विश्व एड्स दिवस पर निबंध – Essay On World Aids Day in Hindi

एड्स वायरस के संक्रमण से होने वाली बहुत ही घातक बीमारी है। इस बीमारी का अब तक कोई ठोस इलाज नहीं मिल पाया है। यह बीमारी होने के बाद इंसान का बचना नामुमकिन हो जाता है। हालांकि एड्स महामारी 2005 में आई थी तब से अब तक काफी गिरावट हुई है लेकिन अभी तक इस को समाज से खत्म करने का कोई उपाय नहीं मिल पाया है।

इसके वायरस शरीर की प्रतिरक्षा पर हमला करते हैं और शरीर को एक दम तोड़ देते हैं। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के अंदर किसी भी बीमारी से लड़ने की शक्ति नहीं रह पाती और वह पूरी तरह कमजोर हो जाते हैं। इसीलिए एचआईवी पॉजिटिव वाले लोगों को और भी अन्य बीमारियां होने की संभावना अधिक होती है। यह एक बहुत ही घातक बीमारी है.

और इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए और इस बीमारी से ग्रस्त जिन लोगों ने अपनी जान गवा दी है उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए “विश्व एड्स दिवस” मनाया जाता है।

विश्व एड्स दिवस पर निबंध – Long and Short Essay On World Aids Day in Hindi

1987 में इस दिवस की कल्पना अगस्त के महीने में थाॅमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न के द्वारा की गई थी। यह  दोनों विश्व स्वास्थ्य संगठन जिनेवा, स्विजरलैंड एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे।

इन्होंने एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निर्देशक डॉ जॉननाथन मन्न के समक्ष एड्स दिवस का विचार रखा। इनके इस विचार से प्रभावित होकर उन्होंने उसे स्वीकृति दे दी। और 1 दिसंबर 1988 को इसे विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

शुरुआती कुछ वर्षों में  विश्व एड्स दिवस का ध्यान बच्चों के साथ साथ ही युवाओं पर भी केंद्र किया गया और बाद में एक परिवार के रोग रूप में पहचाना गया जिसके अंतर्गत किसी भी आयु वर्ग का व्यक्ति एचआईवी से संक्रमित हो सकता है। वर्ष 2007 के बाद विश्व एड्स दिवस को व्हाइट हाउस द्वारा एड्स रिबन एक प्रतिष्ठित चिन्ह देकर शुरू किया गया।

विश्व एड्स दिवस की थीम

विश्व एड्स दिवस की हर साल अलग-अलग थी निर्धारित की जाती है नीचे हम कुछ वर्षों की टीम के बारे में चर्चा करेंगे जो निम्न प्रकार से है-

सबसे पहले वर्ष 1988 में जब यह पहली बार मनाया गया था तब इस दिवस की थीम थी “संचार”। इसका मतलब यह है कि इस बीमारी के बारे में संचार करना है यानी लोगों को इस बीमारी से अवगत कराना।

  • वर्ष 1989 में इस दिवस की थीम थी “युवा”। यानी इस बीमारी के प्रति युवाओं को जागरुक करना।
  • वर्ष 1990 में विश्व एड्स दिवस योजना की थीम “महिलाएं और एड्स” थी।
  • वर्ष 1991 का विषय “चुनौती साझा करना” था।
  • 1992 वर्ष की थीम समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता थी।
  • वर्ष 1993 का विषय “अधिनियम” था।
  • वर्ष 1994 का विषय “एड्स और परिवार” था।
  • 1995 की थीम “साझा अधिकार साझा दायित्व” थी।
  • 1996 की थीम “एक विश्व और एक आशा” थी।
  • 1997 की थीम “बच्चे एड्स की दुनिया में रहते हैं” ।
  • 1998 का विषय “परिवर्तन के लिए शक्ति विश्व एड्स दिवस युवाओं के साथ”।
  • 1999 की थीम “जाने, सुनें, रहें, बच्चे और युवा लोगों के साथ विश्व एड्स दिवस की अभियान”।
  • 2000 का विषय “एड्स लोग अंतर बनाते हैं”।
  • इसी प्रकार और भी वर्षों की थीम रही है। इसमें 2019 की थीम थी “कम्यूनिटिज मेक द डिफरेंस”।

विश्व एड्स दिवस पर लाल रिबन क्यों पहना जाता है?

विश्व एड्स दिवस के दिन लोग लाल रिबन पहन कर एड्स से पीड़ित लोगों के प्रति अपनी भावनात्मक व्यक्त करते हैं। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य होता है कि लोगों में इस मुद्दे के प्रति जागरूकता बढ़ाना। इसके बाद एड्स से पीड़ित लोगों को इस रोग से लड़ने के लिए पैसे जुटाने के लिए इस जीवन को भेजते हैं।

यह एक जरिया भी है उन लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का जिन लोगों ने की बीमारी से लड़ते हुए अपनी जान गवा दी हैं। यूएन एड्स के द्वारा यह कहा जाता है कि यह रिबन एचआईवी से ग्रस्त व्यक्तियों और उनकी देखभाल करने वाले व्यक्तियों के प्रति एक सद्भावना प्रकट करने का मार्ग है। इसीलिए विश्व एड्स दिवस के दिन लोग लाल रिबन पहनते हैं और लोगों में एड्स से पीड़ित लोगों के प्रति भेद भावना ना करने के लिए जागरूकता बढ़ाते हैं।

निष्कर्ष

जैसा कि हमें पता है कि इस समय एड्स का कोई इलाज नहीं है। अच्छा इस बीमारी से बचने के लिए केवल रोकथाम एकमात्र उपाय है। हमें स्वयं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए और इस तरह की घातक बीमारियों से हर संभव बचने का प्रयास करना चाहिए। कुछ लोगों को तो इस बीमारी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं होती है। और इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

इसीलिए लोगों को ऐसी घातक बीमारियों के प्रति जागरूक होना चाहिए। समय-समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच करा लेनी चाहिए। जहां तक हमें पता है यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज से इस बीमारी को मिटाया नहीं जा सकता। यह हमें रोकथाम पर ध्यान देना चाहिए। खुद की सुरक्षा खुद के हाथों में है। जागरूक बने स्वस्थ रहें।