पैसे से ख़ुशी नहीं खरीदी जा सकती पर निबंध

मानों न मानो यह हकीकत है,

ख़ुशी इंसान की जरुरत है।

पैसे से ख़ुशी कभी भी नहीं खरीदी जा सकती।  यह कथन बिल्कुल सही और सत्य है।  ख़ुशी एक प्रकार का भाव है जिसे केवल आप महसूस कर सकते है।  उसे न खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है।  कोई भी व्यक्ति या वस्तु हमें कुछ क्षण या एक अवधि तक ही सुख का अनुभव कराती है परन्तु जीवन पर्यन्त की ख़ुशी नहीं दे सकती।

पैसे से ख़ुशी नहीं खरीदी जा सकती पर निबन्घ  – Essay On Money Cant Buy Hapiness in Hindi

ख़ुशी पैसे से ख़रीदी जा सकती है या नहीं।  उससे पहले हमें यह पता होना जरुरी है ख़ुशी वास्तव है क्या।  कुछ लोग ऊपरी दिखावे को ही ख़ुशी का अर्थ समझ बैठते है।  जैसे कुछलोग अच्छे वस्त्र पहन कर स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने का तरीका अपनाते है और दिखावा करते है कि वह खुश है क्योंकि वे दूसरों के मुकाबले अच्छे जीवन का निर्वाह कर रहे होते है।

परन्तु इस प्रकार की धारणा बिल्कुल मिथ्या है। ख़ुशी एक आंतरिक सुख है जो किसी दिखावे का मोहताज नहीं है। यदि आप खुश है तो आपके ख़ुशी आपके मुख पर स्वयं ही प्रदर्शित होगी और उसे किसी भी प्रकार के अच्छे वस्त्र या अच्छे घर का दिखावा साबित नहीं कर सकता।  आपकी ख़ुशी, आपका अंतर्मन उजागर करता है।

जैसे आप परीक्षा में अच्छे अंक मेहनत करके भी ला सकते है और नक़ल करकर भी और परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकते है। परन्तु मेहनत से प्राप्त अंक आपको आंतरिक सुख प्रदान करते है जिसे आपने किसी पैसे के मदद से प्राप्त नहीं किया बल्कि उसे आपने अपनी लगन और मेहनत व आत्मविश्वास से प्राप्त किया है।  इसलिए आपकी ख़ुशी अथवा सुख असीम है जिसकी कोई सीमा नहीं।

और यदि आपने वही अंक नक़ल करके या पैसे देकर प्राप्त किये है तो अच्छे अंक तो प्राप्त कर लेते हैं परन्तु उसका वास्तविक सुख का अनुभव नहीं कर पाते।  दिखावटी ख़ुशी और आंतरिक ख़ुशी में यही अंतर है। दिखावटी ख़ुशी सीमित है जबकि आंतरिक सुख असीमीत है।

हमारा परिवार , मित्रजन और रिश्तेदार ही हमारी मुसीबत पड़ने पर हमारी मदद करेंगे।  पैसो से आप इंसान खरीद सकते हैं पर रिश्ते नहीं। रिश्ते दिल से जुड़ते है किसी पैसे से नहीं।

यदि कोई पैसे के कारण आपके साथ सम्बन्घ स्थापित करता है तो पैसे के चले जाने पर वो आपका साथ छोड़ देता है। इसलिए यदि आप जीवन में वास्तविक सुख और खुशी को प्राप्त करना चाहते है तो लोगो से सम्बन्ध बनाये परन्तु स्वच्छ मन के लोगो से। स्वच्छ मन के लोग आपके पास जमा सम्पति के नष्ट होने पर भी आपका साथ नहीं छोड़ेंगे।

 सच्चा मित्र

जीवन में यदि सच्ची ख़ुशी और आंनद को प्राप्त करना चाहते है तो मित्र अथवा दोस्त अच्छे बनाये।  केवल किसी का रुतबा देखकर उसके साथ मित्रता रखना सही चुनाव नहीं है। क्योंकि जब आपके पास धन नहीं होगा तो लालची मित्र आपका साथ छोड़ देगा। प्रसिद्ध कहावत है

साई या संसार में मतलब का व्यौहार ,

जब लागि पैसा गांठ में तब लगि ताको यार।

तब लगि ताको यार यार संग हे संग डोले ,

पैसा रहा न पास यार , मुख से नाहि बोले।

कह गिरिधर कविराय , जगत यही लेखा भाई ,

करत बेगरजी प्रीत , यार बिरला कोई साई।

एक सच्चा मित्र आपके गलत होने पर आपसे नाता तोड़ने के लिए स्वयं के मन को मना लेगा परन्तु आपको गलत कार्य नहीं करने देगा।

