भारत में महिला शिक्षा पर निबंध – Essay On Woman Education in Hindi

इस पोस्ट में आपको भारत में महिला शिक्षा पर निबंध (Essay On Woman Education in Hindi) के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देने की कोशिस की जा रही है। भारत एक पुरुष प्रधान देश है। लेकिन इसके साथ हमारे समाज में महिलाओं को भी उचित सम्मान और जगह प्राप्त है। हमारे समाज में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी हर वह  उचित अवसर प्रदान है जो उनके हित के लिए आवश्यक है। हमारे समाज में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं हमारे देश के लिए बहुत ही शान की बात है।

भारत में महिला शिक्षा पर निबंध – Long and Short Essay On Woman Education in Hindi

महिलाओं की शिक्षा किसी भी देश के लिए अत्यंत आवश्यक विषय है। शिक्षित महिला इस समाज को शिक्षित बना सकती है। सरकार द्वारा महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। आज हम अपने देश में “महिलाओं की शिक्षा” पर प्रकाश डालेंगे।

वैदिक काल

वैदिक काल में स्त्री शिक्षा उन्नति पर थी । उस समय पुरुषों के समान स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता थी । स्त्रियों का धार्मिक कार्यों में पति के साथ लेना अनिवार्य था।  स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी समझा जाता था। कोई भी याज्ञिक कार्य उसके बिना अपूर्ण समझा जाता था। प्राचीन वैदिक काल में स्त्रियां वैदिक साहित्य का अध्ययन करती थी। ऋग्वेद की अनेक संहिताओं की रचना भी स्त्रियों ने की है।

उस समय जो उच्च शिक्षा प्राप्त स्त्रियों को बह्मवादिनी कहा जाता था। वह वैदिक काल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था परिवारों में होती थी। जबकि उच्च शिक्षा की व्यवस्था गुरुकुल में होती थी। वैदिक काल में केवल कुछ ही गिने चुने विदुषी स्त्रियों की चर्चा मिलती है। जिससे यह साबित होता है कि उस समय नारी शिक्षा अत्यंत ही सीमित थी। तथा समाज के केवल उच्च परिवारों की लड़कियों को ही शिक्षा प्राप्त के अवसर मिलते थे। उस समय स्त्रियों के लिए गुरुकुल में कोई अलग स्थान की व्यवस्था नहीं थी।

जिसे कारण पुरुषों के साथ ही शिक्षा लेने पड़ती थी। उस समय स्त्री शिक्षा का उत्तरदायित्व परिवार को होता था। पिता, पति अथवा कुलगुरू परिवार की स्त्रियों को शिक्षा प्रदान करते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय स्त्रियों की शिक्षा के लिए कोई  सुसंगठित व्यवस्था नहीं थी। उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों वैदिक और साहित्य शिक्षा ग्रहण करती थीं।

लेकिन इस काल के अंत में स्त्री शिक्षा का महत्व कम होने लगा स्त्रियों के लिए वेद पाठ और अध्ययन को निषेध कर दिया गया। वैदिक काल के अंत में बालिकाओं का कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था।  जिससे उनके शिक्षा प्राप्ति के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होने लगा। इसके बाद जैसे-जैसे समाज में इसरो का महत्व कम होता गया वैसे वैसे ही स्त्री शिक्षा का स्तर गिरता गया।

बौद्ध काल में नारी शिक्षा

बौद्ध काल के अंत में मठों में स्त्रियों के प्रवेश पर रोक लगा दिया गया। परंतु बाद में महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में प्रवेश करने की अनुमति देकर स्त्री शिक्षा को फिर से एक नया जीवन दिया। शील भट्टारिका, संघमित्रा, विजयंका, शुभा, अनुपमा, सुमेधा आज बहुत थकान है विदुषी स्त्रियां थी।

