बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध – Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi

इस पोस्ट में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi) के बारे में चर्चा करेंगे। जैसे कोई भी गाड़ी एक पहिए से नहीं चल सकती, ऐसे ही जीवन रुपी गाड़ी भी केवल पुरुषों से नहीं चल सकती है। जीवन चक्र में स्त्री और पुरुष दोनों की समान सहभागिता है।

बेटियों की घटती संख्या देश के लिए चिंता का विषय है। चूकिं यह आज का बड़ा ज्वलंत विषय है, इसीलिए प्रायः इस मुद्दे पर विचार मंत्रणाएं की जाती रहती है। इसी बात को ध्यान में रखकर और इसकी गंभीरता को समझते हुए इस पर हम कुछ निबंध प्रस्तुत कर रहें हैं।

उदाहरण 1. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध – Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi

हम सभी जानते हैं कि हमारा भारत देश एक कृषि प्रधान देश है और पुरुष-प्रधान देश है। यहाँ सदियों से स्त्रियों के साथ ज्यादतियां होते आई है। जब ईश्वर होकर माता सीता इस कुप्रथा से नहीं बच पायी, फिर हम तो मामूली इंसान है, हमारी क्या औकात।

ये पुरुष-प्रधान समाज लड़कियों को जीने नहीं देना चाहता। मुझे समझ नही आता, मैं इन मर्दो की सोच पर हंसु या क्रोधित होऊं। ये जानते हुए भी कि उनका अस्तित्व भी एक महिला के कारण ही है, फिर भी ये पुरुष समाज केवल पुत्र की ही कामना करता है। और अपने इस पागल-पन में न जाने कितनी लड़कियों का जीवन नष्ट किया है।

‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान’ क्या है।

देश में लगातार घटती कन्या शिशु-दर को संतुलित करने के लिए इस योजना की शुरुआत की गयी। किसी भी देश के लिए मानवीय संसाधन के रुप में स्त्री और पुरुष दोनों एक समान रुप से महत्वपूर्ण होते है।

केवल लड़का पाने की इच्छा ने देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है, कि इस तरह के योजना को चलाने की जरुरत आन पड़ी। यह अत्यंत शर्मनाक है।

यद्यपि स्त्रियों के साथ भेदभाव समूल विश्व में होता है। यह कुछ नया नहीं है। आज भी समान कार्य के लिए लड़कियों को अपेक्षाकृत कम वेतन दिए जाते है। कहीं अधिक काबिल होने के बाद भी।

उपसंहार

लड़कियों के साथ शोषण होने के पीछे मुख्य कारण अशिक्षा भी है। अगर हम पढ़े-लिखे शिक्षित होते हैं तो हमें सही-गलत का ज्ञान होता है। जब बेटियां अपने पैर पर खड़ी होंगी तो कोई भी उन्हें बोझ नहीं समझेगा।

इसीलिए ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम’ के माध्यम से बेटियों को अधिक से अधिक शिक्षित बनाने पर जोर दिया जा रहा है। शिक्षित लोगों के साथ कुछ भी गलत करना आसान नहीं होता। लड़की पढ़ी-लिखी होगी तो न अपने साथ कुछ गलत होने देगी और न ही किसी और के साथ होते देखेगी। इसीलिए लड़की का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है।

उदाहरण 2. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध – Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi

‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान’ केवल एक योजना या अभियान नहीं है। यह लोगो की सोच से जुड़ा सामाजिक विषय है। हमें इसके पीछे छिपी लोगों की ओछी सोच को बदलना है, जो कि कठीन कार्य है। ईश्वर के बाद केवल महिलाओं के पास सृजन की क्षमता है। जरा सोचिए वो समाज कैसा होगा, जहां महिलाएं न हो (‘अ नेशन विदाउट वुमन’)।

केवल कल्पना करने की जरूरत है। तस्वीर खुद-ब-खुद साफ हो जायेगी। ऐसा कोई काम नहीं, जो लड़कियां नहीं कर सकती। वो भी देश की प्रगति में समान रुप से भागीदार है। इंदिरा गांधी से लेकर कल्पना चावला तक ऐसे लाखों नाम हैं, जिन्होने देश का नाम रौशन किया है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का उद्देश्य

“आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं।” –प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी

‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का शुभारंभ प्रधान मंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। हरियाणा में ही करने का मेन कारण वहां लिंग-अनुपात में सर्वाधिक अंतर है। यह योजना पुरे देश को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री जी ने पुरे देश का आह्वाहन किया, और सभी देशवासियों को एकजुट होकर लड़कियों की कम जनसंख्या को संतुलित करने का संकल्प किया।

इस योजना का दारोमदार तीन मंत्रालयों को सौंपा गया है, ये हैं – महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय।

इस योजना के तहत सबसे पहले सम्पूर्ण भारत में पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, 1994 (Pre-Conception & Pre-Natal Diagnostic Techniques Act, 1994) को लागू किया गया है। कोई भी ऐसा करते पकड़ा गया तो उसके लिए कड़े दंड के प्रावधान हैं।

साथ ही साथ यदि कोई चिकित्सक भ्रूण लिंग परीक्षण करते या भ्रूण-हत्या का दोषी पाया गया, तो उसे अपने लाइंसेंस रद्द के साथ साथ भयंकर परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। इसके लिए कानूनी कार्यवाही के आदेश हैं।

अब हर क्लिनिक हॉस्पिटल में ये साफ-साफ लिखा होता है कि, भ्रूण की लिंग की जांच कराना कानूनन जुर्म होता है। इन सब प्रयासों से बहुत सकारात्मक परिणाम आए हैं। लोगों की सोच भी बहुत हद तक बदली है

