संत कबीर दास पर निबंध – Essay On Kabir Das in Hindi

संत कबीर दास एक बेहद बड़े व लोकप्रिय कवि थे। उनका आदर सम्मान आज भी किया जाता है आज भी उनका बहुत नाम है उनकी कविताओं का प्रभाव आज भी इस दुनिया में कहीं ना कहीं हर किसी इंसान जो कविताओं का शौक रखते हैं उन पर है। उनको हिंदू, मुसलमान, सिख सभी समुदाय के लोग पूजते हैं।

संत कबीर दास पर निबंध – Long and Short Essay On Kabir Das in Hindi

उनकी बातें उनका दिया गया ज्ञान आज भी लोगों के दिमाग में है और हमेशा रहेगा। उनका भगवान को लेकर भाव पूरे हिंदुस्तान में हज़ारों लोग मानते हैं। कबीर दास के अनुयायी उनके दर्शन का अनुसरण करते थे और उनके द्वारा दिखाए गए अध्यात्म की अवधारणा को मानते थे। संत कबीर दास की कविताओं और दोहा का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

संत कबीर दास की कविताएँ तीन हुस्सों में बटी हैं

  • साखी
  • श्लोक
  • दोहा

संत कबीर दास जी की कुछ प्रसिद्ध दोहे :-

  1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
    जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

  1. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

  1. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
    सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

  1. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
    कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !

  1. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ: मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !

संत कबीर दास जी को भारत की भक्ति मूवमेंट का भी श्रेय दिया गया था। उन्होंने हमेशा सम्मानता में विश्वास रखा और उसी का पालन भी किया। संत कबीर दास हमेशा भगवान के बारे में बात किया करते थे व उनकी ही भगति में लीन रहते थे। माना जाता है की उन्होंने हमेशा यही कहा है की भगवान से बड़ा व उनसे ज़्यादा शक्तिशाली कोई नहीं है ना कभी हो सकता।

उनकी रचनाओं को अंग्रेज़ी में भी रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा अनुवाद किया गया। उनके भक्त आज भी उनकी मृत्यु के इतने सालों बाद भी भारी मात्रा में पाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका मानना था की राम ही सत्य हैं और इसलिए ही उन्हें मरियादा पुरषोत्तम कहा जाता है। उनकी लगभग 10 मिलियन से भी ज़्यादा पंथियाँ हैं।

संत कबीर दास को भगवान के आदर्शों पर चलने की राह उनके गुरु जी ने दिखाई थी। संत कबीर दास गुरु रामानंद के बेहद ही लोकप्रिय शिष्य थे। संत कबीर दास जी की पूरे विश्व में ही बहुत इज्जत की जाती थी। वे अपनी संस्कृतिओं को आगे बढ़ाने के लिए बेहद लोकप्रिय थे।

संत कबीर दास ‘परमात्मा’ और ‘जीवात्मा’ की अवधारणा के महान समर्थक थे। उन्होंने पूरे विश्व के अपने अनुयायियों के सामने सच्चाई व भरोसे की भावना फैलाई। उनके मानने के अनुसार इस पृथ्वी में रहने वाली हर वस्तुओं हर प्राणियों के बीच जो रिश्ता है वो दो सिद्धांतों में बँटा हुआ है:-

जीवात्मा: परमात्मा

संत कबीर दास जी हर तरीके से सभी लोगों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा है। उनकी पंकियाँ उनके दोहों ने कई लोगों की जिंदगियाँ सवारी हैं जो की एक बहुत बड़ी बात है।