भगवन हनुमान जी पर निबंध – Essay On Lord Hanuman in Hindi

यह तो जगजाहिर है कि श्री हनुमान जी प्रभु श्री राम के परम भक्त है और यही उनकी सही पहचान है। बजरंगबली को सबसे अधिक प्रसन्नता तभी होती है जब उन्हें श्री राम का भक्त कहा जाय। बजरंगबली की माता-पिता का नाम अंजना और केसरी जी था। जब बजरंगी का जन्म हुआ तब उन्हें मारूतिनंदन कहकर पुकारते थे,क्योंकि इसके पीछे बजरंगबली के जन्म की आलौकिक कथा है।

भगवन हनुमान जी पर निबंध – Long and Short Essay On Lord Hanuman in Hindi

माता अंजना और कपिराज केसरी जी ने मिलकर पुत्रप्राप्ति के लिये भगवान शिव जी की कठिन तपस्या की,जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें कहा की वे दोनों तप करके वायु देव को प्रसन्न करें तथा वरदान दिया कि वे स्वयं उनके पुत्ररूप में ग्यारवेह रुद्र अवतार में अवतरित होंगे। इसलिए उन्हें पवनपुत्र भी कहते है। इस प्रकार श्री राम के परम भक्त श्री हनुमान का जन्म हुआ।

श्री हनुमान अति बलशाली तथा सर्वश्रेष्ठ गदाधर है,इसलिये उन्हें बजरंगबली भी कहते है।उनके बचपन में उन्होंने कई ऐसे आश्चर्यजनक कार्य किये जिनमें से एक कथा यह भी है की बचपन में एक बार श्री हनुमान को बहुत भूख लगी थी, तो आस पास उन्हें कुछ खाने को नही मिला तब उनकी नज़र सुबह उदित सूर्यदेव पर पड़ी। लाल रंग के सूर्य देव को देख कर हनुमान जी ने सोचा की यह कोई मीठा फल है,और सूर्यदेव को खाने के लिये हवा में उड़ते हुए चले। उसी वक़्त राहु भी सूर्य को ग्रहण लगाने आ रहा था,

तब बजरंगी और राहु में भिड़न्त होने लगी और बजरंगी ने राहु को मार के भगा दिया। यह देख कर देवराज इंद्र भयभीत हो गये और उन्होंने बजरंगी पर अमोघ अस्त्र चलाया जिससे मारुति अचेत हो गये। यह देखकर वायुदेव क्रोधित हो गये और उन्होंने पृथ्वी की सारी वायु खींच ली जिससे सारी पृथ्वी का संतुलन बिगड़ गया। तब ब्रह्मा जी ने आकर बजरंगी को जीवनदान देकर वायुदेव के क्रोध को शांत किया तथा पृथ्वीवासियों को बचाया।

ततपश्चात सभी देवताओं ने बजरंगी को वरदान दिये जैसे तथा इंद्रदेव ने कहा की बजरंगी उनके अस्त्र से अब कभी मारा नही जाएगा और क्योंकि इसके प्रहार से बजरंगी की हनु टूट गयी इसलिये बजरंगी का नाम हनुमान पड़ा। एक कथा यह भी है की बजरंगी बचपन में बहुत नटखट थे ।अपने गुरुकुल में उन्होंने सभी ऋषियों को परेशान कर दिया था तब ऋषि ने उनको श्राप दिया की वे अपनी शक्तियां भूल जाएँगे और जब उनकी लोककल्याण की जरूरत पड़ेगी तब उन्हें उनकी शक्तियां याद दिलाई जाएँगी।

भगवान श्री राम के महान चरित्र रामायण में भी बजरंगबली ने विशेष भूमिका निभाई है। किष्किंधा के राजा बाली के भाई सुग्रीव के मंत्री बन कर श्री हनुमान उनके साथ ऋष्यमूक पर्वत पर निवास करते थे।

जब प्रभु श्री राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुये ऋष्यमूक पर्वत पर आये तब कपिराज सुग्रीव ने भगवान राम और लक्ष्मण का परिचय लेने महावीर हनुमान को भेजा क्योंकि वे जितने बलवान थे उतने ही बुद्धिमान भी थे।

महावीर ने जैसे ही यह जाना की वे प्रभु श्रीराम है तब बजरंगी के आँखों में आँसू आ गए। वे श्रीराम के चरणों मे गिर गये तब प्रभु ने उन्हें उठाया और गले से लगाकर उन्हें शांत किया। फिर श्रीराम और कपिराज सुग्रीव की मित्रता भी महावीर ने करवाई। उसके बाद सीता माता की खोज के समय रीछराज जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्ति याद दिलाई।

प्रभु श्री राम द्वारा दी गयी मुद्रिका को लेकर महावीर हनुमान ही ४०० कोस का महासागर पार कर लंका गए थे। बीच मार्ग में उन्हें सुरसा राक्षसी मिली जिसकी यह शर्त थी की महावीर को उसका भोजन बनना पड़ेगा यदि वह उसके मुख से वापस निकल सके तब वे लंका जा सकते है। तब महावीर ने उनका अनादर ना करते हुऐ उनसे कहा की आप अपना मुँह खोलिये और मैं उसमें प्रवेश करूँगा।

