आज हम इस पोस्ट में महाभारत पर निबंध (Essay on Mahabharata in Hindi) के बारे में चर्चा करेंगे. महाभारत १,००,००० छंदों से मिलकर सबसे बड़ा महाकाव्य है और इसे 1000 पर्वों (पुस्तकों) में विभाजित किया गया है. यह पुस्तक आमतौर पर ऋषि वेद व्यास को सौंपी जाती है, लेकिन विद्वानों ने संदेह व्यक्त किया है कि क्या ऐसा महान कार्य किसी एक व्यक्ति द्वारा पूरा किया जा सकता था. हॉपकिंस का मानना है कि यह एक व्यक्ति द्वारा और न ही एक पीढ़ी द्वारा, लेकिन कई लोगों द्वारा तैयार किया गया था.
उदहारण 1. महाभारत पर निबंध – Essay on Mahabharata in Hindi
महाभारत एक बुनियादी अर्थ में रामायण से अलग है, जहां तक बाद में आर्यों और गैर-आर्यों के संघर्ष को दर्शाया गया है, पूर्व में पांडवों और कौरवों, दोनों आर्य लोगों के बीच संघर्ष की कहानी है. महाभारत की लड़ाई, जो कुरुक्षेत्र में लड़ी गई थी, में लगभग पूरे भारत के आर्य राजा शामिल थे.
जबकि मथुरा के काशी, कोसल, मगध, मत्स्य, चेदि और यदु पांडवों, यवन, सोक, मद्रास, कम्बोज, कैकेयस, सिन्धु, सांवरी, भोज, आन्ध्र, महिष्मती, अवन्ति और प्रान्त के साथ संबद्ध थे. कौरवों के सहयोगी. अंतत: पांडवों ने कृष्ण की मदद से विजय प्राप्त की.
महाभारत की कहानी के अनुसार, चंद्र वंश के राजा शांतनु ने हस्तिनापुर पर शासन किया, जो गंगा और जमुना नदी के बीच स्थित एक क्षेत्र था. उनके दो पुत्र भीष्म और यिचत्रविर्य थे. जैसे ही भीष्म अविवाहित रहे, विचित्रवीर्य राजा बन गए. विचित्रवीर्य के दो पुत्र थे- पांडुस और धृतराष्ट्र.
चूंकि धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे, इसलिए पांडु राजा बन गए. पांडु के पांच पुत्र थे जिन्हें पांडव के नाम से जाना जाता था. दूसरी ओर धृतराष्ट्र के 100 पुत्र थे और वे कौरवों के नाम से जाने जाते थे. पांडु धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद राजा बने.
वह एक सौम्य शासक था और अपने भतीजों की अच्छी देखभाल करता था, और उन्हें अच्छी शिक्षा प्रदान करता था. लेकिन धृतराष्ट्र के पुत्र, विशेष रूप से उनके बड़े पुत्र दर्योधन को उनसे ईर्ष्या थी. उन्होंने साजिश रची और पांडवों को निर्वासित करने में कामयाब रहे, जो दिल्ली के पास बस गए और एक नई राजधानी इंद्रप्रस्थ की स्थापना की.
Essay on Mahabharata in Hindi: इस बीच, अर्जुन, पांडवों में से एक, स्वयंभरा के परिणामस्वरूप पांचाल-देश की राजकुमारी द्रौपदी को जीता. दुर्योधन, जो अभी भी पांडवों से ईर्ष्या कर रहा था, ने उन्हें अपने राज्य में पासा के खेल के लिए आमंत्रित किया.
खेल के दौरान, सबसे बड़े पांडव, खेल में पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी सहित सब कुछ खो बैठे. परिणामस्वरूप एक बार फिर पांडवों को 13 साल के लिए वनवास पर भेज दिया गया. अपने निर्वासन का कार्यकाल पूरा करने के बाद पांडवों ने अपने राज्य का दावा किया.
हालाँकि, दर्योधन ने उसे वापस करने से इनकार कर दिया और अंततः महाभारत की लड़ाई हुई, जो अठारह दिनों तक चली. ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले अर्जुन, पांडवों में से एक, अपने ही परिजनों और परिजनों से लड़ने में झिझकता था.
इस समय, कृष्ण ने, उनके सहयोगी, ने उन्हें दिव्य संदेश दिया जो भगवद्गीता में निहित है. परिणामस्वरूप अर्जुन ने हथियार उठाए और बहादुरी से लड़े. इस लड़ाई में पुरुषों का अभूतपूर्व कत्लेआम हुआ और सभी कौरव मारे गए.
