मैथिलीशरण गुप्त पर निबंध – Essay On Maithili Sharan Gupt in Hindi

इतिहास के सुनहरे पन्नों में साहित्यकारों की कई अहम भूमिका है और कई साहित्यकार साहित्य से जोड़कर इस विषय को सुनहरा बनाए हैं, साहित्य चाहे अंग्रेजी की हो या फिर हिंदी की इन दोनों ही क्षेत्र में कई महान लोगों ने अपनी योगदान से इन विषयों को ना सिर्फ बेहद खूबसूरत बनाया है लेकिन काफी उपयोगी भी बनाया जिसके कारण हर एक व्यक्ति जो विषय को पड़ता है,

उसके जीवन पर इन विषय का गहरा प्रभाव पड़ता है । साहित्य अलग-अलग लोगों के साथ कई भागों में बटा हुआ है और हर एक युग में कई महान साहित्यकार शामिल हैं जिनके अलग-अलग रचनाओं ने हर एक व्यक्ति के जीवन पर काफी प्रभाव डाला है जो भी साहित्य से जोड़ते हैं वह साहित्यकारों की जीवन से प्रेरित होकर जीवन में कुछ नया और बेहतर करने का सोचते हैं ।

मैथिलीशरण गुप्त पर निबंध – Long and Short Essay On Maithili Sharan Gupt in Hindi

बदलती युगों के साथ कई बदलाव साहित्य में किए गए लेकिन साहित्य की कुछ हीरो को आज भी हर एक व्यक्ति जो साहित्य से जुड़ा है वह हर रोज याद करता है और उनके रचनाओं को ना सिर्फ समझता है बल्कि उनका बेहद आदर भी करता है। हर एक साहित्यकार अपने जीवनकाल के दौरान कई रचनाओं को लिखता है लेकिन उनके कई रचनाओं में से कुछ रचनाएं ऐसी होती है जो कि अमर हो जाती है साहित्यकार के गुजर जाने के बाद भी कई युगों तक उन रचनाओं को लोग पढ़ते हैं और उनका गुणगान करते हैं ।

हिंदी साहित्य में कई धुरंधर साहित्यकार हैं जिनमें से एक मशहूर साहित्यकार “मैथिलीशरण गुप्त” अगर आप भी श्री मैथिलीशरण गुप्त के बारे में जानकारी चाहते हैं और आप भी साहित्य के शौकीन हैं तो आप बेहद सही ब्लॉग पढ़ रहे क्योंकि इस ब्लॉग के जरिए हम आपको श्री मैथिलीशरण गुप्त के जिंदगी के कई पहलुओं से रूबरू करवाएंगे और आपको यहां कई रोचक जानकारी जानने को मिलेगी ।

श्री मैथिलीशरण गुप्त हमारे हिंदी साहित्य की राष्ट्रकवि में से एक है, वह खड़ी बोली के प्रथम महत्वपूर्ण कवि हैं । मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 में चिरगांव  उत्तर प्रदेश में हुआ था , इनके पिता का नाम रामचरण गुप्त और माता का नाम काशीबाई था ।

इनके पिता को हिंदी साहित्य से घनिष्ठ प्रेम था और वह अच्छे कवि थे । गुप्त जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। बाद में, वे अंग्रेजी पढ़ने के लिए झांसी गये परन्तु वहां इनका मन नहीं लगा। कक्षा नौ तक इन्होने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की फिर पढ़ना छोड़कर घर पर ही अध्ययन करने लगे। आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आकर इन्होने काव्य रचना प्रारम्भ की।

मैथिली शरण जी अपने भाषा शैली के लिए बेहद मशहूर हैं, हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में मैथिलीशरण गुप्त जी का बड़ा योगदान रहा है । गुप्त जी की कविताओं में मधु भावना की तीव्रता और प्रतयुक्त शब्दों में सौंदर्य अद्भुत है । वे बेहद गंभीर विषयों को भी बेहद सरलता से प्रस्तुत करते थे जो कि हर एक व्यक्ति के मन में छाप छोड़ता था ,

