यु

कार्थेज और रोम पर विजय प्राप्त करने के बाद अलेक्सेंडर की मृत्यु मलेरिया रोग के कारण बेबीलोन में हुयी. अलेक्जेंडर की मृत्यु 13 जून 323 में हुई थी, तब वह मात्र 32 वर्ष का था. उसकी मृत्यु के कुछ महीनो बाद उसकी पत्नी रोक्जाना ने एक बेटे को जन्म दिया. उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया, और इसमें शामिल देश आपस में शक्ति के लिए लड़ने लगे. ग्रीक और पूर्व के मध्य हुए सांस्कृतिक समन्वय का एलेक्जेंडर के साम्राज्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा.

उदाहरण 2. सिकंदर महान का इतिहास – History of Sikandar in Hindi

सिकंदर महान (Alexander The Great) यूनान राज्य के मकदूनिया का शासक था। इनके फिलिप द्वितीय जो मकदूनिया के शासक थे। पिता की निधन के बाद सिकंदर 336 ईसा पूर्व गद्दी पर बैठा। सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) महान को इतिहास में एक प्रतिभाशाली और कीर्तिवान राजा होने के साथ निपुण, शक्तिशाली और विख्यात सेनापति भी था।

अपने जीवन के अंत तक उसने लगभग ज़मीन के आधे हिस्से पर अधिकार कर लिया था जितने भूमि के बारे में प्राचीन यूनानी या ग्रीक को जानकारी थी। इसलिए इतिहास में इसे विश्व विजेता के नाम से भी जाना जाता है।

इसके अलावा सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) महान को एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन (Alexander Macedonia) तथा एलेक्ज़ेंडर तृतीय (Alexander-III ) के नाम से भी प्रसिद्ध है।

सिकंदर का असली नाम क्या था?

दोस्तों, सिकंदर का वास्तविक नाम मेसेडोन के एलेक्ज़ेंडर तृतीय (Alexander III of Macedon ) था। इसके द्वारा किये गए कार्यों के कारण लोग इसे अलग-अलग नामों से जानते थे।

पिता के निधन के बाद जब सिकंदर राजा बना, उसके बाद तो इसके द्वारा बहुत युद्ध जीते गए। इसके वजह से लोगों ने सिकंदर को बहुत से नाम भी दिए। इन नामों में एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन (Alexander Macedonia) तथा एलेक्ज़ेंडर तृतीय (Alexander III), सिकंदर महान और एलेक्ज़ेंडर द ग्रेट (Alexander The Great) आदि है।

सिकंदर को विश्व का सबसे बड़ा सम्राट क्यों माना जाता है? Why Is Alexander the Great Is Called World’s Greatest Emperor?
सिकंदर महान (Alexander The Great) के नाम से आप समझ सकते है कि सिकंदर कितना महान राजा था। सिकंदर को विश्व का सबसे महान या बड़ा सम्राट मानने के पीछे कई कारण है जिनके वजह से सिकंदर को सबसे महान राजा माना जाता है।

महान सिकंदर बचपन से ही विश्व को जितने के सपने देखा करता था, और अरस्तु जैसे महान विचारक और दार्शनिक के शिष्य के रूप में शिक्षा प्राप्त करके सिकंदर मानसिक रूप से मजबूत हुआ।

पिता के मृत्यु के बाद जब सिकंदर राजा बना, तो अपने नेतृत्व में एक ऐसी सेना का निर्माण किया, जिसने अपने समय में सीरिया, इरान, मेसोपोटामिया, मिस्र, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और इसके साथ ही भारत के पंजाब पर भी विजय हासिल कर लिया था। सिकंदर द्वारा जीते गए युद्धों का कारण वह एक कुशल सेनापति और प्रतिभाशाली राजा के कारण ही विश्व भर में प्रसिद्ध है।

सिकंदर महान का जन्म और प्रारंभिक जीवन

यदि सिकंदर के जीवन के बारे में बता किया जाए, तो सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व यूनान के मैसेडोन या मकदूनिया के पेला नामक स्थान पर हुआ था।