तब युधिष्ठिर राजा बने. कुछ समय बाद पाँचों पांडवों ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित को राज्य सौंप दिया. यह ध्यान दिया जा सकता है कि उपर्युक्त मुख्य कहानी के अलावा, महाभारत में कई अन्य पौराणिक और पौराणिक कहानियां भी शामिल हैं.
उदहारण 2. महाभारत पर निबंध – Essay on Mahabharata in Hindi
महाभारत भारत देश का सबसे बड़ा महाकाव्य है . जिस की गाथा प्राचीन समय से ही हमारे भारत देश में सुनाई जा रही है . महाभारत भारत का सबसे बड़ा वह युद्ध था जो कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था .महाभारत में भारत देश की संस्कृति दिखाई देती है .महाभारत के महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी थे . यह मूल ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा गया है . इस महाभारत की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है .
महाभारत को लिखने में महर्षि वेदव्यास को काफी समय लग गया था क्योंकि वेदव्यास जी यह चाहते थे की महाभारत के महाकाव्य ग्रंथ में किसी भी तरह की कोई भी कड़ी छूटना नहीं चाहिए . इसलिए उन्होंने अधिक समय लेकर इस ग्रंथ को लिखा था . इस ग्रंथ में राजनीतिक , कूटनीति , व्रत , तीर्थ , त्यौहार , धर्म की चर्चा , पर्व , देश के आचार विचार , देश में स्त्रियों की दशा , समाज में स्त्रियों का स्थान , त्याग , राज धर्म का उपदेश , विवाह , राज्य की शिक्षा , मित्रता , शत्रुता इस तरह के सभी विवादों का निष्पक्ष रुप से वर्णन किया गया है .
जो भी व्यक्ति महाभारत के महाकाव्य को गहराई से पड़ता है , उसमें बताए गए उद्देश्यों को अपने जीवन में उतारता है . वह अपने साथ साथ अपने परिवार एवं अपने राज्य एवं अपने देश का उद्धार करता है . महाभारत में पांडवों और कौरवों के विशाल युद्ध की गाथा लिखी गई है . यह युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था . जिसमें पांडवों की जीत हुई थी . पांडवों ने श्री कृष्ण के उद्देश्यों पर चलते हुए कौरवों को हराया था . कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों ने कौरवों पर जीत हासिल की थी .
Essay on Mahabharata in Hindi: महाभारत के महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा इस महाकाव्य का नामकरण – महाभारत के महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ने जब यह महाकाव्य लिख कर तैयार कर लिया था तब इसके बाद इस महाकाव्य का नाम संस्कृत भाषा में महाभारम् रखा गया था . इस महाभारत के महाकाव्य का तीन चरणों में विकास हुआ था . जब इस महाकाव्य का प्रथम चरण में विकास हुआ था तब प्रथम अवस्था में इस महाकाव्य का नाम जय रखा गया था . जब इस महाकाव्य का नाम जय रखा गया था तब इस महाकाव्य में 8800 श्लोक थे .
इसके बाद इस महाकाव्य की दूसरी अवस्था पूर्ण रूप से तैयार कर ली गई थी . जब दूसरी अवस्था में इस महाकाव्य को प्रस्तुत किया गया तब इस महाकाव्य के श्लोकों की संख्या 8800 से बढ़कर 100000 हो गई थी और महाभारत के इस महाकाव्य का नाम महाभारम् रख दिया गया था . इस तरह से भारत देश के महाभारत के महाकाव्य का नामकरण किया गया था . इस ग्रंथ का नाम महाभारत इसलिए रखा गया था क्योंकि इस ग्रंथ में भारत के सबसे धमासान युद्ध , कुरुक्षेत्र के युद्ध महाभारत के बारे में बताया गया था .
यह कुरुक्षेत्र का युद्ध भारत में लड़ा गया था इसीलिए इस महाकाव्य का नाम महाभारत रखा गया था . महाभारत के महाकाव्य का ग्रंथ पूरे विश्व का एक ऐसा ग्रंथ है जिसका नामकरण तीन बार किया गया था . महाभारत के इस महाकाव्य में 100000 श्लोक लिखे गए हैं . इस महाभारत के महाकाव्य में 18 पर्व हैं . जो भी व्यक्ति महाभारत के महाकाव्य का पाठ करता है वह जीवन में ऊंचाइयों तक पहुंचता है . क्योंकि महाभारत के महाकाव्य में दुख से लड़ने की शक्ति , राजनीति , कूटनीति , धर्मनिरपेक्ष जैसे विवादों पर निष्पक्ष रूप से चर्चा की गई है .
