गुरु पूर्णिमा पर निबंध – Essay On Guru Purnima in Hindi

गुरु पूर्णिमा का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ (जून-जुलाई) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 5 जुलाई 2020 को मनाया गया था । यह नेपाल में मुख्य रूप से हिन्दू, बुद्ध और जैन धर्म के लोग मनाते हैं।

गुरु पूर्णिमा पर निबंध – Long and Short Essay On Guru Purnima in Hindi

इस दिन गुरुओं, शिक्षकों की पूजा और सम्मान किया जाता है।यह पर्व वर्षा ॠतु की शुरुआत में मनाया जाता है। मौसम बहुत ही सुखद होता है, न बहुत गर्मी होती है न बहुत सर्दी। ऐसे सुहावने दिनों में गुरु और शिष्य एक साथ एकत्र होकर ज्ञान बढते हैं। शिष्यों को नई दीक्षा और पाठ पढाया जाता है।

यह दिन महाभारत ग्रंथ के रचयिता महर्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में भी मनाते हैं। इन्होंने चारों वेदों की रचना भी की थी। इसलिए आपको “वेद व्यास” के नाम से पुकारा जाता है। इनको सम्पूर्ण मानव जाति का गुरु माना जाता था। गुरु पूर्णिमा के दिन ही संत कबीर के शिष्य संत ‘घासीदास का जन्मदिवस’ भी कहा जाता है।

इस दिन ही भगवान गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। इस दिन ही भगवान शिव ने सप्तॠषियो को योग का ज्ञान दिया था और प्रथम गुरु बने थें। गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।

“गुरु” शब्द गु और रु शब्दों से मिलकर बना है। गु का अर्थ है अन्धकार और रु का अर्थ है मिटाने वाला। इस प्रकार गुरु को अन्धकार मिटाने वाला या अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला कहा जाता है।

“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,

चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः”

अर्थात जिस तरह देवताओं की पूजा की जाती है उसी तरह से गुरु की पूजा भी करनी चाहिए क्योंकि उसने ही इश्वर से मिलवाया है। सही गुरु के न होने पर व्यक्ति जीवन में भटक जाता है। स्कूलों में हमारे गुरु (शिक्षक) ही पढना, लिखना, सही आचरण करना सिखाते हैं।

“गुरु गोविन्द दोऊ खड़े का के लागु पाँव,

बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय।

अर्थात यदि भगवान और गुरु दोनों सामने खड़े हो तो मुझे गुरु के चरण पहले छूना चाहिए क्योंकि उसने ही इश्वर का बोध करवाया है। गुरु का स्थान भगवान से भी उंचा हैं। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य को अपना गुरु बनाकर ही राजा का पद पाया था। इतिहास में हर महान राजा का कोई न कोई गुरु जरुर था। गुरु और शिष्य का रिश्ता बहुत मधुर होता है।

गुरु ही अपनी शिक्षा देकर हमारा स्वंय से आत्मसाक्षात्कार करवाता है। इसलिए गुरु की महत्वता आजीवन बनी रहती है। देवताओं के गुरु देवगुरु बृहस्पति थे तो असुरों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस तरह समाज के सभी वर्गों को गुरु की आवश्यकता पड़ी। सिख धर्म में गुरु का विशेष महत्व होता है। सिख धर्म के लोग अपने 10 गुरुओं की पूजा करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलते हैं। प्राचीन भारत में आज की तरह स्कूल, कॉलेज न थे। उस समय गुरुकुल जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे। वो गुरुकुल (आश्रम) में ही रहते थे, वहीं रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे।

ये व्यवस्था आज के जमाने की आवासीय स्कूल योजना के समान थी। शिष्य ही भिक्षा मांगने का काम करते थे। भिक्षा में जो भी प्राप्त होता था उसे सबसे पहले गुरु को लाकर देते थे। शिक्षा की ऐसी प्रणाली बहुत श्रेष्ठ मानी जाती थी। अनेक राजा महाराजा की संतानें भी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करते थे।

नेपाल में गुरु पूर्णिमा का विशेष आयोजन

नेपाल में इसे गुहा पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। छात्र अपने गुरु को स्वादिष्ट व्यंजन, फूल मालाएं, विशेष रूप से बनाई गई टोपी पहनाकर गुरु का स्वागत करते हैं। स्कूल में गुरु की मेहनत को प्रदर्शित करने के लिए मेलों का आयोजन किया जाता है। इस दिवस को मनाकर गुरु-शिष्य का रिश्ता और भी मजबूत हो जाता है।