लोकाभिरामम् रणरङ्गधीरम्,
राजीवनेत्रम् रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपङ् करुणाकरन् तम्,
श्रीरामचन्द्रं शरणम् प्रपद्ये ।।
उनके चरित्र का वर्णन करना जो धर्मात्मा,सत्यप्रतिज्ञ एवं मर्यादापुरुषोत्तम है मेरे लिए कदापि संभव नही है। राजीवनेत्रं, कमलनयन भगवान श्री राम के चरित्र का वर्णन करने में तो बड़े बड़े विद्वान दांतों तले अंगुली दबा लेते है उनक्का वर्णन मुझ जैसे तुच्छ प्राणी किस प्रकार कर सकता है। उनका जीवन धरती में उनका राम रूप में अवतार प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।
भगवन राम श्री रामचंद्र पर निबंध – Long and Short Essay On Shri Ram in Hindi
भगवान राम विष्णु के सातवें अवतार कहे जाते है। त्रेता युग में महा भयंकर राक्षसों का वध करने के लिए इन्होंने राम रूप में धरती पर अवतार लिया था। गीता में लिखा है –
याद याद ही धर्मेशयः ग्लानिर्भवति भारतः
अद्भुदय थामस अधर्मेशय
तदात्मानं सृजम्भे
पवित्र ने साधु ने विनाशाय चतुस्कृतं
धर्म संस्थपनाथय सैम भावमय युगे युवे
जब -जब धर्म की हानि होती है ,संसार में पाप अपनी चरम सीमा पर होता है,तब भगवान ऋषि मुनियों के उद्धार करने और धर्म की पुनः स्थापना कर के के लिए संसार में अवतरित होते है।
रावण के अत्याचारों से जब समस्त संसार त्राहि-त्राहि करने लगा तब श्री हरि विष्णु ने राम रूप धारण करके धरती पर प्रकट होने का निर्णय लिया और तब वे शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में अयोध्या के राजा महाराज दशरथ व महारानी कौशल्या के पुत्र के रूप में जन्मे। इनके संग जो भ्राता आये लखन,भरत,शत्रुघ्न कहाये। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी।
देवी कौशल्या के पुत्र भगवान राम थे ,देवी सुमित्रा ने दो सुंदर पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम लक्ष्मण और शत्रुघ्न था और राजकुमार भरत देवी कैकयी के पुत्र थे। श्री राम ने बाल्य काल में अनेक प्रकार की शिशु लीलाएं की और अपनी तीनो माताओ को ममता का सुख उठाने का अवसर प्रदान किया। इसके बाद चारों भाइयों ने अयोध्या के राजगुरु गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की।
उसके उपरांत उन्हें महऋषि विश्वामित्र अपने साथ ले गए महऋषि ने श्री राम और लक्ष्मण को दिव्यास्त्र प्रदान किये तदुपरांत रघुनंदन भगवान श्री राम ने तड़का,सुभाउ और उनकी समस्त सेना का वध किया। मारीच को उन्होंने बिना फल के बाण से सौ योजन डोर गिरा दिया।
इसके पश्चात वे ऋषि विस्वामित्र के साथ मिथिला पहुचे और वहां राजा जनक के स्वयंवर का प्रण पूरा कर जनकनन्दिनी सीता से विवाह किया। देवी सीता महाराजा जनक और देवी सुनैना की पुत्री थी। वे महामाया लक्ष्मी थी और वास्तव में धरती से जन्मी थी। श्री राम के साथ उनके अन्य तीन भाइयों का भी विवाह देवी सीता की बहनों के साथ हुआ। विवाह पूर्ण होने के बाद वे जब अयोध्या लौटे तो कुछ महीने सुख से व्यतीत करने के पश्चात राजा दशरथ ने राजकुमार राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया ।