इनके पिता फिलिप द्वितीय मकदूनिया और ओलंपिया ले राजा थे। उनकी माता ओलंपिया जो एपिरुस की राजकुमारी थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी माता एक जादूगरनी थी, जिनको सापों के बीच रहने का शौक था।

उसकी एक बहन थी, जिसका नाम क्लियोपैट्रा था। सिकंदर और उसकी बहन की परवरिश पेला के ही शाही दरबार में हुआ था, उसे मैसेडोनिया की क्लियोपेट्रा (Cleopatra of Macedon ) भी कहा जाता है, ये सिकंदर की इकलौती सहोदर (Siblings) थी।

सिकंदर महान की शिक्षा

सिकंदर, जो बहुत ही बुद्धिमान थे उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही घुड़सवारी जैसे कठिन चीजों को बहुत ही अच्छी तरह से सीख लिया था। सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) की प्रारंभिक शिक्षा इनके एक रिश्तेदार द स्टर्न लियोनिडास से हुई।

अलेक्जेंडर ग्रेट के पिता फिलिप चाहते थे कि ये पढ़ाई के साथ युद्ध विद्या का भी ज्ञान प्राप्त करे और एक महान योद्धा बने इसलिए बचपन से ही इनको युद्ध विद्या जैसे तलवारबाजी, धनुर्विद्या, घुड़सवारी आदि की शिक्षा भी द स्टर्न लियोनिडास से ही प्राप्त की।

इसके पश्चात इनके पिता इनके आगे के शिक्षा के लिए एक महान दार्शनिक और विचारक अरस्तु को नियुक्त किया गया। उस वक़्त इनकी उम्र 13 वर्ष थी।

अरस्तु के निर्देशन में ही सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) ने साहित्य, विज्ञान, दर्शन शास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन किया। बहुत से इतिहासकार यह भी मानना है कि सिकंदर को विश्व विजेता बनाने का सपना अरस्तु ने ही दिखाया था और सिकंदर को इसके लिए तैयार किया था।

सिकंदर महान के राज्य बनने की कहानी

सिकंदर की उम्र जब 20 वर्ष थी, तब इनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के निधन के बाद 336 ईसा पूर्व में सिकंदर मेसेडोनिया या मकदूनिया का सम्राट बनने के लिए सिकंदर ने सेना की मदद से अपने सौतेले और चचेरे भाइयों की हत्या भी करवानी पड़ी।

इसमें सिकंदर की माँ ओलंपिया ने सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) की मदद की। सम्राट बनने के बाद सिकंदर ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने लिए एक विशाल सेना का गठन किया और अपने साम्राज्य को बढाने के लिए सिकंदर ने यूनान के कई भागों पर अधिकार कर अपनी जीत दर्ज की।
इसके पश्चात सिकंदर एशिया माइनर को जितने के लिए निकल पड़ा। इस युद्ध अभियान में सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) ने सीरिया को पराजित करके मिस्र, इरान, मेसोपोटामिया, फिनिशिया जुदेआ, गाझा, और बॅक्ट्रिया प्रदेश को भी पराजित करके अपने कब्ज़े में लिए लिया।

उस समय सभी राज्य फ़ारसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था जो सिकंदर के साम्राज्य का लगभग 40 गुना था। इसी दौरान सिकंदर ने 327 ईसा पूर्व में मिस्र में एक नए शहर की स्थापना की। जिसका नाम अपने नाम पर अलेक्ज़ेंड्रिया रखा और यहाँ एक विश्व विद्यालय का भी निर्माण करवाया।

सिकंदर ने अपनी विशाल सेना और कुशल सेना नेतृत्व फ़ारस के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हराकर स्वयं वहां का राजा बन गया। फ़ारस की राजकुमारी रुकसाना से विवाह करके सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) ने जनता को भी अपनी ओर कर लिया। इसके अलावा सिकंदर ने कई अन्य जगहों पर अपनी जीत हासिल की। इसमें भारत का भी कुछ हिस्सा शामिल था।

सिकंदर महान कहाँ का राजा था?

