खुशी पर निबंध – Essay on Happiness in Hindi

खुशी का वास्तविक अर्थ  अंतरात्मा का प्रसन्न होना।  आप बाहय रूप से खुश दिख रहे हो पर यदि आपका मन कई तरह की तृष्णाओं से ग्रस्त है तो आप खुश नहीं है।  यदि आप खुश है तो आप हर जगह एडजस्ट कर लेते है अथार्त आप हर परिस्थति और समस्या के अनुसार अपने आपको समायोजित  करना जानते है।

खुशी पर निबंध – Long and Short Essay on Happiness in Hindi

हमारे जीवन में ख़ुशी का होना बहुत आवश्यक है अन्यथा हमारा जीवन नीरस हो जायेगा और हमारा मन किसी भी स्थान , कार्य में नहीं लगेगा।  यदि आप खुश है तो आपका व्यवहार दुसरो के लिए काफी सकारात्मक होगा और दुसरो को खुश रखने व करने का प्रयास करेंगे।

आजकल के इस कलयुगी और विलसत्पूर्ण  संसार में जैसे ख़ुशी का अर्थ ही ख़तम हो गया है।  आजकल लोग अपने दिन प्रतिदिन के कार्यो में इतने अधिक व्यस्त है कि उनके पास अपनों के पास बिताने के लिए भी समय नहीं है।  आज युग में हमारे पास अपने खुद के माँ -बाप , बच्चो के लिए ही समय नहीं है जिसके कारण हम वास्तविक प्रसनत्ता का महत्व ही भूल गए है।

अगर आजकल के बच्चो की तरफ नजर डाले तो वह लेपटॉप , मोबाइल की दुनिया में इतने मगन है कि उन्हें भी उसे से ख़ुशी मिलती है जबकि वास्तव में वो एक भौतिक सुख को जी रहे है जोकि बहुत जल्दी ख़तम हो जायेगा।  जैसे यदि अगर आज मोबाइल चाहिए तो कल उसका स्थान टेबलेट ले लेगा और फिर लैपटॉप।  इस तरह कही भी हमारे बच्चों या हमारी खुशियों में कही भी स्थिरता नहीं है जो हमें आंतरिक ख़ुशी का अहसास कराय।

ख़ुशी की परिभाषा हर किसी के अनुसार अलग अलग होगी।  इसका कारण जब कोई दो इंसान आपस में नहीं मिलते जुलते तो उनके विचार भी हर विषय पर कही न कही अलग होंगे।  ख़ुशी के अर्थ या परिभाषा अथवा तर्क में सबका अपना नजरिया है।  कुछ लोग ख़ुशी को हमारे मन में उत्पन्न होने वाले सकरकमक विचारो या पोस्टिव फीलिंग को ही ख़ुशी मान लेते है तो कुछ लोग संतुष्टि को ख़ुशी मान लेते है।

ख़ुशी को कैसे प्राप्त करे?

यह विचार या समस्या आज कल सभी की है कि मैं खुश रहूँ , वास्तव में ये:  मैं ” शब्द ही हमें खुश नहीं रहने देता क्युँकि “मैं ” सबद में अहम् की भावना आ जाती है और जब हम सिर्फ अपने खुश रहने के बारे में सोचते है तो हमारी ख़ुशी तुच्छ हो जाते है जिसके कारण हम खुश होकर भी खुश नहीं होते।

यदि किसी को तकलीफ देकर हम अपना स्वार्थ संतुष्ट कर लेते है तो हम खुश तो होते है पर प्रसन्न नहीं होते या दूसरे शब्दों में कहे हम खुश तो है अपर आंतरिक मन से नहीं।  अब प्रश्न उठता है हम खुश अथवा प्रसन्न कैसे रहे।  कहते है यदि आप किसी गरीब की , या मददगार की मद्दद करते है तो आपको एक आत्मिक सुख का अहसास होता है वही वास्तव में असली ख़ुशी है जिससे न केवल अपने दूसरे इंसान को खुश करने के लिए कदम उठाया बाकि आपको खुद को भी ख़ुशी का अहसास हुआ।

यदि आपको आपके मन के अनुसार कोई चीज मिल जाती है तो आप खुश हो जाते है और अगर न मिले तो दुखी हो जाते है।  इसका मतलब हमारी ख़ुशी भौतिक वस्तुओं पर निर्भर करती है।  हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भले हमें हमारे मन के अनुसार कोई वस्तु मिले या न मिले पर हम हर परिस्थिति में खुश रहेंगे।