सच्चा प्रेम

यदि आपका प्रियतम या आपका पार्टनर आपको सच्चे दिल से प्रेम करता है तो वह आपका साथ कभी भी नहीं छोड़ेगा। जीवन में अनेक उतार चड़ाव आते है। यदि विपरीत परिस्थितयो में हमारा प्यार हमारा साथ बनाये रखता है तो हमारे पास जीवन का असली धन है।

जो नाशवान पैसे अथवा धन से बढ़कर है। यदि इस जीवन में किसी को प्यार की जरुरत होती है तो वह पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। प्यार पाने के लिए पहले आपको खुद को नम्र बनकर प्यार देना पड़ता है।  पैसे से किसी भी प्रकार का भाव हम नहीं खरीद सकते है।

पैसा नश्वर है

इस संसार में हर वस्तु नशवर है। एक सुई से लेकर जहाज और मानव , जीव-जंतु और पशु-पक्षी यहाँ तक की पूरा बह्रामंड भी नशवर है। इसलिए पैसा केवल हमें भौतिक ख़ुशी देता है जो बहुत ही अल्पकालीन होती है। ख़ुशी का क्षेत्र व्यापक है। जैसे एक शिशु जिसने अभी-अभी इस जीवन में जन्म लिया है.

जिसे सुख-दुःख का कोई ज्ञान नहीं है , जिसे पैसे का कोई महत्व का भी नहीं पता , वह फिर भी मुस्कराता है। वही वास्तविक ख़ुशी है जो स्वयं बालक , आप , मैं और हम सब महसूस करते हैं। इसी प्रकार जब किसी को दान करते है तो आपको आंतरिक सुख का अहसास होता है जिसे आपने खरीदा नहीं है बल्कि कमाया है जो हर कोई नहीं खरीद सकता है।

 दैनिक जीवन की आधारशिला

यह सत्य है हमें दिन -प्रतिदिन के कार्यो को करने के लिए भी धन की आवश्यकता होती है। हर कार्य के लिए चाहे वो भोजन खाने से सम्बंधित हो या कपडे खरदने से। पर धन का यह सुख वास्तविक नहीं है।

वास्तविक सुख वह है जो हमें हमारे परिवार से प्राप्त होता है। एक गरीब परिवार में खाने को भोजन पर्याप्त मात्रा में न होने पर सभी अपने हिस्से का खाना एक-दूसरे में बाँट देते है ये सोच कर कि मेरा भाई , मेरा बेटा , मेरे पत्नी भूखे है और ये कह कर खाना नहीं खाते की मुझे भूख नहीं। यह असीम प्रेम है जिसे उन्होंने खरीदा या बेचा नहीं , बल्कि अनुभव किया है।

एक अमीर व्यक्ति अनेक सुख-सुविधाओं से संपन्न होता है परन्तु फिर भी वह रोज़ नींद के दवा खाकर भी सो नहीं पाता। इसका कारण उसके पास पैसा तो है पर सच्चा साथ या सच्चा प्रेम और सच्ची ख़ुशी का आभाव है।

कल मैंने एक सपने में एक दुनियाँ  देखा ,

जिसके पास रोटी है ,

पर थाली नहीं

मेरे पास रोटी और थाली है

पर मैं खाली नहीं

वो दुनियाँ कूड़े-कचरे में रहकर भी खुश है

मैं फूलों की दुनियाँ में रहकर भी खुश नहीं

उसे अपनी दुनियाँ से प्यार है

और मुझे अपनी दुनियाँ की कदर नहीं

इसलिए मैं खुश नहीं

और वो खुश है।

‘यह सत्य है आप पैसे से खुशियाँ नहीं खरीद सकते , फुटपाथ पर सोने वाला भी मुस्कराता है और महलों में रहने वाला कही छिप कर रोता है। खाना वो भी खाता है और एक अमीर भी।

उसे उसकी भूख को शांत करके तृप्ति मिलती है पर अमीर के लिए उसी खाने का कोई महत्व नहीं। जैसे अत्यंत प्यास लगने पर हम जब जल को ग्रहण करते है तो हमें अत्यंत सुख का अहसास होता है उस वक्त वही जल हमारे लिए अमृत का काम करता है।

वास्तविक सम्मान

सम्मान पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। आपके पास भले ही कितना भी पैसा को न हो। आप झूठी इज्जत तो कमा सकते है परन्तु वास्तविक नहीं। जैसे ही पैसा आपके हाथ से निकल जायेगा आपका सम्म्मान भी चला जायेगा क्योंकि सब कुछ एक मिथ्या था और फरेब था। वास्तविक सम्मान बिना पैसे के नहीं कमाया जा सकता है।

यदि आप किसी से दो पल मधुर और अच्छा व्यवहार करते हो तो आपके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति आपका आदर करता है क्योंकि आपका साथ उसे ख़ुशी प्रदान करता है और आपके पास कुछ न होने पर भी वह आपके साथ रहना पसंद करता है।

