गाँधी जयंती पर निबंध – Essay On Gandhi Jayanti in Hindi

करोड़ों पैरों को अपने पीछे चलने की प्रेरणा देने वाले कोई और नहीं मोहनदास करमचंद गाँधी थे , जिन्हे भारतवर्ष में ‘बापू’ के नाम से और संसार में महात्मा गाँधी के नाम से जाना गया।  गाँधी जी के सम्मान ने प्रत्येक वर्ष २ अक्टूबर को उनके जन्मदिवस को गाँधी जयंती के रूप में मनाया जाता है.

गाँधी जयंती पर निबंध – Long and Short Essay On Gandhi Jayanti in Hindi

जिसमे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन कर के हम बापू को याद करते हैं।  अपने जीवनकाल में पूरे विश्व में गाँधी जी ने अहिंसा के लिए कई आंदोलन किये और यही वजह है की २ अक्टूबर को उनके सम्मान में विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।  भारत देश कई वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा है किन्तु गाँधी जी ने बिना कोई शस्त्र उठाये देश को आज़ादी दिलाने का महान कार्य किया जिसके लिए देश उनका सदैव ऋणी रहेगा और उन्हें सदा याद किया जायेगा।

इंग्लैंड से कानून की पढाई  करने के बाद नौकरी करने के बजाय गाँधी जी देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करके अपना जीवन देश की सेवा करने में समर्पित कर दिया और गाँधी जी के प्रयासों के ही परिणामस्वरूप सन्  1947 में भारतवर्ष को आज़ादी मिली और अंग्रेजों को देश छोड़ के जाना पड़ा।

गाँधी जयंती कैसे मनाते हैं ?

प्रत्येक वर्ष पूरे देश में 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्मदिवस बड़े ही उत्साह के साथ तथा धूमधाम से मनाते हैं । हमारे बीच ना होने के बावजूद भी हम सभी तहे दिल से उन्हें याद करते हैं।  गाँधी जी मात्र भारतवर्ष ही नहीं अपितु पूरे विश्व में चर्चित थे , यही कारण है की 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।  गाँधी जयंती तथा अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष देश में राष्ट्रीय अवकाश मनाया जाता है।

इसके साथ साथ स्कूलों , दफ्तरों में कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है जहाँ पर गाँधी जी के जीवन परिचय तथा उनके द्वारा किये गए योगदानों के बारे में लोगों को अवगत कराया जाता है। गाँधी जयंती के माध्यम से ही लोगों को शांति ,सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी जाती है। देश की स्वतंत्रता के लिए गाँधी जी ने अपना संपूर्ण जीवन का योगदान कर दिया , उनके इस योगदान के लिए देश सदैव उनका ऋणी रहेगा तथा हमेशा उन्हें याद किया जायेगा ।

गाँधी जी का जीवन परिचय

गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में काठियावाड़ के एक वैश्य परिवार में हुआ।  उनकी माता पुतलीबाई अत्यंत धार्मिक प्रवृति की महिला थीं। उनके घर में रामायण और भागवत का पाठ  होता था और भक्ति के गीत गाये  जाते थे।  जन्म से ही धार्मिक परिवेश में पलकर गाँधी जी अत्यधिक धार्मिक चरित्र के व्यक्ति के रूप में विकसित हुए।  उन्होंने अपनी आत्मकथा में अपने बाल्यकाल के इस धार्मिक वातावरण का वर्णन किया है और उसके प्रभाव को माना है।  वास्तव में किसी भी व्यक्ति के वक्तित्व का निर्माण उसके बचपन में मिले संस्कारों पर निर्भर करता  है। सन 1888 में वे कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए।

गाँधी जी एक प्रतिभाशाली और परिश्रमी विद्यार्थी थे।  वकील की हैसियत से वे जनता के लिए न्याय प्राप्त करना और अधिकतर वादों को परस्पर समझौते और सहयोग से निपटाना उचित समझते थे।  इस प्रकार आरम्भ से ही गाँधी जी एक आदर्शवादी व्यक्ति रहे हैं।  सन 1891 में वे इंग्लैंड में बैरिस्टर की परीक्षा पास कर के देश वापस आये।  शीघ्र ही गाँधी जी को वकालत के काम  से दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा।  यहाँ पर उन्हें कुछ ऐसे अनुभव हुए जिस से उन्हें भारतवासियों  की स्थिति का अनुभव मिला।

उस से उन्हें संघर्ष करने की प्रेरणा मिली दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी 20 वर्षों तक रह के वहां बसे हुए भारतीयों एवं काले लोगों को उनके मानव सुलभ अधिकार दिलाने का प्रयत्न करते रहे। सन 1901 में भारत लौटे और इसी वर्ष उन्होंने कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन में भारत के राजनैतिक जीवन का आरम्भ किया। 25 मई 1914 को उन्होंने अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की तदन्तर भारतीय राजनीति  की बागडोर संभाली।

गाँधी जी के द्वारा किये गए प्रमुख आंदोलन

देश की आज़ादी के लिए गाँधी जी ने अनेक आंदोलन लिए उदाहरणस्वरूप

  • सन् 1920-21 का असहयोग आन्दोलन
  • सन् 1930 का नमक सत्याग्रह आंदोलन
  • सन् 1921 का इर्विन समझौता
  • सन् 1931का द्वितीय गोल मेज सम्मेलन
  • सन् 1932 में सरकार का सांप्रदायिक निर्णय और गांधी जी द्वारा आमरण अनशन
  • हरिजनोद्धार के साथ साथ खादी ग्रामोद्योग के रचनात्मक कार्य।
  • द्वितीय महायुद्ध में किया गया भारत का सहयोग और कृप्स योजना की असफलता
  • सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन और गांधी जी की जेल यात्रा
  • पूना जेल में गांधी जी का 21 का उपवास
  • सन् 1944 में शिमला सम्मेलन की असफलता
  • सन् 1945 में युद्ध के समाप्त होने पर कैबिनेट मिशन का भारत आना
  • माउंट बेटन योजना और भारत विभाजन
  • 150 अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत की घोषणा

गांधी जी की मृत्यु

देश को आज़ादी  मिलने के बाद जब भारत के विभाजन की बात शुरू हुई तो वे बहुत दुखी थे । वे नहीं चाहते थे कि विभाजन हो , किन्तु परिस्थितियां ऐसी बन गई थी कि विभाजन हो कर रहा । दुख की बात तो यह है कि गांधी जी को समझने में हिन्दू और मुसलमान दोनों से ही भूल हुई । मुसलमानों की कट्टरवादिता ने भारत में भी एक कट्टरवादी हिन्दू संगठन को पैदा कर दिया था । गांधी जी उस संगठन की कट्टरवादी  नीतियों को पसंद नहीं करते थे । पाकिस्तान बनने पर गांधी जी  पाकिस्तान की आर्थिक मदद करना चाहते थे ,

किन्तु कट्टरवादी हिन्दुओं ने। इस नीति का विरोध किया और एक दिन जब वे अपनी संध्या की प्रार्थना सभा में सभी के धर्म ग्रंथों से पाठ कराने के। लिए प्रतिदिन की भांति का रहे थे तब वहीं पर 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे नमक व्यक्ति ने गांधी जी की गोली मार कर हत्या कर दी । मरते समय गांधी जी के मुख से “हे राम ! हे राम !” शब्द निकला , जिस से पता चलता है कि गांधी जी  का संपूर्ण जीवन एक हिंदू महात्मा के रूप में व्यतीत हुआ था  ।