संघ में प्रवेश करने की अनुमति से सबसे अधिक फायदा समाज में कुलीन एवं व्यवसायिक वर्गों के स्त्रियों की शिक्षा को हुआ। बहुत थकान में भी शिक्षा केवल धनी घरानों और कुछ वर्गों तक ही सीमित रही। और समान वर्ग के परिवारों की स्त्रियों के लिए शिक्षा का द्वार नहीं खुल पाया। इससे यह पता चलता है कि भारत में काफी समय तक सामान्य वर्ग के लड़कियों को शिक्षा का अवसर नहीं प्राप्त हो सका।

मध्य काल में नारी शिक्षा

जिस प्रकार पाताल में सामान और के स्त्रियों की शिक्षा बंधित रही। ठीक उसी प्रकार मध्यकाल में भी बंधित रही। मध्यकाल में बार हुआ तथा पर्दा प्रथा प्रचलन से सभी स्त्रियां शिक्षा प्राप्ति के अवसरों से वंचित रह जाती थी।आजकल की लड़कियों को से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त होती थी। मुस्लिम काल में सामान्यतया लड़कियों को पढ़ाना सम्मान के विपरीत और मनहूसियत की निशानी समझा जाता था। लड़कियों को घर पर ही सिलाई, कढ़ाई, खाना बनाना, बातचीत करने का तरीका आदि सिखा दिया जाता था।

स्वतंत्र भारत में नारी शिक्षा

आज समाज में महिलाओं की सुरक्षा स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। आजादी के बाद भारत में नारी की सामाजिक स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहा है। स्त्रियों को दी स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया था, उसे पुनः प्राप्त हो रही है। उसके संबंध में पुरुषों का दृष्टिकोण बदल रहा है। तथा उनकी मान्यताएं भी बदल रही है। महिलाओं की शिक्षा के प्रति लोगों की मानसिकता बदल रही है।

जब हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। जब 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ तो स्त्रियों को समानता का अधिकार दिया गया। 1948 में गठित राधाकृष्णन आयोग ने स्त्री शिक्षा के संबंध में अनेक सुझाव दिए जिनमें मुख्य थे- “स्त्रियों के लिए शिक्षा के अधिक अवसर उपलब्ध कराए जाएं, बालिकाओं के लिए उनकी रुचि और आवश्यकता अनुसार पाठ्यक्रम तैयार किए जाएं, और उनके लिए शैक्षिक एवं व्यवसायिक निर्देशन की उचित व्यवस्था की जाए।

इसके बाद 1952 -1953 मैं माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन हुआ। इसके अंतर्गत स्त्री शिक्षा के प्रयास के लिए सुझाव देते हुए कहा गया कि गृह विज्ञान की शिक्षा के लिए विशेष विद्यालय तथा आवश्यकतानुसार बालिकाओं के लिए अलग विद्यालय खोले जाए।

1958 में भारत सरकार ने श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति का गठन किया। जिसे समिति की अध्यक्षता के नाम दुर्गाबाई देशमुख समिति कह के पुकारा जाता है। इस समिति का मुख्य कार्य स्त्री शिक्षा से संबंधित विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करके उनके समाधान हेतु सुझाव देना था। समिति ने 1959 में अपना प्रतिवेदन भारत सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया।

निष्कर्ष

आज हमारे देश में प्राचीन काल की अपेक्षा महिलाओं की शिक्षा स्तर में बहुत सुधार हुआ है। आज हमारे देश में महिलाओं को उचित शिक्षा तथा सम्मान मिल रहा है। और समाज के पुरुषों को महिलाओं के प्रति और भी जागरूकता लाने की आवश्यकता है। महिलाओं के बिना हम इस समाज की कल्पना नहीं कर सकते। महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है।

महिलाएं शिक्षित होगी तभी हमारा समाज शिक्षित होगा और एक शिक्षित समाज एक देश के लिए बहुत ही गर्व की बात है। हमें महिला शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। और धार्मिक परंपराओं को नजरअंदाज करते हुए महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए तथा बच्चों के लिए प्रेरित करना चाहिए।

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