इनके द्वारा की गई रचनाओं में मुहावरों के प्रयोग ने रचनाओं को एक नया रूप दिया  ।कवि मैथिली शरण गुप्त ने कई लोकप्रिय रचना की है जिनमें से कुछ खास रचनाएं हैं , साकेत, पंचवटी, किसान, रंग में भंग, जयद्रथ वध, भारत भारती, यशोधरा, सिद्धराज, हिन्दू, शकुन्तला, नहुष, द्वापर, बापू, अर्जन और विसर्जन, अंजलि और अर्ध्य आदि। उनकी बहुत-सी रचनाएँ रामायण और महाभारत पर आधारित हैं।

मैथिलीशरण गुप्त जी के लोकप्रिय रचना भारत -भारती, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय काफी प्रभावशाली थी जिसके कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मैथिलीशरण गुप्त जी को राष्ट्रकवि की पदवी दी थी,यह बेहद गौरव की बात है क्योंकि ऐसा कभी-कभी ही होता है कि किसी कवि को राष्ट्रपिता के द्वारा कोई पदवी मिला हो ।

मैथिलीशरण गुप्त जी ने साहित्य पर अपना इतना प्रभाव डाला की उनका जयंती हर वर्ष 3 अगस्त को कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है । कवि की जिंदगी में यानी कि मैथिलीशरण गुप्त के जीवन काल में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने गहरा प्रभाव डाला जिसके कारण गुप्त जी ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया।

मैथिलीशरण गुप्त स्वभाव से लोकसंग्रही कवि थे जिसके कारण उन्होंने अपने जीवन काल के दौरान सामाजिक घटनाओं पर ध्यान दिया और उस घटनाओं से प्रेरित होकर कई काव्य रचना किया , महात्मा गांधी के भारतीय राजनीतिक जीवन में आने से पूर्व ही गुप्त जी का युवा मन गरम दल और तत्कालीन क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित हो चुका था। ‘अनघ’ से पूर्व की रचनाओं में, विशेषकर जयद्रथ-वध और भारत भारती में कवि का क्रान्तिकारी स्वर सुनाई पड़ता है। बाद में महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, और विनोबा भावे के सम्पर्क में आने के कारण वह गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आन्दोलनों के समर्थक बने।

अपने जीवन काल के दौरान गुप्त जी ने समाज के दुख दर्द को अपना समझा था, जिसके कारण‌ उस दौरान समाज में नारियों के ऊपर हो रहे अत्याचार असाहयों की पीड़ा  ने उनके हृदय में करुणा भर दिया था और यही करुणा उनके काव्य रचना में साफ साफ झलकती है । कवि अक्सर जो रचनाएं लिखते हैं.

वह उनके आसपास की जिंदगीयों से जुड़ी होती है, और अपने आसपास से प्रभावित होकर जब वे रचनाएं लिखते हैं तो वह रचनाएं हर एक व्यक्ति के दिलों को छूती है और अक्सर कुछ खास रचनाएं सुनहरे पन्नों में दर्ज हो जाती है । समाज में नारियों के साथ हो रहे अत्याचार को महसूस करते हुए गुप्त जी यह पंक्तियां पाठकों के मन में करुणा भर देती है ।

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।

आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥

मैथिलीशरण गुप्त जी की काव्य रचनाओं में कुछ खास विशेषताएं हैं, जो कि इस प्रकार है -:

  • राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता
  • गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता
  • पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता
  • नारी मात्र को विशेष महत्व
  •  प्रबन्ध और मुक्तक दोनों में लेखन
  • शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग
  • पतिवियुक्ता नारी का वर्णन

मैथिली शरण गुप्त जी के काव्य का मूल्यांकन करते हुए आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में ठीक ही लिखा है कि “गुप्त जी वास्तव में सामंजस्यवादी कवि हैं। प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमने वाले कवि नहीं हैं। सब प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला ह्रदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति पूज्य भाव और नवीन के प्रति उत्साह, दोनों इनमें है।