नेल्सन मंडेला पर निबंध – Essay On Nelson Mandela in Hindi

हर देश की अपनी एक पहचान होती है जो पहचान उसको वहां रह रहे देशवासी के जरिए मिलती है, अगर कोई कुछ अच्छा काम करता है तो उस काम के कारण उस इंसान और उस देश की वाह- वाही पूरे विश्व में की जाती है, इसी तरह अगर कोई इंसान कोई बुरा काम करता है तो ना सिर्फ उस इंसान की बेइज्जती होती है बल्कि इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ता है ।

ठीक उसी तरह हर देश के देशवासी यह चाहते हैं कि उनके देश का नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो और साथ ही उस देश तो हर प्रकार की तरक्की और सफलता मिले, लेकिन करोड़ों लोगों की आबादी में अक्सर कुछ ऐसा होता ही है जो कि पूरे देश में एक गर्म मुद्दा बन जाता है।

और अगर वह मुद्दा सही हो तो लोग उसका समर्थन करते हैं और गलत हो तो लोग उसका विरोध करते हैं इस दौरान विरोध करने वाले विरोध और समर्थन देने वाले समर्थकों के दो गुट बन जाती है और यह कब आंदोलन का रूप ले लिया कहना मुश्किल हो जाता है । लेकिन हमारे इतिहास में कुछ आंदोलन ऐसे हैं जो आज तक लोगों की जुबान पर हैं और उस आंदोलन के आंदोलनकारियों को लोग कभी नहीं भूलते बल्कि बेहद इज्जत और आदर से याद करते है।

जिस तरह भारत देश में कई वीर योद्धा और क्रांतिकारियों ने आंदोलन लड़कर अंग्रेजों को धूल चटा था उसी तरह “अफ्रीका देश के गांधी नेल्सन मंडेला” ने अपने आंदोलन के जरिए इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया । आज इस ब्लॉग में हम आदरणीय नेल्सन मंडेला के बारे में आपको बताएंगे और उनसे जुड़े हुए कई पहलुओं पर रोशनी डालेंगे, आशा करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर की जानकारी आपको पसंद आएगी और अगर आपको जानकारी पसंद आए तो अपने मित्रों और परिवार वालों के साथ जरूर शेयर करें ।

नेल्सन मंडेला पर निबंध – Long and Short Essay On Nelson Mandela in Hindi

नेल्सन मंडेला का पूरा नाम ” नेलसन रोलीहल्ला मंडेला” हैं, इनका जन्म 18 जुलाई 1918 को अफ्रीका के एक छोटे से गांव टेंबू में हुआ था खास बात यह है कि आदिवासी समुदाय के प्रमुख हेनरी मंडेला के घर हुआ था । मण्डेला की प्रारम्भिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल में तथा स्नातक की शिक्षा हेल्डटाउन में हुई थी, जहाँ अश्वेतों के लिए एक विशेष कॉलेज था ।

इसी कॉलेज में मण्डेला की मुलाकात ‘ऑलिवर टाम्बो’ से हुई, जो जीवनभर उनके दोस्त और सहयोगी रहे । सन् 1940 तक नेल्सन मंडेला ने अपने राजनीतिक विचारों के कारण अपने कॉलेज कैंपस में लोकप्रियता अर्जित कर लिया था  जिसके कारण से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया और उसके बाद वह अपने घर से भाग कर जोहांसबर्ग चले गए जहां उन्होंने सोने की खदान में चौकीदार की नौकरी की और वही के बस्ती में रहने लगे । इसके बाद उन्होंने एक कानूनी फर्म में लिपिक की नौकरी की । मण्डेला ने वाटर सिसलु, वाटर एल्बरटाइन तथा कुछ अन्य दोस्तों के साथ मिलकर ‘अफ्रीकन कांग्रेस यूथ लीग’ का गठन किया तथा वर्ष 1947 में मंडेला इस संगठन के सचिव चुने गए ।