वास्तविक सुख अथवा ख़ुशी

आपका वास्तविक सुख , ख़ुशी क्या है ये शायद अधिकांश लोग नहीं जानते।  इसलिए रोज़ कुछ न कुछ नया खोजते रहते है खुद को खुश रखने के लिए ताकि हम खुश रह सके।  यदि हम किसी को देख कर जलन व अपने मन किसी तरह का असंतुलन महसूस करते है या फिर हमें उस इंसान से ईष्र्या होने लगती है जिसके कारण हम दुखी रहने लगते है और अपने जीवन में विधवमान वास्तविक सुख को भी अनुभव नहीं कर पाते।  इसलिए यदि हमें जीवन में वास्तविक सुख और ख़ुशी को महसूस करना है तो सबसे पहले दूसरों की सफलता देख कर स्वयं को किसी भी प्रकार से तुच्छ न समझे।  जो प्रतिभा सामने वाले इंसान में वो आप के अंदर भी है।  बस आपको उसे पहचानना है , दूसरों से प्रेरणा ले , और अपनी वास्तविक ख़ुशी को ढूंढ़ने का प्रयास करे।

नकारात्मक विचारो का बहिष्कार

यदि आप स्वयं को खुश रखना चाहते है तो सबसे पहले आपको अपने भीतर विधमान नेगेटिव थिंकिंग को उखाड़कर बाहर फेंकना होगा अथार्त यदि आपके मन कोई भी तुच्छ विचार चल रहा है जैसे मेरा दोस्त तो कितनी तरक्की कर रहा है और मैं वही क्लर्क की नौकरी कर रहा हूँ।  आप स्वयं को किसी से काम न समझो इसका कारण यह है जो क्वालिटी या योगयता आप में है वो किसी दूसरे में नहीं है।  इस संसार में भगवान ने भी सबको एक जैसा नहीं बनाया और हर किसी के अंदर कुछ न कुछ योग्यता होती है बस हमें उसे पहचानना होता है ताकि हम अपने जीवन में खुश रह सके और एक अचे जेवण शैली का निर्वाह कर सके। कहा जाता है जैसे बोइगे वैसा पयोगे अथार्त अगर हम किसी को ख़ुशी देने का प्रयास करते है तो बदले हमें भी ख़ुशी का अहसास होता है।

ख़ुशी कहाँ मिलती है

बाजारों में या घर के चार दीवारों में

पता इसका कोई बता नहीं पाया

ये सोच कर में रात भर सो नहीं पाया

बिकती  है क्या बड़ी दुकानों में या मझधारो में

तुम्हे मिले तो पता उसे मेरा दे देना

मुझको तो उसका बसेरा मिल नहीं पाया

ख़ुशी या सुख दो प्रकार का होता है :- अल्पकालीन या दीर्धकालीन।

अल्पकालीन सुख :- अलपकालीन सुख वह होता है जो आपको कुछ समय अथवा एक निश्चित समय का सुख और ख़ुशी का अहसास कराता है जैसे यदि आपको कपड़े खरीदना , बाहर घूमने जाना , खाना खाने का शौकीन होना तो ये सब आपका अल्पकालीन सुख है जिसकी पूर्ति होने पर दूसरा कोई ऑप्शन अथवा तरीका खोजते है स्वयं को खुश रकने का।

दीर्धकालीन सुख :- जबकि दीर्धकालें सुख वह है जो आपको जिंदगी भर खुश रखता है जैसे यदि आप किसी भी इम्तिहान में पास हो जाते और आपकी अच्छी नौकरी लग जाते है जिससे आपका और आपके परिवार को भविष्य के लिए चिंतित नहीं रहना पड़ता तो यह आपका दीर्धकालीन सुख है।

निष्कर्ष

वास्तव में ख़ुशि कोई चीज या वस्तु नहीं जिसे किसी बाजार की दुकान से अप्प खरीद सकते है।  यह आपके अंदर ही विधमान एक अहसास है और यह हम पर पर निर्भर करता है कि हमें खुश कैसे रहना है. हमे ये सोच कर खुश रहना है कि हमने जो चाहा हमें मिल गया और अगर नहीं मिला तो हम उदास हो गए।  इस तरह हम जीवन के वास्तविकता को कभी नहीं समझ पाएंगे।  हमारा संतुष्ट रहना ही हमारे सबसे बड़ी ख़ुशी है।

सुख भी बहुत परेशानियाँ भी बहुत है ,

जिंदगी में लाभ है तो हानियाँ भी बहुत है।

क्या हुआ जो झोली में थोड़े गम है मेरे ,

मेरे पास भगवन की मेहरबानियाँ बहुत  है।

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