यह बात राजा दशरथ की चोटी रानी कैकयी की दासी मंथरा के मन को नही पसंद आई और उसने रानी कैकयी को भड़काया और रातों रात राजकुमार राम के राज्याभिषेक को रुकवा दिया। मंथरा की बातों से प्रभावित हो रानी कैकयी ने राजा दशरथ से दो वर मांग लिए । अपने पहले वर में उन्होंने श्री राम के स्थान पर भरत का राज्याभिषेक मांगा और दूसरे में श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास।
उनके इन वचनों को सुनकर राजा के हृदय को बहुत गहरी चोट लगी वे मूर्छित हो कर धरती पर गिर पड़े। भगवान राम को जब इस बात का ज्ञात हुआ तब उन्होंने मुस्कुरा कर अपने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य किया और उसी समय वन की ओर प्रस्थान किया। क्योंकि रघुकुल की सदैव ही यह रीति रही है “प्राण जाए पर वचन न जाये”।
जब श्री राम ने वनवास के लिए प्रस्थान किया तब उनके मष्तिस्क पर जरा भी शिकन नही थी। उन्होंने बिना कोई प्रश्न किये अपने पिता व माता की आज्ञा का पालन किया । अपने इस कार्य द्वारा उन्होंने समस्त मानव जाती को यह शिक्षा दी है कि माता पिता की आज्ञा का पालन सदैव करना चाहिए,जो अपने माता-पिता का अनादर करते है वे मनुष्य कभी भी ईश्वर की कृपा नहीं पाते है।
वनवास में श्री राम के साथ उनकी भार्या देवी सीता और भाई लक्ष्मण भी गए थे। उनके छोटे भाई लक्ष्मण सदैव उनके साथ परछाई की भांति रहते थे। वे शेषनाग के अवतार थे। वनवास में श्री राम ने अनेक कठिनाईयों का सामना किया एक सामान्य पुरुष की भांति जीवन के हर संघर्षों को अपनाया साथ ही उनकी भेंट अनेको ऋषि-मुनीयों से हुई। रघुनंदन राम ब्राह्मणों का बहुत आदर करते थे।
वनवास के अंतिम वर्ष में लंका के राजा रावण ने श्री राम की पत्नी का छल से हरण कर लोए और उन्हें लंका ले गया। तदुपरांत भगवान राम ने वैन-वैन भटक कर देवी सीता की खोज की इस बीच वे शबरी से मिले जिनके द्वारा उनकी मित्रता किष्किंधा के राजा महारक सुग्रीव से हुई। फिर महाराज सुग्रीव तथा उनकी वानर सेना की सहायता से श्री राम ने समुद्र पार पल बनाया और लंका पहुच कर दुष्ट, अधर्मी,अनाचारी रावण और उसकी समस्त राक्षस जाती का वध किया और देवी सीता को मुक्त करवाया।
इसके बाद वे आयोध्या आये और अयोध्या वासियों ने बड़े धूम धाम से उनका सवागत किया। पुते नगर को दीपों से जगमग कर दिया गया था,सभी लोग अत्यधिक प्रसन्न थे। अतः इस दिन को हर वर्ष भारत में दीपावली के रूप में मनाया जाता है। यह बुराई पर आचाई की जीत को सबोधित करने का दिन है।
भगवान राम का चरित्र एक आदर्श चरित्र है। मानव के रूप में आकर प्रभु ने मानव का कल्याण किया। भाई, पुत्र,पति और पिता हर नाते का सम्मान किया। मर्यादा का पाठ पढ़ाया और फिर जग से प्रस्थान किया। आज कल के मुनष्य विशेष कर युवा पीढ़ी छोटी सी मुसीबत में ही हार मान जाती है,आत्महत्या जैसा कानूनी अपराध करने को तत्पर हो जाती है,जब भी दुख या परेशानी अधिक हो जाती है तो वे मदिरापान करने लगते है।