जब हम महाभारत के महाकाव्य को पढ़ते हैं तब हमें मनुष्य की शक्ति का पता चलता है और हम हमारी ताकत को पहचान लेते हैं . इस महाकाव्य को पढ़ने के बाद हमें समस्याओं से लड़ने और जीतने की शक्ति प्राप्त होती है .
महाभारत के महाकाव्य में कुरुक्षेत्र के संग्राम की कहानी
महाभारत के महाकाव्य में कुरुक्षेत्र के संग्राम की कहानी है . उसमें पांडवों और कौरवों के महायुद्ध को संक्षिप्त रूप से बताया बताया है . इस महाभारत के महाकाव्य में श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों को भी बताया गया है . जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए तब अर्जुन और पांचों पांडवों में एक शक्ति का उदय हुआ था . जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए तब अर्जुन के द्वारा कौरवों को हराया गया था .
पांडवों के पास कृष्ण के उपदेशों की शक्ति प्राप्त थी . इसी कारण से पांडवों ने कौरवों को हराकर कुरुक्षेत्र के युद्ध में जीत हासिल की थी . यह कुरुक्षेत्र का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर के सिंहासन को प्राप्त करने के लिए लड़ा गया था . यह युद्ध काफी समय तक चला था और इस घमासान युद्ध में पांडवों ने कौरवों पर जीत हासिल की थी .
महाभारत के महाकाव्य में पांडवों और कौरवों के बीच में हुए युद्ध की गाथा
महाभारत के महाकाव्य मे कुरुक्षेत्र के महासंग्राम युद्ध की गाथा लिखी गई है और यह ग्रंथ महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा लिखा गया था . यह पूरा ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा गया था . इस ग्रंथ में 100000 श्लोक एवं 18 पर्व हैं . इस महाकाव्य में कौरवों और पांडवों के युद्ध को विस्तार पूर्वक बताया गया है . धृतराष्ट्र और पांडू दो भाई थे और इनकी राजधानी हस्तिनापुर थी . दोनों भाइयों में धृतराष्ट्र अंधा था . जिसके कारण धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का राजा नहीं बनाया गया था .
उसके भाई पांडू को हस्तिनापुर का राजा नियुक्त किया गया था .धृतराष्ट्र के 2 पुत्र थे . दुशासन और दुर्योधन दोनों पुत्र अपने मामा शकुनी की बातों में आकर गलत रास्ते पर चल पड़े थे . पांडू के 5 पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार से हैं अर्जुन , नकुल , सहदेव , भीम , युधिस्टर पांचों के पांचों बलवान थे . इन पांचों में युधिस्टर सबसे बड़ा था और राज्य का उत्तराधिकारी था . धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन ने हस्तिनापुर के राज्य की राजगद्दी प्राप्त करने के लिए पांचों पांडवों को मारने के लिए अपने शकुनी मामा के साथ मिलकर कई तरह के षड्यंत्र रचे थे .
परंतु दुर्योधन शकुनी मामा के साथ मिलकर अपने गलत षड्यंत्र को सफल नहीं बना पाया था . उसके सभी कार्य असफल रहे थे . जब दुर्योधन पांडवों को मारने में असफल रहा तब शकुनी मामा ने दुर्योधन को यह सलाह दी थी कि वह पांडवों को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करें . दुर्योधन ने शकुनी मामा की बात मानकर पांडवों को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया . पांडवों ने दुर्योधन के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था . जब कौरवों और पांडवों के बीच जुआ चल रहा था तब पांचों के पांचो पांडव अपनी पत्नी एवं राज्य को जुआ में हार गए थे .
Essay on Mahabharata in Hindi: इसके बाद पांचों पांडवों को 12 वर्षों का वनवास दे दिया गया था और 1 वर्ष का अज्ञात वर्ष दुर्योधन के द्वारा पांडवों को दिया गया था . इस तरह से पांचों पांडवों को वनों में 12 वर्षों के लिए भटकने के लिए भेज दिया गया था . जब 12 वर्ष का बनवास भोगने के बाद पांचो पांडव अपने राज्य को वापस मांगने के लिए युधिस्टर के पास गए तब उन्होंने पांडवों को राज्य एवं उनकी पत्नी द्रौपदी को लौटाने से इनकार कर दिया था . इसके बाद कौरवों और पांडवों में युद्ध हुआ था .
जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में भाइयों के साथ युद्ध होते हुए देखा तब वह विमुख हो गया था . उस समय श्री कृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की अमरता का उपदेश दिया था . जो गीता के रूप मे हम सभी पढ़ते हैं . गीता में जो भी उपदेश श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए थे वह सभी के सभी उपदेश गीता में लिखे गए हैं . जिसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक लिखे गए हैं . कौरवों और पांडवों के बीच यह धमासाना युद्ध 18 दिनों तक चला था .
इस युद्ध के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यदि यह युद्ध और भी समय तक चलता तो काफी नुकसान इस युद्ध के कारण होता क्योंकि लाखों की संख्या में इस युद्ध में लोग मारे जा रहे थे .
भारत के महाकाव्य महाभारत में भारत की संस्कृति
भारत के महाकाव्य महाभारत में प्राचीन भारत की संस्कृति को दर्शाया गया है . जब महाभारत के महाकाव्य को हम पढ़ते हैं तब उसमें भारत की संस्कृति दिखाई देती है . किस तरह से भारत में प्राचीन समय में नारियों की स्थिति थी , किस तरह से राज्य चलते थे , किस तरह से प्रजा रहती थी , राजधर्म , राज्य की शिक्षा , कूटनीति , धर्म नीति , राष्ट्रीय नीति , प्रजा नीति के विषय में स्पष्ट रूप से बताया गया है .
महाभारत ग्रंथ मे भारत की संस्कृति सुरक्षित है . यदि हमें हमारे भारत देश की संस्कृति को सुरक्षित करके रखना है तो हमें महाभारत के पाठों को पढ़ना चाहिए , वहां से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए .
तब जाकर के हम हमारे भारत देश की प्राचीन संस्कृति को बचाकर रख पाएंगे . यह ग्रंथ इसलिए लिखे गए हैं जिससे कि हमारे भारत की संस्कृति का विनाश ना हो और हम हमारे भारत की प्राचीन संस्कृति को संभाल कर रखें . यह महाभारत पांडवों और कौरवों का युद्ध नहीं है बल्कि सभी भारतीयों के लिए धर्मशास्त्र का पाठ सिखाती है .
यह भारत देश का सबसे बड़ा और पांचवा वेद है . इससे बड़ा अभी तक कोई भी ग्रंथ नहीं है . यह विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है . जिसको लिखने में महर्षि वेदव्यास जी को काफी समय लगा था .
इस ग्रंथ में 100000 श्लोक और 18 पर्व हैं . महाभारत के महाकाव्य को महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा संस्कृत भाषा में लिखा गया है . महाभारत महाकाव्य का मूल रूप संस्कृत भाषा में प्रस्तुत किया गया था और महर्षि वेदव्यास जी ने इस महाकाव्य का नाम महाभारत् रखा था .
महाभारत के महासंग्राम में श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश
Essay on Mahabharata in Hindi: महाभारत में पांडवों का युद्ध कौरवों से कुरुक्षेत्र में हुआ था . इस युद्ध में पांडवों का साथ श्री कृष्ण जी दे रहे थे . जब अर्जुन सामने अपने भाइयों के साथ युद्ध कर रहे थे तब अर्जुन दया भाव की भावना में कमजोर हो गए थे . अर्जुन अपने भाइयों पर आक्रमण करने से घबरा रहे थे . अर्जुन के अंदर की आत्मा युद्ध करने से घबरा रही थी . उस समय वह अपने आप को कमजोर महसूस कर रहे थे .
जब अर्जुन अपने भाइयों के साथ युद्ध कर रहे थे तब वह ठीक तरह से युद्ध नहीं कर पा रहे थे क्योंकि वह अपने भाइयों पर तीर चलाने से घबरा रहे थे . श्री कृष्ण जी ने जब अर्जुन को कमजोर होते हुए देखा तब श्रीकृष्ण ने यह सोचा कि यदि अर्जुन कमजोर पड़ गया तो पांडवों की हार हो जाएगी . जिससे सच्चाई की हार और बुराई की जीत हो जाएगी . श्री कृष्ण ने यह सोचा कि मे ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने दूंगा .
उसी समय श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए और समझाया कि राज धर्म , राजनीति , कूटनीति मे यदि कोई व्यक्ति अत्याचार करता है और राज्य को हानि पहुंचाना चाहता है तब उस राज्य के राजा का कर्तव्य बनता है कि वह सामने वाले दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दे . यदि राज्य की प्रजा के सम्मान की बात हो तो राजा को युद्ध क्षेत्र में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए . यदि युद्ध धर्म की सुरक्षा के लिए लड़ा जाए तो उस युद्ध में कभी भी अपने कदम पीछे नहीं हटाना चाहिए .
