अंतर्राष्ट्रीय टाइगर दिवस पर निबंध – Essay On International Tiger Day in Hindi

बाघों की घटती संख्या और इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढाने हर साल 26 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथाॅरिटी के मुताबिक 2014 में आखिरी बार हुई गणना के अनुसार भारत में 2226 बाघ हैं। जो कि 2010 की गणना की तुलना में काफी ज्यादा है। 2010 में बाघों की संख्या 1706 थी। नए आंकड़ों के मुताबिक, देश में बाघों की संख्या 2967 पहुँच गई है। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन 2018 जारी किया। इसके मुताबिक 2014 के मुकाबले बाघों की संख्या में 741 बढ़ोतरी हुई है।

अंतर्राष्ट्रीय टाइगर दिवस पर निबंध – Long and Short Essay On International Tiger Day in Hindi

बाघ संरक्षण के काम को प्रोत्साहित करने, उनकी घटती संख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की घोषणा हुई थी। इस सम्मेलन में मौजूद कई देशों की सरकारों ने 2022 तक बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया था।

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक दुनिया में लगभग 3,900 बाघ ही बचें हैं। 20वीं सदी की शुरुआत के बाद से वैश्विक स्तर पर 95 फीसदी से अधिक बाघ की संख्या एक लाख से ज्यादा थी।

इसके कई कारण हैं। वन क्षेत्र घटा है। इसे बढ़ाना और संरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती है। चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन जैसी भी चुनौतियां शामिल हैं।

बाघों की जिंदा प्रजातियां :-

साइबेरियन टाइगर, बंगाल टाइगर, इंडोचाइनीज टाइगर, मलायन टाइगर और सुमात्रन टाइगर ।

विलुप्त हो चुकीं प्रजातियां:-

बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर।

प्रोजेक्ट टाइगर :-

1973 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गाँधी ने टाइगर प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत में उपलब्ध बाघों की संख्या के वैज्ञानिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और पारिस्थिक मूल्यों का संरक्षण सुनिश्चित करना है। इसके अंतर्गत अबतक 50 टाइगर रिजर्व बनाए जा चुके हैं।

दुनिया के लिए आदर्श बनता भारत

भारत में बाघों की बढती संख्या इस बात का संकेत है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने अन्य देशों की तुलना में बाघ संरक्षण पर काफी मेहनत की है। उत्तराखंड भारत के बाघों की राजधानी के रूप में उभर रहा है। उत्तराखंड के हर जिले में बाघों की उपस्थिति पायी गई है।

वन विभाग के साथ साथ राज्य सरकार इन अध्ययनों से काफी उत्साहित है और केन्द्र सरकार को इस संबंध में रिपोर्ट भेजेगी। उत्तराखंड में 1905 से 2019 के बीच किये गये विभिन्न शोधों व अध्ययनों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है। इस दौरान विभिन्न डब्ल्यूआईआई के रिपोर्टों के आलावा विभिन्न समय में लगाए गए कैमरा ट्रेपों व मीडिया रिपोर्टों को आधार बनाया गया है।

वन कर्मचारियों और ग्रामीणों द्वारा बाघों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष साक्ष्य जैसे पगमार्क, चिन्ह इत्यादि को भी आधार बनाया गया है। उन्होंने कहा कि भौगालिक रूप से देखा जाए तो उत्तराखंड उच्च हिमालय, मध्य हिमालय के आलावा तराई के मैदानी हिस्सों में बंटा हुआ है। खास बात यह है कि इन तीनों हिस्सों में बाघों की उपस्थिति के संकेत मिले हैं।