इन सबके लिए भगवान श्री राम एक प्रेरणा स्त्रोत है जिन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन में सिर्फ कष्टों का ही सामना किया परंतु कभी भी हिम्मत और साहस को नही छोड़ा। आप स्वयं विचार कीजिये किस प्रकार एक राजकुमार जिसका प्रातःकाल राज्याभिषेक होना था उन्हें रातों रात बिना किसी अपराध के वनवास मिल जाता है और इतना ही नही इसके उपरांत उनकी पत्नी का हरण हो जाता और उनको देवी सीता के विरह में वन-वन भटकना पड़ता है। यदि वे चाहते तो रावण से युद्ध करने के लिए अयोध्या की सेना बुला लेते परंतु उन्होंने ऐसा नही किया अकेले दम पर युद्ध किया और विजय हासिल की।
वर्तमान समय में मित्र मित्र ने होकर शत्रु अधिक है,इस संदर्भ में भी भगवान राम ने मित्रता का उदहारण मानव जाति को दिया है। सुग्रीव तथा विभीषण के साथ उनकी मित्रता उच्चकोटि की मित्रता का स्थान पाती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कभी भी जाति के नाम पर भेद-भाव नही किया वे सबको समान समझते थे। उनकी नज़र में कोई-चोट या बड़ा नही था।
इसका उदहारण भी रामायण में प्राप्त होता है । भगवान राम ने अपने मित्र निषाद राज गुह का सम्मान किया उन्हें अपने कंठ से लगाया,केवट की भक्ति पर तो वे बलिहारी है और जो तृप्ति उन्हें सबरी के बेर खा कर हुई वो तृप्ति उन्हें अवध और मिथिला के छत्तीस व्यजनों में भी प्राप्त नही हई।
श्री राम निश्चित रूप से मर्यादापुरुषोत्तम है। उन्होंने सदैव ही मर्यादा में रह कर हर कार्य किया और धर्म के पथ पर आजीवन चलते रहे। पति के रूप में इनके चरित्र का वर्णन शब्दो द्वारा संभव नही है। श्री राम ने सदैव देवी सीता का सम्मान किया । उन्होंने देवी सीता को एक पत्नीव्रत का वचन दिया था और उस वचन का पालन भी किया। श्री राम के लिए सीता के अतिरिक्त विश्व की हर स्त्री पराई थी।
वे विवाह का सम्मान करते थे ,पति-पत्नी को विवाह के दो स्तम्भ मानते थे। उन्होंने सम्पूर्ण जगत को नारी का सम्मान करने की सीख प्रदान की है साथ ही रावण का वध करके यह भी सिद्ध किया है कि जब -जब संसार में नारी का अपमान होगा,उसका तिरस्कार होगा तब -तब अधर्मियों और अनाचारियों का नाश होना निश्चित है। राम और सीता अलग -अलग नही है वे एक ही है। इसलिए तो आज के युग सदैव ही उनके नाम को एक साथ जोड़कर कहा जाता है”सीताराम”।
श्री राम के चरित्र का वर्णन सर्वप्रथम महाऋषि वाल्मीकि ने किया है। इन्होंने रामायण की रचना की जो संस्कृत में लिखित है। तत्पश्चात गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम कथा का गायन किया है और और फिर तो कई लोगों ने श्री राम के चरित्र का वर्णन अपने-अपने अनुसार किया। श्री राम का चरित्र अपार है इसका वर्णन करना हर किसी के लिए संभव नही है। राम कथा की अविरल धारा सदैव ही सारे कालिमलो को शुद्ध करेगी।
उनके जीवन से प्रत्येक मनुष्य यदि कुछ सीखता है कुछ ग्रहण करता है तो उसका जीवन सफल हो जाता है। भगवान श्री राम मेरे हृदय के बहुत करीब है । मुझे विशेष रूप से इनसे बहुत लगाव है,समस्त देवी-देवताओं के दर्शन मुझे इनमे होते है। राम एक ऐसा पथ है जिसपे राम ही चले सदा क्योंकि न उनके जैसा कोई हुआ है और न होगा।
राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने अपने महाकाव्य साकेत के प्रारंभ में यह सत्य ही लिखा है कि-
राम तुम्हारा वृत स्वयं काव्य है,
कोई कवि बन जाये सहज संभाव्य है।।