जैसे कृष्ण और सुदामा का प्रेम। कृष्ण अत्यंत धनवान थे परन्तु सुदामा द्वारा लाये गए दो मुठी चावल में भी उन्हें सुदामा का अनन्य प्रेम छलकता था जिसे वे केवल महसूस कर सकते थे विचारो में व्यक्त नहीं कर सकते थे और ना ही खरीद सकते थे।  पैसा वस्तु खरीद सकता है परन्तु आपका सम्मान या प्रेम नहीं खरीद सकता है।

अतिथि देवो भव

ये कहावत हम सबने सुनी है।  जिसका अर्थ है अतिथि भगवान् की तरह है। पर अतिथि को भी आप पैसे या अनेक प्रकार के व्यंजन का भोग लगा कर भी अपना नहीं बना सकते। आप कितने भी प्रकार के व्यंजन बना ले , कितने भी अच्छे वस्त्र पहन ले अपने अतिथि को नहीं लुभा सकते। अतिथि को प्रसन्न करने के लिए आपका स्वयं खुश होना अनिवार्य है।

और आपकी प्र्सनता बाह्य न होकर आंतरिक होनी चाहिए। और जब आप अतिथि का भोजन पकाएं या परोसे तब आपके मन में सकारात्मक विचारधारा का निर्वाह होना चाहिए। कहते है जैसा अन्न वैसा मन। हम जिस भावना से अन्न को बनाएंगे वैसा ही भाव अन्न ग्रहण करेगा और वैसा ही भाव भोजन करने वाले को प्राप्त होगा।

इस प्रकार यह सारी प्रक्रिया अत्यंत सूक्ष्म है परन्तु उससे सम्बंधित भाव अत्यंत उत्तम और श्रेष्ट है। आप अपने समर्थ्य के अनुसार चाहे अनेक व्यंजन बनाए या सिर्फ दाल-रोटी का भोजन अतिथि को परोसे यदि उसमे प्रेम भाव नहीं तो अथाह पैसा होना भी व्यर्थ है।

इच्छाएं अनंत है

व्यक्ति के जीवन में इच्छाएं कभी समाप्त नहीं  होती हैं।  रोटी , कपडा और माकन व्यक्ति की पहली जरुरत है , इसके साथ-साथ बिजली , शिक्षा , परिवहन को भी हम आज जरुरत की वस्तु में शामिल कर सकते है।

पर जैसे-जैसे मनुष्य की एक इच्छा पूर्ण हो जाती है दूसरी इच्छा अपने आप जागृत हो जाती है। इस प्रकार इच्छा , तृष्णा का रूप ले लेती है। हम पैसो से इच्छा तो पूरी कर सकते है पर तृष्णाओं को तृप्त नहीं कर सकते क्योकि वो हमें ख़ुशी नहीं प्रदान कर रही है। कहते है :-

इच्छाओं ने इन्सान को हैवान बना रखा है

तृष्णाओं ने तो तिनकों को भी तूफ़ान बना रखा है।

दूसरो के लिए जीना

यदि हम अपने जीवन में थोड़ा सा भी दान पुण्य करते है तो हमें असीम सुख प्राप्त होता है।  चाहे वो पैसा हो या ज्ञान। पैसा देने से आपके धन में कुछ कमी जरूर आयेगी परन्तु आपका दिया हुआ दान आपको सुख का अहसास कराएगा और आप खुश महसूस करेंगे।

क्योंकि जब वो इन्सान आपके द्वारा दिए गए दान का प्रयोग करेगा तो वह आपको दिल से दुआ देगा , आप बहुत तरक्की करे और आपके द्वारा प्राप्त सफलता आपको आंतरिक सुख का अहसास प्रदान करेगी।

जब हम भौतिक सुविधाओं के प्रति लालची हो जाते हैं तो हमारा व्यावहारिक जीवन भी अस्त -व्यस्त हो जाता है और हम अपने जीवन के अनमोल क्षणों को भी खो देते है। जैसे अपने बच्चो के साथ जो आप समय व्यतीत करते हो वो आपको ख़ुशी प्रदान करता है , वो पल आप खरीद नहीं सकते और अपने प्यार के साथ बिताये हुए पल आप जब भी याद करते है तो वो आपके अंतर्मन को प्रसन्नता से भर देते है।

यह सुख आपने पैसे से नहीं कमाया है बल्कि उसे मन से निभाया है और स्वीकार किया है। तभी कई वर्ष बीतने के बाद भी आप उसे वैसा ही महसूस करते हो जैसे कल की ही बात हो।

निष्कर्ष

जीवन में पैसे से आप भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद प्राप्त करते  परन्तु यदि खुशी की बात करें तो वह केवल महसूस की जा सकती है। उसे खरीदा या बेचा नहीं जा सकता।  आप इंसान के मस्तिष्क को खरीद सकते है पर दिल को नहीं। आंतरिक सुख आपको आपका मन ही प्रदान कर सकता है पैसा नहीं।