इस तरह से श्री कृष्ण ने अर्जुन का हौसला बढ़ाया था . जिससे अर्जुन को युद्ध करने में शक्ति प्राप्त हुई थी और अर्जुन ने श्री कृष्ण के उपदेशों को अपनाकर कौरवों को हराया था .
महाभारत के महाकाव्य में एकलव्य की कहानी
एकलव्य एक आदिवासी बालक था . वह तीरंदाजी की शिक्षा प्राप्त करना चाहता था . जब वह द्रोणाचार्य जी को अर्जुन और उनके भाइयों को शिक्षा देते हुए देखता था तब उसके मन में भी द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा होती थी .
एक बार एकलव्य ने साहस एकत्रित करके द्रोणाचार्य के पास जा पहुंचा और द्रोणाचार्य से एकलव्य ने तीरंदाजी की शिक्षा लेने के लिए कहा . परंतु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को मना कर दिया था क्योंकि वह एक आदिवासी पुत्र था .
एकलव्य ने अपने जीवन का लक्ष्य बेहतर तीरंदाजी सीखने का लक्ष्य बना लिया था और उसने एक मिट्टी के द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाई और उस प्रतिमा के सामने तीरंदाजी की प्रैक्टिस करने लगा था . एकलव्य तीरंदाजी में सर्वश्रेष्ठ हो गया था . जब एकलव्य के तीरंदाजी के चर्चे हुए तब द्रोणाचार्य को एकलव्य के बारे में पता चला .
जब द्रोणाचार्य ने एकलव्य को बुलाया तब द्रोणाचार्य ने गुरु दीक्षा मे एकलव्य का अंगूठा मांग लिया था और एकलव्य ने अपने गुरु द्रोणाचार्य की बात मान ली थी और अपना अंगूठा काट कर द्रोणाचार्य के चरणों में रख दिया था . महाभारत में एकलव्य की कहानी बहुत ही शिक्षाप्रद है . इस कहानी से हमें अनेकों सीख मिलती हैं .
महाभारत के महाकाव्य में द्रौपदी के विवाह की कहानी
महाभारत के महाकाव्य ने द्रौपदी के विवाह की कहानी भी बहुत शिक्षाप्रद है . द्रुपद की बेटी का नाम द्रौपदी था . द्रुपद अपनी बेटी द्रौपदी का विवाह अर्जुन से करवाना चाहती थी .
जब द्रौपदी के पिता ने यह सुना कि वारणावत मे पांचों पांडवों की मृत्यु हो गई है तब द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी का विवाह दूसरे राजा से करवाने का फैसला कर लिया था . जिसके लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन करवाया गया था और उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए कई राजाओं को आमंत्रित किया गया था .
Essay on Mahabharata in Hindi: उस प्रतियोगिता में मछली के प्रतिबिंब को देखकर तीर से निशाना लगाना था . जो भी मछली पर प्रतिबिंब देखकर निशान लगा लेगा उसका विवाह द्रौपदी से कर दिया जाएगा .
कई साहसी योद्धा उस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आए थे . इस प्रतियोगिता में जब कर्ण ने मछली पर निशान साधने के लिए धनुष उठाया तब द्रौपदी ने कर्ण से विवाह करने के लिए मना कर दिया था . क्योंकि वह सारथी पुत्र था . द्रौपदी ने सारथी पुत्र से विवाह करने के लिए मना कर दिया था .
उस प्रतियोगिता में पांचो पांडव भी साधु का रूप धारण करके उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे . कई योद्धाओं ने अपनी किस्मत उस प्रतियोगिता में आजमाई परंतु कोई भी सफल नहीं रहा था .
जब पांडवों की ओर से अर्जुन ने धनुष उठाया तब तीर से प्रतिबिंब देखकर उस मछली पर निशान साधा और वह निशान सीधे मछली पर जाकर के लग गया और द्रौपदी का विवाह अर्जुन से कर दिया गया था .
अर्जुन द्रौपदी से विवाह करने के बाद पांचो पांडव अपने घर पर आए और अपनी मां को प्रतियोगिता में जीत हासिल करने के किस्से सुनाएं . पांडवों की मां ने पांचों को आशीर्वाद देते हुए कहा की तुमने प्रतियोगिता में जो फल प्राप्त किया है वह फल पांचों भाई आपस में बांट लेना . इसीलिए द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी के रूप में जानी जाती है .
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