सिकंदर या अलेक्जेंडर द ग्रेट मकदूनिया या मेसेडोनिया का राजा था। पिता की मृत्यु के बाद सिकंदर ने अपने ही सौतेले और चचेरे भाइयों की हत्या करवा कर स्वयं को मकदूनिया का सम्राट घोषित कर लिया। इसमें सिकंदर की माँ ओलंपिया ने उसकी मदद की।

सिकंदर महान का धर्म क्या था?

अगर हम सिकंदर के धर्म के बारे बात करें, तो सिकंदर एक यूनानी या ग्रीक था। यूनानी लोग के अपनी ग्रीक ओलंपियन मान्यताओं के साथ वो कुछ देवताओं में भी विश्वास करते थे, लेकिन ये प्राचीन ग्रीक ओलंपियन मान्यताएं हमें ज्यादा कुछ नही बताती है क्योंकि ये धर्म बहुत ज्यादा व्यवस्थित या केंद्रीकृत नहीं था। इन मान्यताओं को हम सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) का धर्म कह सकते है।

सिकंदर इन मान्यताओं को मानने के बजाय खुद को ईश्वर का रूप मानता था और वो चाहता था कि लोग उसकी पूजा करे। मिस्र को जितने के बाद उनसे वहां के पवित्र तीर्थ स्थल ओरेकल ऑफ़ सिवा (Oracle of Siwa) के दर्शन बे बाद सिकंदर ने स्वयं को Zeus-Ammon का पुत्र घोषित कर दिया।

सिकंदर स्वयं को ईश्वर का रूप मानता था इस बात का पता इससे लगता है, उसके शासन काल में उसने कई ऐसे सिक्के चलवाए जिसमे उसके कानों के ऊपर सींग थे जिस तरह Zeus-Ammon के तस्वीर में होते थे, और उसने Zeus के सामान हाथों में बज्र लिए हुए खड़ा होने वाला चित्र भी सिक्कों पर बनाये थे।

इसके अलावा सिकंदर ने ग्रीक के कई मंदिरों में अपनी मूर्ति स्थापित करने के भी आदेश दिए थे, क्योंकि वो चाहता था कि लोग उसकी पूजा जीवित देवता के रूप में करें।

सिकंदर महान का पुत्र कौन था?

सिकंदर महान और रुकसाना का पुत्र अलेक्जेंडर चतुर्थ (Alexander IV) था। इसके जन्म से पहले ही सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) की मृत्यु हो गई। इस कारण जनता के मन उत्तराधिकार को लेकर असंतोष था। इस बात का फायदा उठाते हुए फिलिप III ने पैदल सेना को अपनी ओर कर लिया।

रुकसाना ने बाकियों को राजी किया कि यदि पुत्र होगा तो वो राजा बनेगा अथवा रीजेंट पर फिलिप का राज होगा। 323 ईसा पूर्व या 322 ईसा पूर्व के शुरू में अलेक्जेंडर चतुर्थ (Alexander IV) का जन्म हुआ।

सिकंदर का भारत पर आक्रमण

यूनानी शासक सिकंदर महान ने भारत पर 326 ईसा पूर्व आक्रमण किया। भारत पर आक्रमण करने का मूल कारण धन की प्राप्ति थी। इस समय भारत छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था।

सिकंदर खैबर दर्रे से होकर भारत पहुंचा और उसने पहला आक्रमण तक्षशिला के राजा अम्भी पर किया। अम्भी ने कुछ समय के बाद सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और सिकंदर को सहायता देने का वादा किया।

इस समय तक्षशिला में चाणक्य एक आचार्य के रूप में कर कर रहे थे। इसने ये विदेशी हमले देखे ना गए इसलिए चाणक्य ने इसके विरुद्ध में लड़ने के लिए बहुत से राजाओं के पास गए लेकिन आपसी मतभेद के कारण कोई भी सिकंदर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार नही हुआ।

