लीडरशिप पर निबंध – Essay On Leadership in Hindi

एक समय की बात है, एक पिता और उसके पांच पुत्र रहते थे।पुत्र हमेशा आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे, हर बात में बहस करते थे। धीरे धीरे समय बीतता गया, पिता की उम्र ढलने लगी और उनकी  तबियत खराब रहने लगी।पिता को चिंता सताने लगी कि उनके जाने के पश्चात उनको पुत्रो को कौन समझाएगा, उन्हें कौन एक साथ एक  धागे से बांध कर रखेगा?

लीडरशिप पर निबंध – Long and Short Essay On Leadership in Hindi

एक दिन पिता ने अपने पांचो पुत्रो को अपने पास बुलाया और सबको एक एक छोटी लकड़ी की डालियाँ दी और कहा कि इसे तोड़ कर दिखाओ, उसके पांचो पुत्रो ने बड़ी आसानी से अपनी अपनी लकड़ी तोड़ दी और सफलता में काफी प्रसन्न हुए।अब उनके पिता ने दोबारा 5 डालिया ली और उसका गट्ठर तैयार किया और अपने पांचो पुत्रों को दिया और कहा अब इसे तोड़ो।सारे पुत्र थक गैर पर लकड़ियों का वह गट्ठर तोड़ न पाए।

तब  उनके पिताजी ने कहा की तुम पांचो भी लकड़ी की डाली की तरह हो, अगर अलग अलग रहोगे तोह कोई भी बाहर का व्यक्ति तुम्हे आसानी से तोड़ सकता है पर यदि तुम पांचो भी मिल जुलकर प्रेम से साथ रहो तो कोई बाहर का व्यक्ति तुम्हें कभी नई तोड़ सकता और तुमारी ताकत दुगनी तिगनी हो जाएगी।पुत्रों को ये बात समझ आ गयी और वे दोबारा कभी नई लड़े।ये कहानी हम सब ने सुनी और इससे यह शिक्षा ली थी कि एकता में बल होता है पर इसी कहानी में हमे पिता द्वारा किया गया नेतृत्व भी उदाहरण स्वरूप देखने को मिलता है।पिता के नेतृत्व ने ही उसके पुत्रो की हृदय में अमिट छाप छोड़ी।

अतः हम सीधे सरल शब्दों में यह कह सकते हैं कि किसी भी संगठन का संचालन करना तथा उसे उसके गंतव्य तक सफलतापूर्वक पहुँचाने के कार्य को नेतृत्व करने कहते है। नेता का यह दायित्व होता है कि वो अपने सहियोगियों का मार्गदर्शन कुछ इस तरह से करे कि कार्य बिना किसी रुकावट के पूर्ण हो सके।

यूँ तो हम सबके अंदर कही न कही नेतृत्व वाला गुण विद्यमान है परंतु सफल नेता वही होता है जो तो अपने सहचरियों के साथ चले तथा लक्ष्य के प्राप्ति में बराबर का सहयोग दे। एक सफल नेता को  हमेशा अपने संगठन के लोगो के साथ स्नेहपूर्ण, विन्रम तथा मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना चाइए, इस से लोगो के मन मे अपने नेता के प्रति आदर तथा समर्पण का भाव बना रहता है जो कि अति आवश्यक है लक्ष्य प्राप्ति हेतु। यदि समूह के लोग अपने नेता के प्रति द्वेष भाव रखेंगे तो कार्य समापन में परेशानियां पैदा हो सकती है ।

हमारे देश मे  कई ऐसे कार्यकुशल नेताओं का उदाहरण प्रस्तुत है जिन्होंने ना केवल आने संगठन का सफल मार्गदर्शन किया अपितु कठिन परिस्थितियों में अपने समूह के समक्ष ढाल बनके खड़े रहें।

महात्मा गांधी के नेतृत्व से केवल हम ही नही अपितु पूरा विश्व प्रभावित है। उन्होने ऐसे कठिन समय में नेतृत्व करने का बीड़ा उठाया जब देशवासियों के मन निराशा के अंधकार में डूबा हुआ था। उन्होंने न केवल लोगो को इस निराशा रूपी अंधकार से बाहर निकाला अपितु उनके अंदर उम्मीद की ऐसी नई किरण जगाई की पूरा विश्व आज भी उन आंदालनों की सफलता से आश्चर्य चकित है।

वे सदा अपने सहयोगियों के कदम से कदम मिलाकर चले और परिस्तिथियाँ चाहे कितनी भी विषम क्यों न हुई हो वे कभी भी पीछे नही हटे और सभी मुश्किलो का लोगो के साथ मिलकर सामना किया। इससे लोगो के मन  मे भी विश्वास और हिम्मत बनी रही कि उनके नेता उन्हें कभी किसी भी किसी विपरीत परिस्थिति में अकेले नही छोड़ेंगे और इसी विश्वास ने उनके हृदय को ऊर्जा की नई ज्वाला और उमंग से भर दिया और यही उमंग उनके  सफल आंदोलनों की नींव बनी।

भारतवर्ष में सफल नेतृत्व का इतिहास पौराणिक काल से दीप्तिमान है। रामायण के पात्रों की बात की जाए तो सर्वप्रथम श्री राम चन्द्र के नेतृत्व का उदाहरण हम सबके समक्ष है।

अपने नेतृत्व से उन्होंने ने कीश भालुओं की सेना का निर्माण किया और  इस सेना को इतना सशक्त बनाया कि राम द्वारा निर्मित सेना ने लंकेश की विशाल सेना का डटकर सामना किया और रावण तथा उसके विशालकाय सेना पर विजय पताका भी लहराई। रामायण के अन्य पात्र जैसे कि सुग्रीव, हनुमान ने भी सफल नेतृत्व का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया है।

इसी तरह महाभारत की कथा से हम में से कोई भी अनभिज्ञ नही है। कौरवों के पास महामहिम भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य जैसे अद्धभुत और अपराजित योद्धा थे जिनके शौर्य की गाथायें विश्वविख्यात थी।इसके अतिरिक्त कौरवों को श्री कृष्ण की एक अक्षौहिणी नारायणी सेना का बल भी प्राप्त था और पाण्डवों के पास थे केवल श्री कृष्ण अकेले और निहत्ते। इसके बावजूद पंडवी की सेना ने विजय  प्राप्त किया क्योंकि उनका नेतृत्व श्री कृष्ण ने किया था।

नेता को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाइये की उसके व्यवहार में विनम्रता, मधुरता और साथ ही साथ थोड़ी सख्ती का ताल मेल हमेशा संतुलित रूप से बना रहे।

“अति सर्वत्र वर्जयेत्” अर्थात किसी भी चीज़ की अति  अच्छी नही होती।अगर नेता अधिक विन्रम होगा तो उसके अधीन लोग उसकी बातों को गंभीरतापूर्वक नही लेंगे और इससे कार्य मे बाधा उत्पान हो सकती है।

इसके विपरित अगर नेता अधिक सख्ती के प्रयोग करे तो भी उसके अधीन लोगों के मन से काम करने की इच्छा खत्म हो जाएगी,उनमे उमंग और उत्साह सामप्त हो जाएगा।इसीलिए सफल नेता को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके व्यवहार में विनम्रता और सख्ती के ताल माल पूरी तरह से संतुलित हो।

अतः एक सफल नेता की यही पहचान होती है कि वो अपने अधिनिष्ट लोगो के साथ मिलकर काम करे, उनके साथ मिलकर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे नाकि केवल आदेश दे और सब उनपर छोड़ कर खुद निश्चिंत होकर बैठ जाए।।