श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्णा कहते हैं-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे॥
इस श्लोक द्वारा श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि हे अर्जुन, जब जब धर्म का नाश करने के लिए अधर्म अपना सर उठायेगा,तब तब लोक कल्याण के लिए तथा दुष्टों को दंड देने के लिए मैं अलग अलग युगों में जन्म लेकर आता रहूँगा।
यही कारण है की द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस को दंडित करने के लिए अवतार लिया था। कंस मथुरा का राजा था जिसके अत्याचारों से त्रस्त सभी लोगों ने भगवान श्री हरी से प्रार्थना की, की वे आकर इस शक्तिशाली अधर्मी राजा का वध करें। तब भगवान विष्णु ने सभी को यह कहकर आश्वस्त किया कि वे कंस की बहन देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लेकर आएंगे।
भगवान कृष्ण पर निबंध – Long and Short Essay On Lord Krishna in Hindi
श्रीकृष्ण के जन्म की कथा अद्भुत है। जब कंस को आकाशवाणी द्वारा यह पता चला कि उनकी बहन ही उनके मृत्यु को जन्म देने वाली है तब उसने अपनी बहन और उसके पति वासुदेव को कारागार में बंदी बना लिया। देवकी के सभी सातों पुत्रों की कंस ने हत्या कर दी। किन्तु जब श्रीकृष्ण के जन्म का पवन ,अर्धरात्रि का समय आया तब सभी पहरेदार भगवान की लीला से सो गये, और वासुदेव जी बन्धनमुक्त हो गये तथा उन्हें प्रभु ने आकशवाणी द्वारा आज्ञा दी कि वे श्रीकृष्ण को अपने भाई नंद जी के घर, गोकुल छोड़ आये।
तब वासुदेव जी ने श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखा और गोकुल की तरफ निकले। यमुना पार उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने भाई नंद और यशोदा के घर छोड़ कर उनकी नवजात पुत्री को अपने साथ ले आये। कंस ने जैसे ही उसकी हत्या करने की कोशिस की तो वह पुत्री प्रभु की योग माया बन कर कंस को चेतावनी देते हुए कहा की उसकी मृत्यु गोकुल में जन्म ले चुकी है और फिर अपने लोक को चली गई।
इधर यशोदा के घर श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव होने लगा । श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप अत्यंत मनोहारी था। उनकी एक झलक पाने के लिए गोकुल के ग्वाल-बाल,गाये,भैंस,गोपियां, पशु-पक्षी सभी आतुर थे। सारी सिद्धियों ने गोकुल को अपना निवास स्थान बना लिया। श्रीकृष्ण अत्यंत नटखट थे और उन्हें माखन कहना बोहुत पसन्द था।
इसलिये वे गोकुल के गोपियों के घर माखन चोरी किया करते थे, उनकी दही हांड़ी फोड़ दिया करते थे, इससे उन्हें माखनचोर भी कहा जाता है। गोपियों के स्नान के समय उनके वस्त्र चुरा लिया करते थे। इसी प्रकार उनकी लीलायें अद्धभुत थी। उनकी शक्ति श्रीराधा जी भी उनकी लीला में सहयोग देने के लीये उनके साथ अवतरित हुई थी। श्रीकृष्ण गोपियों तथा राधा जी के साथ यमुना किनारे रास रचाते थे। वे इतनी मधुर बाँसुरी बजाते थे की सारा गोकुल मुग्ध हो जाता था, इसलिये उनका एक नाम मुरलीधर भी है।
उधर आकशवाणी से परेशान कंस ने दिन प्रतिदिन नैय नैय राक्षस श्रीकृष्ण को मारने के लिये भजे जिनका श्रीकृष्ण ने आसानी से वध कर दिया। सबसे पहले पूतना आई थी श्रीकृष्ण को ज़हरीला स्तनपान कराने, जिसको श्रीकृष्ण ने मार कर दिव्यगति प्रदान की।
इसी प्रकार श्रीकृष्ण, ने अनेक राक्षसों का उद्धार किया। जब श्रीकृष्ण १३ वर्ष की आयु में पहुँचे तब उन्होंने मथुरा जाकर अत्याचारी कंस का वध किया तथा अपने माता पिता को बंधन मुक्त किया। उसके बाद कई वर्षों तक वे मथुरा में रहे,और तत्पश्चात द्वारका प्रदेश का निर्माण कर वहाँ राज करने आ गये, तब वे द्वारकाधीश कहलाये।
एक बार की बात है ,काल्यवन नाम का एक असुर था जिसको वरदान प्राप्त था कि वो किसी ऋषि के तेज से ही मरेगा। काल्यवन से युद्ध करते हुये श्रीकृष्ण रण बीच में छोड़ कर भाग गए और एक गुफा में जा कर छिप गए जहाँ एक ऋषि गहरी निद्रा में सो रहे थे। काल्यवन ने उनको कृष्ण समझ कर उनपर पदप्रहार किया, उनकी निद्रा भांग हो गई और जैसै ही उन्होंने अपने नेत्र खोले वैसे ही काल्यवन उनके तेज़ स भस्म हो गया। क्योंकि श्री कृष्ण राण छोड़ कर भागे थे इसलिए उन्हें रणछोड़ भी कहते है। श्री कृष्ण ने फिर रुक्मिणी को उसके भाई रुक्मी के बंधन से भगा कर उससे विवाह किया इसके बाद कृष्ण भगवान महाभारत के राण में अपना सहयोग देने हस्तिनापुर आ गये। वहाँ उन्होंने अपने नेतृत्व में जरासंध का वध करवाया, पांडवों के शांतिदूत बन कर कौरवों से पांच ग्राम की याचना की , द्रौपदी की लाज कुरु सभा में वस्त्र के रूप में आकर स्वयं की ,तथा महाभारत के राण में अर्जुन के रथ के सारथी बने और अर्जुन को भगवद्गीता का ज्ञान दिया तथा पांडवों को विजय दिलवाई।
कृष्ण ऐसे एक चरित्र है जिन्होंने अपने जीवन काल की लीलाओं को कभी एक जगह पर रह कर नही किया, वे सदैव स्थान परिवर्तन करते रहे है। कृष्ण का चरित्र ही अद्धभुत है। वे एक अद्भुत सखा, अद्धभुत पुत्र,अद्धभुत नायक तथा अद्धभुत गुरु है।
आज भी यह माना जाता है की यदि कोई किसी मुसीबत में हो तो कृष्ण को याद करने से वे अवश्य सहायता के लिए आते है। रक्षाबंधन के दिन स्त्रियां श्रीकृष्ण को अपना भाई मान कर राखी बाँधती है। यद्यपि उनका विवाह रुक्मिणी से हुआ किन्तु आज भी सारी सृष्टि में उनकी पूजा श्रीराधा जी के साथ ही मंदिरो में की जाती है। कृष्ण के चरित्र में कोई क्या लिखे उनकी लीलाओं का कोई अंत नहीं है। कोई कवि या लेखक श्री हरि के चरित्र की व्याख्या करके पार नही पा सकता है।
जैसा कि रामायण में तुलसीदास जी ने कहा है- “हरी अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहु विधि सब संता” जिसका अर्थ है कि श्रीहरी और उनकी कथा अनंत है, उनकी कथा अलग अलग रूप में युगों युगों तक लोग गाएँगे और एक दूसरे को सुनाएंगे किन्तु इस कथा का कोई अंत नही है। इसी तरह श्रीकृष्ण का चरित्र भी अनंत है और युगों युगों तक इसका गुणगान चलता रहता है और आगे भी चलता रहेगा।