इस समय भारत में मगध का नन्द वश जिसका राजा घनानंद था। जोकि बहुत ही शक्तिशाली था। चाणक्य घनानंद के पास भी गया लेकिन घनानंद ने चाणक्य का अपमान करके उसे महल से निकाल दिया। जिसका परिणाम आगे चलकर घनानंद को उठाना पढ़ा।

सिकंदर और पोरस का युद्ध

तक्षशिला के राजा अम्भी को हराकर सिकंदर झेलम और चिनाब नही को ओर बढ़ा और झेलम नही के किनारे ही सिकंदर और पोरस या पेरू के बीच एक बहुत ही प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया। जिसे हाइडेस्पीज का युद्ध या वितस्ता का युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में पोरस की हार हुई।

झेलम नही के किनारे सिकंदर और पोरस के बीच भयानक युद्ध की शुरुआत हुई। पहले दिन पोरस ने सिकंदर का डटकर सामना किया। लेकिन मौसम के ख़राब होने के कारण पोरस के सेना कमजोर पड़ने लगी।

ये देखकर सिकंदर ने पोरस से आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन पोरस ने हार नही मानी और युद्ध करते रहे। पोरस जानते थे कि उनकी हर निश्चित है लेकिन उन्हें किसी अधीनता स्वीकार नही थी।

सिकंदर ने पोरस को पराजित तो कर दिया, लेकिन इसमें सिकंदर का भी बहुत नुकसान हुआ। पोरस के वीरता से प्रभावित होकर सिकंदर ने पोरस के साथ मित्रता कर लिया और पोरस से जीता हुआ राज्य वापस कर दिया और अपनी सेना के साथ वापस लौटने का फैसला किया।

सिकंदर के भारत पर आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा?

सिकंदर के भारत पर आक्रमण के प्रभाव इस प्रकार है-

  • अलेक्जेंडर दी ग्रेट के इस अभियान से भारत और यूनान देश के बीच विभिन्न क्षेत्रों के बीच प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित हुए और साथ भिन्न-भिन्न स्थल और जल मार्गों के रास्ते सामने आया।
  • सिकंदर के आक्रमण के फलस्वरूप भारत में छोटे-छोटे राज्यों का पतन हुआ और चाणक्य और चन्द्रगुप्त जैसे राष्ट्रप्रेमी सामने आये और छोटे राज्यों को मिला कर बड़े एक बड़े साम्राज्य का निर्माण किया।
  • भारत में कला के रूप में गंधार शैली का विकास हुआ जो यूनानियों से ही प्रभावित है।
  • सिकंदर के इतिहासकार मूल्यवान भौगोलिक विवरण छोड़ गए है, जिसके सहायता से इन घटनाओं के समय का पता चलता है, साथ इसकी सहायता कुछ और घटनाओं के समय के बारे में भी जानने को मिलता है।

सिकंदर महान की मृत्यु कैसे हुई?

पोरस को हारने के बाद सिकंदर के सामने एक मगध की विशाल सेना थी, लेकिन सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नही पार करने और घनानंद की सेना से युद्ध करने से मना कर दिया।

तभी सिकंदर को फ़ारस में विद्रोह के बारे में पता चला और उसे विद्रोह को दबाने के लिए सिकंदर ने वापस लौटने का फैसला किया। 323 ईसा पूर्व में वापस लौटे हुए सिकंदर बेबीलोन पहुँगा।

बेबीलोन में सिकंदर को भीषण बुखार हुआ और 33 वर्ष की आयु में 10 जून को सिकंदर की मृत्यु बेबीलोन में हुआ। मात्र 10 वर्षों में ही सिकंदर ने बहुत से राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया। ये बात अलग है कि उसके मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया और शक्ति के लिए इसमें शामिल देश आपस में लड़ने लगे।

