ग्रीष्म शिविर पर निबंध – Essay On Summer Camp in Hindi

ग्रीष्म शिविर एक ऐसा कार्यक्रम हैं जो आम तौर पर बच्चों और किशोरों के लिए आयोजित किया जाता है।ऐसे शिविर ज्यादातर गर्मियों की छुट्टियों में लगाये जाते हैं। ऐसे शिविरों का आयोजन ज्यादातर सेहर के बाहरी इलाको या पहाड़ो वाली जगहों पर होता है। पर ये स्कूल परिसर या ऐसी किसी बड़े ओरिसर में भी आयोजित करवाया जा सकता है। ऐसे शिविरों में कैंपिंग, संगीत, नृत्य, नई भाषाएं इत्यादि के प्रति बच्चो का रुझान विकसित होता है। इसका शुल्क 2000- 5000 के बीच होता है।

ग्रीष्म शिविर पर निबंध – Long and Short Essay On Summer Camp in Hindi

मेरी छोटी बहन जो कि नौंवी कक्षा को छात्र है उसके  विद्यालय से भी ग्रीष्म शिविर ले जाने का अवसर बना। मेरी छोटी बहन भी इस शिविर में भाग लेना चाहती थी। उसने घरवालों के समक्ष अपनी इच्छा प्रकट की। हालांकि शुरुवात में मेरी माता ने थोड़ी आनाकानी की क्योंकि उन्हें लगा मेरी बहन कही भी अकेले आने जाने के लिए अभी बहुत छोटी है, परंतु फिर मेरे पिताजी और हमारे समझाने पर आखिरकार वे मान गयी। उसे 3000 रुपये की राशि विद्यालय में जमा करवाना था।

उसने वह राशि जमा करवा दी। हम लोगो ने मिलकर अपनी बहन के जरूरत का सामान अटैची में लगा दिया। यह शिविर हमारे घर से 2 घंटे दूरी में स्तिथ कोलकाता शहर के बाहरी इलाके में एक परिसर में आयोजित किया गया था।

शिविर में जाने का दिन आ गया। मेरी बहन को हम लोगो ने उसके विद्यालय में छोड़ा क्योंकि यही से विद्यालय द्वारा वाहनों का व्यवस्था की गई थी जो सभी विद्यार्थियों को उनके गंतव्य तक लेकर जाने वाली थी। इस तरह की शिविरों में मोबाइल, लैपटॉप जैसी उपकरणों को ले जाने की मनाही होती है। अतः हमने विद्यार्थियों के साथ जा रहे शिक्षको का नंबर ले लिया ताकि हाल चाल जान सके।

ये शिविर 10 दिनों के लिए आयोजित किया गया था। हम सब घर वापस आ गये पर हम सब बेसब्री से दस दिन बीतने की प्रतीक्षा कर रहे थे। ऐसे शिविरों का अनुभव हम में से  किसी के पास भी नही था। इसलिए हम सब उसके लौटने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे ताकि हम भी कुछ नूतन अनुभवों का ज्ञात हो।

आखिरकार हमारा इंतज़ार समाप्त हुआ। हम उसे लेने निश्चित समय पर उसके विद्यालय पहुँच गए । विद्यार्थियों के वाहनों को आने में थोड़ी देरी हो रही थी इसलिए हम वही विद्यालय परिसर में प्रतीक्षा करने लगे। करीब बीस मिनट बाद 2 वाहन आते दिखाई पड़े। हम उसे घर लेकर आ गए। काफी थकान होने की वजह से मेरी बहन ने स्नान किया और आराम करने चली गयी। शाम को उसने हमें अनुभवों के बारे में बताया जिसे सुनकर हम सबका मन रोमांचित हो उठा।

उसने बताया कि वहाँ पर सभी बच्चों को प्रातः काल 6 बजे उठा दिया जाता था। फिर सभी बच्चे व्यायाम करते थे आधे घंटे। उसने बताया कि परिसर में काफी हरियाली थी और सुबह का मौसम मन प्रस्सनचित करने वाला होता था।। व्यायाम के पूर्व सभी बच्चे स्नान कर कर नष्ट के लिए एकत्रित होते थे। उसके बाद बच्चों की रुचि के हिसाब से उन्हें संगीत, नृत्य, तरह तरह की मिट्टी की कलाकृतियाँ बनाना इस तरह के कार्यो के अनुरूप विभाजित कर दिया जाता था।

