अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोध दिवस पर निबंध – Essay On International Anti Corruption Day in Hindi

31 अक्टूबर 2003 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर ‘अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस’ मनाए जाने की घोषणा की। भ्रष्टाचार के खिलाफ संपूर्ण राष्ट्र एवं दुनिया का इस जंग में शामिल होना एक शुभ घटना कही जा सकती है, क्योंकि भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या है।

अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोध दिवस पर निबंध – Long and Short Essay On International Anti Corruption Day in Hindi

भ्रष्टाचार क्या है? सार्वजनिक जीवन में स्वीकृत मूल्यों के विरुद्ध आचरण को भ्रष्ट आचरण समझा जाता है। आम जनजीवन में इसे आर्थिक अपराधों से जोड़ा जाता है।

भ्रष्टाचार में जिन्हें माना जाता है वह तथ्य है चुनाव में धांधली बाजी करना लिंगानुपात में पक्षपात करना दबंगों के द्वारा हफ्ता वसूली कराना जबरजस्ती चंदा लेना अपने विरोधियों को हराने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करना न्यायाधीशों के द्वारा गलत या पक्षपात करना ब्लैक मेकिंग कर ना कर चोरी करना झूठी गवाही देना झूठा मुकदमा करना परीक्षा में नकल करना परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन करवाना  पैसा देकर संसद में गलत प्रश्न पूछना मजीरा बैठना पैसे लो लेकर गलत रिपोर्ट बनाना अपने घर जरूरी काम को करवाने के लिए घूस देना पुरस्कारों के लिए चयन में पक्षपात करना आदि भ्रष्टाचार के मुख्य कारण पूरा देश भ्रष्टाचार में लिप्त होता है और गरीबों आम जनता का इस प्रकार से शोषण होता है।

सरकारी वह सत्ता में रहकर संसाधनों का उपयोग निजी रूप से अपने फायदे के लिए जब किया जाता है तो उसे भ्रष्टाचार कहा जा सकता है एक दूसरी ओर एक सार्थक परिभाषा यह है कि निजी या सार्वजनिक जीवन में किसी भी स्वीकार्य मानक के चोरी-छिपे कोई काम करना भ्रष्टाचार का माना जाता है। विभिन्न तौर पर उसके मांगों में देश काल के हिसाब से कुछ संशोधन भी होता रहता है.

जैसे कि भारत में रक्षा सौदों में कमीशन खाना अवैध है इसे देश विरोधी और भ्रष्ट मानकर घोटाला कहां जाता है लेकिन विश्व के कई विकसित देशों में यह अवैध नहीं माना जाता के बीच में भेज ने भी भ्रष्टाचार को बहुत ही रहस्यमई बनाया है भ्रष्टाचार का मुद्दा एक ऐसा राजनीतिक मुद्दा है जिसके कारण कई बार केवल सरकार बदल जाती है बल्कि  कई बार ऐतिहासिक परिवर्तन देखने को मिले हैं

वैसे तो भ्रष्टाचार ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रखा है, पर यदि हम अपने देश भारत की बात करें तो ये सबसे ज्यादा ऊपर के स्तर पर मौजूद दिखता है। पिछले काफी अरसे से देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी मजे कर रहे हैं। पंचायतों से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है।सरकारी दफ्तरों के चपरासी से लेकर आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुंह बात तक नहीं करते। भ्रष्टाचार के कारण जहां देश के राष्ट्रीय चरित्र का हनन होता है,

वहीं देश के विकास की समस्त योजनाओं का उचित पालन न होने के कारण जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता। जो ईमानदार लोग होते हैं, उन्हें भयंकर मानसिक, शारीरिक, नैतिक, आर्थिक और सामाजिक यंत्रणाओं का सामना करना पड़ता है। अधिकांश धन कुछ लोगों के पास होने पर गरीब-अमीर की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। विभिन्न प्रकार के करोड़ की चोरी जिसके कारण देश को बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है.

भारत की वास्तविक प्रतिभाओं को ठुमका लगा जा रहा है इसी भ्रष्टाचार के कारण लोग आत्महत्या ए भी कर लेते हैं यह भ्रष्टाचार रूपी बीमारी ने कैंसर की तरह एक प्रचंड रूप ले लिया है रोग बढ़ता ही जा रहा है वह कहावत कि जितना दवा लिया रोग उतना ही बढ़ता गया है जैसे चरितार्थ ही होता नजर आ रहा है सरकार संसद और समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोग को कई संगठन जागरूक तो हुए हैं और कोई सराहनीय कार्य अभी तक देखने को मिला ले जिससे भ्रष्टाचार में कमी नजर आए।

अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में भी लगातार तरक्की कर रहा है। विकास के मामले में भारत दुनिया में कितना ही पीछे क्यों न हो, मगर भ्रष्टाचार के मामले में नित नए कीर्तिमान बना रहा है।लेकिन इसके लिए जरूरी है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक नई राजनीतिक शक्ति को संगठित करने की। ऐसा इसलिए जरूरी है,

क्योंकि वर्तमान सरकार के कार्यकलाप और नीयत पर भी धीरे-धीरे भरोसा उठने लगा है। यहां यह भी विचारणीय है कि लगभग अन्ना हजारे वाले मुद्दों को लेकर ही जेपी ने आंदोलन छेड़ा और तत्कालीन सरकार को हटने पर मजबूर किया। स्थितियां आज भी वैसी ही बन चुकी हैं। सबब यह है कि हम जेपी आंदोलन की कमियों से प्रेरणा लें और एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें कि भ्रष्टाचार और ऐसी ही समस्याएं बार-बार सिर उठाने का प्रयत्न न करें।

हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, आर्थिक अपराध आदि बहुत-सी बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय, आशंका एवं असुरक्षा की भावना घर कर गई है। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वे महत्वपूर्ण होते हैं। पर यहां तो निराशा और भय की लंबी रात की काली छाया व्याप्त है।

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में एक भरोसा जगा था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन की सरकार में जिस तरीके से भ्रष्टाचार हुए सरकारी तंत्र के ऊपरी क्षेत्र से लेकर के कार्यालय के निम्न स्तर तक जिस प्रकार से घोटाले सामने आए वह बहुत ही निंदनीय था नई सरकार में प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ उम्मीदें जागृत कीजिए कई वादे किए थे.

विदेशी धन भारत में लाने के प्रतिज्ञा ली थी यीशु के माध्यम से उन्होंने प्रयास भी किए पर वह प्रयास असफल ही नजर आया सरकारी आंकड़ों के साथ-साथ अन्य गैर सरकारी संगठन के सर्वे में भी के बाद साबित हुआ कि पिछली सरकार की तुलना में वर्तमान सरकार में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुआ है।

ऐसा इसलिए जरूरी हो गया कि हमारा राष्ट्र नैतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में मनोबल, नैतिकता एवं चरित्र के दिवालिएपन के कगार पर खड़ा हो गया था और हमारा नेतृत्व गौरवशाली परंपरा की अक्षुण्णता, वास्तविक विकास और हर भ्रष्टाचारमूलक खतरों से मुकाबला करने में नकारा साबित हो गया था। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी नेकनीयत का बखान कर रहे हैं, देखना यह है कि वे भ्रष्टाचार को समाप्त करने में कितने सफल होते हैं।