उदाहरण 3. सिकंदर महान का इतिहास – History of Sikandar in Hindi

ग्रीक इतिहासकारों ने सिकंदर (Alexander The Great) को महान और विश्व विजेता बताया था लेकिन चीन और ईरान के इतिहास में इसका बिल्कुल उलट है। यह दुनिया की मान्यता है कि प्रत्येक देश अपने राजाओं को महान बताते है।

परंतु यह भी सत्य है कि बहुत कम उम्र में सिकंदर ने कई युद्ध जीते थे। यह इस बात का सबूत है की वो बहादुर और कुशल योद्धा था। ग्रीक इतिहास में आता है कि अलेक्जेंडर के जन्म के समय डायना मंदिर में आग लग गयी थी। ज्योतिषों ने इसे देखते हुए सिकंदर के बारे में विश्व विजेता बनने की भविष्यवाणी की थी।

सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व का माना जाता है। उसके जन्म स्थान का नाम पेला था जो ग्रीक में आता था। पिता का नाम फिलिप द्वितीय और माता का नाम ओलंपिया था। सिकंदर का असली नाम अलेक्जेंडर द ग्रेट था। बचपन से ही सिकन्दर महत्वकांक्षी था। वह हर वक्त कुछ ना कुछ सीखता था। सिकन्दर को आराम बिल्कुल पसंद नही था।

उसका मकसद शासन करने से ज्यादा युद्ध करके जीत हासिल करना था। सिकंदर के पिता फिलिप की मृत्यु सिकंदर की 20 वर्ष की आयु में हो गयी थी। पिता की मृत्यु के बाद सिकंदर मेसेडोनिया (मकदूनिया) राज्य का शासक बना था।

अलेक्जेंडर द ग्रेट ने अपने गुरु महान दार्शनिक अरस्तु से शिक्षा ग्रहण की थी। उसकी उम्र मात्र 13 वर्ष थी जब अरस्तु को शिक्षा के लिए नियुक्त किया गया था। अरस्तु ने सिकंदर को साहित्य, दर्शनशास्त्र और विज्ञान की शिक्षा दी।

ऐसा माना जाता है कि सिकंदर को विश्व विजेता बनने का सपना अरस्तु ने ही दिखाया था। प्रारंभिक शिक्षा द स्टर्न लियोनिडास से हुई थी। इनसे सिकंदर (History of Sikandar in Hindi) ने तलवारबाजी, धर्नुविद्या और घुड़सवारी की ट्रेनिंग ली थी।

सिकंदर का इतिहास

सिकंदर (Alexander The Great) महान विश्व विजेता बनने का सपना लेकर एशिया की तरफ बढ़ा था। उससे पहले सिकंदर ने अपने आसपास के राज्यों को जीता था। उसकी सेना विशाल होने के साथ ही कुशल भी थी। सिकंदर की सबसे बडी जीत उस समय के सबसे बड़े साम्राज्य फारस “पर्शिया” को जीतना था।

यह साम्राज्य सिकंदर के राज्य से करीब 40 गुना बढ़ा था। लेकिन उसने अपनी बहादुरी और युद्धकौशल से जीत हासिल की थी। फारसी साम्राज्य में आज का ईरान, मिस्र, इराक, सीरिया इत्यादि आते है। यह भी एक कारण था कि सिकंदर को ग्रीक इतिहास में महान विश्व विजेता कहा गया है।

फारस से युद्ध के वक्त वहाँ का शासक शाह दारा था। सिकंदर द ग्रेट ने शाह दारा से तीन बार युद्ध किया और हर युद्ध में उसे विजय मिली थी। बाद में शाह दारा ने अपनी पुत्री रुक्साना का विवाह सिकंदर से कर दिया था। ग्रीक के लोगो को उस वक्त दुनिया के जितने हिस्से की जानकारी थी, उसमें से लगभग आधे से ज्यादा हिस्सा अलेक्जेंडर ने जीता था। यही एक कारण है कि ग्रीक इतिहास में उसे विश्व विजेता कहा जाता है।

