प्रिय लेखक पर निबंध – Essay On My Favourite Writer In Hindi

भारत एक कला पूर्ण देश है। यहाँ का इतिहास सदैव यह दर्शाता है की भारत में सदा ही कला और कलाकारों की कीर्ति ऊँची रही है। यहाँ कई गायक, कविता वाचक, नृत्य में निपुण तथा चित्रकारी की कला से पूर्ण लोगों ने अपनी अपनी कला से यहाँ स्थान बनाया है। भारत वर्ष में लेखनी भी ऐसी ही एक कला है जिसका सदैव आदर होता रहा है क्योंकि यहाँ कई महान लेखकों ने जन्म लिया है।

उनमें से मेरे सबसे पसंदीदा और प्रिय लेखक रहे है मुंशी प्रेमचंद। हिंदी साहित्य के जगत में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उन्होंने कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में अतुलनीय हिंदी साहित्य का वर्णन किया है इसलिए उन्हें उपन्यास सम्राट भी कहा जाता है।

प्रिय लेखक पर निबंध – Long and Short Essay On My Favourite Writer in Hindi

मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे लेखक है जिन्हें लगभग सभी वर्ग और उम्र के लोग पढ़ते है । वे सामान्य जनों की भावनाओं और परिस्थितियों को भली भांति समझते है और उसी को लेखनी के रूप में अपनी कहानियों में लिखते है,इसलिए लोंगो को उनसे जुड़ने में आसानी होती है और यही कारण है की वे मुझे भी अति प्रिय है।

मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे कवि थे जिनका जीवन भी साधारण मानव के जीवन की तरह ही बीता है तथा उनकी आर्थिक व्यवस्था भी उतनी अच्छी नही थी  फिर भी उन्होंने कभी परिस्थितियों से हार नही मानी। मुंशी प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० में वाराणसी से कुछ मीलों दूर लमही गाँव में उत्तरप्रदेश में हुआ था।

उनके माता का नाम आनंदी देवी था तथा उनके पिता का नाम अजायब राय था। प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था, और उनका विवाह बचपन मे ही करा दिया गया जो उनके अनुरूप नही निकला इसलिये उन्होंने दूसरा विवाह किया। मैट्रिक की परीक्षा के बाद वे पाठशाला में अध्यापक नियुक्त हुए।

इनके घर की आर्थिक स्तिथि ठीक न होने की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी पर बाद में उन्होंने अपनी मेहनत से इंटर और बी.ऐ की परीक्षा पास की और डिप्टी सब-इंस्पेक्टर बने।

असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी तथा साहित्य में आ गये जहाँ  सन १९१४ में आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी ने उन्हें ‘प्रेमचंद’ नाम धारण करवाया।

उसके बाद उन्होंने कई उपन्यास लिखे जिनमें से कुछ तो मेरे पसंदीदा है जैसे की सेवासदन, निर्मला, रंगभूमी, गबन, गोदान इत्यादि। उनकी लेखनी में मुख्य रूप से गाँव में होने वाले त्योहार, वहाँ की परंपरा, गाँव में आई हुई बीमारियाँ तथा उनसे जूझने के तरीके, गाँव में आई हुई बाढ़ और गाँव के सामान्य परिवारों की आर्थिक परेशानियों का बहुत ही सुंदर वर्णन है। प्रेमचंद जी ऐसी भाषा का प्रयोग करते थे जो सहज और सरल हो और लोगों को आसानी से समझ आये ।

उनको पढ़ने पर किसी को भी ऐसा प्रतीत होगा की गाँव का वह दृश्य आँखों के सामने चल रहा है क्योंकि उनके कहानी के पात्रों में बहुत सजीवता होती है।

उनके कुछ मुख्य और प्रचिलित कहानी संग्रह है- मानसरोवर, समर यात्रा, सप्त सरोज,अग्नि समाधि ,प्रेम गंगा,सप्त समना इत्यादि। इसके अतिरिक्त उन्होंने संपादन जैसे की ‘मर्यादा’, ‘माधुरी’, ‘हंस’ और निबंध संग्रह भी कलमबद्ध किये जैसे ‘साहित्य का स्वरुप’, ‘कुछ विचार’ आदि। मुंशी प्रेमचंद जी ने लगभग दर्जन भर उपन्यास और करीब ३०० कहानियां लिखी।प्रेमचंद जी के कहानियों की एक आकर्षक बात यह भी है की उसमें आपको मुख्य रूप से दो तरह की भाषा का लेखन मिलेगा सर्वप्रथ्म जिसमे संस्कृत के शब्दों का प्रयोग होता था और दूसरी जिसमे हिंदी और उर्दू तथा संस्कृत का मिश्रण होता था।

जन सामान्य के भावों तथा परिस्थितियों के साथ साथ उनमें हास्य, लालित्य तथा माधुर्य भाव भी होता था जिससे पढ़ने वालों का मनोरंजन बना रहे। मुझे मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित सबसे अच्छी कहानी ‘पूस की रात’ लगती है क्योंकि इसमें उन्होंने एक भारतीय किसान की लाचारी को व्यक्त किया है जहाँ हल्कू नामक किसान किसी और के ज़मीन पर खेती करता था। उसकी और उसकी पत्नी की आर्थिक व्यवस्था भी सही नही थी.

उसपर कर्ज़ तथा उसपर ठंड का मौसम में वे किस प्रकार अपना गुजारा करते है इसका बहुत सुंदर चित्रण किया गया है। उसमें हल्कू के पास एक कुत्ता भी था जिसने समय आने पर अपने मालिक के लिए प्राण त्याग दिये। इस एक कहानी में प्रेमचंद जी ने अनेक चरित्र दर्शाए जैसे भारत मे किसानों की दशा, गरीबी तथा ठंड की कठिनाइयाँ, जानवर की वफादारी तथा गाँव का सुंदर चित्रण। उन्होंने किसानों की विवशता के लिए शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने वाले लोगों पर व्यंग्य कसा है।

यद्यपि हिंदी साहित्य का जन्म काफी पहले हो गया था किंतु उस वक़्त के लेखक और कवि केवल राजा महाराजाओं के प्रसन्नता पर कविता और लेखनी लिखा करते थे, और सामान्य मनुष्यों की पीड़ा तथा परिस्थितियों की ओर ध्यान नही देते है। किन्तु प्रेमचंद जी के साहित्य में कदम रखने के बाद साहित्य को एक नया मोड़ मिला। उनकी लेखनी से यह सिद्ध होता है की वे गरीबों के सदा पक्षधर रहे है तथा शोषण के विरोधी रहे हैं। उन्होंने कभी लालच में आकर अपनी लेखनी में परिवर्तन नही किये।

यह उनकी सरल चरित्र तथा समाज के प्रति उनकी जागरुकता को दर्शाता है। प्रेमचंद एक उच्चकोटि के लेखक होने के साथ एक सच्चे देशभक्त भी थे।  मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु  ८ अक्टूबर १९३६ में वाराणसी में हुई किन्तु वे आज भी सभी के हृदय में अमर है , तथा उनके द्वारा लिखी गयी उपन्यास, कहानी संग्रह तथा रचनाएँ सब उन्ही की तरह अमर है। हिंदी साहित्य के इतिहास रूपी आसमान में मुंशी प्रेमचंद एक सूर्य की भांति चमकते है जो अंधकार रूपी अज्ञान को नाश करता है।