यह देखकर सुरसा ने अपना मुँह खोला तब महावीर ने अपना शरीर और बड़ा किया, इसी तरह सुरसा मुँह बड़ा करती गयी और पवनपुत्र और बड़े होते गये। जैसे ही सुरसा का मुख गुफा जितना बड़ा हो गया, महावीर ने तुरंत लघु अवतार ले लिया और उनके मुख के भीतर घुस कर निकाल आये। जिसे देख कर सुरसा ने उनकी बुद्धि की प्रशंसा की और आशीर्वाद दिया की उनके सभी कार्य सफल होंगे। आगे चलते हुए उन्हें एक और राक्षसी और मिली जो समुद्र के ऊपर उड़ते हुए पक्षियों की परछाई पकड़ कर उन्हें खाती थी।

महावीर की परछाई भी उसी ने पकड़ ली तब महावीर ने उन्हें मारकर सद्गति प्रदान की। लंका पहुँच कर उन्होंने सर्वप्रथ्म लंका की रक्षा करने वाली राक्षशी लंकिनी को मुष्टिप्रहार करकर अचेत कर दिया तब उसने भी राम का दूत जान कर उनका आदर किया और उनकी कार्य सफलता की कामना की। इसके बाद वे लंका में सीता जी की खोज में लग गये, तब उनकी भेंट रावण के भाई और श्री राम के परम भक्त विभीषण से हुई, उन्होंने महावीर हनुमान को बताया की माता सीता अशोक वाटिका में है।

तब बजरंगबली अशोकवाटिका में माता सीता से मिलकर उन्हें प्रभु श्री राम का संदेश सुनाया तथा प्रभु की दी हुई मुद्रिका उन्हें प्रदान की,यह देख कर महामाया जानकी जी ने उन्हें अजर,अमर तथा श्री राम के प्रिय होने का वरदान दिया।

तत्पश्चात उन्होंने लंका के पेड़ उखाड़ कर उत्पात मचाया और शत्रु के पुत्र अक्षयकुमार का वध भी किया। उसके बाद वे इंद्रजीत द्वारा चलाये हुये ब्रह्मास्त्र को सम्मान देते हुए शत्रु के बंधन में बंध गये।

जब लंकेश को चेतावनी देने पर रावण ने क्रोधित होकर उनके पूँछ को आग लगने की आज्ञा दी तब बजरंग बली ने कौतुक दिखाते हुए उसी आग से सारी लंका को जला दिया। तत्पश्चात वे माता सीता का संदेश  और उनकी चूड़ामणि प्रभु श्री राम के लिऐ  लेकर आये, जिसकी वजह से श्री राम ने उन्हें हृदय से लगा लिया।

इसके बाद उन्होंने कई प्रभु श्री राम की युद्ध में भी सहायता की, जब रघुवीर के भाई लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तब बजरंगबली ही उनके लिए हिमालय से संजीविनी लेकर आये थे और लक्ष्मण जी को जीवन दान दिया। उन्होंने पाताल से भी  प्रभु राम और लक्ष्मण को आहि-माहि  के बंधन से मुक्त करा कर लाये थे। नागपाश में बंधे श्री राम-लक्ष्मण को बचने के लिए वे ही गरुड़ देव को लेकर आये थे। इन सब के लिए भगवान राम आज भी अपने को महावीर हनुमान का कृतज्ञ मानते है।

अयोध्या आने के बाद भी हनुमान जी ने सदैव प्रभु की खुशी के लिये कौतूहल भरे कार्य किये। प्रभु को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने स्वयं के शरीर पर सिंदूर और घी घोट कर लगा लिया जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया की बजरंगबली को सिंदूर का चोला चढ़ाने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

बजरंगी ने विभीषण द्वारा दी गई माला को तोड़ दिया क्योंकि उसमें उन्हें श्रीराम का वास नही दिखा जिससे क्रोधित होकर विभीषण ने उन्हें कहा की क्या आपके शरीर में श्री राम का वास है? जिसे सुनकर महावीर ने भरी सभा में सभी के सामने अपनी छाती चीर कर प्रभु श्री राम और माता जानकी की दिव्य छवि के दर्शन सभी को करवाये । यह देख कर भगवान भी भाव विव्हल हो गए और बजरंगबली को भक्तशिरोमणि की उपाधि दी और उनको अपने साथ रहने की आज्ञा दी।

आज भी ऐसी मान्यता है कि जब भी कही रामायण काव्य का गान हो रहा हो तो बजरंगबली वहाँ अवश्य आते है, इसलिये कलयुग में लोग रामायण काव्य अपने घर मे करवाते है।

एक मान्यता यह भी है की बजरंगबली पर राम राम लिख कर चढ़ाने से कितनी भी बड़ी मुसीबत हो वह दूर हो जाती है। मंगवाल के दिन बजरंगबली पर लड्डू का भोग तथा सिंदूर का चोला चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। एक बात यह भी स्मरण रखने योग्य है कि श्री राम की भक्ति कभी हनुमान जी के आशीर्वाद के बिना नही मिल सकती। इसलिये सदैव हनुमान जी की आराधना श्रीराम की आराधना के साथ होती है,यह चौपाई इस बात का समर्थन करती है-

सिया राम लक्ष्मण हनुमाना, मो पर कृपा करहुँ भगवाना।।