आवश्यकता आविष्कार की जननी है पर निबंध

आवश्यकता आविष्कार की जननी है कहने को भले एक कहावत है पर वास्तव में यही जीवन की सच्चाई है। जो जन्म से लेकर मरने तक हमारे साथ रहती है।  हम अनेक प्रकार की सुविधओं से घिरे हुए है और ये सुवधाएं ही वास्तव में हमारी आवश्कताएँ हैं। जैसे मोबाइल यह हमारे वर्तमान के आवश्यकता है , और यह एक प्रकार का आविष्कार भी है। आवश्यकता किसी भी प्रकार की हो सकती है चाहे वो बड़ी हो या छोटी।  समय के साथ हर आवश्यकता का अपना महत्व और मूल्य है। विश्व में जितने भी शोध विज्ञानिको द्वारा किये जाते हैं उसके कारण लोगो का जीवन अत्यंत सरल हो गया।

आवश्यकता आविष्कार की जननी है – Long and Short Essay On Necessity is The Mother Of Invention in Hindi

कसी भी आविष्कार का होना आवश्यकता का रूप ही है।  जब हम कोई कार्य करते है और उसमे कई प्रकार की बाधाओं का सामना करते हैं और वही बाधाये हमारी सोच में परिवर्तन करती हैं और हमें आविष्कार करने की प्रेरणा देती है। हमें मार्ग दिखाती है कि यदि कार्य को शीघ्र करना है तो हमें इस योजना या साधन को अपनाना होगा।  इस प्रकार आविष्कार और आवश्यकता एक दूसरे के पूरक भी है और एक-दूसरे पर आश्रित भी हैं।

प्राचीन काल में  मनुष्य जंगली जानवरो से डरता था तो पहले कहीं छिपकर बैठ जाता था।  धीरे-धीरे उसने औजारों का निर्माण किया , उनके महत्व को समझा और उन औजारों का प्रयोग वह जंगली जानवरों से खुद की सुरक्षा के लिए प्रयोग करने लगा।  इस प्रकार धीरे -धीरे उसकी आवश्कताए भी बढ़ने लगी और दिन प्रतिदिन नई खोज करने लगा।

आवश्यकता ही आविष्कार को जन्म है।  इसका कारण यह है यदि व्यक्ति को कुछ प्राप्त करना है जिससे उसका जीवन सरल हो सकता है तो वह उस वस्तु या साधन को जुटाने का हर संभव प्रयास करता है।

जैसे आदिमानव काल में जब मानव को ठण्ड लगती थी तो वह ठण्ड से ढूंढ़ने का उपाय खोजने लगा सोचने लगा कैसे में इस कड़कती ठण्ड से अपने परिवार की रक्षा कर सकता हूँ।  उसने अचानक दो पथरों को आपस में टकराने पर महसूस किया कि इनसे एक प्रकार की रोशनी उत्पन्न हुई जिसके कारण वातावरण में गर्मी महसूस हुई और उसने आग का आविष्कार किया। अगर मुझे जीवित रहना है तो जीवित रहने के साधन मुझे ही ढूढ़ने होंगे।  यही आवश्यकता आविष्कार को उत्पन्न करने का कारण बनती है।

विभिन क्षेत्र में बदलाव

आज हर क्षेत्र प्रकति के पथ पर अग्रसर हो रहा है।  इसके कारण यही है कि हर क्षेत्र अपने कार्य को आसान और अधिक सरल बनाने में प्रयास   करने में लगे हुए है। जिसके कारण अनेक प्रकार के शोध दिन प्रतिदिन होते रहते हैं। यदि चिकत्साजगत की बात करें तो इस जगत ने आदिकाल से लेकर अब तक इतनी प्रगति कर ली है कि आज बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज संभव है और मृत्यु दर को कम  किया गया है।

भूत , वर्तमान और भविष्य का सम्बन्ध

हमारा भूतकाल , वर्तमान काल और भविष्य सब आविष्कारों पर टिका  हुआ है , भूतकाल आविष्कार की नींव है , तो वर्तमान उसका उपयोग और मूल्यांकन तथा भविष्य उसका बेहतर प्रयोग है ताकि हमारा जीवन बिना किसी बाधा की तेज गति से निरंतर आगे बढ़ता रहे। कई आविष्कार इतने अधिक प्रभावी है जिसके कारण न केवल हमारा दैनिक जीवन न केवल सरल हुआ बल्कि अतयंत आनंदित भी हो गया। जैसे मोटर वाहन का आविष्कार जिसके कारण आज दूर तक्क की यात्रा करने में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता और हम अपने गंतव्य स्थान पर समय पर पहुंच जाते है।

इसी प्रकार विधुत अथवा बिजली का आविष्कार मानव जाति के लिए वरदान के समान है।  बिजली के आविष्कार ने मानव जीवन में एक क्रांति को उजागर किया है। आज हम सौर ऊर्जा का भी प्रयोग अपने दैनिक कार्यो में करने लगे है , इन सबका श्रेय आविष्कार को ही जाता है और जैसे -जैसे हमारी अवश्यकताओं का विस्तार हुआ वैसे वैसे नए-नए प्रकार के शोध कार्यो के फलस्वरूप विभन्न प्रकार के आविष्कार का जन्म हुआ।

विध्वंसकारी रूप

जहाँ एक तरफ आविष्कार हमारे लिए वरदान है वही दूसरी और विनाश का कारण भी है।  कुछ आतंकी अपने निजी स्वार्थ के लिए विज्ञानिको के शोध का गलत प्रयोग करते है जिसके कारण आपसी मित्रता को  हानि पहुंचते है।  जैसे परमाणु बेम , विभिन प्रकार की तोपों का आविष्कार और अनेक प्रकार के विनाशकारी साधनो का शोध।  जिसके कारण समस्त मानव सभ्यता का अंत किया जा सकता है। इस प्रकार आविष्कार मानव जाती अथवा समस्त संसार के लिए एक अभिशाप भी है।

नए विचारों और नए शोधो का हो रहा आविष्कार

अहम को छोड़ कर उनका प्रचार

अपने स्वार्थ के अंधकार में

मत कर अत्याचार और अनाचार

अंत ही आरम्भ है

कहते है किसी सभ्यता का यदि अंत होता है तो वास्तव में वह उसका नया आरम्भ ही है , जैसे आदिकाल का अंत  हुआ तो पाषाण युग  आया और धीरे -धीरे आविष्कार होने पर मानव सभ्यता और विकसित हुई  और एक नए समाज का निर्माण हुआ।  जैसे जब किसी की मृत्यु होती है तो वो आत्मा दुबारा जन्म लेती है , एक नए शरीर में उसका वास होने लगता है , इस प्रकार यह शरीर का अंत होता है  , आत्मा एक शरीर त्याग कर दूसरे शरीर को ग्रहण करती है।

निष्कर्ष

जैसा की हमने पहले बताया कि आविष्कार वरदान है और अभिशाप भी।  किसी स्वार्थ में आकर हमें अपने जीवन और दूसरे के जीवन से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए यही हमारी संस्कृति है और मानव धर्म भी है।  इसके लिए आवश्यक है हम शुरू से ही वर्तमान पीढ़ी में सकरात्मक दृष्टिकोण विकसित करें और उनके विचारों में सदभावना का संचार करें ताकि हमारे साथ-साथ समस्त मानव सभ्यता का कल्याण हो सके.