अलेक्जेंडर द ग्रेट ने पर्शियन साम्राज्य के अलावा एथेंस, पेलेस्टाइन और एशिया के कुछ राज्यों को भी जीता था। एशिया में मुख्यतः उसने तुर्क राज्य को जीता था। सिकंदर ने सिंधु नदी से पहले का भारत जीत लिया था।

सिकंदर का भारत आगमन और इतिहास

सिकंदर (Sikandar) ने भारत पर आक्रमण 326 ईसा पूर्व किया था। उसका भारत में सबसे पहला सामना तक्षशिला के राजा अंभी से हुआ था। अंभी अलेक्जेंडर से बिना लड़े ही हार गया और उसने सिकंदर से संधि कर ली थी। भारत के पंजाब प्रांत में झेलम नदी के पास उस वक्त राजा पोरस का शासन था।

राजा पोरस का असली नाम पुरु था और वह एक शक्तिशाली शासक था। पोरस ने अपनी वीरता और पराक्रम से सिकंदर को रोकने की कोशिश की लेकिन सिकंदर की कुशल सेना के सामने वो हार गया।

ग्रीक इतिहास के अनुसार राजा पोरस की हार हुई थी। सिकंदर ने जीत के बाद भी पोरस से हाथ मिलाया और संधि की। उसने राजा पोरस को उसका राज्य वापस दे दिया और मित्रता स्वीकार की।

इतिहास में सिकंदर और राजा पोरस के मध्य हुआ यह युद्ध विशेष स्थान रखता है। पोरस के अलावा पश्चिमी भारत के ज्यादातर राजाओं ने सिकंदर की अधीनता बिना लड़े ही स्वीकार की थी। पोरस की महानता का अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि उसने सिकन्दर की अधीनता स्वीकार नही की और राज्य की रक्षा के लिए युद्ध का रास्ता चुना।

सिकंदर इस जीत के बाद आगे बढ़ना चाहता था लेकिन व्यास नदी के पार मगध साम्राज्य की विशाल सेना देखकर वह वापस पलट गया। इतिहास में यह भी आता है कि उसकी सेना थक चुकी थी।

इसलिए उसे वापस लौटना पड़ा। पश्चिमी भारत के कठ गणराज्य से भी सिकन्दर की लड़ाई हुई थी जिसमे उसकी जीत हुई। कठ जाति के लोगो ने बहादुरी के साथ सिकंदर का सामना किया और सिकंदर की सेना को भारी नुकसान हुआ।

सिकंदर महान (Alexander The Great In Hindi) ने अपने जीवन में कई युद्ध जीते थे। उसकी सेना छोटी थी लेकिन युद्ध कौशल और पराक्रम के बलबूते उसने बड़े से बड़े साम्राज्य जैसे कि फारस को भी जीत लिया था।

सिकंदर का जीवन बहुत कम था। मृत्यु के समय उसकी उम्र मात्र 32 वर्ष थी। युद्ध के बाद वापस लौटते वक्त उसकी मलेरिया के कारण 323 ईसा पूर्व मौत हुई थी। सिकंदर की मृत्यु का स्थान बेबीलोन था। बहुत ही कम उम्र में कई राज्यो को उसने जीता था, यही एक कारण था कि उसे महान कहा जाता है।

सिकन्दर महान ने 327 ईसा पूर्व अलेक्जेंड्रिया नामक शहर स्थापित किया था। सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके जीते हुए सारे राज्य वापस बिखर गए। सिकंदर की आखिरी इच्छा के मुताबिक उसकी अर्थी पर कफ़न के बाहर उसके दोनों हाथ निकाले गए थे।

सिकंदर ने यह इच्छा इसलिए व्यक्त की थी कि दुनिया देखे की जाते वक्त उसके हाथ खाली है। इसका अर्थ यह है कि दुनिया में खाली हाथ आना है और खाली हाथ ही जाना है। दुनिया से कुछ भी लेकर नही जाना है।

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