शहीद उधम सिंह पर निबंध – Essay On Udham Singh in Hindi

13 मार्च, 1940 का दिन था। लन्दन के सेक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल एशियन सोसाइटी की ओर से विश्व स्थिति और अफगानिस्तान के विषय पर एक गोष्ठी हो रही थी। इसमें अन्तिम वक्ता जनरल सर माइकेल  ओ डॉयर थे।

उनके भाषण के सभा समाप्त हो गई। उसी समय सभा में एक भारतीय नौजवान उठा और उसने अपने रिवालवर से जनरल डॉयर के सीने में कई गोलियाँ उतार दीं। गोलियाँ लगते ही जनरल डॉयर गिर पड़ा।

गोलियों की आवाज सुनते ही हॉल भगदड़ मच गई और हर कोई अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगा। उस नौजवान को जब यह विश्वास हो गया कि जनरल डॉयर मर चुका है तब वह शान्त भाव से धीरे-धीरे चलता हुआ मुख्य द्वार पर आ गया और स्वयं को ब्रिटिश सार्जेन्ट के सामने गिरफ्तार करा दिया।

शहीद उधम सिंह पर निबंध – Long and Short Essay On Udham Singh in Hindi

यह वीर क्रान्तिकारी उधम सिंह था जिसने विदेश में जाकर भारत में निर्दोष लोगों के हत्यारे को उसी के देश में मौत के घाट उतारकर आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति दी।

शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर, 1899 को जिला संगरूर के सुनाम में सरदार टहल सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन में ही एक के बाद एक उसके माता पिता और बड़ा भाई साधू सिंह परलोक सिधार गये।

उधम सिंह इस दुनिया में अकेला रह गया। इसके चाचा चंचल सिंह ने उसे मेंटुल सिक्स यतीमखाना, अमृतसर में भर्ती करा दिया। वहां उन्होंने बढ़ई का काम सीखा। इसी दौरान उसका संपर्क भगतसिंह और कुछ दूसरे क्रान्तिकारियों से हुआ। क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। वे चार वर्ष मुल्लान और रावलपिंडी की जेलों में ब्रिटिश हुकूमत की यातनाएं सहते रहें। तब उन्होंने अमृतसर में ही एक लकड़ी की दुकान शुरू कर दी और अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया।

भारत पर दमन करने वाले रौलेट एक्ट की वापसी के लिए 6 अप्रैल, 1919 को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया गया। अप्रैल में सभी समुदायों के लोगों ने रामनवमी का त्यौहार राष्ट्रीय एकता पर्व के रूप में मनाया। यह सब देखकर ब्रिटिश हुकूमत बौखला गई। 10 अप्रैल को महात्मा गांधी, डॉक्टर सतपाल और डॉक्टर किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया।

इसके बाद लोगों ने एक शांतिप्रिय जुलूस निकाला। जैसे ही यह जुलूस भण्डारी पुल पर पहुंचा, सेना ने इस पर गोली चला दी जिससे बीस लोग मारे गए और कई घायल हो गए।

इससे जनता भड़क उठी और बगावत रार उतर आई। सरकारी सम्पत्ति की लूट पाट, तोड़ फोड़ और आगजनी जैसी घटनाएं हुई। विदेशी शासकों के दमनकारी कानूनों का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल, 1919 जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।

तभी जनरल डॉयर ने सेना के साथ जलियांवाला बाग में एक तंग गली में प्रवेश करके अचानक निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरु कर दी। भीषण गोलीबारी से 500 लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए। इसके साथ ही पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया। जिस समय जनरल डायर खून की होली खेल रहा था, उस समय उधम सिंह बाग में अपने दूसरे साथियों के साथ मिलकर लोगों को पानी पिलाने की सेवा कर रहे थे। इस कल्लेआम ने उधम सिंह के दिल में गहरा घाव कर दिया और उन्होंने इस कल्लेआम का बदला लेने की कसम खाई।

जनरल डायर रिटायर होने के बाद वापस लन्दन चला गया। उधम सिंह के मन में बदले की आग धक धक कर जल रही थी। वह छिपते छिपाते कई देशों से होते हुए लन्दन जा पहुंचे और वहां इंडिया हाउस में रहने लगे।

आखिर उसे अपनी कसम पूरा करने का मौका 13 मार्च 1940 को मिल गया तब उन्होंने लन्दन के सेक्शन हॉल में जनरल डॉयर को गोलियों से उसी प्रकार भूना जैसे उसने निहत्थे लोगों को गोलियों से भूना था। अंग्रेज सरकार ने उन पर मुकदमा चलाया और उसे फांसी की सजा दी।