कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध – Essay On Janmashtami in Hindi

सभी जातियां अपने महापुरुषों का जन्म दिवस बड़ी धूमधाम से मनाती आई हैं। हिन्दुओं के महापुरुष भगवान कृष्ण का जन्म दिवस भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। कृष्ण के भक्त उनका जन्म दिवस सहस्त्रों वर्षों से मनाते आ रहे हैं। वर्तमान समय में इनकी महिमा और बढ़ी है। भारतीय ही नह, विदेशी भी कृष्णभक्त है और विदेशों में कृष्णदेवालय स्थापित किये जा रहे हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध – Long and Short Essay On Janmashtami in Hindi

दिन-प्रतिदिन उनके भक्तों की संख्या बढ रही है। आज से लगभग पांच सहस्त्र वर्ष पूर्व कृष्ण का जन्म हुआ था। मथुरा में कंस नामक राजा राज्य करता था। उसकी प्राणों से प्रिय उसकी बहन देवकी थी। देवकी का विवाह कंस के मित्र वसुदेव के साथ हुआ। अपनी बहन का रथ हांक कर वह स्वयं अपनी बहन को ससुराल छोड़ने जा रहा था।

तभी आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र उसका काल होगा। इतना सुनते ही उसने रथ को वापिस मोड़ लिया तथा देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया। एक-एक करके उसने देवकी के छः सन्तानों की हत्या कर डाली। धरती को कंस जैसे पापी के पापों के भार से मुक्त करने के लिए श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की गहन अन्धेरी रात में हुआ।कारागारके द्वारा स्वतः खुल गए। वसुदेव ने मौका का फायदा उठाया और उसे अपने मित्र नन्द के यहाँ छोड़ आए।

कंस किसी तरह उसके जीवित होने का संदेश मिल गया। उसने श्रीकृष्ण को मारने के अनेक असफल प्रयास किये और स्वयं काल का ग्रास बन गया। बाद में श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता को मुक्त कराया। जन्माष्टमी के दिन प्रातः काल लोग अपने घरों को साफ करके मन्दिरों में धूप और दीये जलाते हैं। इस दिन लोग उपवास भी रखते हैं। मन्दिरों में सुबह से ही कीर्तन, पूजा पाठ, यज्ञ, वेद पाठ, कृष्ण लीला आदि प्रारंभ होते हैं।

जो अर्द्धरात्रि तक चलते हैं। ठीक 12 बजे चंद्रमा के दर्शन साथ ही मन्दिर शंख और घड़ियाल की ध्वनि से गूंज उठती है, आरती के बाद लोगों में प्रसाद बाँटा जाता है। लोग उस प्रसाद को खाकर अपना व्रत तोड़ते है और अपने घर आकर भोजन इत्यादि करते हैं।

जन्माष्टमी पर मन्दिर चार पांच दिन पहले से ही सजने प्रारंभ हो जाते हैं। इस दिन मन्दिरों की शोभा अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाती है। बिजली से जलने वाले रंगीन बल्बों से मन्दिरों को सजाया जाता है। जगह जगह पर झाकियां निकलती है जो गोली, मोहल्लों दुकानों से होती हुई मन्दिरों तक पहुंचती हैं।

मन्दिरों में देवकी-वसुदेव-कारागार कृष्ण हिण्डोला विशेष आकर्षण के केंद्र होते हैं। सभी भक्तगण हिण्डोले में रखी कृष्ण प्रतिमा को झुलाकर जाते हैं। श्रीकृष्ण के जन्म-स्थल मथुरा और वृन्दावन में मन्दिरों की शोभा अद्वितीय होती है। भक्तगणों का सुबह से तांता लगा रहता है। जो अर्धरात्रि तक थामे नहीं थमता।

इस दिन समाज सेवक भी मन्दिरों में आकर हाथ बँटाते हैं। इस दिन मन्दिरों में इतनी भीड़ हो जाती हैं कि लोगों को पंक्तियों में खड़े होकर भगवान के दर्शन करने पड़ते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से मन्दिर के बाहर पुलिस के कुछ जवान तैनात रहते हैं।

श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में उनके गुण थे, जिसके कारण वह हिन्दुओं महानायक बने-उन्होंने गरीब मित्र  सुदामा से मित्रता निभाई, दुराचारी शिशुपाल का वध किया, पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आने वाले अतिथियों के पैर और जूठी पत्तलें उठाईं, महाभारत के युद्ध में अपने स्वजनो को देखकर विमुख अर्जुन को आत्मा की अमरता का संदेश दिया, जो हिन्दुओं का धार्मिक ग्रंथ ‘श्रीमद्भगवतगीता’ बना। यही ग्रंथ आज दार्शनिक परम्परा की आधारशिला है।

उन्हीं श्रीकृष्ण की प्रशंसा में ‘भगवत् पुराण’ अनेक नाटक और लोकगीत लिखे गए जो आज भी मन्दिरों में गए जाते हैं। श्रीकृष्ण का चरित्र हमें लौकिक और अध्यात्मिक शिक्षा देता है। गीता में उन्होंने स्वयं कहा है कि व्यक्ति को मात्र कर्म करना चाहिए फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ निष्काम कर्म व्यक्ति को कर्मठ बनाता है।  फल प्राप्ति कि भावना से उठकर वह देवत्व को प्राप्त कर देवमय ही हो जाता है।