नेल्सन मंडेला, यूथ काग्रेस अध्यक्ष

सन 1951 में नेल्सन मंडेला को पूरे समर्थन के साथ यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया जिसके बाद उन्होंने ठीक 1 साल बाद यानी कि 1952 में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए एक कानूनी फर्म की स्थापना की, किन्तु वर्गभेद के आरोप में उन्हें जोहांसबर्ग से बाहर भेज दिया गया । प्रतिबंध लगने के बावजूद वह अश्वेत लोगों के स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते रहे और इस दौरान तकरीबन 156 नेता को गिरफ्तार किया गया जिसमें से नेलसन मंडेला एक थे ।

आखिरकार यह आंदोलन नेतृत्वविहीन हो गया और नेलसन के साथ तकरीबन 56 लोगों को रिहा कर दिया गया, लेकिन सरकार के गलत रवैया के कारण लगातार नेल्सन मंडेला को जनता के तरफ से पूरा समर्थन मिल रहा था, सरकार और अश्वेत जनता दो गुटों में बंट गई थी और सरकार ने इस दौरान कुछ ऐसे बिल पास किए जो की अश्वेत जनता के लिए बेहद परेशानी खड़ा करने वाली थी, जिसका नेल्सन मंडेला ने जमकर विरोध किया लेकिन विरोधियों पर सरकार ने गोलियां चलवा दि ।

नेल्सन मंडेला एक क्रांतिकारी

वक्त की नजाकत को देखते हुए, एएनसी ने हथियारबन्द लड़ाई लड़ने का फैसला किया और लड़ाके दल का नाम ‘स्पीयर ऑफ द नेशन’ रखा गया तथा नेल्सन को इसका अध्यक्ष बनाया गया। अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए नेल्सन देश से बाहर चले गए तथा अदीस अबाबा में अपने आधारभूत अधिकारों की माँग करने लगे ।

जब नेल्सन मंडेला वापस अफ्रीका लौटे तो उन्हें 5 साल की सजा सुनाई गई, और सजा की वजह भी ऐसी थी जिसका कोई वजूद नहीं था क्योंकि उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने असंवैधानिक तरीका को अपनाते हुए देश छोड़ा था । इस दौरान सरकार ने कई जगह छापामारी की और नेल्सन मंडेला समेत कई लोगों को गिरफ्तार करते हुए उम्र कैद की सजा सुनाया गया ।

नेल्सन मंडेला और काले पानी की सजा

उम्र कैद की सजा सुनाने के बाद उन्हें रॉबीन द्वीप भेजा गया जिसे दक्षिण अफ्रीका का काला पानी माना जाता है, इसका प्रमुख कारण यह था कि सरकार नेल्सन मंडेला को क्रांतिकारी मानने लगी थी और ऐसे लोगों को उस वक्त सिर्फ दंड मिलता था और यही कारण था कि नेल्सन मंडेला जैसी महान लोगों को काले पानी की सजा सुनाई गई ।

इस दौरान नेल्सन मंडेला ने काले पानी की सजा में 27 वर्ष बिताया लेकिन सन् 1989 नेल्सन मंडेला और तमाम अश्वेत लोगों के लिए उम्मीद का किरण बनकर आया, अफ्रीका के राजनीतिक सत्ता में आशावादी परिवर्तन शुरू हुआ और फल स्वरुप एफडब्लू क्लार्क देश के प्रधान बने । उन्होंने अश्वेत दलों पर लगे सभी प्रतिबन्ध हटा लिए तथा आपराधिक मामला चलने वाले बन्दियों को छोड़ सभी को रिहा कर दिया ।

नेल्सन मंडेला की जिंदगी का सूर्योदय

नेल्सन मंडेला की जिंदगी का सूर्योदय 11 फरवरी 1990 को हुआ जब उन्हें पूरी तरह से आजाद कर दिया गया, सन 1994 में वह पहला लोकतांत्रिक चुनाव में पूरे समर्थन के साथ देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने । इस दौरान नेल्सन मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं, और भारत देश के द्वारा सन् 1993 में भारत रत्न’ से सम्मानित किया ।