उपसंहार

इस संबंध में हरियाणा के बीबीपुर गांव के सरपंच ने अपने गांव में एक अनोखा तरीका निकाला, जिसके लिए उन्हें काफी प्रशंसा भी मिली। उन्होनें अपने गांव में ‘सेल्फी विद डॉटर’ नामक मुहिम चलाई। पीएम मोदी जी ने भी उनकी इस प्रयास की बड़ाई की और पूरे देश-वासियों से ऐसा करने को कहा।

और धीरे ही धीरे यह सोशल-मीडिया के द्वारा पूरी दुनिया में चर्चित और प्रसिध्द हो गया। मोदी सरकार की यह पहल रंग ला रही है। अब लोग अपनी लड़कियों के जन्म से खुश भी हो रहे हैं और उन्हें अच्छे से पढ़ा-लिखा कर काबिल भी बना रहे हैं।

उदाहरण 3. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध – Essay on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi

“यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता”

हमारे शास्त्रों और ग्रंथो में नारियों को आदरणीय स्थान प्राप्त है। कहा जाता था कि जहां नारियों की पूजा होती है, देवता वहीं निवास करते हैं। ये वो देश तो नहीं लगता, जहां ऐसी बातें होती हों। वैदिक काल का वो भारत अब केवल किताबों तक ही सीमित है। न ही अब वो देश हैं, न ही वैसी सोच।

आधुनिक भारत इतना आधुनिक हो गया है कि लड़कियों से उनके जीने का हक तक छीन लिया है। जब आप किसी को जन्म दे नहीं सकते तो उसे मारने का हक किसने दे दिया। जन्म और मृत्यु तो उस भगवान की देन है, किन्तु कुछ ज्यादा समझदार लोगों ने स्वयं को ही भगवान समझ लिया। और गर्भ में पल रही शिशु को केवल इसलिए मार दिया क्योंकि वे सभी लड़कियां थी।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की आवश्यकता

देश में महिलाओं और पुरुषों की संख्या में पर्याप्त अंतर है। इसी अंतर को पाटने के लिए इस योजना की जरुरत पड़ी। केवल उनकी संख्या में वृध्दि करना ही नहीं, बल्कि उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकना भी इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य है।

बड़ी अजीब बात है न, जितना देश और समाज विकसित होता जा रहा, उतना ही महिलाओं के खिलाफ क्राइम और हिंसा भी बढ़ती जा रही है। यह बात कुछ हज़म होने योग्य नहीं है।

जितना विज्ञान हमारे लिए वरदान है, कुछ मामलों में अभिशाप भी। मेडिकल और मेडिसीन मानव जाति के भलाई के लिए बनाये गये हैं। इसका सजीव उदाहरण सोनोग्राफी और अल्ट्रासाउण्ड मशीन है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे का जेंडर पता कर सकते हैं। गलती विज्ञान या वैज्ञानिक अविष्कारों की नहीं, बल्कि उसके उपयोग की है।

1991 की जनगणना से यह बात सामने आई थी, कि देश में लड़कियो की संख्या में भारी कमी देखी गई। तब इस ओर ध्यान दिया जाने लगा। बाद के वर्षो में, सन् 2001 की राष्ट्रीय जनगणना में यह स्थिति और भी भयावह होती गयी। महिलाओं की संख्या में गिरावट सन् 2011 तक लगातार जारी रहा।

सन् 2001 में भारत में लड़कियों और लड़कों का अनुपात 932/1000 था और 2011 तक आते-आते यह अनुपात 918/1000 तक घट गया था। इसका अर्थ यह है कि अगर समय रहते नहीं चेता गया तो, यह आंकड़ा घटते-घटते एक दिन शून्यता की स्थिति में आ जायेगा।

‘बिल्डिंग डाइवर्सिटी इन एशिया पैसिफिक बोर्ड’ नामक संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार विगत चार वर्षों में भारतीय कम्पनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या में लगभग 10% की बढ़ोत्तरी हुई है। यह बढ़ोत्तरी सबसे ज्यादा बिजनस और कॉरपोरेट वर्ल्ड में अंकित की गई है।

रिप्रेजेन्टेशन में महिलाओं की संख्या 2012 में 2.5% से बढ़कर 2015 में 12% तक हो गई। बोर्ड की सूचना को आधार माना जाय तो, महिलाओं की बोर्ड में लगभग 18%, टेलीकॉम क्षेत्र में 12%, आई.टी. क्षेत्र में 9% वित्तीय जैसे क्षेत्रों में भागीदारी है।

उपसंहार

जब एक बालक को पढ़ाया जाता है तो केवल एक इंसान ही शिक्षित होता है जबकि एक बालिका को पढ़ाने से दो-दो परिवार साक्षर होता है। साक्षर मां ही अपने बच्चे का चरित्र-निर्माण करती है। अतः वह जन्म-दाता ही नहीं, चरित्र निर्माता भी है, क्योंकि उसके अनेकों किरदार हैं। एक लड़की जनम लेकर सर्वप्रथम बेटी बनती है। अपने मां-बाप के लिए हर संकट में ढाल बनकर खड़ी रहती है। बहन बनकर भाई का सहयोग करती है, तो पत्नी बनकर अपने पति और ससुराल का हर सुख-दुःख में साथ देती है। मां बनकर अपने बच्चों पर सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। अपने बच्चों में संस्कार का बीजारोपण करती है।

रानी लक्ष्मीबाई, मैडम भीकाजी कामा, कल्पना दत्त आदि के नामों से हमारा इतिहास उज्ज्वलित है। विश्व की प्रख्यात महिलाओं में सावित्री जिन्दल, इन्दूजैन, किरण मजूमदार, शोभना इन्द्रा नूई, शिखा शर्मा, चंदा कोचर आदि ने विश्व पटल पर भारत का नाम रौशन किया है।

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