दिन में धूप तेज़ होने की वजह से ये सब कार्यों का चयन किया गया था ताकि ये सब कार्य परिसर के अंदर ही पूर्ण किये जा सके। करीब 12.30 तक दोपहर के भोजन के लिए सभी बच्चे फिर से एकत्रित हो जाते थे। दोपहर के खाने के बारे में उसने बताया कि उसे पौस्टिक आहार के बारे में बहुत कुछ जानने मिला।

उन लोगो को यह भी बताया गया कि किस तरह के भोजन को रात के बजाय दिन में करने से ज्यादा फायदा होता है। भोजन के पश्चात सभी बच्चे कई तरह के खेल जैसे लूडो, कैरम बोर्ड का आनंद लेते थे पर दोपहर भोजन के बाद सोने की सख्त मनाही थी। शाम होते ही पहले बच्चों को कुछ हल्का फुल्का जैसे पाव रोटी मक्खन, जैम, बिस्कुट  और दूध दिया जाता था। उसके बाद हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता था जैसे बिना गैस जलाये कैसे खाने की कुछ चीज़ें बन सकती है, धागे और रंग से कैसे मनमोहक आकृतियां बनाई जा सकती हैं इत्यादि।

मेरी बहन ने ऐसी कई चीज़ें बनाई और उन्हें साथ भी लेकर आई थी जैसे उसने कागज़ के टुकड़ों से चित्र बनाया था, पेड़ के पत्तो से कुछ कलाकृतियां बनाई थी इत्यादि। उसने बताया कि एक शाम को एक जादूगर भी बुलाया गया था और बच्चों को खूब मजा आया। उसने तरह तरह के जादू दिखा कर बच्चों को आनन्दित कर दिया था। मेरी बहन ने बताया कि एक बच्ची अपने माँ पिताजी को याद करके रोने लगी थी और घर वापस जाने की जिद करने लगी थी।

तब जो अध्यापक और सहायक बच्चों के साथ गए थे उनमें से एक ने बड़ी ही समझदारी और सूझबूझ से काम लिया और बच्ची को बड़े प्यार और संयंम से समझाया और उसके माँ पिताजी से दूरभाष द्वारा उसकी बात भी करवाई। आखिरकार वो बच्ची मान गयी और उसने भी वहाँ खूब आनंद लिया। रात्रि के समय ठीक नौ बजे सभी बच्चे सोने के लिए अपने अपने जगह पर पहुँच जाते थे।

उसका ये अनुभव सुनकर मुझे यह एहसास हुआ की ये ग्रीष्म शिविर बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकार के लिए कितना लाभप्रद साबित हो सकता है। इससे बच्चों में आत्मनिर्भरता आती है। शिविर में हालांकि अध्यापक और सहायक मौजूद होते है फिर भी बच्चों को अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करनी होती है,

वे अपना सामान यथोचित स्थान पर रखते है क्योंकि उन्हें पता है कि अगर उनका समान खो गया तो उनके परेशानी का सामना करना होगा। इन सब की वजह से वे जिम्मेदार बनते हैं। उनका जीवन एक अनुशाषित शैली में ढलता है। वयायाम, खेल कूद इत्यादि से उनका शारीरक विकास भी होता है, उन्हें प्रदूषणरहित हवा की बजाय शुद्ध हवा मिलती है जिससे उनके फ़ेपडे और मजबूत होते हैं

जिन बच्चों के माँ बाप दोनो कार्यरत है उनके लिए ऐसे शिविर बिशेषकर फायदेमंद साबात होते हैं क्योंकि बच्चों कुछ समय के लिए अकेले रहना भी सीखते हैं। इसके लाभ के आगे इसका मूल्य काफी तुच्छ प्रतीत होता है। अतः हमें अपने बच्चों को ऐसी शिविर में जाने हेतु प्रोत्साहित करना चाइए जिससे उनका पूर्णतः विकास संभव हो सके।